ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

সাম্প্রতিক প্রবন্ধ

Hindusim

Post Top Ad

স্বাগতম

17 April, 2025

अथर्ववेद 6/137/1

17 April 0

 

अथर्ववेद 6/137/1

एक वरिष्ठ वैदिक विद्वान् ने मुझे अथर्ववेद के निम्नलिखित मन्त्र का आधिदैविक और आध्यात्मिक भाष्य करने की चुनौती दी। इस चुनौती के उत्तर में मेरा त्रिविध भाष्य प्रस्तुत है।
यां जमदग्निरखनद् दुहित्रे केशवर्धनीम्।
तां वीतहव्यं आभरदसितस्य गृहेभ्य:॥ (अथर्व.6.137.1)
मेरे भाष्य से पूर्व आप देखें कि प्रसिद्ध वैदिक विद्वानों ने इस मन्त्र का भाष्य किस प्रकार किया है—
क्षेमकरणदास त्रिवेदी—
(केशवर्धनीम्) केश बढ़ाने वाली (याम्) जिस [नितत्नी ओषधि] को (जमदग्नि:) जलती अग्नि के समान तेजस्वी पुरुष ने (दुहित्रे) पूर्ति करने वाली क्रिया के लिये (अखनत्) खोदा है। (ताम्) उस [ओषधि] को (वीतहव्य:) पाने योग्य पदार्थ का पाने वाला ऋषि (असितस्य) मुक्त स्वभाव महात्मा के (गृहेभ्य:) घरों से (आ अभरत्) लाया है।
इस सूक्त में (नितत्नी) पद की अनुवृत्ति गत सूक्त से आती है। जिस प्रकार से वैद्य जन परम्परा से एक-दूसरे के पीछे शिक्षा पाते चले आये हैं, वैसे ही मनुष्य शिक्षा ग्रहण करते रहें।
प्रो. विश्वनाथ विद्यालंकार—
(केशवर्धनीम्) केशों को बढ़ाने वाली (याम्) जिष ओषधि को (जमदग्नि:) प्रज्वलित अग्नि वाले वानप्रस्थी (दुहित्रे) दुहिता सदृश कन्याओं के लिये (अखनत्) खोदा, (ताम्) उस ओषधि को (असितस्य) काले साँपों के (गृहेभ्य:) घरों अर्थात् जङ्गलों से, (वीतहव्य:) विगतहविष्क संन्यासी ने (आ अभरत् = आ अहरत्) प्राप्त किया।
[काले साँप अति विषैले होते हैं, प्राय: जङ्गलों में होते हैं। वानप्रस्थी भी वनों में रहते हैं। उदारहृदय परोपकारी वानप्रस्थी केशवर्धनी औषधि को कन्याओं के केश रोग के निवारण के लिये खोद रहते हैं और परोपकारी संन्यासी जब प्रचारार्थ गृहस्थों के घरों में जाते हैं, तो उसे ओषधि को कन्याओं में बाँट देते हैं। असितस्य = अ + सित (श्वेत), काला साँप। मन्त्र में असितस्य दुहित्रे, जमदग्नि:, वीतहव्य: — ये जात्येकवचन के प्रयोग हैं कन्याओं के यदि केश न हों, वे गञ्जी हों, तो उनका विवाह नहीं हो सकता। अत: केशवर्धनी ओषधि को खोद कर, उसका संग्रह कर रखना और उसका वितरण करना सामाजिक अत्युपकार है। वानप्रस्थियों के लिये यज्ञ करने की विधि है, संन्यासी वीतहव्य होते हैं, हवियों से विगत होते हैं।]
पद्मभूषण डॉ. श्रीपाद दामोदर सातवलेकर—
(जमदग्निः यां केशवर्धनीं दुहित्रे अखनत्) जमदग्नि ने जिस केशवर्धक औषधि को अपनी कन्धा के निमित्त खोदा (तां वीतहव्यः असितस्य गृहेभ्यः आभरत्) उसको वीतहव्य असित के घरों के लिये भर लिया।
आचार्य सायण का भाष्य भी इसी प्रकार का है।
इस मन्त्र का मेरा (आचार्य अग्निव्रत) भाष्य इस प्रकार है—
इस मन्त्र का ऋषि अथर्वा वीतहव्य है। [अथर्वा = प्राणो वा अथर्वा (शत.6.4.2.1), अथर्वाणोऽथर्वणवन्त: थर्वतिश्चरतिकर्मा तत्प्रतिषेध:]
इसका अर्थ यह है कि इस छन्द रश्मि की उत्पत्ति प्राण रश्मियों से होती है। ये प्राण रश्मियाँ विभिन्न बाधक रश्मियों के मध्य अविचल भाव से अपना कार्य करने में सक्षम होती हैं, इसी कारण इन्हें अथर्वा कहते हैं। इनको वीतहव्य इस कारण कहा गया है, क्योंकि ये इस सृष्टि यज्ञ में सर्वत्र व्याप्त रहते हुए हव्य का काम करती हैं। पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी ने इसका देवता ‘नितत्नी’ कहा है, जबकि पण्डित दामोदर सातवलेकर ने इसका देवता ‘नितत्नी वनस्पति’ कहा है।
[वनस्पति = अग्निर्वै वनस्पति: (कौ.10.6), वनानां पाता वा पालयिता वा (निरु.8.3), वनम् = रश्मिनाम (निघं.1.5)]
इसका छन्द अनुष्टुप् होने से इसके दैवत और छान्दस प्रभाव से बहुरंग अग्नि उत्पन्न वा समृद्ध एवं पूर्ण विस्तृत होने लगता है। इसके छान्दस प्रभाव से अग्नि तत्त्व को उत्पन्न वा समृद्ध करने वाली विभिन्न छन्द रश्मियाँ अनुकूलतापूर्वक कार्य करने में सक्षम होती हैं। इसका भाष्य इस प्रकार है—
आधिदैविक भाष्य—
(जमदग्नि:) [जमत् = ज्वलतोनाम (निघं.1.17), प्रजापतिर्वै जमदग्नि: (शत.13.2.2.14), आनुष्टुभ: प्रजापति: (तै.ब्रा.3.3.2.1)] अनुष्टुप् छन्द रश्मियों के प्रभाव से विशेष प्रज्वलित होता हुआ रंग-बिरंगा अग्नि (याम्, केशवर्धनीम्) [केश: = रश्मय: केशा: (तै.सं.7.5.25.1)] इसी कारण महर्षि यास्क ने ‘केशी’ पद का निर्वचन करते हुए लिखा है—
केशी केशा रश्मयस्तैस्तद्वान् भवति, काशनाद्वा,
प्रकाशनाद्वा केशीदं ज्योतिरुच्यत इत्यादित्यमाह (निरु.12.26)।
विभिन्न प्रकार की प्रकाश रश्मियों को समृद्ध करने वाली जिन गायत्र्यादि छन्द रश्मियों को [यहाँ ‘याम्’ पद बहुवचन अर्थ में एकवचनान्त प्रयुक्त हुआ है।] (दुहित्रे, अखनत्) [दुहिता = दुहिता दुर्हिता दूरे हिता दोग्धेर्वा (निरु.3.4)] यहाँ दुहिता उस विशाल खगोलीय पदार्थ का नाम है, जो अपने उत्पादक विशाल खगोलीय मेघ से पृथक् होकर दूर चला जाता है और अपने उत्पादक उस खगोलीय मेघ से नाना प्रकार की रश्मियों एवं कणों को दुहता हुआ परिपुष्ट होता रहता है। ऐसा ही पदार्थ कालान्तर में सूर्य आदि लोकों का रूप धारण करता है। उस ऐसे उस विशाल खगोलीय पदार्थ के लिए खोदता है अर्थात् प्राप्त करता है। इसका अर्थ यह है कि अनुष्टुप् छन्द रश्मियाँ सूर्यादि लोकों, विशेषकर उनके केन्द्रीय भागों के निर्माण के लिए गायत्र्यादि विभिन्न छन्द रश्मियों को उत्पन्न, आकृष्ट वा समृद्ध करने लगती हैं, जिससे अग्नि तत्त्व प्रबल से प्रबलतर होने लगता है और उसमें से अनेक प्रकार की किरणें उत्पन्न होने लगती हैं।
(ताम्) उन अनुष्टुप् छन्द रश्मियों को (असितस्य, गृहेभ्य:) [असित: = सितमिति वर्णनाम तत्प्रतिषेधोऽसितम् (नि.9.25)। गृहम् = गृहा गार्हपत्य: (अग्नि:) (मै.1.5.10), गृहा: कस्माद् गृह्णन्तीति सताम (नि.3.13)] यहाँ गार्हपत्य सूर्य अथवा विशाल खगोलीय मेघ का वह भाग है, जो केन्द्रीय भाग के बाहर कुछ दूर अर्थात् सन्धि क्षेत्र के ऊपर स्थित विशाल क्षेत्र में फैला होता है। यह भाग सन्धि क्षेत्र के माध्यम से केन्द्रीय भाग से तीक्ष्ण विकिरणों को ग्रहण करता रहता है। इसके साथ ही यह भाग सुदूर आकाश से भी अनेक रश्मियों व कणों को ग्रहण करता रहता है। ऐसे विशाल क्षेत्र में विद्यमान अप्रकाशित वायु तत्त्व अर्थात् असुर पदार्थ से (वीतहव्य:, आ, भरत्) इस छन्द की ऋषि अर्थात् प्राण रश्मियाँ सब ओर से प्राप्त करती हैं। इससे संकेत मिलता है कि सूर्यादि लोकों के अन्दर विद्यमान कुछ असुर पदार्थ को प्राण रश्मियाँ देव पदार्थ रूप अनुष्टुप् छन्द रश्मियों में परिवर्तित करती रहती हैं। इसके अतिरिक्त यह भी सम्भव है कि सूर्य के बाहरी विशाल भाग में कुछ क्षेत्र अपेक्षाकृत कम तेजस्वी होते हैं, उनमें विद्यमान रश्मियों में से प्राण रश्मियाँ अनुष्टुप् छन्द रश्मियों को ग्रहण करके केन्द्रीय भाग की ओर भेजती रहती हैं। उधर विशाल खगोलीय मेघ में से निर्माणाधीन सूर्यादि लोकों की ओर भेजती रहती हैं।
भावार्थ— इस मन्त्र में खगोलीय मेघों से तारों तथा निर्माणाधीन तारों में उनके केन्द्रीय भागों के निर्माण का विज्ञान दर्शाया है। खगोलीय मेघों से निर्माणाधीन तारे कुछ दूर हो जाते हैं, पुनरपि वे उस विशाल मेघ के केन्द्रीय विशालतर भाग से कुछ विकिरणों, कणों व रश्मियों को निरन्तर ग्रहण करते रहते हैं। इसी प्रकार सूर्य के बाहरी विशालतम भाग से केन्द्रीय भाग अनेक प्रकार के कणों व रश्मियों को प्राप्त करता रहता है। इन प्राप्तव्य पदार्थों में अनुष्टुप् रश्मियों की मात्रा विशेष होती है। ये रश्मियाँ असुर अर्थात् अप्रकाशित वायु रश्मियों से प्राण रश्मियों द्वारा परिवर्तित करके उत्पन्न की जाती हैं। यहाँ बहुत महत्त्वपूर्ण विज्ञान यह है कि यहाँ प्राण रश्मियों द्वारा डार्क ऊर्जा को दृश्य ऊर्जा में परिवर्तित करना बताया है। अनुष्टुप् रश्मियाँ तारों के अन्दर क्रियाशील अन्य गायत्र्यादि रश्मियों की शक्ति को बढ़ाने में सहायक होती हैं, जिससे बहुरंगी प्रकाश की उत्पत्ति होती है।
आध्यात्मिक भाष्य—
(जमदग्नि:) ज्ञानाग्नि से तेजस्वी जीवात्मा (याम्, केशवर्धनीम्) वाक् रश्मियों को उत्पन्न व समृद्ध करने वाले जिस प्राण वायु को (दुहित्रे) [दुहिता = दुहितेव कान्ति: (महर्षि दयानन्द ऋग्वेद भाष्य 4.43.2), दुहितेवोषा: (महर्षि दयानन्द ऋग्वेद भाष्य 3.55.12)] कमनीय वाणी के प्रकाशन के लिए (अखनत्) खोदता अर्थात् ताड़ता है। (ताम्) उस प्राणवायु को (वीतहव्यम्) [वीतम् = वीतम् अश्नीतम् (नि.4.19)] इन हव्यरूप प्राण वायु का भक्षण करने अर्थात् उन्हें अपने अन्दर लीन करने एवं स्वयं उनमें व्याप्त होने वाला मन (असितस्य, गृहेभ्य:) अप्रकाशित अर्थात् परावाणी के गृहरूप प्रकृति पदार्थ से (आ, भरत्) सब ओर से प्राप्त करता है अर्थात् मनस्तत्त्व प्रकृति में व्याप्त परा वाणी को पश्यन्ती में परिवर्तित हुए प्राण वायु को ताड़ता है।
पाणिनीय शिक्षा में वर्णित वाणी की उत्पत्ति सम्बन्धी प्रकरण हमारे इस भाष्य के भावार्थ का संकेत देता है। वह प्रकरण है—
‘‘आत्मा बुद्ध्या समेत्यर्थान् मनो युङ्क्ते विवक्षया
मन: कायाग्निमाहन्ति स: प्रेरयति मारुतम्।
मारुतस्तूरसि चरन्मन्दं जनयति स्वरम्॥
अर्थात् जीवात्मा बुद्धि से अर्थों की संगति करके कहने की इच्छा से मन को युक्त करता, मन विद्युत् रूप जाठराग्नि को ताड़ता, वह वायु को प्रेरणा करता और वायु उर:स्थान में विचरता हुआ मन्द स्वर को उत्पन्न करता है।’’ (महर्षि दयानन्द - वर्णोच्चारणशिक्षा)
भावार्थ— शरीर में आत्मा जब बोलने की इच्छा करता है, उस समय बुद्धि सहित मन प्रकृति में परावस्था में विद्यमान अक्षरों वा पदों को संगत करके पश्यन्ती रूप में परिवर्तित करता है। उसके पश्चात् मन पश्यन्ती को विद्युत् रूप मध्यमा में परिवर्तित करके उसके द्वारा वायु को प्रेरित करके स्वर यन्त्र के द्वारा नाद को उत्पन्न करता है। यही नाद तालु आदि स्थानों के प्रयत्न से वैखरी शब्द को उत्पन्न करता है।
आधिभौतिक भाष्य—
(याम् - केशवर्धनीम्) केशों के समान जिन ज्वालाओं को बढ़ाने वाली ज्वालामुखी को (जमदग्नि:) तीव्र प्रज्वलित अग्नि (दुहित्रे) दूर-दूर तक उषा के समान कान्ति फैलाने वाले और कठिनाई से जिसका धारण किया जा सके, उस लावे के लिए (अखनत्) भूमि के तल को फोड़ता है। (ताम्) उस ज्वालामुखी को (वीतहव्य:) भूगर्भस्थ प्रज्वलित लावा, जिसमें अनेक हव्य पदार्थ व्याप्त रहते हैं, (असितस्य, गृहेभ्य:) पृथिवी गहराइयों में विद्यमान अन्धेरी वा रंगबिरंगी गुफाओं से (आ, भरत) से प्राप्त किया जाता है।
भावार्थ— यहाँ ज्वालामुखी विस्फोट की चर्चा की गयी है। भूमि के अन्दर गहरी गुफाओं में रंग बिरंगा लावा भरा रहता है। उनके आसपास अन्धेरी चट्टानें होती हैं। उस लावे में अनेक हव्य ओषधियुक्त पदार्थ भरे रहते हैं। जब यह लावा तीव्र वेग एवं तीव्र दबाव से प्रज्वलित हो उठता है, उस समय धरती के तल को फोड़कर बाहर आग की नदी के समान बहने लगता है। उस समय ज्वालामुखी, पर्वत के मुख से आग की ज्वालाएँ ऐसे बाहर निकलती प्रतीत होती हैं, जैसे मानो वे ज्वालामुखी पर्वत के लम्बे-लम्बे केश हों। उस समय उस क्षेत्र में उषा केेसमान प्रकाश उत्पन्न होता है। भूगर्भस्थ प्रबल अग्नि एवं वायु के दबाव से केशों केे समान ज्वालाएँ सहसा ही बढ़ती हुई प्रतीत होती हैं। लावे से उत्पन्न भस्म में अनेक औषधीय गुण होते हैं, जो मनुष्यों के साथ-२ वनस्पतियों के लिए भी उपयोगी होते हैं, जैसे लावे की राख में गंधक होने के कारण ज्वालामुखी के क्षेत्र में रहने वाले मनुष्यों में चर्म रोग नहीं होते।
अब आप स्वयं सभी भाष्यों के स्तर की तुलना करके देखें और comment करके बतायें कि आपको कौनसा भाष्य सही लगा और क्यों?
सभी वैदिक विद्वानों से निवेदन है कि यदि वे इस मन्त्र का मेरे भाष्य से अच्छा और तर्कसंगत भाष्य कर सकते हैं, तो उनका स्वागत है।

—आचार्य अग्निव्रत
Read More

13 April, 2025

মুহাম্মাদ নামের অর্থ

13 April 0

 

মুহাম্মাদের প্রকৃত নাম
ছবিঃ  حیات محمد ﷺ

মুসলিমরা মুহাম্মাদকে "মুস্তাফা", "মাহমুদ" এবং "আহমদ" নামেও সম্বোধন করে থাকে। "মুস্তাফা" অর্থ "নির্বাচিত" এবং "আহমদ" অর্থ "অধিক প্রশংসিত"। মুছলমানদের মতে মুহাম্মাদের পুরো নাম "আবুল কাসিম মুহাম্মাদ ইবনে আব্দুল্লাহ ইবনে আব্দুল মুত্তালিব ইবনে হাশিম ইবনে আব্দ মানাফ আল কুরাইশি" (محمد بن عبد الله بن عبد المطلب بن هاشم بن عبد مناف القرشي)সংক্ষেপে তাকে "আবুল কাসিম মুহাম্মাদ বিন আব্দুল্লাহ বিন আব্দুল মুত্তালিব আল হাশিমি" বলেও ডাকা হয়। এই নামের বাংলা অনুবাদ করলে দাঁড়ায়: "কুরাইশ গোত্রের আব্দুল মানাফের পুত্র হাশিম, হাশিমের পুত্র আব্দুল মুত্তালিব, আব্দুল মুত্তালিবের পুত্র আব্দুল্লাহ এবং আব্দুল্লাহর পুত্র মুহাম্মাদ"। "মুহাম্মদ" শব্দের আক্ষরিক অর্থ হলো "প্রশংসার যোগ্য", এটি কোন নির্দিষ্ট ব্যক্তির নাম নয়। এটি আরবি শব্দ "আলহামদ" (الحمد) থেকে এসেছে, যার অর্থ "প্রশংসা"। এই নামটি ইসলাম মতের প্রবর্তক মহানবী হযরত মুহাম্মদের (সাঃ) নামে পরিচিত হলেও বাস্তবে তা নয়। ইসলামী জগতের বিখ্যাত ইহুদী স্কলার ডঃ ইউসুফ জিদান (Dr. Youssef Ziedan) এর মতে নবুয়ত প্রাপ্তির সময় অর্থাৎ ৪০ বছর বয়স পর্যন্ত নবীজীর প্রকৃত নাম ছিল কুথাম বা কুসম 'Qutham' (পুস্তকঃ Hayat e Muhammad, page: 39). ২০১৭ সালে এক আইনে চীনে শিশুদের নাম মোহাম্মদ নামকরণ করা অবৈধ করা হয়। নবীজীর পিতার নাম আবদুল্লাহ মুত্তালিব (আবদুল্লাহ ইবনে আবদুল মুত্তালিব), আবদুল্লাহ অর্থ আল্লার গোলাম। 

কিন্তু ইসলামের আগে আল্লার গোলাম শব্দ কিভাবে নাম হিসেবে ব্যবহৃত হয়? প্রকৃত পক্ষে তাঁর নাম আব-দুল-লাত, যা ২৫০বছর পরে অর্থাৎ আব্বাসীয় খিলাফতের পর ইসলামিক স্কলারেরা মুহাম্মদের জীবনী লেখার সময় পরিবর্ত্তন করে দেন। পূর্ব নাম কুথাম বাস্তবে মুহাম্মদের পিতামহের এক পুত্রের নাম যিনি, মুহাম্মদ যখন মাতৃগর্ভে ছিলেন তখন মারা যান। পিতা মাতার মৃত্যুর পর আব্দুল মুত্তালিব বা শায়বা ইবনে হাশিম শিশু মুহাম্মদ (সা.)–কে লালন পালন করেন। মুহাম্মদ (সা.) দশ বছর বয়সী থাকাকালীন অবস্থায় তিনি মৃত্যুবরণ করেন। যাই হোক সেই নাম থেকে আব্দুল মুত্তালিব মুহাম্মদের নাম রাখেন 'কুথাম'। কিন্তু ইসলামী ইতিহাস আনুযায়ী  পাওয়া যায় একজন প্যাগন (কুরাইশ উপজাতি) নারীর ওপর আল্লাহর আদেশ আসে পুত্রের নাম 'মুহাম্মদ' রাখার। মুহাম্মাদের জন্মের পূর্বেই তার পিতা মৃত্যুবরণ করেন এবং ছয় বছর বয়সে তার মাতা মৃত্যুবরণ করেন।

ইসলাম পূর্বে কুরায়শ সহ বিভিন্ন গোত্রের প্রধান দেবতা বা উপাস্য ছিলেন 'হুবাল' এবং তাঁর কন্যা লাত, মানাত ও উজ্জা দেবী। যাদেরকে আল্লাহর তিন কন্যা হিসেবে ধারণা করা হত। নবীজীর পিতা-মাতা প্যাগনদের এই দেব দেবীর উপাসক ছিলেন। আল্লাহ الله হলো সৃষ্টিকর্তার জন্য ব্যবহৃত একটি আরবি শব্দ। এটা কোন নাম নয় এটা নামের পূর্বে বা পরে ব্যহহার করা উপাধির ন্যায় একটি শব্দ যেমন মিঃ বা মিসেস। এই মিঃ বা মিসেস কারো নাম হতে পারে না। উদাঃ ভারতে রাজা রামচন্দ্র জীর নামের সাথে ব্যবহৃত হয় 'ভগবান্' শব্দ (ভগবান রামচন্দ্র), আবার পরমাত্মা বোঝাতেও ভগবান শব্দের ব্যবহার করা হয় অর্থাৎ ভগবান অনেক হতে পারে। ইসলাম-পূর্ব সময় থেকে আরবের বিভিন্ন গোষ্ঠীর লোকেরা ‘আল্লাহ’ শব্দটি ব্যবহার করে আসছে। সুনির্দিষ্টভাবে, স্রষ্টা বুঝাতে মুসলিমগণ (আরব ও অনারব উভয়) ও আরব খ্রিস্টানগণ এই শব্দটি ব্যবহার করে থাকে।

______________চলবে

 


Read More

নামাজের দোয়া

13 April 0

 

وَإِذَا نَادَيْتُمْ إِلَى ٱلصَّلَوٰةِ ٱتَّخَذُوهَا هُزُوًۭا وَلَعِبًۭا ۚ ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ قَوْمٌۭ لَّا يَعْقِلُونَ

https://quran.com/5/58

মুছলমানেরা পাঁচ ওয়াক্ত নামাজের আযানের পরে দোয়া পাঠ করে থাকে। আবার অনেকে খুব তাজিমের সাথেও পাঠ করে। আবার অনেকে সওয়াবের আশায় এবং জান্নাতের আশায় আযানের দোয়া পাঠ করে থাকে। কিন্তু কেউ কি চিন্তা করে দেখেছেন যে, আযানের দোয়ার মধ্যে নবীজিকে অপমান করা হচ্ছে, নবীজিকে ছোট করে দেখা হচ্ছে, নবীজিকে সাধারণ মানুষ হিসেবে গণ্য করা হচ্ছে। আযানের দোয়া পর্যালোচনা করলে আমরা দেখতে পাই-

(আল্লাহুম্মা রাব্বা হাযিহিদ দা'ওয়াতিত্তা-ম্মাতি ওয়াসসালা-তিল ক্বা-ইমাতি আ-তি সায়্যেদানা মুহাম্মাদানিল ওয়াসী-লাতা ওয়াল ফাদ্বী-লাতা ওয়াদ দারাজাতার রাফী-'আতা ওয়াবআসহু মাক্বা-মাম মাহমূদানিল্লাযী ওয়া'আদতাহূ ওয়ারযুক্বনা শাফা-'আতাহূ ইয়াওমাল ক্বিয়া-মাতি ইন্নাকা লা-তুখলিফুল মী-'আদ)

অর্থাৎ “এই পবিত্র আহবান এবং এই নামাজের তুমিই প্রভু। হযরত মুহাম্মাদ (সাঃ) কে দান কর ওয়াসিলা, সর্বোচ্চ সম্মানিত স্থান ও সুমহান মর্যাদা এবং বেহেশতের শ্রেষ্ঠতম প্রশংসিত স্থানে (মাকামে মাহমুদা) তাঁকে অধিষ্ঠিত কর যার প্রতিশ্রতি তুমি তাকে দিয়েছ। নিশ্চয়ই তুমি ওয়াদা ভঙ্গ কর না।”

এখানে পাঁচটি বিষয় পরিলক্ষিত হচ্ছেঃ

১.    আযান এবং নামাজের মালিক আল্লাহ

২.    হযরত মুহাম্মদ (সাঃ) কে ওয়াসিলা দান করার জন্য দোয়া

৩.    হযরত মুহাম্মদ (সাঃ) কে সর্বোচ্চ মর্যাদা দান করার জন্য দোয়া

৪.    হযরত মুহাম্মদ (সাঃ) কে বেহেশতের শ্রেষ্ঠতম প্রশংসিত স্থানে (মাকামে মাহমুদা) অধিষ্ঠিত করার জন্য দোয়া

৫.    আল্লাহ যেন অঙ্গিকার ভঙ্গ না করে তা স্মরণ করিয়ে দেয়া

উল্লেখিত পাঁচটি বিষয়ের প্রথমটি তেমন কোন গুরুত্ব বিষয় নয়। কিন্তু পরবর্তী চারটি বিষয় খুবই মারাত্মক।

 

প্রথম বিষয়: আযান এবং নামাজের মালিক আল্লাহ। এটি নিঃসন্দেহে ভাল কথা। আযান এবং নামাজই নয় এই বিশ্ব এবং বিশ্বে যা কিছু সবকিছুর মালিক আল্লাহ। তাইতো শুকরিয়া স্বরূপ আমরা সূরা ফতিহা তেলাওয়াত করে থাকে-

الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ (আলহামদুলিল্লাহি রাব্বিল আলামিন) অর্থাৎ “যাবতীয় প্রশংসা আল্লাহ যিনি সকল সৃষ্টি জগতের রব (প্রতিপালক/পালনকর্তা)।”

 

দ্বিতীয় বিষয়: হযরত মুহাম্মদ (সাঃ) কে ওয়াসীলা দান করার জন্য দোয়া।

এ বিষয়টি একজন মুমিন ও নবীপ্রেমিক হিসেব নবীজির শানে অপমানমূলক দোয়া। কেননা মহান আল্লাহ তায়ালা নবীজি (সাঃ) কে ওয়াসীলা করেই দুনিয়াতে পাঠিয়েছেন। তিনি নিজে ওয়াসীলা হয়ে মুছলমানদের ক্ষমা করাবেন। শুধু তাই নয়, তিনি পৃথিবীতে জাহেরীভাবে আবির্ভাবের পূবেই ওয়াসীলা হিসেবে বিদ্যমান ছিলেন। যেমন হযরত আদম (আঃ) নবীজির ওসিলায় ক্ষমা পান। অথচ হযরত আদম (আঃ) এর বহু পরে নবীজি (সাঃ) জাহেরীভাবে এই পৃথিবীতে আগমন করেছেন। হযরত আদম (আঃ) কে আল্লাহ যখন পৃথিবীতে নামিয়ে দেন, তখন হযরত আদম (আঃ ) প্রার্থনা জানান, হে প্রভু ! আমার সন্তান মুহাম্মাদ রাসূলূল্লাহ্ সাল্লাল্লাহু আলাইহি ওয়াসাল্লাম-এর ওসিলায় আমাকে ক্ষমা করে দিন। আল্লাহ্ তাঁর প্রার্থনা কবুল করে নেন এবং তাঁকে ক্ষমা করে দেন। এ থেকে প্রমাণিত হয় যে, নবীগণও ওসিলা মানতেন। (সূত্রঃ তফসীরে রূহুল বয়ান; সুরা মায়েদার ১৮ নং আয়াতের ব্যাখ্যা দ্রষ্টব্য)। অতএব মুছলমানদের নবী Azaner Doya(সাঃ) কে পৃথিবীতে আসার পূর্বেই আল্লাহ পাক তাঁকে ‘ওয়াসীলা’ র মর্যাদা দান করেছেন, তাই তাঁর জন্য পুনরায় আযানের দোয়া ‘ওয়াসীলা দান করার’ কথা বলা সম্পূর্ণ বেয়াদবী এবং নবীজির শান ও মর্যাদাকে ছোট করার সমান।

 

হযরত খালিদ বিন ওয়ালিদ (রাঃ) তাঁর টুপিতে হযরত রাসূল (সাঃ) এর চুল মুবারক রাখতেন। একবার এক যুদ্ধে তাঁর ঐ টুপি মাথা হতে পড়ে গেল। তখন তিনি ঐ টুপি খোঁজার জন্য তৎপর হয়ে উঠলেন। কারণ ঐ টুপির ওসিলায় তিনি বহু সংখ্যক শত্রু হতে জয় লাভ করেছিলেন। যখন তিনি টুপি খোঁজার জন্য ব্যস্ত তখন একজন সাহাবী এই ব্যাপারে আশ্চর্য হয়ে তাঁকে বিদ্রুপ করলেন। তখন হযরত খালিদ বিন ওয়ালিদ (রাঃ) বললেন, আমি শুধু টুপির জন্য ব্যস্ত হইনি। কেননা ঐ টুপির মধ্যে হযরত নবী করিম (সাঃ) এর চুল মুবারক রয়েছে। আমি যেন তাঁর বরকত হতে বঞ্চিত না হই এবং তা যেন কাফিরদের হাতে না পড়ে। এ জন্য আমি বিচলিত ছিল। বুখারী হযরত আনাস (রাঃ) হতে বর্ণনা করেছেন যে, “হযরত উমর (রাঃ) দুর্ভিক্ষের সময় হযরত আব্বাস বিন মোত্তালিবের ওসিলায় বৃষ্টির জন্য প্রার্থনা করতেন। হযরত উমর (রাঃ) বলতেন হে আল্লাহ! আমরা আমাদের নবী (সাঃ) এর ওসিলা ধরে তোমার নিকট প্রার্থনা করতাম। তখন তুমি আমাদের উপর বৃষ্টি বর্ষণ করতে। এখন আমরা নবীজি (সাঃ) চাচার (হযরত আব্বাস রা.) ওসিলায় প্রার্থনা করছি। তাই তুমি আমাদেরকে বৃষ্টি প্রদান কর। তিনি বলেছেন, তখন বৃষ্টি হতো।” নবীজির চাচা হযরত আব্বাস (রাঃ) ছিলেন সাহাবী। তিনি যদি ওসিলা হতে পারেন, তবে নবীজি কি ওসিলা নন? তাই নবীজিকে ওয়াসীলা দান করার জন্য দোয়া করার দরকার নেই। বরং তা নবীজির শানে চরম বেয়াদবী।

 

তৃতীয় বিষয়: হযরত মুহাম্মদ (সাঃ) কে সর্বোচ্চ মর্যাদা দান করার জন্য দোয়া

সাধারনত নাস্তা পাপী মানুষেরা প্রতিদিন পাঁচবার আযানের সময় আল্লাহর কাছে মোনাজাত করছে, হে আল্লাহ রাসূলের মর্যাদা বৃদ্ধি করে দাও। রাসূলের মর্যাদা কি কোনদিক দিয়ে কমে গেছে? আল্লাহ যাকে সর্বোচ্চ মর্যাদায় ভূষিত করে পৃথিবীতে পাঠিয়েছেন, তাঁর আবার নতুন করে মর্যাদা বৃদ্ধির কি হলো? তাও আবার পাপী বান্দাদের দোয়ার দ্বারা, এগুলো কোন ধরণের ভীমরতি?

এ বিষয়টি একজন মুমিন ও নবীপ্রেমিক হিসেব নবীজির শানে অপমানমূলক দোয়া। কেননা মহান আল্লাহ তায়ালা নবীজি (সাঃ) কে ওয়াসীলা, সর্বোচ্চ সম্মানিত স্থান ও সর্বোচ্চ মর্যাদা দিয়ে দুনিয়াতে পাঠিয়েছেন। মহান আল্লাহ তায়ালা নবীজি (সাঃ) কে সর্বোচ্চ মর্যাদা দান করেছেন। নবীজিকে মর্যাদা দান করার জন্য আমাদের মত পাপী-গুনাহগার বান্দার দোয়ার প্রয়োজন নাই। কেননা নবীজির ওসিলায় আমরা আল্লাহর নিকট মর্যাদা প্রার্থনা করবো। নবীজিকে আল্লাহ সর্বোচ্চ মর্যাদা দিয়ে দুনিয়াতে প্রেরণ করেছেন। যেমন মহান আল্লাহ তায়ালা এরশাদ করেন,

تِلْكَ الرُّسُلُ فَضَّلْنَا بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ مِنْهُمْ مَنْ كَلَّمَ اللَّهُ وَرَفَعَ بَعْضَهُمْ دَرَجَاتٍ

অর্থাৎ “আমি রাসূলদের মধ্যে একজনকে অন্যজনের উপর শ্রেষ্ঠত্ব দান করেছি। তাঁদের মধ্যে এমন কেউ রয়েছে যার সাথে আল্লাহ পাক কথা বলেছেন, আবার কাউকে উচ্চ মর্যাদায় উন্নীত করেছেন” (সূরা বাকারা-২৫৩)

উল্লেখিত আয়াত হতে জানা যায় যে, আল্লাহ তায়ালা নবী-রাসূলগণের মধ্যে একজনকে অন্যজনের উপরে মর্যাদা দান করেছেন। আর সবার চেয়ে শ্রেষ্ঠ করেছেন আমাদের নবী মুহাম্মাদুর রাসুলুল্লাহ (সাঃ) কে। নবীগণ প্রেরিত হয়েছেন তাঁদের নির্দিষ্ট কওমের জন্য, কিন্তু আমার নবী (সাঃ) কোন নির্দিষ্ট কওমের জন্য নয়। তিনি সারা বিশ্বের সকলের জন্য। যেমন আল্লাহ তায়ালা নবীজির শানে এরশাদ করেন-

وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا رَحْمَةً لِلْعَالَمِينَ

(ওয়ামা আরসালনাকা ইল­া রাহমাতুলি­ল আলামিন)

অর্থাৎ “আমি আপনাকে সমগ্র বিশ্বের রহমত হিসেবে প্রেরণ করেছি (সূরা আম্বিয়া-১০৭)।” বিশ্বে যারা বসবাস করছে হোক তারা বিভিন্ন গোত্রের, হোক সে পুশু-পাখি-মাছ-গাছপালা ইত্যাদি। সবার জন্য আমাদের সর্বশ্রেষ্ঠ নবী মুহাম্মাদুর রাসুলুল­াহ (সাঃ) হলেন রহমতস্বরূপ। শুধু তাই নয়, নবীজিকে আল্লাহ এতই মর্যাদা দান করেছেন যে, নবীর ভালবাসাই আল্লাহর ভালবাসা, নবীর আনুগতই আল্লাহর আনুগত্য ঘোষনা করেছেন। মহান আল্লাহ তায়ালা আরও এরশাদ করেন, “মাইউতির রাসূলা ফাক্বাদ আতা আল্লাহ” অর্থাৎ “যে রাসুলের আনুগত্য করলো, সে আল্লাহর আনুগত্য করলো।” এরপরও কি দোয়া করে নবীর মর্যাদা বৃদ্ধির দরকার আছে? যারা আজও অন্ধ, নবীকে চিনে না, তারাই এরকম দোয়া করে। জ্ঞানী চিন্তাশীল কখনও এরকম বানোয়াট দোয়া করে না।

আল্লাহ রাব্বুল আলামিন নবীদেরকে বিভিন্ন উপাধীতে ভূষিত করেছেন। যেমন- আদম সফিউল­াহ, মুসা কালিমুল­াহ, ইব্রাহিম খলিলুল্লাহ, ইসমাইল জবিউল­াহ, ঈসা রুহুল­াহ। কিন্তু আমাদের নবীকে আল্লাহ অনেক উপাধী দান করেছেন। যেমন- শাফিয়্যিল মুজনাবিন, রাহমাতুলি­ল আলামিন, আনিসিল গারিবীন, খাতামান নাবিয়্যিন, রাহাতিল আশিকীন, সিরাজুস সালেকীন, নূরুল্লাহ, সাহিবু কাবা কাউসাইন, হাবিবুল্লাহ ইত্যাদি। হুজুরে পাকের এরকম এক হাজারেরও বেশী উপাধী আছে। এ সমস্ত উপাধীর মধ্যে একটি হচ্ছে হাবিবুল্লাহ বা আল্লাহর বন্ধু। অর্থাৎ মহান আল্লাহ নবীর এমন বন্ধু যে, নবীজির খুশির জন্য সবকিছু করতে পারেন (সুবহানআল্লাহ)। নবীজি মনে মনে ইচ্ছা পোষন করছিলেন যে, কেবলা বায়তুল মুকাদ্দাস পরিবর্তন হয়ে বায়তুল­াহ (মাসজিদুল হারাম) হলে ভাল হতো। সাথে সাথে আল্লাহ ওহি নাজিল করে কেবলা পরিবর্তন করে দিলেন। যেমন মহান আল্লাহ তায়ালা এরশাদ করেন-

قَدْ نَرَى تَقَلُّبَ وَجْهِكَ فِي السَّمَاءِ فَلَنُوَلِّيَنَّكَ قِبْلَةً تَرْضَاهَا فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَحَيْثُ مَا كُنْتُمْ فَوَلُّوا وُجُوهَكُمْ شَطْرَهُ

অর্থাৎ “নিশ্চয়ই আমি আপনাকে বার বার আকাশের দিকে তাকাতে দেখি। অতএব, অবশ্যই আমি আপনাকে সে কেবলার দিকেই ঘুরিয়ে দেব যাকে আপনি পছন্দ করেন। এখন আপনি মসজিদুল-হারামের দিকে মুখ করুন এবং তোমরা যেখানেই থাক, সেদিকে মুখ কর।” (সূরা বাকারা-১৪৪)

আমাদের নবীজিকে কেবলা স্বরূপ দান করা হয়েছে। যখন মক্কা বিজয় হয়ে গেল, তখন একদিন নবী করিম (সাঃ) হযরত বেলাল (রাঃ) কে খানায়ে কাবার ছাদে উঠে আজান দিতে নির্দেশ করলেন। হযরত বেলাল (রাঃ) খানায়ে কাবার ছাদে ওঠে আরজ করলেন ইয়া রাসুলাল্লাহ! মদীনায় থাকতে কাবার দিকে মুখ করে আজান দিতাম। এখনতো কাবা আমার নিচে আমি কাবার উপরে- কোন দিকে ফিরে এখন আজান দিব।? নবী করিম (সাঃ) নিজের দিকে ইশারা করে বললেন “আমার দিকে”। মোহাদ্দেসীন কেরাম এই হাদীসের তাৎপর্য্য এভাবে বর্ননা করেছেন-“কেবলার অবর্তমানে নবী করীম (সাঃ) এর পবিত্র সত্তাই কেবলা। কেননা তিনি কাবারও কাবা (সূত্রঃ নূরনবী)। তাই কবি বলেন,

ﺮﻮﮱ ﻫﻣﺎ ﺭﺍﺴﻮﮱ ﻛﻌﺒﻪ ﺮﻮﮱ ﻛﻌﺒﻪ ﺴﻮﮱ  ﻤﺤﻣﺪ

ﺮﻮﮱ ﻤﺤﻣﺪ ﺻﻠﻰ ﺍﷲ ﻋﻠﻴﻪ ﻮﺴﻠﻢ ﻛﻌﺒﻪ ﻛﻌﺒﻪ ﻜﺎ

অর্থাৎ “মোদের কপাল কাবার দিকে, কাবা ঝুকে নবীর পানে,

কাবার কাবা প্রিয় মোহাম্মদ, শত দরুদ তারই শানে।”

এছাড়াও নবীজি (সাঃ) হাশরের মাঠে সর্বপ্রথম উঠবেন। হাশরের মাঠে মহান আল্লাহ সর্বপ্রথম হযরত ইব্রাহিম (আঃ) কে কাপড় পরিধান করাবেন। এখন প্রশ্ন হতে পারে, আমাদের নবীকে কেন সর্বপ্রথম কাপড় দিবেন না? উত্তর হলো আমাদের নবীর এতই মর্যাদা যে, তিনি হাশরের মাঠে কাপড় পরিধানসহ উঠবেন (সুবহানাল­াহ)। হযরত কা’ব আহবার (রাঃ) থেকে বর্ণিত, “কেয়ামতের দিন যখন মাটি ফেটে যাবে, তখন দলীলে কা’বায়ে মাকসুদ, হাবীরবুর রহমান হুযুর পাক (সাঃ) সর্বপ্রথম রওজা মুবারক থেকে বের হয়ে আসবেন। এ সময় উনার রওজা মুবারক তওয়াফকারী ৭০ হাজার ফেরেশতা তাঁকে ঘিরে চরম পরম তাজিম তাকরীমের সাথে মহান রাব্বুল ইজ্জতের দরবারে নিয়ে যাবেন। (মেশকাত শরীফ)

হযরত আবু হুরায়রা (রাঃ) বর্ণনা করেন যে, সাইয়্যেদুল আম্বিয়া, তাফসীরে কালামে ইলাহী হুযুর পাক (সাঃ) এরশাদ করেন যে, আমি সর্বপথম সুপারিশকারী হব। আর সর্বপ্রথম আমর সুপারিশই গ্রহণ করা হবে।” (মেশকাত শরীফ)

হযরত আবু সাঈদ খুদরী (রাঃ) হতে বর্ণিত হুযুর পাক (সাঃ) এরশাদ করেন, কেয়ামতের দিন আমার নিকট আল্লাহ পাক প্রদত্ত প্রশংসা পতাকা থাকবে। আর এজন্য আমি গর্ব করি না যে, হযরত আদম (আঃ) থেকে শুরু করে সমস্ত আম্বিযা (আঃ) গণ আমার পতাকা তলে থাকবেন।” (তিরমিযী শরীফ)

নবীজিকে সর্বোচ্চ সম্মান দিয়েই আল্লাহ দুনিয়াতে পাঠিয়েছেন। তিনি হলে সর্বশ্রেষ্ট নবী এবং নবীকূলের সরদার। তাই তাঁকে সর্বশ্রেষ্ঠ করার জন্য দোয়ার প্রয়োজন নাই। দোয়ার প্রয়োজন হলো আমাদের মত গুনাহগার বান্দাদের জন্য। যে দোয়া আমরা নিজেদের জন্য করবো, সে দোয়া এখন নবীর উপর চাঁপিয়ে দিয়েছি। দোয়া শুনে মনে হয় আমরা মাকামে মাহমুদ পেয়ে গেছি, কিন্তু নবী এখনও পাননি (নাউযুবিল­াহ)। হায়রে মুসলমান দোয়া করতেও জানে না। আফসোসা !!

উলে­খিত আলোচনা হতে এটাই প্রতীয়মান হয় যে, মহানবী (সাঃ) সর্বশ্রেষ্ঠ মর্যাদার অধিকারী, সমস্ত নবীদের উপরে তাঁর স্থান এবং তিনি আমাদের জন্য ওয়াসীলা। তাই তাঁর জন্য সর্বচ্চো সম্মানের দোয়া করা সম্পূর্ণ বেয়াদবী। আর নবীর সাথে বেয়াদবী করা আল্লাহর সাথে বেয়াদবী করার শামিল।

চতুর্থ বিষয়: হযরত মুহাম্মদ (সাঃ) কে বেহেশতের শ্রেষ্ঠতম প্রশংসিত স্থানে (মাকামে মাহমুদা) অধিষ্ঠিত করার জন্য দোয়া

এখানে নবী পাকের শান মর্যাদাকে কি ছোট করে দেখা হয় নাই? মুছলমানেরা প্রতিদিন দোয়া করছে আল্লাহর কাছে রাসূল (সাঃ) কে মাকামে মাহমুদায় পৌঁছাও। মোনাজাতের অর্থ হতে এ কথা স্পষ্ট করে বোঝা যায় যে, নবীজি এখনও মাকামে মাহমুদাতে পৌঁছতে পারেন নি। তাই আমরা তাঁর জন্য দোয়া করছি। কিন্তু একটা কথা যিনি এখনও মাকামে মাহমুদ অর্থাৎ শ্রেষ্ঠতম প্রশংসিত স্থানে পৌঁছতে পারেন নি, তিনি কিভাবে অন্যকে শাফায়াত করবেন? উলে­খিত দোয়া দ্বারা বুঝা যায় যে, নবীজি এখনও শাফায়াতের যোগ্যতা অর্জন করেননি (নাউযুবিল­াহ)। নিঃসন্দেহে এই দোয়া এজিদের দোসর কর্তৃক রচিত হয়েছে। এ রকম বহু ইচ্ছাকৃত ভুল নবী ও নবী বংশের বিরুদ্ধে চক্রান্তকারীরা করে রেখেছে। আল্লাহর রাসূল নবী বংশকে মুসলমানের কাছে আমানত রেখেছেন, শুধু আমানত নয় তাঁদের ভালবাসতেও স্বনির্ভর অনুরোধ ও হুকুম জারী করেছেন (সূরা শুরা-২৩)। নবীর আদেশ ‘আহলে বায়াত ও আল কুরআন কখনও একে অপরকে ছাড়বেনা (তিরমিযী)। কিন্তু অত্যন্ত অবাক লাগে ইমাম বুখারীর মত একজন হাদিস বিশারদ বুখারী শরীফে নবীর শানে এরকম বেয়াদবীপূর্ণ দোয়া উলে­খ করেছেন (বুখারী ২য় খন্ড (ই.ফা) কিতাবুল আযান অধ্যায়)। জানি না বুখারীতে এ দোয়া তিনি লিপিবদ্ধ করেছেন, না অন্য কেউ? আবার এটাও হতে পারে যে, ইমাম বুখারীর ইন্তেকালের পর এজিদের দোসররা বুখারী শরীফে এই বেয়াদবীপূর্ণ আযানের দোয়া ঢুকিয়ে দিয়েছে।

আযানের দোয়া প্রচলন করে নবীজিকে একজন সাধারণ পাপী মানুষের কাতারে দাঁড় করানো হয়েছে। কোন জাতিই তাদের নবীকে তাদের মত সাধারণ মানুষ মনে করে না। কেবল মাত্র কাফের যারা, তারাই নবীকে তাদের মত সাধারণ মানুষ মনে করে। মুছলমানদের মহান আল্লাহ তায়ালা এরশাদ করেন-

قَدْ جَاءَكُمْ مِنَ اللَّهِ نُورٌ وَكِتَابٌ مُبِينٌ

(ক্বদ জাআকুম মিনাল­াহি নুরুউ ওয়া কিতাবুম মুবিন)

অর্থাৎ “তোমাদের নিকট আল্লাহর পক্ষ হতে স্পষ্ট নূর ও কিতাব এসেছে।” এখানে নূর বলতে নবীজিকে বুঝানো হয়েছে (সূত্রঃ তাফসীরে রুহুল বয়ান, শানে হাবিবুর রহমান)। মহান আল্লাহ তা’য়ালা আরও বলেন,

قُلْ إِنَّمَا أَنَا بَشَرٌ مِثْلُكُمْ يُوحَى إِلَيَّ

অর্থাৎ “আমি দেখতে তোমাদের মত বাশার (চামড়া), কিন্তু আমার প্রতি ওহি নাজিল হয়।” (সূরা কাহাফ-১১০)

এখানে নবীজিকে আরবী শব্দ ‘ইনসান’ অর্থাৎ মানুষ বলা হয়নি, বলা হয়েছে ‘বাশার’। কিন্তু বেশীরভাগ আলেম অনুবাদ করে ইনসান বা মানুষ। তারা কোথা হতে ইনসান বা মানুষ শব্দটি আমদানী করলো, তা আমার জানা নাই। আবার আরবীতে ‘মা’ (مَا) শব্দের তিনটি অর্থ হয়। যথাঃ না, কি, যা। ‘মা’ (مَا) শব্দটির অর্থ যদি ‘না’ গ্রহণ করি, তবে উক্ত আয়াতের অর্থ হবে “আমি তোমাদের মত মানুষ না।” যদি ‘মা’ (مَا) শব্দটির অর্থ ‘কি’ গ্রহণ কবি, তবে উক্ত আয়াতের অর্থ হবে ‘আমি কি তোমাদের মত মানুষ?’ আর যদি ‘মা’ (مَا) শব্দটির অর্থ ‘যা’ গ্রহণ করি, তাবে উক্ত আয়াতের অর্থ হবে ‘আমি যা, তাহলো তোমাদের মত মানুষ।’ উক্ত আয়াতে আরও বলা হয়েছে, আমার প্রতি ওহি নাজিল হয়। এখন প্রশ্ন, সাধারণ মানুষের প্রতি কি ওহি নাজিল হয়? সকলেই উত্তর দিবে না। তাহলে যেহেতু সাধারণ মানুষের প্রতি ওহি নাজিল হয় না, সেহেতু নবীও সাধারণ মানুষ নয়। ‘ইউহা ইলায়্যা’ (يُوحَى إِلَيَّ) শব্দদ্বয় দ্বারা নবী যে সাধারণ মানুষ নয়, তা স্পষ্ট করে বুঝানো হয়েছে।

হাদিস শরীফে নবী করিম (সাঃ) এরশাদ করেন, ‘লাসতুকা আহাদিম মিনকুম’ অর্থাৎ “আমি তোমাদের কারো মতই না।’ অপর এক হাদিস নবী করিম (সাঃ) বলেন, “আইয়্যূকুম মিসলী” অর্থাৎ ‘কে আছো আমার মত?”

কুরআনের ব্যাখ্যায় এবং যে সকল হাদিসে রাসূলুল­াহ (সাঃ) কে আমাদের মত মানুষরূপে অংকিত করা হয়েছে, সেগুলো প্রত্যেকটি মিথ্যা হাদিস এবং কুরআনের সেসব অংশের ব্যাখ্যাগুলো মিথ্যা রচনা। এই সকল মিথ্যা ব্যাখ্যা উমাইয়া রাজ শক্তি কর্তৃক রচিত।

যেখানে আল্লাহ পাক বলেছেন, ‘লাওলাকা লামা খালাকতুল আফলাক ওয়ালাম্মা আজহারতুর রবুবিয়াত’ অর্থাৎ ‘(হে নবী!) আমি আপনাকে প্রকাশ না করলে আমার বরুবিয়াত প্রভুত্ব প্রকাশ করতাম না। আপনাকে সৃষ্টি না করলে আমি আসমানসমূহ সৃষ্টি করতাম না।” যিনি রাহমাতুলি­ল আলামিন, সমগ্র আলমের জন্য রহমতস্বরূপ। যার শাফায়াত ব্যতিত কারও মুক্তি নাই। আমার নবীর নাম ‘মাহমুদ’। আর এই নাম অনুসারে নাম রাখা হয়েছে মাকামে মাহমুদা অর্থাৎ প্রশংসিত মাকাম। অথচ তিনি নাকি এখনও মাকামে মাহমুদায় অধিষ্ঠিত হতে পারেন নি? (নাউযুবিল­াহ)

যিনি খুদ মালিক ঐ প্রশংসিত মাকামের। যিনি আল্লাহর সঙ্গে একই গুণে গুনান্বিত, যেখানে আল্লাহ সকল জ্ঞানের উৎস আর রাসূল (সাঃ) হলেন সকল জ্ঞানের অধিকারী। যেখানে আল্লাহ রাসূলের দূরত্ব দুই ধনুকের ব্যবধান (অর্থাৎ বৃত্ত) নিকটে বা আরও নিকটে বলা হয়েছে এবং যে রাসূলের কথা আল্লাহ হতে যে আলাদা মনে করে সে কাফের। যেমন মহান আল্লাহ পাক এরশাদ করেন-

إِنَّ الَّذِينَ يَكْفُرُونَ بِاللَّهِ وَرُسُلِهِ وَيُرِيدُونَ أَنْ يُفَرِّقُوا بَيْنَ اللَّهِ وَرُسُلِهِ وَيَقُولُونَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍ وَنَكْفُرُ بِبَعْضٍ وَيُرِيدُونَ أَنْ يَتَّخِذُوا بَيْنَ ذَلِكَ سَبِيلًا * أُولَئِكَ هُمُ الْكَافِرُونَ حَقًّا

অর্থাৎ “যারা আল্লাহ ও তার রসূলের প্রতি অস্বীকৃতি জ্ঞাপনকারী তদুপরি আল্লাহ ও রসূলের প্রতি বিশ্বাসে তারতম্য করতে চায় আর বলে যে, আমরা কতককে বিশ্বাস করি কিন্তু কতককে প্রত্যাখ্যান করি এবং এরই মধ্যবর্তী কোন পথ অবলম্বন করতে চায়। প্রকৃতপক্ষে এরাই কাফের। (সূরা নিসা-১৫০-১৫১)

মাকামে মাহমুদা অর্জনের জন্য আমরা নবীজির উসিলা করে দোয়া করবো, হে আল্লাহ! তুমি আমাকে মাকামে মাহমুদায় অধিষ্ঠিত কর। যার উসিলায় মাকামে মাহমুদা তাঁর জন্য কি দোয়ার দরকার আছে? যিনি সুপারিশকারী, তাঁর জন্য কি সুপারিশের দরকার আছে? বড়পীর আব্দুল কাদের জিলানী (রহঃ) ঘোষনা করলেন যে, পৃথিবীর সমস্ত ওলিদের কাঁধে আমার পা। এ ঘোষনা শোনার পর পৃথিবীর সমস্ত ওলিগণ তা এক বাক্যে স্বীকার করেছেন (সূত্রঃ বাহজাতুল আসরার)। বড়পীর আব্দুল কাদের জিলানী (রহঃ) হলেন গাউসুল আ’যম এবং ওলিগণের সরদার। এখন আমি যদি দোয়া করি হে আল্লাহ! বড়পীর আব্দুল কাদের জিলানী (রহঃ)-কে ওলিগণের সর্দার এবং গাউসুল আ’যম পদে অধিষ্ঠিত করুন। তাহলে এটা মূর্খতা নয় কি? কারণ বড়পীর আব্দুল কাদের জিলানী (রহঃ) তো ঐ আসনে অধিষ্ঠিত আছেনই, তাহলে এর জন্য দোয়া করা বোকামী ছাড়া কিছুই নয় এবং বড়পীর আব্দুল কাদের জিলানী (রহঃ) কে অপমান করা। আমাদের নবী (সাঃ) হলে সর্বশ্রেষ্ঠ নবী এবং নবীগণের সরদার। আল্লাহ তাঁকে মাকামে মাহমুদা দান করেছেন। তাহলে কেন আমরা তাঁর জন্য দোয়া করবো হে আল্লাহ! তাঁকে মাকামে মাহমুদা দান করুন। যিনি নিজেই সুপারিশকারী, তাঁর জন্য আবার সুপারিশ কিসের? এতে বোঝা যায় যে, নবীর কোন যোগ্যতা নাই (নাউযুবিল­াহ)। গুনাহগার উম্মত তাঁর জন্য সুপারিশ করবে (নাউযুবিল­াহ)।

কেয়ামতে তিন শ্রেণীর লোক শাফায়াত করবে। নবী করিম (সাঃ) এরশাদ করেন,

ﻳﺸﻔﻊ ﻴﻮﻡ ﺍﻟﻗﻴﻤﺔ ﺜﻠﺜﺔ: ﺍﻻﻨًﺑﻳﺂﺀ ﻮﺍﻠﻌﻟﻤﺎﺀ ﻮﺍﻟﺸﻬﺪﺂﺀ

(ইয়াশফাউ ইয়াউমাল কিয়ামতে সালাসা আল আম্বিয়াউ, ওয়াল উলামাউ ওয়াশশুহাদা- ইবনে মাজাহ)

অর্থাৎ কেয়ামতের দিন তিন শ্রেনীর লোক শাফায়ত করবেন- নবী, হক্কানী আলেম বা নায়েবে রাসূল এবং শহীদগণ।

এখানে স্মরণ রাখতে হবে যে, শাফায়াত দুই প্রকার। যথাঃ শাফায়াতে কুবরা এবং শাফায়াতে ছোগরা। শাফায়াতে কুবরার অধিকারী হলেন নবী মুহাম্মাদুর রাসুলুল­াহ (সাঃ)। আর শাফায়াতে ছোগরার অধিকারীহক্কানী উলামা এবং শহীদগণ। নবী করিম (সাঃ) এরশাদ করেন-

ﺍﻨﺎ ﺍﻮﻞ ﺷﺎﻓﻊ ﻭﺍﻭﻞ ﻤﺷﻓﻊ

অর্থাৎ “আমি সর্বপ্রথম সুপারিশ করবো এবং সর্বপ্রথম আমার সুপারিশই কবুল হবে।” (তাফসীরে খাজেন)। হযরত জাবের (রাঃ) হতে বর্ণিত হুযুর পাক (সাঃ) এরশাদ করেন, “আমাকে শাফায়াতে কুবরা দান করা হবে যা সমস্ত সৃষ্টি জগতের জন্য হিসাব গ্রহণের কারণ হবে (বুখারী ও মুসলিম)।” ‘মাকামে মাহমুদা’র ব্যাখ্যায় নবী করিম (সাঃ) বলেন, “মাকামে মাহমুদা হচ্ছে ঐ স্থান যেখানে আমি উম্মতের জন্য শাফায়াত (শাফায়াতে কুবরা) করবো।” (মাওয়াহেবুল লাদুন্নিয়া, মাদারেজুন নবুয়াত)

নবী করিম (সাঃ) এরশাদ করেন-

ﺷﻓﺎﻋﺗﻰ ﻻﻫﻞ ﻛﺒﺎﺋ ﺭﻤﻥ ﺍﻤﺗﻰ

অর্থাৎ “আমার শাফায়াত (সুপারিশ) আমার উম্মতের কবীরা গুনাহ ওয়ালাদের জন্য।” (বুখারী ও মুসলিম)। তিনি আরও বলেন, “আমাকে তখন এই অধিকার দেয়া হবে যে, আমি আমার অর্ধেক উম্মতকে বিনা হিসেবে এবং শাফায়াতের মাধ্যমে বেহেশতে প্রবেশ করাব। তখন আমি শাফায়াত করতেই পছন্দ করবো।” এই শাফায়াত হবে মুত্তাকিদের অধিক মর্যাদা লাভের কারণ এবং পাপী উম্মতকে আযাব মুক্ত করার জন্য। (মাওয়াহেবুল লাদুন্নিয়া, মাদারেজুন নবুয়াত)

যারা শাফায়াতের অধিকার রাখেন তারা সকলেই মাকামে মাহমুদাপ্রাপ্ত, সে নবী হোক বা উলামা বা শহীদ হোক। অনেকের ধারণা যে, মাকামে মাহমুদা শুধু নবীর জন্য। এ ধরণে চিন্তা ভ্রান্ত। কেননা নবীজি (সাঃ) এরশাদ করেন,

ﻤﻥ ﺍﺣﺐ ﺳﻧﺗﻰ ﻓﻗﺪ ﺍﺣﺒﻧﻰ ﻭﻤﻥ ﺍﺤﺒﻨﻰ ﻜﺎﻦ ﻤﻌﻰ ﻓﻰ ﺍﻠﺟﻧﺔ

(মান আহাব্বা সুন্নাতি ফাকাদ আহাব্বানি, ওয়ামান আহাব্বানি কানা মায়ি ফিল জান্নাত)

অর্থাৎ “যে আমার আদর্শকে ভালবাসে, সে আমাকে ভালবাসে এবং সে আমাকে ভালবাসে, সে আমার সাথে জান্নাতে পাশাপাশি থাকেব।” নবীজি (সাঃ) যদি ‘মাকামে মাহমুদা’ (বেহেশতের শ্রেষ্ঠতম প্রশংসিত স্থান)-তে থাকেন, তাহলে যারা নবীজির সুন্নত ভালবাসবে তারাও নবীর সাথে মাকামে মাহমুদা-তে অবস্থান করবে। যেমন কুরআন শরীফে আল্লাহ তায়ালা এরশাদ করেন,

وَمِنَ اللَّيْلِ فَتَهَجَّدْ بِهِ نَافِلَةً لَكَ عَسَى أَنْ يَبْعَثَكَ رَبُّكَ مَقَامًا مَحْمُودًا

আপনি রাত্রের কিছু অংশ তাহাজ্জুদ কায়েম করবেন। এটি আপনার জন্য অতিরিক্ত। অতিশিঘ্রই আপনার প্রতিপালক আপনাকে অধিষ্ঠিত করবেন মাকামে মাহমুদা অর্থাৎ প্রশংসতি স্থানে)।” (সূরা বনী ইসরাইল-৭৯)

উলে­খিত আয়াতে আল্লাহ তায়ালা বললেন, অতিশিঘ্রই মাকামে মাহমুদা পাওয়ার কথা। অথচ আজ ১৪৫০ বছর ধরে আমরা শুধু দোয়াই করে যাচ্ছি, ফল হবে কবে? আরও একটি বিষয় সূরা বনী ইসরাইলের ৭০নং আয়াতে আদম সন্তানের কথা আলোচনা করা হয়েছে। এই সূরার ৭০-৭৮ নং আয়াত বিশ্লেষণ করলে দেখা যায় যে, এই আয়াতে মাকামে মাহমুদায় পৌঁছানোর জন্য সাধারণ মানুষকে তাগিদ করা হয়েছে। মহান আল্লাহ বারবার এই আধ্যাত্মিক স্তরের নফল কর্মটি করার জন্য সাধারণ মানুষকে তাগাদা দিয়েছেন-নবীকে নয়। নফল বা অতিরিক্ত কাজের ফলস্বরূপ সাধারণ মানুষকে পুরস্কৃত করার কথা বলা হয়েছে-নবীকে নয়। আধ্যাত্মিক স্তরের নফল কাজের পারিশ্রমিক হিসেবে এই স্থানে কি নবী অধিষ্ঠিত হবেন, নাকি সুকর্মের প্রভাবে সাধারণ মানুষ এই স্তরে অধিষ্ঠিত হবেন? নবী তিনিতো মাকামে মাহমুদায় অধিষ্ঠিত হয়েই নবী হিসেবে এসেছেন। মাকামে মাহমুদার স্তরে যাবার যোগ্যতা আছে বিধায় তিনি নবী। বিশ্ববিদ্যালয় পাশ করে যিনি শিক্ষক হয়ে গেছে তাঁকে টেনে হিচড়ে আবার সেই বিশ্ববিদ্যালয়ের ছাত্র বানাবার এই প্রাণপণ অপচেষ্টা আর কতকাল?

আল্লাহ পাক নবীর সাথে কি ওয়াদা করেছেন, তা আল্লাহ এবং তাঁর নবীর ব্যাপার। তাঁদের ব্যাপার তাঁরা বুঝবেন্ আমাদের মত ত্যানা-ন্যকড়াদের ওখানে নাক গলাতে যাওয়া কি বেয়াদবী নয়? পরিপূর্ণ একটি কাফির স¤প্রদায়ের মধ্যে যে নবী হেরা গুহায় আধ্যাত্মিক শিক্ষা পেলেন। যার জীবদ্দশায় মেরাজ হলো। যিনি পেলেন আল্লাহর দীদার এবং নৈকট্য। সেই তিনি মাকামে মাহমুদায় যেতে না পেরে আটকে গিয়ে তাঁরই উম্মতের দোয়ার মুখাপেক্ষী হয়ে রইলেন? বিষয়টি খুবই হাস্যকর। নবীর জন্য মাকামে মাহমুদা বড় না আল্লাহর নৈকট্য বড়? যদি আল্লাহর নৈকট্য বড় হয়, তাহলে তিনি তো পূর্বেই তা পেয়ে গেছেন। অযথা ‘মাকামে মাহমুদা দান কর’ এ ধরণের ঘ্যান ঘ্যান করার দরকার আছে কি?

পঞ্চম বিষয়: আল্লাহ যেন অঙ্গিকার ভঙ্গ না করে তা স্মরণ করিয়ে দেয়া

আবার আল্লাহকে স্মরণ করিয়ে দিচ্ছি যে, হে আল্লাহ! তুমি অঙ্গিকার ভঙ্গ কর না। এতে মনে হয় আল্লাজ মাঝে মাঝে মুনাফেকী করে (নাউযুবিল­াহ)। অর্থাৎ কথা দিয়ে কথা রাখে না (নাউযুবিল­াহ) অথবা আল্লাহর স্মরণশক্তি কম (নাউযুবিল­াহ)। তাই আল্লাহকে আমরা সবাই পাঁচ ওয়াক্ত নামাজে পাঁচবার স্মরণ করে দেই যে, তুমি ওয়াদা ভঙ্গ কর না (নাউযুবিল­াহ)। মহান আল্লাহ তায়ালা এরশাদ করেন,

سُنَّةِ اللَّهِ تَبْدِيلا

(সুন্নাতাল­াহি লা তাবাদিলা)

অর্থাৎ “আল্লাহর কথার পরিবর্তন বা হেরফের হয় না।” (সূরা আহযাব-৬২)

إِنَّ اللَّهَ لَقَوِيٌّ عَزِيزٌ

অর্থাৎ “নিশ্চয় আল্লাহ শক্তিধর, মহাপরাক্রমশালী।” (সূরা হ্জ্ব-৭৪)

إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ

অর্থাৎ “নিশ্চয় আল্লাহ সর্বশ্রোতা, সর্ব দ্রষ্টা।” (সূরা হজ্ব-৭৫)

وَعْدَ اللَّهِ لَا يُخْلِفُ اللَّهُ الْمِيعَادَ

অর্থাৎ “আল্লাহ ওয়াদা ভঙ্গ করেন না।” (সূরা জুমার-২০)

কুরআনে এ সমস্ত আয়াত প্রমান থাকা সত্বেও আমরা কেমন করে আমরা ভাবি যে, আল্লাহ ওয়াদা ভঙ্গ করেন? (নাউযুবিল­াহ)। আল্লাহকে কি স্মরণ করিয়ে দেওয়ার দরকার আছে? তাই যারা আযানে এভাবে দোয়া করবে, “নিশ্চয়ই তুমি ভঙ্গ কর না অঙ্গিকার” তারা নিশ্চিত ঈমান হারারে। কেননা আল্লাহকে তাগিদ দেয়ার ক্ষমতা আমাদের মত গুনাহগারদের নেই। আবার উক্ত কথাটি শিরক পর্যায়ে নিয়ে যায়। কেননা আল্লাহ মহান শক্তিধর, সকল ক্ষমতার উৎস। তাকে কোনকিছু মনে করে দেওয়ার অর্থ হচ্ছে তার সমপর্যায় দাবী করা, যা নিঃসন্দেহে শিরক। ফলে এ ধরণের দোয়া করলে মুশরিক হওয়ার সম্ভাবনাও থেকে যায়। তাই সাবধান! সওয়াব আদায় করতে গিয়ে যেন ঈমান হারা না হই এবং মুশরিক না হই।

পরিশেষে বলতে চাই, আজ প্রায় ১৪৫০ বছর হয়ে গেল নবীজির আবির্ভাব। কিন্তু আজও কি নবীজির সর্বশ্রেষ্ঠ মর্যাদা হাসিল হয়নি এং মাকামে মাহমুদা অর্জিত হয়নি? এখনও যদি না হয় তবে কবে হবে? যিনি সারা বিশ্বের রহমত, যিনি নিষ্পাপ, যিনি নিজেই মাকামে মাহমুদা তাঁর জন্য আবার কিসের দোয়া? এ কথা কোন জ্ঞানী বা নবীপ্রেমিক কি মেনে নেবে? এ ধরণের দোয়া করা নবীজিকে অপমান করা নয় কি? যারা প্রকৃত নবীপ্রেমিক তারা অবশ্যই এর বিরুদ্ধে সোচ্চার। আর যারা এজিদ-মাবিয়ার দল তারা নবীকে ছোট করার জন্য এ দোয়া করে। যেমন নবী পরিবারকে উমাইয়া শাসনামলে খুতবাতে গালি দিত। তেমনিভাবে নবীকে দৈনিক পাঁচবার অপমান করার চক্রান্ত এটি। তাই এ বিষয়ে সাবধান!!!। এখানে হয়তো আপনি দোয়া করতে পারেন, হে আল্লাহ! নবীজির উসিলায় আমাকে মাকামে মাহমুদা দান করুন এবং আমাকে ক্ষমা করে দিন। আপনি ক্ষমাশীল।

মহান আল্লাহ তায়ালা এরশাদ করেন,

أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا لَا تَرْفَعُوا أَصْوَاتَكُمْ فَوْقَ صَوْتِ النَّبِيِّ وَلَا تَجْهَرُوا لَهُ بِالْقَوْلِ كَجَهْرِ بَعْضِكُمْ لِبَعْضٍ أَنْ تَحْبَطَ أَعْمَالُكُمْ وَأَنْتُمْ لَا تَشْعُرُونَ

অর্থাৎ “হে আমানুগণ! তোমরা নবীর কন্ঠস্বরের উপর তোমাদের কন্ঠস্বর উঁচু করো না এবং তোমরা একে অপরের সাথে যেরূপ উঁচুস্বরে কথা বল, তাঁর (নবী) সাথে সেরূপ উঁচুস্বরে কথা বলো না। এতে তোমাদের আমল নি®ফল হয়ে যাবে এবং তোমরা টেরও পাবে না।” উক্ত আয়াতে নবীর সাথে আদব পালন করার ইঙ্গিত প্রদান করা হয়েছে।

উক্ত আয়াতের প্রেক্ষিতে বলতে চাই, যারা নবীর সাথে বেয়াদবী করবে তাদের সমস্ত আমল ধ্বংস হয়ে যাবে। আযান দিয়ে আযানের দোয়া পাঠ করে নবীজিকে হীন প্রমাণ করে নামাজে দাঁড়াই। এ নামাজ কোনদিনও কবুল হবে না।

যে জাতি তার নবীকে উচ্ছাসনে বসাতে জানে না, নবীর মর্যাদা দিতে জানেনা, নবীর মাহাত্ব্য ভেদ উপলব্ধি করতে জানেনা, নবীকে সাধারণ মানুষ হিসেবে মনে করে, সে জাতির কপালে ইহুদী নাসারাদের লাথি-ঝাটা ছাড়া আর কি প্রাপ্য হতে পারে? আমাদের জ্ঞান এতই নগণ্য যে, আমার আমাদের জ্ঞান দিয়ে নবীজিকে মূল্যায়ণ করতে জানি না। আমাদের অবস্থা ঐ সার্কাসের হাতির ন্যায়। সার্কাসে যেই হাতি পোষা হয় সেই হাতিগুলোকে ছোটবেলা থেকেই লালন পালন করা হয়। বাচ্চা হাতি খুব চঞ্জল হয়, তাই তাকে খুব মোটা ৬ফুট শিকল দিয়ে বেঁধে রাখা হয় যেন ছুটে না যায়। এই বাচ্চা হাতি খুব টানাটানি করে ছুটতে চাইলেও পারে না। যখন সে বড় হয় তখন ঐ হাতিকে খুব পাতলা এক দড়ি দিয়ে বেঁধে রাখলেও ঐ হাতি আর ছুটে যায় না। অথচ ঐ দড়ি ছিড়তে তার কোন কষ্টই করতে হয় না। কিন্তু তার মাথায় রয়ে গেছে ঐ বাচ্চা কালের কথা। তারপর যদি ঐখানে আগুনও ধরে তবুও হাতি ঐ ৬ফুটের বাইরে যাবে না, বরং বৃত্তের কেন্দ্রের দিকে চলে আসবে। আমাদের মুসলমান সমাজের অবস্থা ঐরকম। যুক্তি, বাস্তব কথা বললেও ঐ গোদবাধা কথা মালা থেকে সরে এসে মুক্ত চিন্তা করার ক্ষমতা নাই।.....চলবে


Read More

বৈশিষ্ট্যযুক্ত পোস্ট

अथर्ववेद 6/137/1

  एक वरिष्ठ वैदिक विद्वान् ने मुझे अथर्ववेद के निम्नलिखित मन्त्र का आधिदैविक और आध्यात्मिक भाष्य करने की चुनौती दी। इस चुनौती के उत्तर में म...

Post Top Ad

ধন্যবাদ