चौदहवें समुल्लास
अनुभूमिका (४)
जो यह १४ चौदहवां समुल्लास मुसलमानों के मतविषय में लिखा है सो केवल कुरान के अभिप्राय से। अन्य ग्रन्थ के मत से नहीं क्योंकि मुसलमान कुरान पर ही पूरा-पूरा विश्वास रखते हैं यद्यपि फिरके होने के कारण किसी शब्द अर्थ आदि विषय में विरुद्ध बात है तथापि कुरान पर सब ऐकमत्य हैं। जो कुरान अर्बी भाषा में है उस पर मौलवियों ने उर्दू में अर्थ लिखा है, उस अर्थ का देवनागरी अक्षर और आर्य्यभाषान्तर करा के पश्चात् अर्बी के बड़े-बड़े विद्वानों से शुद्ध करवा के लिखा गया है। यदि कोई कहे कि यह अर्थ ठीक नहीं है तो उस को उचित है कि मौलवी साहबों के तर्जुमों का पहले खण्डन करे पश्चात् इस विषय पर लिखे। क्योंकि यह लेख केवल मनुष्यों की उन्नति और सत्यासत्य के निर्णय के लिये है। सब मतों के विषयों का थोड़ा-थोड़ा ज्ञान होवे, इससे मनुष्यों को परस्पर विचार करने का समय मिले और एक दूसरे के दोषों का खण्डन कर गुणों का ग्रहण करें। न किसी अन्य मत पर न इस मत पर झूठ मूठ बुराई या भलाई लगाने का प्रयोजन है किन्तु जो-जो भलाई है वही भलाई और जो बुराई है वही बुराई सब को विदित होवे। न कोई किसी पर झूठ चला सके और न सत्य को रोक सके और सत्यासत्य विषय प्रकाशित किये पर भी जिस की इच्छा हो वह न माने वा माने। किसी पर बलात्कार नहीं किया जाता। और यही सज्जनों की रीति है कि अपने वा पराये दोषों को दोष और गुणों को गुण जानकर गुणों का ग्रहण और दोषों का त्याग करें। और हठियों का हठ दुराग्रह न्यून करें करावें, क्योंकि पक्षपात से क्या-क्या अनर्थ जगत् में न हुए और न होते हैं। सच तो यह है कि इस अनिश्चित क्षणभंग जीवन में पराई हानि करके लाभ से स्वयं रिक्त रहना और अन्य को रखना मनुष्यपन से बहिः है। इसमें जो कुछ विरुद्ध लिखा गया हो उस को सज्जन लोग विदित कर देंगे तत्पश्चात् जो उचित होगा तो माना जायेगा क्योंकि यह लेख हठ, दुराग्रह, ईर्ष्या, द्वेष, वाद-विवाद और विरोध घटाने के लिये किया गया है न कि इन को बढ़ाने के अर्थ। क्योंकि एक दूसरे की हानि करने से पृथक् रह परस्पर को लाभ पहुँचाना हमारा मुख्य कर्म है। अब यह १४ चौदहवें समुल्लास में मुसलमानों का मतविषय सब सज्जनों के सामने निवेदन करता हूँ। विचार कर इष्ट का ग्रहण अनिष्ट का परित्याग कीजिये।
अलमतिविस्तरेण बुद्धिमद्वर्य्येषु।
इत्यनुभूमिका।।
अथ चतुर्दशसमुल्लासारम्भः
अथ यवनमतविषयं व्याख्यास्यामः
इसके आगे मुसलमानों के मतविषय में लिखेंगे–
१-आरम्भ साथ नाम अल्लाह के क्षमा करने वाला दयालु।।
-मंजिल १। सिपारा १। सूरत १।।
(समीक्षक) मुसलमान लोग ऐसा कहते हैं कि यह कुरान खुदा का कहा है परन्तु इस वचन से विदित होता है कि इस को बनाने वाला कोई दूसरा है क्योंकि जो परमेश्वर का बनाया होता तो “आरम्भ साथ नाम अल्लाह के” ऐसा न कहता किन्तु ष्आरम्भ वास्ते उपदेश मनुष्यों केष् ऐसा कहता। यदि मनुष्यों को शिक्षा करता है कि तुम ऐसा कहो तो भी ठीक नहीं। क्योंकि इस से पाप का आरम्भ भी खुदा के नाम से होकर उसका नाम भी दूषित हो जाएगा। जो वह क्षमा और दया करनेहारा है तो उसने अपनी सृष्टि में मनुष्यों के सुखार्थ अन्य प्राणियों को मार, दारुण पीड़ा दिला कर, मरवा के मांस खाने की आज्ञा क्यों दी? क्या वे प्राणी अनपराधी और परमेश्वर के बनाये हुए नहीं हैं? और यह भी कहना था कि “परमेश्वर के नाम पर अच्छी बातों का आरम्भ” बुरी बातों का नहीं। इस कथन में गोलमाल है। क्या चोरी, जारी, मिथ्याभाषणादि अधर्म का भी आरम्भ परमेश्वर के नाम पर किया जाय? इसी से देख लो कसाई आदि मुसलमान, गाय आदि के गले काटने में भी ‘बिस्मिल्लाह’ इस वचन को पढ़ते हैं। जो यही इसका पूर्वोक्त अर्थ है तो बुराइयों का आरम्भ भी परमेश्वर के नाम पर मुसलमान करते हैं और मुसलमानों का ‘खुदा’ दयालु भी न रहेगा क्योंकि उस की दया उन पशुओं पर न रही। और जो मुसलमान लोग इस का अर्थ नहीं जानते तो इस वचन का प्रकट होना व्यर्थ है। यदि मुसलमान लोग इस का अर्थ और करते हैं तो सूधा अर्थ क्या है ? इत्यादि।।१।।
२-सब स्तुति परमेश्वर के वास्ते हैं जो परवरदिगार अर्थात् पालन करनेहारा है सब संसार का।। क्षमा करने वाला दयालु है ।।
-मं० १। सि० १। सूरतुल्फातिहा आयत १। २।।
(समीक्षक) जो कुरान का खुदा संसार का पालन करने हारा होता और सब पर क्षमा और दया करता होता तो अन्य मत वाले और पशु आदि को भी मुसलमानों के हाथ से मरवाने का हुक्म न देता । जो क्षमा करनेहारा है तो क्या पापियों पर भी क्षमा करेगा ? और जो वैसा है तो आगे लिखेंगे कि ष्काफिरों को कतल करोष् अर्थात् जो कुरान और पैगम्बर को न मानें वे काफिर हैं ऐसा क्यों कहता ? इसलिये कुरान ईश्वरकृत नहीं दीखता।।२।।
३-मालिक दिन न्याय का।। तुझ ही को हम भक्ति करते हैं और तुझ ही से सहाय चाहते हैं।। दिखा हम को सीधा रास्ता।।
-मंन१। सि० १। सू० १। आ० ३। ४। ५।।
(समीक्षक) क्या खुदा नित्य न्याय नहीं करता ? किसी एक दिन न्याय करता है ? इस से तो अन्धेर विदित होता है! उसी की भक्ति करना और उसी से सहाय चाहना तो ठीक परन्तु क्या बुरी बात का भी सहाय चाहना ? और सूधा मार्ग एक मुसलमानों ही का है वा दूसरे का भी ? सूधे मार्ग को मुसलमान क्यों नहीं ग्रहण करते ? क्या सूधा रास्ता बुराई की ओर का तो नहीं चाहते? यदि भलाई सब की एक है तो फिर मुसलमानों ही में विशेष कुछ न रहा और जो दूसरों की भलाई नहीं मानते तो पक्षपाती हैं।।३।।
४-दिखा उन लोगों का रास्ता कि जिन पर तूने निआमत की।। और उनका मार्ग मत दिखा कि जिन के ऊपर तू ने गजब अर्थात् अत्यन्त क्रोध की दृष्टि की और न गुमराहों का मार्ग हमको दिखा।। -मं० १। सि० १। सू० १। आ० ६। ७।।
(समीक्षक) जब मुसलमान लोग पूर्वजन्म और पूर्वकृत पाप पुण्य नहीं मानते तो किन्हीं पर निआमत अर्थात् फजल वा दया करने और किन्हीं पर न करने से खुदा पक्षपाती हो जायगा। क्योंकि विना पाप-पुण्य सुख-दुःख देना केवल अन्याय की बात है। और विना कारण किसी पर दया और किसी पर क्रोधदृष्टि करना भी स्वभाव से बहिः है क्योंकि विना भलाई बुराई के वह दया अथवा क्रोध नहीं कर सकता और जब उनके पूर्व संचित पुण्य पाप ही नहीं तो किसी पर दया और किसी पर क्रोध करना नहीं हो सकता। और इस सूरत की टिप्पन पर यह “सूर अल्लाह साहेब ने मनुष्यों के मुख से कहलाई कि सदा इस प्रकार से कहा करें।” जो यह बात है तो ‘अलिफ बे’ आदि अक्षर भी खुदा ही ने पढ़ाये होंगे, जो कहो कि नहीं तो विना अक्षर ज्ञान के इस सूरः को कैसे पढ़ सके ? क्या कण्ठ ही से बुलाये और बोलते गये ? जो ऐसा है तो सब कुरान ही कण्ठ से पढ़ाया होगा। इस से ऐसा समझना चाहिये कि जिस पुस्तक में पक्षपात की बातें पाई जायें वह पुस्तक ईश्वरकृत नहीं हो सकता। जैसा कि अरबी भाषा में उतारने से अरब वालों को इस का पढ़ना सुगम, अन्य भाषा बोलने वालों को कठिन होता है। इसी से खुदा में पक्षपात आता है। और जैसे परमेश्वर ने सृष्टिस्थ सब देशस्थ मनुष्यों पर न्यायदृष्टि से सब देशभाषाओं से विलक्षण संस्कृत भाषा कि जो सब देशवालों के लिये एक से परिश्रम से विदित होती है उसी में वेदों का प्रकाश किया है, यह करता तो कुछ भी दोष नहीं होता।।४।।
५-यह पुस्तक कि जिस में सन्देह नहीं; परहेजगारों को मार्ग दिखलाती है।। जो कि ईमान लाते हैं साथ गैब (परोक्ष) के, नमाज पढ़ते, और उस वस्तु से जो हम ने दी खर्च करते हैं।। और वे लोग जो उस किताब पर ईमान लाते हैं जो रखते हैं तेरी ओर वा तुझ से पहिले उतारी गई, और विश्वास कयामत पर रखते हैं।। ये लोग अपने मालिक की शिक्षा पर हैं और ये ही छुटकारा पाने वाले हैं।। निश्चय जो काफिर हुए उन पर तेरा डराना न डराना समान है। वे ईमान न लावेंगे।। अल्लाह ने उन के दिलों, कानों पर मोहर कर दी और उन की आंखों पर पर्दा है और उन के वास्ते बड़ा अ-जाब है।। -मं० १। सि०१। सूरत २। आ० १। २। ३। ४। ५। ६। ७।।
(समीक्षक) क्या अपने ही मुख से अपनी किताब की प्रशंसा करना खुदा की दम्भ की बात नहीं? जब ‘परहे-जगार’ अर्थात् धार्मिक लोग हैं वे तो स्वतः सच्चे मार्ग पर हैं और जो झूठे मार्ग पर हैं उन को यह कुरान मार्ग ही नहीं दिखला सकता, फिर किस काम का रहा? ।।१।। क्या पाप पुण्य और पुरुषार्थ के विना खुदा अपने ही खजाने से खर्च करने को देता है ? जो देता है तो सब को क्यों नहीं देता? और मुसलमान लोग परिश्रम क्यों करते हैं? ।।२।। और जो बाइबल इञ्जील आदि पर विश्वास करना योग्य है तो मुसलमान इञ्जील आदि पर ईमान जैसा कुरान पर है वैसा क्यों नहीं लाते? और जो लाते हैं तो कुरान१ का होना किसलिये? जो कहें कि कुरान में अधिक बातें हैं तो पहली किताब में लिखना खुदा भूल गया होगा! और जो नहीं भूला तो कुरान का बनाना निष्प्रयोजन है। और हम देखते हैं तो बाइबल और कुरान की बातें कोई-कोई न मिलती होंगी नहीं तो सब मिलती हैं। एक ही पुस्तक जैसा कि वेद है क्यों न बनाया? कयामत पर ही विश्वास रखना चाहिये; अन्य पर नहीं? ।।३।। क्या जो ईसाई और मुसलमान ही खुदा की शिक्षा पर हैं उन में कोई भी पापी नहीं है? क्या ईसाई और मुसलमान अधर्मी हैं वे भी छुटकारा पावें और दूसरे धर्मात्मा भी न पावें तो बड़े अन्याय और अन्धेर की बात नहीं है? ।।४।। और क्या जो लोग मुसलमानी मत को न मानें उन्हीं को काफिर कहना वह एकतर्फी डिगरी नहीं है? ।।५ ।। जो परमेश्वर ही ने उनके अन्तःकरण और कानों पर मोहर लगाई और उसी से वे पाप करते हैं तो उन का कुछ भी दोष नहीं। यह दोष खुदा ही का है फिर उन पर सुख-दुःख वा पाप-पुण्य नहीं हो सकता पुनः उन को सजा जजा क्यों करता है? क्योंकि उन्होंने पाप वा पुण्य स्वतन्त्रता से नहीं किया।।५।।
६-उनके दिलों में रोग है, अल्लाह ने उन का रोग बढ़ा दिया।।
-मं० १। सि० १। सू० २। आ० १०।।
(समीक्षक) भला विना अपराध खुदा ने उन का रोग बढ़ाया, दया न आई, उन बिचारों को बड़ा दुःख हुआ होगा! क्या यह शैतान से बढ़कर शैतानपन का काम नहीं है? किसी के मन पर मोहर लगाना, किसी का रोग बढ़ाना, यह खुदा का काम नहीं हो सकता क्योंकि रोग का बढ़ना अपने पापों से है।।६।।
७-जिस ने तुम्हारे वास्ते पृथिवी बिछौना और आसमान की छत को बनाया।।
-मंन१। सि०१। सू०२। आ० २२।।
(समीक्षक) भला आसमान छत किसी की हो सकती है? यह अविद्या की बात है। आकाश को छत के समान मानना हंसी की बात है। यदि किसी प्रकार की पृथिवी को आसमान मानते हों तो उनकी घर की बात है।।७ ।।
८-जो तुम उस वस्तु से सन्देह में हो जो हम ने अपने पैगम्बर के ऊपर उतारी तो उस कैसी एक सूरत ले आओ और अपने साक्षी अपने लोगों को पुकारो अल्लाह के विना जो तुम सच्चे हो।। जो तुम और कभी न करोगे तो उस आग से डरो कि जिस का इन्धन मनुष्य है, और काफिरों के वास्ते पत्थर तैयार किये गये हैं।। -मंन१। सि०१। सू०२। आ०२३। २४।।
(समीक्षक) भला यह कोई बात है कि उस के सदृश कोई सूरत न बने? क्या अकबर बादशाह के समय में मौलवी फैजी ने विना नुकते का कुरान नहीं बना लिया था? वह कौन सी दो-जख की आग है? क्या इस आग से न डरना चाहिये ? इस का भी इन्धन जो कुछ पड़े सब है। जैसे कुरान में लिखा है कि काफिरों के वास्ते दोजख की आग तैयार की गई है तो वैसे पुराणों में लिखा है
१– वास्तव में यह शब्द ‘‘क़ुरआन’’ है परन्तु भाषा में लोगों के बोलने में क़ुरान आता है इसलिये ऐसा ही लिखा है ।
कि म्लेच्छों के लिये घोर नरक बना है! अब कहिये किस की बात सच्ची मानी जाय ? अपने-अपने वचन से दोनों स्वर्गगामी और दूसरे के मत से दोनों नरकगामी होते हैं। इसलिए इन सब का झगड़ा झूठा है किन्तु जो धार्मिक हैं वे सुख और जो पापी हैं वे सब मतों में दुःख पावेंगे।।८।।
९-और आनन्द का सन्देशा दे उन लोगों को कि ईमान लाए और काम किए अच्छे। यह कि उन के वास्ते बहिश्तें हैं जिन के नीचे से चलती हैं नहरें। जब उन में से मेवों के भोजन दिये जावेंगे तब कहेंगे कि यह वो वस्तु हैं जो हम पहिले इस से दिये गये थे—— और उन के लिये पवित्र बीवियाँ सदैव वहाँ रहने वाली हैं।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० २५।।
(समीक्षक) भला! यह कुरान का बहिश्त संसार से कौन सी उत्तम बात वाला है ? क्योंकि जो पदार्थ संसार में हैं वे ही मुसलमानों के स्वर्ग में हैं और इतना विशेष है कि यहाँ जैसे पुरुष जन्मते मरते और आते जाते हैं उसी प्रकार स्वर्ग में नहीं। किन्तु यहाँ की स्त्रियाँ सदा नहीं रहतीं और वहाँ बीवियाँ अर्थात् उत्तम स्त्रियाँ सदा काल रहती हैं तो जब तक कयामत की रात न आवेगी तब तक उन बिचारियों के दिन कैसे कटते होंगे ? हां जो खुदा की उन पर कृपा होती होगी! और खुदा ही के आश्रय समय काटती होंगी तो ठीक है। क्योंकि यह मुसलमानों का स्वर्ग गोकुलिये गुसाँइयों के गोलोक और मन्दिर के सदृश दीखता है क्योंकि वहाँ स्त्रियों का मान्य बहुत, पुरुषों का नहीं। वैसे ही खुदा के घर में स्त्रियों का मान्य अधिक और उन पर खुदा का प्रेम भी बहुत है उन पुरुषों पर नहीं। क्योंकि बीवियों को खुदा ने बहिश्त में सदा रक्खा और पुरुषों को नहीं। वे बीवियां विना खुदा की मर्जी स्वर्ग में कैसे ठहर सकतीं ? जो यह बात ऐसी ही हो तो खुदा स्त्रियों में फंस जाय!।।९।।
१०-आदम को सारे नाम सिखाये। फिर फरिश्तों के सामने करके कहा जो तुम सच्चे हो मुझे उन के नाम बताओ।। कहा हे आदम! उन को उन के नाम बता दे। तब उस ने बता दिये तो खुदा ने फरिश्तों से कहा कि क्या मैंने तुम से नहीं कहा था कि निश्चय मैं पृथिवी और आसमान की छिपी वस्तुओं को और प्रकट छिपे कर्मों को जानता हूँ ।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ३०। ३१।।
(समीक्षक) भला ऐसे फरिश्तों को धोखा देकर अपनी बड़ाई करना खुदा का काम हो सकता है ? यह तो एक दम्भ की बात है। इस को कोई विद्वान् नहीं मान सकता और न ऐसा अभिमान करता। क्या ऐसी बातों से ही खुदा अपनी सिद्धाई जमाना चाहता है ? हाँ! जंगली लोगों में कोई कैसा ही पाखण्ड चला लेवे चल सकता है; सभ्य जनों में नहीं ।।१०।।
११-जब हमने फरिश्तों से कहा कि बाबा आदम को दण्डवत् करो, देखा सभों ने दण्डवत् किया परन्तु शैतान ने न माना और अभिमान किया क्योंकि वो भी एक काफिर था।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ३४।।
(समीक्षक) इस से खुदा सर्वज्ञ नहीं अर्थात् भूत, भविष्यत् और वर्त्तमान की पूरी बातें नहीं जानता। जो जानता हो तो शैतान को पैदा ही क्यों किया ? और खुदा में कुछ तेज भी नहीं है क्योंकि शैतान ने खुदा का हुक्म ही न माना और खुदा उस का कुछ भी न कर सका। और देखिये! एक शैतान काफिर ने खुदा का भी छक्का छुड़ा दिया तो मुसलमानों के कथनानुसार भिन्न जहाँ क्रोड़ों काफिर हैं वहाँ मुसलमानों के खुदा और मुसलमानों की क्या चल सकती है? कभी-कभी खुदा भी किसी का रोग बढ़ा देता, किसी को गुमराह कर देता है। खुदा ने ये बातें शैतान से सीखी होंगी और शैतान ने खुदा से। क्योंकि विना खुदा के शैतान का उस्ताद और कोई नहीं हो सकता।।११।।
१२-हमने कहा कि ओ आदम! तू और तेरी जोरू बहिश्त में रह कर आनन्द में जहाँ चाहो खाओ परन्तु मत समीप जाओ उस वृक्ष के कि पापी हो जाओगे।। शैतान ने उन को डिगाया और उन को बहिश्त के आनन्द से खो दिया। तब हम ने कहा कि उतरो तुम्हारे में कोई परस्पर शत्रु है। तुम्हारा ठिकाना पृथिवी है और एक समय तक लाभ है।। आदम अपने मालिक की कुछ बातें सीखकर पृथिवी पर आ गया।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ३५। ३६। ३७।।
(समीक्षक) अब देखिये खुदा की अल्पज्ञता! अभी तो स्वर्ग में रहने का आशीर्वाद दिया और पुनः थोड़ी देर में कहा कि निकलो। जो भविष्यत् बातों को जानता होता तो वर ही क्यों देता? और बहकाने वाले शैतान को दण्ड देने से असमर्थ भी दीख पड़ता है। और वह वृक्ष किस के लिये उत्पन्न किया था? क्या अपने लिये वा दूसरे के लिये ? जो अपने लिये किया तो उस को क्या जरूरत थी? और जो दूसरे के लिये तो क्यों रोका? इसलिये ऐसी बातें न खुदा की और न उसके बनाये पुस्तक में हो सकती हैं। आदम साहेब खुदा से कितनी बातें सीख आये? और जब पृथिवी पर आदम साहेब आये तब किस प्रकार आये? क्या वह बहिश्त पहाड़ पर है वा आकाश पर? उस से कैसे उतर आये? अथवा पक्षी के तुल्य आये अथवा जैसे ऊपर से पत्थर गिर पड़े? इस में यह विदित होता है कि जब आदम साहेब मट्टी से बनाये गये तो इन के स्वर्ग में भी मट्टी होगी। और जितने वहाँ और हैं वे भी वैसे ही फरिश्ते आदि होंगे, क्योंकि मट्टी के शरीर विना इन्द्रिय भोग नहीं हो सकता। जब पार्थिव शरीर है तो मृत्यु भी अवश्य होना चाहिये। यदि मृत्यु होता है तो वे वहाँ से कहां जाते हैं? और मृत्यु नहीं होता तो उन का जन्म भी नहीं हुआ। जब जन्म है तो मृत्यु अवश्य ही है। यदि ऐसा है तो कुरान में लिखा है कि बीबियां सदैव बहिश्त में रहती हैं सो झूठा हो जायगा क्योंकि उन का भी मृत्यु अवश्य होगा। जब ऐसा है तो बहिश्त में जाने वालों का भी मृत्यु अवश्य ही होगा।।१२।।
१३-उस दिन से डरो जब कोई जीव किसी जीव से कुछ भरोसा न रक्खेगा। न उस की सिफारिश स्वीकार की जावेगी, न उस से बदला लिया जावेगा और न वे सहाय पावेंगे।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ४८।।
(समीक्षक०) क्या वर्त्तमान दिनों में न डरें? बुराई करने में सब दिन डरना चाहिये। जब सिफारिश न मानी जावेगी तो फिर पैगम्बर की गवाही वा सिफारिश से खुदा स्वर्ग देगा यह बात क्योंकर सच हो सकेगी? क्या खुदा बहिश्त वालों ही का सहायक है; दोजखवालों का नहीं? यदि ऐसा है तो खुदा पक्षपाती है।।१३।।
१४-हमने मूसा को किताब और मौजिजे दिये।।
-मं० १। सि० १। सू० २। आ० ५३।।
(समीक्षक) जो मूसा को किताब दी तो कुरान का होना निरर्थक है। और उस को आश्चर्यशक्ति दी यह बाइबल और कुरान में भी लिखा है परन्तु यह बात मानने योग्य नहीं। क्योंकि जो ऐसा होता तो अब भी होता, जो अब नहीं तो पहले भी न था। जैसे स्वार्थी लोग आज कल भी अविद्वानों के सामने विद्वान् बन जाते हैं वैसे उस समय भी कपट किया होगा। क्योंकि खुदा और उस के सेवक अब भी विद्यमान हैं पुनः इस समय खुदा आश्चर्यशक्ति क्यों नहीं देता? और नहीं कर सकते? जो मूसा को किताब दी थी तो पुनः कुरान का देना क्या आवश्यक था? क्योंकि जो भलाई बुराई करने न करने का उपदेश सर्वत्र एक सा हो तो पुनः भिन्न-भिन्न पुस्तक करने से पुनरुक्त दोष होता है। क्या मूसा जी आदि को दी हुई पुस्तकों में खुदा भूल गया था? ।।१४।।
१५-और कहो कि क्षमा मांगते हैं हम क्षमा करेंगे तुम्हारे पाप और अधिक भलाई करने वालों के।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ५२।।
(समीक्षक) भला यह खुदा का उपदेश सब को पापी बनाने वाला है वा नहीं? क्योंकि जब पाप क्षमा होने का आश्रय मनुष्यों को मिलता है तब पापों से कोई भी नहीं डरता। इसलिये ऐसा कहने वाला खुदा और यह खुदा का बनाया हुआ पुस्तक नहीं हो सकता क्योंकि वह न्यायकारी है, अन्याय कभी नहीं करता और पाप क्षमा करने में अन्यायकारी हो जाता है किन्तु यथापराध दण्ड ही देने में न्यायकारी हो सकता है।।१५।।
१६-जब मूसा ने अपनी कौम के लिये पानी मांगा, हम ने कहा कि अपना असा (दण्ड) पत्थर पर मार। उस में से बारह चश्मे बह निकले।।
-मं० १। सि० १। सू० २। आ० ६०।।
(समीक्षक) अब देखिये! इन असम्भव बातों के तुल्य दूसरा कोई कहेगा? एक पत्थर की शिला में डण्डा मारने से बारह झरनों का निकलना सर्वथा असम्भव है। हां! उस पत्थर को भीतर से पोलाकर उस में पानी भर बाहर छिद्र करने से सम्भव है; अन्यथा नहीं।।१६।।
१७-हम ने उन को कहा कि तुम निन्दित बन्दर हो जाओ यह एक भय दिया जो उन के सामने और पीछे थे उन को और शिक्षा ईमानदारों को।।
-मं० १। सि० १। सू० २। आ० ६५। ६६।।
(समीक्षक) जो खुदा ने निन्दित बन्दर हो जाना केवल भय देने के लिए कहा था तो उस का कहना मिथ्या हुआ वा छल किया। जो ऐसी बातें करता और जिस में ऐसी बातें हैं वह न खुदा और न यह पुस्तक खुदा का बनाया हो सकता है।।१७।।
१८-इस तरह खुदा मुर्दों को जिलाता है और तुम को अपनी निशानियाँ दिखलाता है कि तुम समझो।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ७३।।
(समीक्षक) क्या मुर्दों को खुदा जिलाता था तो अब क्यों नहीं जिलाता? क्या कयामत की रात तक कबरों में पड़े रहेंगे? आजकल दौड़ासुपुर्द हैं? क्या इतनी ही ईश्वर की निशानियां हैं? पृथिवी, सूर्य, चन्द्रादि निशानियां नहीं हैं? क्या संसार में जो विविध रचना विशेष प्रत्यक्ष दीखती हैं ये निशानियां कम हैंे? ।।१८।।
१९- वे सदैव काल बहिश्त अर्थात् वैकुण्ठ में वास करने वाले हैं।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ८२।।
(समीक्षक) कोई भी जीव अनन्त पाप पुण्य करने का सामर्थ्य नहीं रखता इसलिये सदैव स्वर्ग नरक में नहीं रह सकते। और जो खुदा ऐसा करे तो वह अन्यायकारी और अविद्वान् हो जावे। कयामत की रात न्याय होगा तो मनुष्यों के पाप पुण्य बराबर होना उचित है। जो अनन्त नहीं है उस का फल अनन्त कैसे हो सकता है? और सृष्टि हुए सात आठ हजार वर्षों से इधर ही बतलाते हैं। क्या इस के पूर्व खुदा निकम्मा बैठा था? और कयामत के पीछे भी निकम्मा रहेगा? ये बातें सब लड़कों के समान हैं क्योंकि परमेश्वर के काम सदैव वर्त्तमान रहते हैं और जितने जिस के पाप पुण्य हैं उतना ही उसको फल देता है इसलिये कुरान की यह बात सच्ची नहीं।।१९।।
२०-जब हम ने तुम से प्रतिज्ञा कराई न बहाना लोहू अपने आपस के और किसी अपने आपस को घरों से न निकालना, फिर प्रतिज्ञा की तुम ने, इस के तुम ही साक्षी हो।। फिर तुम वे लोग हो कि अपने आपस को मार डालते हो, एक फिरके को आप में से घरों उन के से निकाल देते हो। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ८४। ८५।।
(समीक्षक) भला! प्रतिज्ञा करानी और करनी अल्पज्ञों की बात है वा परमात्मा की जब परमेश्वर सर्वज्ञ है तो ऐसी कड़ाकूट संसारी मनुष्य के समान क्यों करेगा? भला यह कौन सी भली बात है कि आपस का लोहू न बहाना, अपने मत वालों को घर से न निकालना, अर्थात् दूसरे मत वालों का लोहू बहाना, और घर से निकाल देना? यह मिथ्या मूर्खता और पक्षपात की बात है। क्या परमेश्वर प्रथम ही से नहीं जानता था कि ये प्रतिज्ञा से विरुद्ध करेंगे? इस से विदित होता है कि मुसलमानों का खुदा भी ईसाइयों की बहुत सी उपमा रखता है और यह कुरान स्वतन्त्र नहीं बन सकता क्योंकि इसमें से थोड़ी सी बातों को छोड़कर बाकी सब बातें बायबिल की हैं।।२०।।
२१-ये वे लोग हैं कि जिन्होंने आखरत के बदले जिन्दगी यहाँ की मोल ले ली। उन से पाप कभी हलका न किया जावेगा और न उन को सहायता दी जावेगी।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ८६।।
(समीक्षक) भला ऐसी ईर्ष्या द्वेष की बातें कभी ईश्वर की ओर से हो सकती हैं? जिन लोगों के पाप हलके किये जायेंगे वा जिन को सहायता दी जावेगी वे कौन हैं? यदि वे पापी हैं और पापों का दण्ड दिये विना हलके किये जावेंगे तो अन्याय होगा। जो सजा देकर हलके किये जावेंगे तो जिन का बयान इस आयत में है ये भी सजा पाके हलके हो सकते हैं। और दण्ड देकर भी हलके न किये जावेंगे तो भी अन्याय होगा। जो पापों से हलके किये जाने वालों से प्रयोजन धर्मात्माओं का है तो उन के पाप तो आप ही हलके हैं; खुदा क्या करेगा? इस से यह लेख विद्वान् का नहीं। और वास्तव में धर्मात्माओं को सुख और अधिर्म्मयों को दुःख उन के कर्मों के अनुसार सदैव देना चाहिये।।२१।।
२२-निश्चय हम ने मूसा को किताब दी और उस के पीछे हम पैगम्बर को लाये और मरियम के पुत्र ईसा को प्रकट मौजिजे अर्थात् दैवीशक्ति और सामर्थ्य दिये उस को साथ रूहल्कुद्स१ के। जब तुम्हारे पास उस वस्तु सहित पैगम्बर आया कि जिस को तुम्हारा जी चाहता नहीं; फिर तुम ने अभिमान किया। एक मत को झुठलाया और एक को मार डालते हो।।
-मं० १। सि० १। सू० २। आ० ८७।।
१– रूहल्कुद्स कहते हैं जबरईल को जो कि हरदम मसीह के साथ रहता था ।
(समीक्षक) जब कुरान में साक्षी है कि मूसा को किताब दी तो उस का मानना मुसलमानों को आवश्यक हुआ और जो-जो उस पुस्तक में दोष हैं वे भी मुसलमानों के मत में आ गिरे और ‘मौजिजे’ अर्थात् दैवी शक्ति की बातें सब अन्यथा हैं भोले भाले मनुष्यों को बहकाने के लिये झूंठ मूंठ चला ली हैं क्योंकि सृष्टिक्रम और विद्या से विरुद्ध सब बातें झूंठी ही होती हैं जो उस समय ‘‘मौजिजे’’ थे तो इस समय क्यों नहीं। जो इस समय भी नहीं तो उस समय भी न थे इस में कुछ भी सन्देह नहीं।।२२।।
२३-और इस से पहिले काफिरों पर विजय चाहते थे जो कुछ पहिचाना था जब उन के पास वह आया झट काफिर हो गये। काफिरों पर लानत है अल्लाह की।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ८९।।
(समीक्षक) क्या जैसे तुम अन्य मत वालों को काफिर कहते हो वैसे वे तुम को काफिर नहीं कहते हैं? और उन के मत के ईश्वर की ओर से धिक्कार देते हैं फिर कहो कौन सच्चा और कौन झूठा? जो विचार कर देखते हैं तो सब मत वालों में झूठ पाया जाता है जो सच है सो सब में एक सा है, ये सब लड़ाइयां मूर्खता की हैं।।२३।।
२४-आनन्द का सन्देशा ईमानदारों को।। अल्लाह, फरिश्तों, पैगम्बरों जिबरईल और मीकाईल का जो शत्रु है अल्लाह भी ऐसे काफिरों का शत्रु है।।
-मं० १। सि० १। सू० २। आ० ९७।९८।।
(समीक्षक) जब मुसलमान कहते हैं कि ‘खुदा लाशरीक’ है फिर यह फौज की फौज ‘शरीक’ कहां से कर दी? क्या जो औरों का शत्रु वह खुदा का भी शत्रु है। यदि ऐसा है तो ठीक नहीं क्योंकि ईश्वर किसी का शत्रु नहीं हो सकता।।२४।।
२५-और अल्लाह खास करता है जिस को चाहता है साथ दया अपनी के।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० १०३।।
(समीक्षक) क्या जो मुख्य और दया करने के योग्य न हो उस को भी प्रधान बनाता और उस पर दया करता है? जो ऐसा है तो खुदा बड़ा गड़बड़िया है क्योंकि फिर अच्छा काम कौन करेगा? और बुरे कर्म को कौन छोड़ेगा? क्योंकि खुदा की प्रसन्नता पर निर्भर करते हैं, कर्मफल पर नहीं, इस से सब को अनास्था होकर कर्मोच्छेदप्रसंग होगा।।२५।।
२६-ऐसा न हो कि काफिर लोग ईर्ष्या करके तुम को ईमान से फेर देवें क्योंकि उन में से ईमान वालों के बहुत से दोस्त हैं।।
-मं० १। सि० १। सू० २। आ० १०१।।
(समीक्षक) अब देखिये! खुदा ही उन को चिताता है कि तुम्हारे ईमान को काफिर लोग न डिगा देवें। क्या वह सर्वज्ञ नहीं है? ऐसी बातें खुदा की नहीं हो सकती हैं।।२६।।
२७-तुम जिधर मुंह करो उधर ही मुंह अल्लाह का है।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ११५।।
(समीक्षक) जो यह बात सच्ची है तो मुसलमान ‘किबले’ की ओर मुंह क्यों करते हैं? जो कहें कि हम को किबले की ओर मुंह करने का हुक्म है तो यह भी हुक्म है कि चाहें जिधर की ओर मुख करो। क्या एक बात सच्ची और दूसरी बात झूठी होगी? और जो अल्लाह का मुख है तो वह सब ओर हो ही नहीं सकता। क्योंकि एक मुख एक ओर रहेगा, सब ओर क्योंकर रह सकेगा? इसलिए यह संगत नहीं।।२७।।
२८-जो आसमान और भूमि का उत्पन्न करने वाला है। जब वो कुछ करना चाहता है यह नहीं कि उस को करना पड़ता है किन्तु उसे कहता है कि हो जा! बस हो जाता है।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० ११७।।
(समीक्षक) भला खुदा ने हुक्म दिया कि हो जा तो हुक्म किस ने सुना? और किस को सुनाया? और कौन बन गया? किस कारण से बनाया? जब यह लिखते हैं कि सृष्टि के पूर्व सिवाय खुदा के कोई भी दूसरा वस्तु न था तो यह संसार कहां से आया? विना कारण के कोई भी कार्य्य नहीं होता तो इतना बड़ा जगत् कारण के विना कहां से हुआ? यह बात केवल लड़कपन की है।
(पूर्वपक्षी) नहीं नहीं, खुदा की इच्छा से ।
(उत्तरपक्षी) क्या तुम्हारी इच्छा से एक मक्खी की टांग भी बन जा सकती है? जो कहते हो कि खुदा की इच्छा से यह सब कुछ जगत् बन गया।
(पूर्वपक्षी) खुदा सर्वशक्तिमान् है इसलिये जो चाहे सो कर लेता है।
(उत्तरपक्षी) सर्वशक्तिमान् का क्या अर्थ है?
(पूर्वपक्षी) जो चाहे सो कर सके।
(उत्तरपक्षी) क्या खुदा दूसरा खुदा भी बना सकता है? अपने आप मर सकता है? मूर्ख रोगी और अज्ञानी भी बन सकता है?
(पूर्वपक्षी) ऐसा कभी नहीं बन सकता।
(उत्तरपक्षी) इसलिये परमेश्वर अपने और दूसरों के गुण, कर्म, स्वभाव के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकता। जैसे संसार में किसी वस्तु के बनने बनाने में तीन पदार्थ प्रथम अवश्य होते हैं-एक बनानेवाला जैसे कुम्हार, दूसरी घड़ा बनने वाली मिट्टी और तीसरा उस का साधन जिस से घड़ा बनाया जाता है। जैसे कुम्हार, मिट्टी और साधन से घड़ा बनता है और बनने वाले घड़े के पूर्व कुम्हार, मिट्टी और साधन होते हैं वैसे ही जगत् के बनने से पूर्व परमेश्वर जगत् का कारण प्रकृति और उन के गुण, कर्म, स्वभाव अनादि हैं। इसलिये यह कुरान की बात सर्वथा असम्भव है ।।२८।।
२९-जब हमने लोगों के लिये काबे को पवित्र स्थान सुख देने वाला बनाया तुम नमाज के लिये इबराहीम के स्थान को पकड़ो।।
-मं० १। सि० १। सू० २। आ० १२५।।
(समीक्षक) क्या काबे के पहले पवित्र स्थान खुदा ने कोई भी न बनाया था? जो बनाया था तो काबे के बनाने की कुछ आवश्यकता न थी जो नहीं बनाया था तो विचारे पूर्वोत्पन्नों को पवित्र स्थान के विना ही रक्खा था? पहले ईश्वर को पवित्र स्थान बनाने का स्मरण न हुआ होगा।।२९।।
३०-वो कौन मनुष्य हैं जो इबराहीम के दीन से फिर जावें परन्तु जिस ने अपनी जान को मूर्ख बनाया और निश्चय हम ने दुनिया में उसी को पसन्द किया और निश्चय आखरत में वो ही नेक हैं।। -मं० १। सि० १। सू० २। आ० १३०।।
(समीक्षक) यह कैसे सम्भव है कि जो इबराहीम के दीन को नहीं मानते वे सब मूर्ख हैं। इबराहीम को ही खुदा ने पसन्द किया इस का क्या कारण है? यदि धर्मात्मा होने के कारण से किया तो धर्मात्मा और भी बहुत हो सकते हैं। यदि विना धर्मात्मा होने के ही पसन्द किया तो अन्याय हुआ। हाँ! यह तो ठीक है कि जो धर्मात्मा है वही ईश्वर को प्रिय होता है; अधर्मी नहीं।।३०।।
३१-निश्चय हम तेरे मुख को आसमान में फिरता देखते हैं अवश्य हम तुझे उस किबले को फेरेंगे कि पसन्द करे उस को बस अपना मुख मस्जिदुल्हराम की ओर फेर, जहाँ कहीं तुम हो अपना मुख उस की ओर फेर लो।।
-मं० १। सि० २। सू० २। आ० १४४।।
(समीक्षक) क्या यह छोटी बुत्परस्ती है? नहीं बड़ी।
(पूर्वपक्षी) हम मुसलमान लोग बुत्परस्त नहीं हैं किन्तु बुत्शिकन अर्थात् मूर्त्तों को तोड़नेहारे हैं क्योंकि हम किबले को खुदा नहीं समझते।
(उत्तरपक्षी) जिन को तुम बुत्परस्त समझते हो वे भी उन-उन मूर्त्तों को ईश्वर नहीं समझते किन्तु उन के सामने परमेश्वर की भक्ति करते हैं। यदि बुतों के तोड़नेहारे हो तो उस मस्जिद किबले बड़े बुत् को क्यों न तोड़ा?
(पूर्वपक्षी) वाह जी! हमारे तो किबले की ओर मुख फेरने का कुरान में हुक्म है और इन को वेद में नहीं है फिर वे बुत्परस्त क्यों नहीं? और हम क्यों? क्योंकि हम को खुदा का हुक्म बजा लाना अवश्य है।
(उत्तरपक्षी) जैसे तुम्हारे लिये कुरान में हुक्म है वैसे उन के लिये पुराण में आज्ञा है। जैसे तुम कुरान को खुदा का कलाम समझते हो वैसे पुराणी भी पुराणों को खुदा के अवतार व्यास जी का वचन समझते हैं। तुम में और इन में बुत्परस्ती का कुछ भिन्नभाव नहीं है प्रत्युत तुम बड़े बुत्परस्त और ये छोटे हैं। क्योंकि जब तक कोई मनुष्य अपने घर में से प्रविष्ट हुई बिल्ली को निकालने लगे तब तक उस के घर में ऊंट प्रविष्ट हो जाय वैसे ही मुहम्मद साहेब ने छोटे बुत् को मुसलमानों के मत से निकाला परन्तु बड़ा बुत् जो कि पहाड़ सदृश मक्के की मस्जिद है वह सब मुसलमानों के मत में प्रविष्ट करा दी; क्या यह छोटी बुत्परस्ती है? हां! जो हम वैदिक हैं वैसे ही तुम लोग भी वैदिक हो जाओ तो बुत्परस्ती आदि बुराइयों से बच सको; अन्यथा नहीं। तुम को जब तक अपनी बड़ी बुत्परस्ती को न निकाल दो तब तक दूसरे छोटे बुत्परस्तों के खण्डन से लज्जित होके निवृत्त रहना चाहिये और अपने को बुत्परस्ती से पृथक् करके पवित्र करना चाहिये।।३१।।
३२-जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाते हैं उन के लिये यह मत कहो कि ये मृतक हैं किन्तु वे जीवित हैं।। -मं० १। सि० २। सू० २। आ० १५४।।
(समीक्षक) भला ईश्वर के मार्ग में मरने मारने की क्या आवश्यकता है? यह क्यों नहीं कहते हो कि यह बात अपने मतलब सिद्ध करने के लिये है कि यह लोभ देंगे तो लोग खूब लड़ेंगे, अपना विजय होगा, मारने से न डरेंगे, लूट मार कराने से ऐश्वर्य प्राप्त होगा; पश्चात् विषयानन्द करेंगे इत्यादि स्वप्रयोजन के लिये यह विपरीत व्यवहार किया है।।३२।।
३३-और यह कि अल्लाह कठोर दुःख देने वाला है।। शैतान के पीछे मत चलो निश्चय वो तुम्हारा प्रत्यक्ष शत्रु है।। उसके विना और कुछ नहीं कि बुराई और निर्लज्जता की आज्ञा दे और यह कि तुम कहो अल्लाह पर जो नहीं जानते।। -मं० १। सि० २। सू० २। आ० १६८। १६९। १७०।।
(समीक्षक) क्या कठोर दुःख देने वाला दयालु खुदा पापियों पुण्यात्माओं पर है अथवा मुसलमानों पर दयालु और अन्य पर दयाहीन है? जो ऐसा है तो वह ईश्वर ही नहीं हो सकता। और पक्षपाती नहीं है तो जो मनुष्य कहीं धर्म करेगा उस पर ईश्वर दयालु और जो अधर्म करेगा उस पर दण्डदाता होगा तो फिर बीच में मुहम्मद साहेब और कुरान को मानना आवश्यक न रहा। और जो सब को बुराई कराने वाला मनुष्यमात्र का शत्रु शैतान है उस को खुदा ने उत्पन्न ही क्यों किया? क्या वह भविष्यत् की बात नहीं जानता था? जो कहो कि जानता था परन्तु परीक्षा के लिये बनाया तो भी नहीं बन सकता क्योंकि परीक्षा करना अल्पज्ञ का काम है; सर्वज्ञ तो सब जीवों के अच्छे बुरे कर्मों को सदा से ठीक-ठीक जानता है। और शैतान सब को बहकाता है तो शैतान को किसने बहकाया? जो कहो कि शैतान आप से आप बहकता है तो अन्य भी आप से आप बहक सकते हैं; बीच में शैतान का क्या काम? और जो खुदा ही ने शैतान को बहकाया तो खुदा शैतान का भी शैतान ठहरेगा। ऐसी बात ईश्वर की नहीं हो सकती। और जो कोई बहकाता है वह कुसंग तथा अविद्या से भ्रान्त होता है।।३३।।
३४-तुम पर मुर्दार, लोहू और गोश्त सूअर का हराम है और अल्लाह के विना जिस पर कुछ पुकारा जावे।। -मं० १। सि० २। सू० २। आ० १७३।।
(समीक्षक) यहां विचारना चाहिये कि मुर्दा चाहे आप से आप मरे वा किसी के मारने से दोनों बराबर हैं। हां! इन में कुछ भेद भी है तथापि मृतकपन में कुछ भेद नहीं। और जब एक सूअर का निषेध किया तो क्या मनुष्य का मांस खाना उचित है? क्या यह बात अच्छी हो सकती है कि परमेश्वर के नाम पर शत्रु आदि को अत्यन्त दुःख देके प्राणहत्या करनी? इस से ईश्वर का नाम कलंकित हो जाता है। हां! ईश्वर ने विना पूर्वजन्म के अपराध के मुसलमानों के हाथ से दारुण दुःख क्यों दिलाया? क्या उन पर दयालु नहीं है? उन को पुत्रवत् नहीं मानता? जिस वस्तु से अधिक उपकार होवे उन गाय आदि के मारने का निषेध न करना जानो हत्या करा कर खुदा जगत् का हानिकारक है । हिंसारूप पाप से कलंकित भी हो जाता है। ऐसी बातें खुदा और खुदा के पुस्तक की कभी नहीं हो सकतीं।।३४।।
३५-रोजे की रात तुम्हारे लिये हलाल की गई कि मदनोत्सव करना अपनी बीबियों से। वे तुम्हारे वास्ते पर्दा हैं और तुम उन के लिये पर्दा हो। अल्लाह ने जाना कि तुम चोरी करते हो अर्थात् व्यभिचार, बस फिर अल्लाह ने क्षमा किया तुम को बस उन से मिलो और ढूंढो जो अल्लाह ने तुम्हारे लिये लिख दिया है अर्थात् सन्तान, खाओ पीयो यहां तक कि प्रकट हो तुम्हारे लिये काले तागे से सुपेद तागा वा रात से जब दिन निकले।। -मं० १। सि० २। सू० २। आ० १८७।।
(समीक्षक) यहां यह निश्चित होता है कि जब मुसलमानों का मत चला वा उसके पहले किसी ने किसी पौराणिक को पूछा होगा कि चान्द्रायण व्रत जो एक महीने भर का होता है उस की विधि क्या है? वह शास्त्रविधि जो कि मध्याह्न में-चंद्र की कला घटने बढ़ने के अनुसार ग्रासों को घटाना बढ़ाना और मध्याह्न दिन में खाना लिखा है उस को न जानकर कहा होगा कि चन्द्रमा का दर्शन करके खाना, उस को इन मुसलमान लोगों ने इस प्रकार का कर लिया। परन्तु व्रत में स्त्री समागम का त्याग है वह एक बात खुदा ने बढ़कर कह दी कि तुम स्त्रियों का भी समागम भले ही किया करो और रात में चाहे अनेक बार खाओ। भला यह व्रत क्या हुआ? दिन को न खाया रात को खाते रहे। यह सृष्टिक्रम से विपरीत है कि दिन में न खाना रात में खाना।।३५।।
३६-अल्लाह के मार्ग में लड़ो उन से जो तुम से लड़ते हैं।। मार डालो तुम उन को जहाँ पाओ, कतल से कुफ्र बुरा है।। यहां तक उन से लड़ो कि कुफ्र न रहे और होवे दीन अल्लाह का।। उन्होंने जितनी जियादती करी तुम पर उतनी ही तुम उन के साथ करो।। -मं० १। सि० २। सू० २। आ० १९०। १९१। १९२। १९३।।
(समीक्षक) जो कुरान में ऐसी बातें न होतीं तो मुसलमान लोग इतना बड़ा अपराध जो कि अन्य मत वालों पर किया है; न करते। और विना अपराधियों को मारना उन पर बड़ा पाप है। जो मुसलमान के मत का ग्रहण न करना है उस को कुफ्र कहते हैं अर्थात् कुफ्र से कतल को मुसलमान लोग अच्छा मानते हैं। अर्थात् जो हमारे दीन को न मानेगा उस को हम कतल करेंगे सो करते ही आये। मजहब पर लड़ते-लड़ते आप ही राज्य आदि से नष्ट हो गये। और उन का मन अन्य मत वालों पर अति कठोर रहता है। क्या चोरी का बदला चोरी है? कि जितना अपराध हमारा चोर आदि चोरी करें क्या हम भी चोरी करें? यह सर्वथा अन्याय की बात है। क्या कोई अज्ञानी हम को गालियां दे क्या हम भी उस को गाली देवें? यह बात न ईश्वर की और न ईश्वर के भक्त विद्वान् की और न ईश्वरोक्त पुस्तक की हो सकती है। यह तो केवल स्वार्थी ज्ञानरहित मनुष्य की है।।३६।।
३७-अल्लाह झगड़ा करने वाले को मित्र नहीं रखता।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो इस्लाम में प्रवेश करो।। -मं० १। सि० २। सू० २। आ० २०५। २०८।।
(समीक्षक) जो झगड़ा करने वाले को खुदा मित्र नहीं समझता तो क्यों आप ही मुसलमानों को झगड़ा करने में प्रेरणा करता? और झगड़ालू मुसलमानों से मित्रता क्यों करता है? क्या मुसलमानों के मत में मिलने ही से खुदा राजी है तो वह मुसलमानों ही का पक्षपाती है; सब संसार का ईश्वर नहीं। इस से यहां यह विदित होता है कि न कुरान ईश्वरकृत और न इस में कहा हुआ ईश्वर हो सकता है।।३७।।
३८-खुदा जिसको चाहे अनन्त रिजक देवे।।
-मं० १। सि० २। सू० २। आ० २१२।।
(समीक्षक) क्या विना पाप पुण्य के खुदा ऐसे ही रिजक देता है? फिर भलाई बुराई का करना एक सा ही हुआ। क्योंकि सुख दुःख प्राप्त होना उस की इच्छा पर है। इस से धर्म से विमुख होकर मुसलमान लोग यथेष्टाचार करते हैं और कोई कोई इस कुरानोक्त पर विश्वास न करके धर्मात्मा भी होते हैं।।३८।।
३९-प्रश्न करते हैं तुझ से रजस्वला को कह वो अपवित्र हैं। पृथक् रहो ऋतु समय में उन के समीप मत जाओ जब तक कि वे पवित्र न हों। जब नहा लेवें उन के पास उस स्थान से जाओ खुदा ने आज्ञा दी।। तुम्हारी बीवियां तुम्हारे लिये खेतियां हैं बस जाओ जिस तरह चाहो अपने खेत में।। तुम को अल्लाह लगब (बेकार, व्यर्थ) शपथ में नहीं पकड़ता।।
-मं० १। सि० २। सू० २। आ० २२२। २२३। २२४।।
(समीक्षक) जो यह रजस्वला का स्पर्श संग न करना लिखा है वह अच्छी बात है। परन्तु जो यह स्त्रियों को खेती के तुल्य लिखा और जैसा जिस तरह से चाहो जाओ यह मनुष्यों को विषयी करने का कारण है। जो खुदा बेकार शपथ पर नहीं पकड़ता तो सब झूठ बोलेंगे शपथ तोडें़गे। इस से खुदा झूठ का प्रवर्त्तक होगा।।३९।।
४०-वो कौन मनुष्य है जो अल्लाह को उधार देवे। अच्छा बस अल्लाह द्विगुण करे उस को उस के वास्ते।। -मं० १। सि० २। सू० २। आ० २४५।।
(समीक्षक) भला खुदा को कर्ज उधार१ लेने से क्या प्रयोजन? जिस ने सारे संसार को बनाया वह मनुष्य से कर्ज लेता है? कदापि नहीं। ऐसा तो विना समझे कहा जा सकता है। क्या उस का खजाना खाली हो गया था? क्या वह हुण्डी पुड़िया व्यापारादि में मग्न होने से टोटे में फंस गया था जो उधार लेने लगा? और एक का दो-दो देना स्वीकार करता है, क्या यह साहूकारों का काम है? किन्तु ऐसा काम तो दिवालियों वा खर्च अधिक करने वाले और आय न्यून होने वालों को करना पड़ता है; ईश्वर को नहीं।।४०।।
४१-उनमें से कोई ईमान न लाया और कोई काफिर हुआ, जो अल्लाह चाहता न लड़ते, जो चाहता है अल्लाह करता है।।
-मं० १। सि० ३। सू० २। आ० २४९।।
(समीक्षक) क्या जितनी लड़ाई होती है वह ईश्वर ही की इच्छा से। क्या वह अधर्म करना चाहे तो कर सकता है? जो ऐसी बात है तो वह खुदा ही नहीं, क्योंकि भले मनुष्यों का यह कर्म नहीं कि शान्तिभंग करके लड़ाई करावें। इस से विदित होता है कि यह कुरान न ईश्वर का बनाया और न किसी धार्मिक विद्वान् का रचित है।।४१।।
४२-जो कुछ आसमान और पृथिवी पर है सब उसी के लिये है? चाहे उस की कुरसी ने आसमान और पृथिवी को समा लिया है।।
-मं० १। सि० ३। सू० २। आ० २५५।।
(समीक्षक) जो आकाश भूमि में पदार्थ हैं वे सब जीवों के लिये परमात्मा ने उत्पन्न किये हैं, अपने लिये नहीं क्योंकि वह पूर्णकाम है, उस को किसी पदार्थ की अपेक्षा नहीं। जब उस की कुर्सी है तो वह एकदेशी है। जो एकदेशी होता है वह ईश्वर नहीं कहाता क्योंकि ईश्वर तो व्यापक है।।४२।।
४३-अल्लाह सूर्य को पूर्व से लाता है बस तू पश्चिम से ले आ, बस जो काफिर था हैरान हुआ था, निश्चय अल्लाह पापियों को मार्ग नहीं दिखलाता।। -मं० १। सि० ३। सू० २। आ० २५८।।
(समीक्षक) देखिये यह अविद्या की बात! सूर्य्य न पूर्व से पश्चिम और न पश्चिम से पूर्व कभी आता जाता है, वह तो अपनी परिधि में घूमता रहता है। इस से निश्चित जाना जाता है कि कुरान के कर्ता को खगोल और न भूगोल विद्या आती थी। जो पापियों को मार्ग नहीं बतलाता तो पुण्यात्माओं के लिये भी मुसलमानों के खुदा की आवश्यकता नहीं। क्योंकि धर्मात्मा तो धर्ममार्ग में ही होते हैं। मार्ग तो धर्म से भूले हुए मनुष्यों को बतलाना होता है। सो कर्त्तव्य के न करने से कुरान
१– इसी आयत के भाष्य में तफसीरहुसैनी में लिखा है कि एक मनुष्य मुहम्मद साहब के पास आया । उसने कहा कि ऐ रसूलल्लाह खुदा कर्ज क्यों मांगता है ? उन्होंने उत्तर दिया कि तुम को बहिश्त में ले जाने के लिये । उस ने कहा जो आप जमानत लें तो मैं दूं । मुहम्मद साहब ने उसकी जमानत ले ली । खुदा का भरोसा न हुआ, उस के दूत का हुआ ।
के कर्त्ता की बड़ी भूल है।।४३।।
४४-कहा चार जानवरों से ले उन की सूरत पहिचान रख। फिर हर पहाड़ पर उन में से एक-एक टुकड़ा रख दे। फिर उन को बुला, दौड़ते तेरे पास चले आवेंगे।। -मं० १। सि० ३। सू० २। आ० २६०।।
(समीक्षक) वाह-वाह देखो जी! मुसलमानों का खुदा भानमती के समान खेल कर रहा है! क्या ऐसी ही बातों से खुदा की खुदाई है। बुद्धिमान् लोग ऐसे खुदा को तिलाञ्जलि देकर दूर रहेंगे और मूर्ख लोग फसेंगे? इस से खुदा की बड़ाई के बदले बुराई उस के पल्ले पड़ेगी।।४४।।
४५-जिस को चाहे नीति देता है।। -मं० १। सि० ३। सू० २। आ० २६१।।
(समीक्षक) जब जिस को चाहता है उस को नीति देता है तो जिस को नहीं चाहता है उस को अनीति देता होगा। यह बात ईश्वरता की नहीं किन्तु जो पक्षपात छोड़ सब को नीति का उपदेश करता है वही ईश्वर और आप्त हो सकता है; अन्य नहीं।।४५।।
४६-जो लोग ब्याज खाते हैं वे कबरों से नहीं खड़े होंगे।। -मं० १। सि० ३। सू० २। आ० २७५।।
(समीक्षक) क्या वे कबरों में ही पड़े रहेंगे और जो पड़े रहेंगे तो कब तक ? ऐसी असम्भव बात ईश्वर के पुस्तक की तो नहीं हो सकती किन्तु बालबुद्धियों की तो हो सकती है ।।४६।।
४७-वह कि जिस को चाहेगा क्षमा करेगा जिस को चाहे दण्ड देगा क्योंकि वह सब वस्तु पर बलवान् है।। -मं० १। सि० ३। सू० २। आ० २६९।।
(समीक्षक) क्या क्षमा के योग्य पर क्षमा न करना, अयोग्य पर क्षमा करना गवरगण्ड राजा के तुल्य यह कर्म नहीं है? यदि ईश्वर जिस को चाहता पापी वा पुण्यात्मा बनाता है तो जीव को पाप-पुण्य न लगना चाहिये और जब ईश्वर ने उस को वैसा ही किया तो जीव को दुःख-सुख भी होना न चाहिये। जैसे सेनापति की आज्ञा से किसी भृत्य ने किसी को मारा वा रक्षा की उस का फलभागी वह नहीं होता वैसे वे भी नहीं।।४७।।
४८-कह इस से अच्छी और क्या परहेजगारों को खबर दूं कि अल्लाह की ओर से बहिश्तें हैं जिन में नहरें चलती हैं उन्हीं में सदैव रहने वाली शुद्ध बीबियां हैं अल्लाह की प्रसन्नता से। अल्लाह उन को देखने वाला है साथ बन्दों के।।
-मं० १। सि० ३। सू० ३। आ० १५।।
(समीक्षक) भला यह स्वर्ग है किवा वेश्यावन? इस को ईश्वर कहना वा स्त्रैण? कोई भी बुद्धिमान् ऐसी बातें जिस में हों उस को परमेश्वर का किया पुस्तक मान सकता है? यह पक्षपात क्यों करता है। जो बीबियां बहिश्त में सदा रहती हैं वे यहां जन्म पाके वहाँ गई हैं वा वहीं उत्पन्न हुई हैं। यदि यहां जन्म पाकर वहाँ गई हैं और जो कयामत की रात से पहले ही वहाँ बीबियों को बुला लिया तो उन के खाविन्दों को क्यों न बुला लिया। और कयामत की रात में सब का न्याय होगा इस नियम को क्यों तोड़ा । यदि वहीं जन्मी हैं तो कयामत तक वे क्योंकर निर्वाह करती हैं। जो उन के लिये पुरुष भी हैं तो यहां से बहिश्त में जाने वाले मुसलमानों को खुदा बीबियां कहां से देगा? और जैसे बीबियां बहिश्त में सदा रहने वाली बनाईं वैसे पुरुषों को वहाँ सदा रहने वाले क्यों नहीं बनाया। इसलिये मुसलमानों का खुदा अन्यायकारी, बे समझ है।।४८।।
४९-निश्चय अल्लाह की ओर से दीन इसलाम है।।
-मं० १। सि० ३। सू० ३। आ० १९।।
(समीक्षक) क्या अल्लाह मुसलमानों ही का है औरों का नहीं? क्या तेरह सौ वर्षों के पूर्व ईश्वरीय मत था ही नहीं? इसी से यह कुरान ईश्वर का बनाया तो नहीं किन्तु किसी पक्षपाती का बनाया है।।४९।।
५०-प्रत्येक जीव को पूरा दिया जावेगा जो कुछ उस ने कमाया और वे न अन्याय किये जावेंगे।। कह या अल्लाह तू ही मुल्क का मालिक है जिस को चाहे देता है, जिस से चाहे छीनता है, जिस को चाहे प्रतिष्ठा देता है, जिस को चाहे अप्रतिष्ठा देता है, सब कुछ तेरे ही हाथ में है, प्रत्येक वस्तु पर तू ही बलवान् है।। रात को दिन में और दिन को रात में पैठाता है और मृतक को जीवित से जीवित को मृतक से निकालता है और जिस को चाहे अनन्त अन्न देता है।। मुसलमानों को उचित है कि काफिरों को मित्र न बनावें सिवाय मुसलमानों के जो कोई यह करे बस वह अल्लाह की ओर से नहीं।। कह जो तुम चाहते हो अल्लाह को तो पक्ष करो मेरा। अल्लाह चाहेगा तुम को और तुम्हारे पाप क्षमा करेगा; निश्चय ही करुणामय है।। -मं० १। सि० ३। सू० ३। आ० २५। २६। २७। २८। २९।।
(समीक्षक) जब प्रत्येक जीव को कर्मों का पूरा-पूरा फल दिया जावेगा तो क्षमा नहीं किया जायगा। और जो क्षमा किया जायगा तो पूरा फल नहीं दिया जायगा और अन्याय होगा जब विना उत्तम कर्मों के राज्य प्रतिष्ठा देगा तो भी अन्यायी हो जायगा और विना पाप के राज्य और प्रतिष्ठा छीन लेगा तो भी अन्यायकारी हो जायगा। भला! जीवित से मृतक और मृतक से जीवित कभी हो सकता है? क्योंकि ईश्वर की व्यवस्था अछेद्य-अभेद्य है। कभी अदल-बदल नहीं हो सकती। अब देखिये पक्षपात की बातें कि जो मुसलमान के मजहब में नहीं हैं उन को काफिर ठहराना। उन में श्रेष्ठों से भी मित्रता न रखने और मुसलमानों में दुष्टों से भी मित्रता रखने के लिये उपदेश करना ईश्वर को ईश्वरता से बहिः कर देता है। इस से यह कुरान, कुरान का खुदा और मुसलमान लोग केवल पक्षपात अविद्या के भरे हुए हैं। इसीलिये मुसलमान लोग अन्धेरे में हैं। और देखिये मुहम्मद साहेब की लीला कि जो तुम मेरा पक्ष करोगे तो खुदा तुम्हारा पक्ष करेगा और जो तुम पक्षपातरूप पाप करोगे उस की क्षमा भी करेगा। इस से सिद्ध होता है कि मुहम्मद साहेब का अन्तःकरण शुद्ध नहीं था। इसीलिये अपने मतलब सिद्ध करने के लिये मुहम्मद साहेब ने कुरान बनाया वा बनवाया ऐसा विदित होता है।।५०।।
५१-जिस समय कहा फरिश्तों ने कि ऐ मर्य्यम तुझ को अल्लाह ने पसन्द किया और पवित्र किया ऊपर जगत् की स्त्रियों के।।
-मं० १। सि० ३। सू० ३। आ० ४५।।
(समीक्षक) भला जब आज कल खुदा के फरिश्ते और खुदा किसी से बातें करने को नहीं आते तो प्रथम कैसे आये होंगे? जो कहो कि पहले के मनुष्य पुण्यात्मा थे अब के नहीं तो यह बात मिथ्या है। किन्तु जिस समय ईसाई और मुसलमानों का मत चला था उस समय उन देशों में जंगली और विद्याहीन मनुष्य अधिक थे इसी लिये ऐसे विद्या-विरुद्ध मत चल गये। अब विद्वान् अधिक हैं इसलिये नहीं चल सकता। किन्तु जो-जो ऐसे पोकल मजहब हैं वे भी अस्त होते जाते हैं; वृद्धि की तो कथा ही क्या है।।५१।।
५२-उस को कहता है कि हो बस हो जाता है।। काफिरों ने धोखा दिया, ईश्वर ने धोखा दिया, ईश्वर बहुत मकर करने वाला है।।
-मं० १। सि० ३। सू० ३। आ० ५३। ५४।।
(समीक्षक) जब मुसलमान लोग खुदा के सिवाय दूसरी चीज नहीं मानते तो खुदा ने किस से कहा? और उस के कहने से कौन हो गया? इस का उत्तर मुसलमान सात जन्म में भी नहीं दे सकेंगे। क्योंकि विना उपादान कारण के कार्य कभी नहीं हो सकता। विना कारण के कार्य कहना जानो अपने माँ बाप के विना मेरा शरीर हो गया ऐसी बात है। जो धोखा देता और मकर अर्थात् छल और दम्भ करता है वह ईश्वर तो कभी नहीं हो सकता किन्तु उत्तम मनुष्य भी ऐसा काम नहीं करता।।५२।।
५३-क्या तुम को यह बहुत न होगा कि अल्लाह तुम को तीन हजार फरिश्तों के साथ सहाय देवे।। -मं० १। सि० ४। सू० ३। आ० १२४।।
(समीक्षक) जो मुसलमानों को तीन हजार फरिश्तों के साथ सहाय देता था तो अब मुसलमानों की बादशाही बहुत सी नष्ट हो गई और होती जाती है क्यों सहाय नहीं देता? इसलिये यह बात केवल लोभ देके मूर्खों को फंसाने के लिये महा अन्याय की है।।५३।।
५४-और काफिरों पर हम को सहाय कर।। अल्लाह तुम्हारा उत्तम सहायक और कारसाज है।। जो तुम अल्लाह के मार्ग में मारे जाओ वा मर जाओ, अल्लाह की दया बहुत अच्छी है।। -मं० १। सि० ४। सू० ३। आ० १४७। १५०। १५८।।
(समीक्षक) अब देखिये मुसलमानों की भूल कि जो अपने मत से भिन्न हैं उन के मारने के लिये खुदा की प्रार्थना करते हैं। क्या परमेश्वर भोला है जो इन की बात मान लेवे? यदि मुसलमानों का कारसाज अल्लाह ही है तो फिर मुसलमानों के कार्य नष्ट क्यों होते हैं? और खुदा भी मुसलमानों के साथ मोह से फंसा हुआ दीख पड़ता है, जो ऐसा पक्षपाती खुदा है तो धर्मात्मा पुरुषों का उपासनीय कभी नहीं हो सकता।।५४।।
५५-और अल्लाह तुम को परोक्षज्ञ नहीं करता परन्तु अपने पैगम्बरों से जिस को चाहे पसन्द करे। बस अल्लाह और उस के रसूल के साथ ईमान लाओ।।
-मं० १। सि० ४। सू० ३। आ० १७९।।
(समीक्षक) जब मुसलमान लोग सिवाय खुदा के किसी के साथ ईमान नहीं लाते और न किसी को खुदा का साझी मानते हैं तो पैगम्बर साहेब को क्यों ईमान में खुदा के साथ शरीक किया? अल्लाह ने पैगम्बर के साथ ईमान लाना लिखा, इसी से पैगम्बर भी शरीक हो गया, पुनः लाशरीक का कहना ठीक न हुआ । यदि इस का अर्थ यह समझा जाय कि मुहम्मद साहेब के पैगम्बर होने पर विश्वास लाना चाहिये तो यह प्रश्न होता है कि मुहम्मद साहब के होने की क्या आवश्यकता है? यदि खुदा उन को पैगम्बर किये विना अपना अभीष्ट कार्य नहीं कर सकता तो अवश्य असमर्थ हुआ।।५५।।
५६-ऐ ईमानवालो! सन्तोष करो परस्पर थामे रक्खो और लड़ाई में लगे रहो। अल्लाह से डरो कि तुम छुटकारा पाओ।।
-मं० १। सि० ४। सू० ३। आ० १८६।।
(समीक्षक) यह कुरान का खुदा और पैगम्बर दोनों लड़ाईबाज थे। जो लड़ाई की आज्ञा देता है वह शान्तिभंग करने वाला होता है। क्या नाम मात्र खुदा से डरने से छुटकारा पाया जाता है? वा अधर्मयुक्त लड़ाई आदि से डरने से? जो प्रथम पक्ष है तो डरना न डरना बराबर और जो द्वितीय पक्ष है तो ठीक है।।५६।।
५७-ये अल्लाह की हदें हैं जो अल्लाह और उनके रसूल का कहा मानेगा वह बहिश्त में पहुँचेगा जिन में नहरें चलती हैं और यही बड़ा प्रयोजन है।। जो अल्लाह की और उस के रसूल की आज्ञा भंग करेगा और उस की हदों से बाहर हो जायगा वो सदैव रहने वाली आग में जलाया जावेगा और उस के लिये खराब करने वाला दुःख है।। -मं० १। सि० ४। सू० ४। आ० १३। १४।।
(समीक्षक) खुदा ही ने मुहम्मद साहेब पैगम्बर को अपना शरीक कर लिया है और खुद कुरान ही मेंं लिखा है। और देखो! खुदा पैगम्बर साहेब के साथ कैसा फंसा है कि जिस ने बहिश्त में रसूल का साझा कर दिया है। किसी एक बात में भी मुसलमानों का खुदा स्वतन्त्र नहीं तो लाशरीक कहना व्यर्थ है। ऐसी-ऐसी बातें ईश्वरोक्त पुस्तक में नहीं हो सकतीं।।५७।।
५८-और एक त्रसरेणु की बराबर भी अल्लाह अन्याय नहीं करता । और जो भलाई होवे उस का दुगुण करेगा उस को।।
-मं० १। सि० ५। सू० ४। आ० ४०।।
(समीक्षक) जो एक त्रसरेणु के बराबर भी खुदा अन्याय नहीं करता तो पुण्य को द्विगुण क्यों देता? और मुसलमानों का पक्षपात क्यों करता है? वास्तव में द्विगुण वा न्यून फल कर्मों का देवे तो खुदा अन्यायी हो जावे।।५८।।
५९-जब तेरे पास से बाहर निकलते हैं तो तेरे कहने के सिवाय (विपरीत) शोचते हैं। अल्लाह उन की सलाह को लिखता है।। अल्लाह ने उन की कमाई वस्तु के कारण से उन को उलटा किया। क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह के गुमराह किये हुए को मार्ग पर लाओ? बस जिस को अल्लाह गुमराह करे उसको कदापि मार्ग न पावेगा।। -मं० १। सि० ५। सू० ४। आ० ८१-८८।।
(समीक्षक) जो अल्लाह बातों को लिख बहीखाता बनाता जाता है तो सर्वज्ञ नहीं। जो सर्वज्ञ है तो लिखने का क्या काम? और जो मुसलमान कहते हैं कि शैतान ही सब को बहकाने से दुष्ट हुआ है तो जब खुदा ही जीवों को गुमराह करता है तो खुदा और शैतान में क्या भेद रहा? हां! इतना भेद कह सकते हैं कि खुदा बड़ा शैतान, वह छोटा शैतान। क्योंकि मुसलमानों ही का कौल है कि जो बहकाता है वही शैतान है तो इस प्रतिज्ञा से खुदा को भी शैतान बना दिया।।५९।।
६०-और अपने हाथों को न रोकें तो उन को पकड़ लो और जहाँ पाओ मार डालो।। मुसलमान को मुसलमान का मारना योग्य नहीं। जो कोई अनजाने से मार डाले बस एक गर्दन मुसलमान का छोड़ना है और खून बहा उन लोगों की ओर सौंपी हुई जो उस कौम से होवें, और तुम्हारे लिये दान कर देवें, जो दुश्मन की कौम से।। और जो कोई मुसलमान को जान कर मार डाले वह सदैव काल दोजख में रहेगा, उस पर अल्लाह का क्रोध और लानत है।। -मं० १। सि० ५। सू० ४। आ० ९१। ९२। ९३।।
(समीक्षक) अब देखिये महा पक्षपात की बात कि जो मुसलमान न हो उस को जहाँ पाओ मार डालो और मुसलमानों को न मारना। भूल से मुसलमानों के मारने में प्रायश्चित्त और अन्य को मारने से बहिश्त मिलेगा ऐसे उपदेश को कुए में डालना चाहिये। ऐसे-ऐसे पुस्तक ऐसे-ऐसे पैगम्बर ऐसे-ऐसे खुदा और ऐसे-ऐसे मत से सिवाय हानि के लाभ कुछ भी नहीं। ऐसों का न होना अच्छा और ऐसे प्रामादिक मतों से बुद्धिमानों को अलग रह कर वेदोक्त सब बातों को मानना चाहिये क्योंकि उस में असत्य किञ्चिन्मात्र भी नहीं है। और जो मुसलमान को मारे उस को दोजख मिले और दूसरे मत वाले कहते हैं कि मुसलमान को मारे तो स्वर्ग मिले। अब कहो इन दोनों मतों में से किस को मानें किस को छोड़ें? किन्तु ऐसे मूढ़ प्रकल्पित मतों को छोड़ कर वेदोक्त मत स्वीकार करने योग्य सब मनुष्यों के लिये है कि जिस में आर्य्य मार्ग अर्थात् श्रेष्ठ पुरुषों के मार्ग में चलना और दस्यु अर्थात् दुष्टों के मार्ग से अलग रहना लिखा है; सर्वोत्तम है।।६०।।
६१-और शिक्षा प्रकट होने के पीछे जिस ने रसूल से विरोध किया और मुसलमानों से विरुद्ध पक्ष किया; अवश्य हम उनको दोजख में भेजेंगे।।
-मं० १। सि० ५। सू० ४। आ० ११५।।
(समीक्षक) अब देखिये खुदा और रसूल की पक्षपात की बातें! मुहम्मद साहेब आदि समझते थे कि जो खुदा के नाम से ऐसी हम न लिखेंगे तो अपना मजहब न बढ़ेगा और पदार्थ न मिलेंगे, आनन्द भोग न होगा। इसी से विदित होता है कि वे अपने मतलब करने में पूरे थे और अन्य के प्रयोजन बिगाड़ने में। इस से ये अनाप्त थे। इन की बात का प्रमाण आप्त विद्वानों के सामने कभी नहीं हो सकता।।६१।।
६२-जो अल्लाह फरिश्तों किताबों रसूलों और कयामत के साथ कुफ्र करे निश्चय वह गुमराह है।। निश्चय जो लोग ईमान लाये फिर काफिर हुए फिर-फिर ईमान लाये पुनः फिर गये और कुफ्र में अधिक बढ़े। अल्लाह उन को कभी क्षमा न करेगा और न मार्ग दिखलावेगा।। -मं० १। सि० ५। सू० ४। आ० १३६। १३७।।
(समीक्षक) क्या अब भी खुदा लाशरीक रह सकता है? क्या लाशरीक कहते जाना और उस के साथ बहुत से शरीक भी मानते जाना यह परस्पर विरुद्ध बात नहीं है? क्या तीन बार क्षमा के पश्चात् खुदा क्षमा नहीं करता? और तीन वार कुफ्र करने पर रास्ता दिखलाता है? वा चौथी बार से आगे नहीं दिखलाता? यदि चार-चार बार भी कुफ्र सब लोग करें तो कुफ्र बहुत ही बढ़ जाये।।६२।।
६३-निश्चय अल्लाह बुरे लोगों और काफिरों को जमा करेगा दोजख में।। निश्चय बुरे लोग धोखा देते हैं अल्लाह को और उन को वह धोखा देता है।। ऐ ईमान वालो! मुसलमानों को छोड़ काफिरों को मित्र मत बनाओ।।
-मं० १। सि० ५। सू० ४। आ० १४०। १४२। १४४।।
(समीक्षक) मुसलमानों के बहिश्त और अन्य लोगों के दोज़ख में जाने का क्या प्रमाण? वाह जी वाह! जो बुरे लोगों के धोखे में आता और अन्य को धोखा देता है ऐसा खुदा हम से अलग रहे किन्तु जो धोखेबाज हैं उन से जाकर मेल करे और वे उस से मेल करें । क्योंकि-
“दृशी शीतलादेवी तादृश खरवाहन ।”
जैसे को तैसा मिले तभी निर्वाह होता है। जिस का खुदा धोखेबाज है उस के उपासक लोग धोखेबाज क्यों न हों? क्या दुष्ट मुसलमान हो उस से मित्रता और अन्य श्रेष्ठ मुसलमान भिन्न से शत्रुता करना किसी को उचित हो सकती है? ।।६३।।
६४-ऐ लोगो! निश्चय तुम्हारे पास सत्य के साथ खुदा की ओर से पैगम्बर आया। बस तुम उन पर ईमान लाओ।। अल्लाह माबूद अकेला है।।
-मं० १। सि० ६। सू० ४। आ० १७०। १७१।।
(समीक्षक) क्या जब पैगम्बरों पर ईमान लाना लिखा तो ईमान में पैगम्बर खुदा का शरीक अर्थात् साझी हुआ वा नहीं। जब अल्लाह एकदेशी है, व्यापक नहीं, तभी तो उस के पास से पैगम्बर आते जाते हैं तो वह ईश्वर भी नहीं हो सकता। कहीं सर्वदेशी लिखते हैं, कहीं एकदेशी। इस से विदित होता है कि कुरान एक का बनाया नहीं किन्तु बहुतों ने बनाया है।।६४।।
६५-तुम पर हराम किया गया मुर्दार, लोहू, सूअर का मांस जिस पर अल्लाह के विना कुछ और पढ़ा जावे, गला घोटे, लाठी मारे, ऊपर से गिर पड़े, सींग मारे और दरन्दे का खाया हुआ।। -मं० २। सि० ६। सू० ५। आ० ३।।
(समीक्षक) क्या इतने ही पदार्थ हराम हैं? अन्य बहुत से पशु तथा तिर्य्यक् जीव कीड़ी आदि मुसलमानों को हलाल होंगे? इस वास्ते यह मनुष्यों की कल्पना है; ईश्वर की नहीं। इस से इस का प्रमाण भी नहीं।।६५।।
६६-और अल्लाह को अच्छा उधार दो अवश्य मैं तुम्हारी बुराई दूर करूंगा और तुम्हें बहिश्तों में भेजूंगा।। -मं० २। सि० ६। सू० ५। आ० १२।।
(समीक्षक) वाह जी! मुसलमानों के खुदा के घर में कुछ भी धन विशेष नहीं रहा होगा। जो विशेष होता तो उधार क्यों मांगता? और उन को क्यों बहकाता कि तुम्हारी बुराई छुड़ा के तुम को स्वर्ग में भेजूंगा? यहां विदित होता है कि खुदा के नाम से मुहम्मद साहेब ने अपना मतलब साधा है।।६६।।
६७-जिस को चाहता है क्षमा करता है जिस को चाहे दुःख देता है।। जो कुछ किसी को भी न दिया वह तुम्हें दिया।।
-मं० २। सि० ६। सू० ५। आ० १८। २०।।
(समीक्षक) जैसे शैतान जिस को चाहता पापी बनाता वैसे ही मुसलमानों का खुदा भी शैतान का काम करता है ! जो ऐसा है तो फिर बहिश्त और दोजख में खुदा जावे क्योंकि वह पाप पुण्य करने वाला हुआ, जीव पराधीन है। जैसी सेना सेनापति के आवमीन रक्षा करती और किसी को मारती है, उस की भलाई बुराई
सेनापति को होती है; सेना पर नहीं।।६७।।
६८-आज्ञा मानो अल्लाह की और आज्ञा मानो रसूल की।।
-मं० २। सि० ७। सू० ५। आ० ९२।।
(समीक्षक) देखिये! यह बात खुदा के शरीक होने की है। फिर खुदा को ‘लाशरीक’ मानना व्यर्थ है।।६८।।
६९-अल्लाह ने माफ किया जो हो चुका और जो कोई फिर करेगा अल्लाह उस से बदला लेगा।। -मं० २। सि० ७। सू० ५। आ० ९५।।
(समीक्षक) किये हुए पापों का क्षमा करना जानो पापों को करने की आज्ञा देके बढ़ाना है। पाप क्षमा करने की बात जिस पुस्तक में हो वह न ईश्वर और न किसी विद्वान् का बनाया है किन्तु पापवर्द्धक है। हां ! आगामी पाप छुड़वाने के लिये किसी से प्रार्थना और स्वयं छोड़ने के लिये पुरुषार्थ पश्चात्ताप करना उचित है परन्तु केवल पश्चात्ताप करता रहे, छोड़े नहीं, तो भी कुछ नहीं हो सकता।।६९।।
७०-और उस मनुष्य से अधिक पापी कौन है जो अल्लाह पर झूठ बांध लेता है और कहता है कि मेरी ओर वही की गई परन्तु वही उस की ओर नहीं की गई और जो कहता है कि मैं भी उतारूँगा कि जैसे अल्लाह उतारता है।।
-मं० २। सि० ७। सू० ६। आ० ९३।।
(समीक्षक) इस बात से सिद्ध होता है कि जब मुहम्मद साहेब कहते थे कि मेरे पास खुदा की ओर से आयतें आती हैं तब किसी दूसरे ने भी मुहम्मद साहेब के तुल्य लीला रची होगी कि मेरे पास भी आयतें उतरती हैं, मुझ को भी पैगम्बर मानो। इस को हटाने और अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये मुहम्मद साहेब ने यह उपाय किया होगा।।७०।।
७१-अवश्य हम ने तुम को उत्पन्न किया, फिर तुम्हारी सूरतें बनाईं। फिर हम ने फरिश्तों से कहा कि आदम को सिजदा करो, बस उन्होंने सिजदा किया परन्तु शैतान सिजदा करने वालों में से न हुआ।। कहा जब मैंने तुझे आज्ञा दी फिर किस ने रोका कि तूने सिजदा न किया, कहा मैं उस से अच्छा हूँ, तूने मुझ को आग से और उस को मिट्टी से उत्पन्न किया।। कहा बस उस में से उतर, यह तेरे योग्य नहीं है कि तू उस में अभिमान करे।। कहा उस दिन तक ढील दे कि कबरों में से उठाये जावें।। कहा निश्चय तू ढील दिये गयों से है।। कहा बस इस की कसम है कि तूने मुझ को गुमराह किया, अवश्य मैं उन के लिये तेरे सीधे मार्ग पर बैठूंगा।। और प्रायः तू उन को धन्यवाद करने वाला न पावेगा।। कहा उस से दुर्दशा के साथ निकल, अवश्य जो कोई उन में से तेरा पक्ष करेगा तुम सब से दोजख को भरूंगा।।
-मं० २। सि० ८। सू० ७। आ० ११। १२। १३। १४। १५। १६। १७।।
(समीक्षक) अब ध्यान देकर सुनो खुदा और शैतान के झगड़े को। एक फरिश्ता, जैसा कि चपरासी हो, था। वह भी खुदा से न दबा और खुदा उस के आत्मा को पवित्र भी न कर सका। फिर ऐसे बागी को जो पापी बना कर गदर करने वाला था उस को खुदा ने छोड़ दिया। खुदा की यह बड़ी भूल है। शैतान तो सब को बहकाने वाला और खुदा शैतान को बहकाने वाला होने से यह सिद्ध होता है कि शैतान का भी शैतान खुदा है। क्योंकि शैतान प्रत्यक्ष कहता है कि तूने मुझे गुमराह किया। इस से खुदा में पवित्रता भी नहीं पाई जाती और सब बुराइयों का चलाने वाला मूल कारण खुदा हुआ। ऐसा खुदा मुसलमानों ही का हो सकता है, अन्य श्रेष्ठ विद्वानों का नहीं। और फरिश्तों से मनुष्यवत् वार्तालाप करने से देहधारी, अल्पज्ञ, न्यायरहित मुसलमानों का खुदा है। इसी से विद्वान् लोग इसलाम के मज़हब को पसन्द नहीं करते।।७१।।
७२-निश्चय तुम्हारा मालिक अल्लाह है जिस ने आसमानों और पृथिवी को छः दिन में उत्पन्न किया। फिर करार पकड़ा अर्श पर।। दीनता से अपने मालिक को पुकारो।। -मं० २। सि० ८। सू० ७। आ० ५४। ५६।।
(समीक्षक) भला! जो छः दिन में जगत् को बनावे, (अर्श) अर्थात् ऊपर के आकाश में सिहासन पर आराम करे वह ईश्वर सर्वशक्तिमान् और व्यापक कभी हो सकता है? इस के न होने से वह खुदा भी नहीं कहा सकता। क्या तुम्हारा खुदा बधिर है जो पुकारने से सुनता है? ये सब बातें अनीश्वरकृत हैं। इस से कुरान ईश्वरकृत नहीं हो सकता। यदि छः दिनों में जगत् बनाया, सातवें दिन अर्श पर आराम किया तो थक भी गया होगा और अब तक सोता है वा जागा है? यदि जागता है तो अब कुछ काम करता है वा निकम्मा सैल सपट्टा और ऐश करता फिरता है।।७२।।
७३-मत फिरो पृथिवी पर झगड़ा करते।। -मं० २। सि० ८। सू० ७। आ० ७४।।
(समीक्षक) यह बात तो अच्छी है परन्तु इस से विपरीत दूसरे स्थानों में जिहाद करना काफिरों को मारना भी लिखा है। अब कहो यह पूर्वापर विरुद्ध नहीं है? इस से यह विदित होता है कि जब मुहम्मद साहेब निर्बल हुए होंगे तब उन्होंने यह उपाय रचा होगा और जब सबल हुए होंगे तब झगड़ा मचाया होगा। इसी से ये बातें परस्पर विरुद्ध होने से दोनों सत्य नहीं हैं।।७३।।
७४-बस एक ही बार अपना असा डाल दिया और वह अजगर था प्रत्यक्ष।।
-मं० २। सि० ९। सू० ७। आ० १०७।।
(समीक्षक) अब इस के लिखने से विदित होता है कि ऐसी झूठी बातों को खुदा और मुहम्मद साहेब भी मानते थे। जो ऐसा है तो ये दोनों विद्वान् नहीं थे क्योंकि जैसे आंख से देखने को और कान से सुनने को अन्यथा कोई नहीं कर सकता। इसी से ये इन्द्रजाल की बातें हैं।।७४।।
७५-बस हम ने उन पर मेह का तूफान भेजा! टीढ़ी, चिचड़ी और मैंढक और लोहू।। बस उन से हम ने बदला लिया और उन को डुबो दिया दरियाव में।। और हम ने बनी इसराईल को दरियाव से पार उतार दिया।। निश्चय वह दीन झूठा है कि जिस में वे हैं और उन का कार्य्य भी झूठा है।।
-मं० २। सि० ९। सू० ७। आ० १३३। १३६। १३७। १३९।।
(समीक्षक) अब देखिये! जैसा कोई पाखण्डी किसी को डरावे कि हम तुझ पर सर्पों को काटने के लिये भेजेंगे। ऐसी ही यह भी बात है। भला! जो ऐसा पक्षपाती कि एक जाति को डुबा दे और दूसरी को पार उतारे वह अधर्मी खुदा क्यों नहीं। जो दूसरे मतों को कि जिन में हजारों क्रोड़ों मनुष्य हों झूठा बतलावे और अपने को सच्चा, उस से परे झूठा दूसरा मत कौन हो सकता है? क्योंकि किसी मत में सब मनुष्य बुरे और भले नहीं हो सकते। यह इकतर्फी डिगरी करना महामूर्खों का मत है। क्या तौरेत जबूर का दीन, जो कि उन का था; झूठा हो गया? वा उन का कोई अन्य मजहब था कि जिस को झूठा कहा और जो वह अन्य मजहब था तो कौन सा था कहो कि जिस का नाम कुरान में हो।।७५।।
७६-बस तू मुझ को अलबत्ता देख सकेगा, जब प्रकाश किया उस के मालिक ने पहाड़ की ओर उस को परमाणु-परमाणु किया। गिर पड़ा मूसा बेहोश।।
-मं० २। सि० ९। सू० ७। आ० १४३।।
(समीक्षक) जो देखने में आता है वह व्यापक नहीं हो सकता। और ऐसे चमत्कार करता फिरता था तो खुदा इस समय ऐसा चमत्कार किसी को क्यों नहीं दिखलाता? सर्वथा विद्या विरुद्ध होने से यह बात मानने योग्य नहीं।।७६।।
७७-और अपने मालिक को दीनता डर से मन में याद कर, धीमी आवाज से सुबह को और शाम को।। -मं० २। सि० ९। सू० ७। आ० २०५।।
(समीक्षक) कहीं-कहीं कुरान में लिखा है कि बड़ी आवाज से अपने मालिक को पुकार और कहीं-कहीं धीरे-धीरे मन में ईश्वर का स्मरण कर। अब कहिये! कौन सी बात सच्ची? और कौन सी झूठी? जो एक दूसरी बात से विरोध करती है वह बात प्रमत्त गीत के समान होती है। यदि कोई बात भ्रम से विरुद्ध निकल जाय उस को मान ले तो कुछ चिन्ता नहीं।।७७।।
७८-प्रश्न करते हैं तुझ को लूटों से कह लूटें वास्ते अल्लाह के और रसूल के और डरो अल्लाह से।। -मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० १।।
(समीक्षक) जो लूट मचावें, डाकू के कर्म करें करावें और खुदा तथा पैगम्बर और ईमानदार भी बनें, यह बड़े आश्चर्य की बात है और अल्लाह का डर बतलाते और डाकादि बुरे काम भी करते जायें और ‘उत्तम मत हमारा है’ कहते लज्जा भी नहीं। हठ छोड़ के सत्य वेदमत का ग्रहण न करें इस से अधिक कोई बुराई दूसरी होगी? ।।७८।।
७९-और काटे जड़ काफिरों की।। मैं तुम को सहाय दूंगा। साथ सहस्र फरिश्तों के पीछे पीछे आने वाले।। अवश्य मैं काफिरों के दिलों में भय डालूंगा। बस मारो ऊपर गर्दनों के मारो उन में से प्रत्येक पोरी (सन्धि) पर।। -मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० ७। ९। १२।।
(समीक्षक) वाह जी वाह! कैसा खुदा और कैसे पैगम्बर दयाहीन। जो मुसलमानी मत से भिन्न काफिरों की जड़ कटवावे। और खुदा आज्ञा देवे उन की गर्दन पर मारो और हाथ पग के जोड़ों को काटने का सहाय और सम्मति देवे ऐसा खुदा लंकेश से क्या कुछ कम है? यह सब प्रपञ्च कुरान के कर्त्ता का है, खुदा का नहीं। यदि खुदा का हो तो ऐसा खुदा हम से दूर और हम उस से दूर रहें।।७९।।
८०-अल्लाह मुसलमानों के साथ है।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो पुकारना स्वीकार करो वास्ते अल्लाह के और वास्ते रसूल के ।। ऐ लोगो जो ईमान लाये हो मत चोरी करो अल्लाह की रसूल की और मत चोरी करो अमानत अपनी की।। और मकर करता था अल्लाह और अल्लाह भला मकर करने वालों का है।। -मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० १९। २०। २९। ३०।।
(समीक्षक) क्या अल्लाह मुसलमानों का पक्षपाती है, जो ऐसा है तो अधर्म करता है। नहीं तो ईश्वर सब सृष्टि भर का है। क्या खुदा बिना पुकारे नहीं सुन सकता। बधिर है? और उस के साथ रसूल को शरीक करना बहुत बुरी बात नहीं है? अल्लाह का कौन सा ख़जाना भरा है जो चोरी करेगा? क्या रसूल और अपने अमानत की चोरी छोड़कर अन्य सब की चोरी किया करे? ऐसा उपदेश अविद्वान् और अधर्मियों का हो सकता है? भला! जो मकर करता और जो मकर करने वालों का संगी है वह खुदा कपटी, छली और अधर्मी क्यों नहीं ? इसलिये यह कुरान खुदा का बनाया हुआ नहीं है। किसी कपटी छली का बनाया होगा। नहीं तो ऐसी अन्यथा बातें लिखित क्यों होतीं? ।।८०।।
८१-और लड़ो उन से यहां तक कि न रहे फितना अर्थात् बल काफिरों का और होवे दीन तमाम वास्ते अल्लाह के।। और जानो तुम यह कि जो कुछ तुम लूटो किसी वस्तु से निश्चय वास्ते अल्लाह के है पाँचवाँ हिस्सा उस का और वास्ते रसूल के।। -मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० ३९। ४१।।
(समीक्षक) ऐसे अन्याय से लड़ने लड़ाने वाला मुसलमानों के खुदा से भिन्न शान्तिभंगकर्ता दूसरा कौन होगा? अब देखिये यह मजहब कि अल्लाह और रसूल के वास्ते सब जगत् को लूटना लुटवाना लुटेरों का काम नहीं है? और लूट के माल में खुदा का हिस्सेदार बनना जानो डाकू बनना है और ऐसे लुटेरों का पक्षपाती बनना खुदा अपनी खुदाई में बट्टा लगाता है। बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसा पुस्तक, ऐसा खुदा और ऐसा पैगम्बर संसार में ऐसी उपाधि और शान्तिभंग करके मनुष्यों को दुःख देने के लिये कहां से आया? जो ऐसे-ऐसे मत जगत् में प्रचलित न होते तो सब जगत् आनन्द में बना रहता।।८१।।
८२-और कभी देखे तू जब काफिरों को फरिश्ते कब्ज करते हैं, मारते हैं, मुख उन के और पीठें उन की और कहते चखो अजाब जलने का।। हम ने उन के पाप से उन को मारा और हम ने फिराओन की कौम को डुबा दिया ।। और तैयारी करो वास्ते उन के जो कुछ तुम कर सको।।
-मं० २। सि० ९। सू० ८। आ० ५०। ५४। ६०।।
(समीक्षक) क्यों जी! आजकल रूस ने रूम आदि और इंग्लैण्ड ने मिश्र की दुर्दशा कर डाली; फरिश्ते कहां सो गये? और अपने सेवकों के शत्रुओं को खुदा पूर्व मारता डुबाता था यह बात सच्ची हो तो आजकल भी ऐसा करे जिस से ऐसा नहीं होता इसलिये यह बात मानने योग्य नहीं? अब देखिये ! यह कैसी बुरी आज्ञा है कि जो कुछ तुम कर सको वह भिन्न मत वालों के लिये दुःखदायक कर्म करो। ऐसी आज्ञा विद्वान् और धार्मिक दयालु की नहीं हो सकती। फिर लिखते हैं कि खुदा दयालु और न्यायकारी है। ऐसी बातों से मुसलमानों के खुदा से न्याय और दयादि सद्गुण दूर बसते हैं।।८२।।
८३-ऐ नबी किफायत है तुझ को अल्लाह और उन को जिन्होंने मुसलमानों से तेरा पक्ष किया।। ऐ नबी रगबत अर्थात् चाह चस्का दे मुसलमानों को ऊपर लड़ाई के, जो हों तुम में से २० आदमी सन्तोष करने वाले तो पराजय करें दो सौ का।। बस खाओ उस वस्तु से कि लूटा है तुमने हलाल पवित्र और डरो अल्लाह से वह क्षमा करने वाला दयालु है।। -मं० २। सि० १०। सू० ८। आ० ६४। ६५। ६९।।
(समीक्षक) भला यह कौन सी न्याय, विद्वत्ता और धर्म की बात है कि जो अपना पक्ष करे और चाहें अन्याय भी करे उसी का पक्ष और लाभ पहुँचावे? और जो प्रजा में शान्तिभंग करके लड़ाई करे करावे और लूट मार के पदार्थों को हलाल बतलावे और फिर उसी का नाम क्षमावान् दयालु लिखे यह बात खुदा की तो क्या किन्तु किसी भले आदमी की भी नहीं हो सकती। ऐसी-ऐसी बातों से कुरान ईश्वरवाक्य कभी नहीं हो सकता।।८३।।
८४-सदा रहेंगे बीच उस के, अल्लाह समीप है उस के पुण्य बड़ा।। ऐ लोगो! जो ईमान लाये हो मत पकड़ो बापों अपने को और भाइयों अपने को मित्र जो दोस्त रखें कुफ्र को ऊपर ईमान के।। फिर उतारी अल्लाह ने तसल्ली अपनी ऊपर रसूल अपने के और ऊपर मुसलमानों के और उतारे लश्कर नहीं देखा तुम ने उन को और अजाब किया उन लोगों को और यही सजा है काफिरों को।। फिर-फिर आवेगा अल्लाह पीछे उस के ऊपर।। और लड़ाई करो उन लोगों से जो ईमान नहीं लाते।। -मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० २२। २३। २६। २७।।
(समीक्षक) भला जो बहिश्तवालों के समीप अल्लाह रहता है तो सर्वव्यापक क्योंकर हो सकता है? जो सर्वव्यापक नहीं तो सृष्टिकर्त्ता और न्यायाधीश नहीं हो सकता। और अपने माँ, बाप, भाई और मित्र को छुड़वाना केवल अन्याय की बात है। हां! जो वे बुरा उपदेश करें; न मानना परन्तु उन की सेवा सदा करनी चाहिये। जो पहले खुदा मुसलमानों पर बड़ा सन्तोषी था; और उनके सहाय के लिए लश्कर उतारता था सच हो तो अब ऐसा क्यों नहीं करता? और जो प्रथम काफिरों को दण्ड देता और पुनः उसके ऊपर आता था तो अब कहाँ गया? क्या विना लड़ाई के ईमान खुदा नहीं बना सकता? ऐसे खुदा को हमारी ओर से सदा तिलाञ्जलि है, खुदा क्या है एक खिलाड़ी है? ।।८४।।
८५-और हम बाट देखने वाले हैं वास्ते तुम्हारे यह कि पहुँचावें तुम को अल्लाह अजाब अपने पास से वा हमारे हाथों से।।
-मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० ५२।।
(समीक्षक) क्या मुसलमान ही ईश्वर की पुलिस बन गये हैं कि अपने हाथ वा मुसलमानों के हाथ से अन्य किसी मत वालों को पकड़ा देता है? क्या दूसरे क्रोड़ों मनुष्य ईश्वर को अप्रिय हैं? मुसलमानों में पापी भी प्रिय हैं? यदि ऐसा है तो अन्धेर नगरी गवरगण्ड राजा की सी व्यवस्था दीखती है। आश्चर्य है कि जो बुद्धिमान् मुसलमान हैं वे भी इस निर्मूल अयुक्त मत को मानते हैं।।८५।।
८६-प्रतिज्ञा की है अल्लाह ने ईमान वालों से और ईमानवालियों से बहिश्तें चलती हैं नीचे उन के से नहरें सदैव रहने वाली बीच उस के और घर पवित्र बीच बहिश्तों अदन के और प्रसन्नता अल्लाह की ओर बड़ी है और यह कि वह है मुराद पाना बड़ा।। बस ठट्ठा करते हैं उन से, ठट्ठा किया अल्लाह ने उन से।। -मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० ७३। ८०।।
(समीक्षक) यह खुदा के नाम से स्त्री पुरुषों को अपने मतलब के लिये लोभ देना है। क्योंकि जो ऐसा प्रलोभन न देते तो कोई मुहम्मद साहेब के जाल में न फंसता। ऐसे ही अन्य मत वाले भी किया करते हैं। मनुष्य लोग तो आपस में ठट्ठा किया ही करते हैं परन्तु खुदा को किसी से ठट्ठा करना उचित नहीं है। यह कुरान क्या है बड़ा खेल है।।८६।।
८७-परन्तु रसूल और जो लोग कि साथ उसके ईमान लाये जिहाद किया उन्होंने साथ धन अपने के तथा जानों अपनी के और इन्हीं लोगों के लिये भलाई है ।। और मोहर रक्खी अल्लाह ने ऊपर दिलों उन के, बस वे नहीं जानते।।
-मं० २। सि० १०। सू० ९। आ० ८८। ९३।।
(समीक्षक) अब देखिये मतलबसिन्धु की बात! कि वे ही भले हैं जो मुहम्मद साहेब के साथ ईमान लाये और जो नहीं लाये वे बुरे हैं! क्या यह बात पक्षपात और अविद्या से भरी हुई नहीं है? जब खुदा ने मोहर ही लगा दी तो उन का अपराध पाप करने में कोई भी नहीं किन्तु खुदा ही का अपराध है क्योंकि उन बिचारों को भलाई से दिलों पर मोहर लगा के रोक दिये; यह कितना बड़ा अन्याय है!!! ।।८७।।
८८-ले माल उनके से खैरात कि पवित्र करे तू उन को अर्थात् बाहरी और शुद्ध करे तू उन को साथ उन के अर्थात् गुप्त में।। निश्चय अल्लाह ने मोल ली हैं मुसलमानों से जानें उन की और माल उन के बदले, कि वास्ते उन के बहिश्त है। लडे़गें बीच मार्ग अल्लाह के बस मारेंगे और मर जावेंगे।। -मं० २। सि० ११। सू० ९। आ० १०३। १११।।
(समीक्षक) वाह जी वाह मुहम्मद साहेब! आपने तो गोकुलिये गुसांइयों की बराबरी कर ली क्योंकि उन का माल लेना और उन को पवित्र करना यही बात तो गुसांइयों की है। वाह खुदा जी! आपने अच्छी सौदागरी लगाई कि मुसलमानों के हाथ से अन्य गरीबों के प्राण लेना ही लाभ समझा और उन अनाथों को मरवा कर उन निर्दयी मनुष्यों को स्वर्ग देने से दया और न्याय से मुसलमानों का खुदा हाथ धो बैठा और अपनी खुदाई में बट्टा लगा के बुद्धिमान् धार्मिकों में घृणित हो गया।।८८।।
८९-ऐ लोगो जो ईमान लाये हो लड़ो उन लोगों से कि पास तुम्हारे हैं काफिरों से और चाहिये कि पावें बीच तुम्हारे दृढ़ता।। क्या नहीं देखते यह कि वे बलाओं में डाले जाते हैं बीच हर वर्ष के एक बार वा दो बार। फिर वे नहीं तोबा करते और न वे शिक्षा पकड़ते हैं।। -मं० २। सि० ११। सू० ९। आ० १२३। १२६।।
(समीक्षक) देखिये! ये भी एक विश्वासघात की बातें खुदा मुसलमानों को सिखलाता है कि चाहें पड़ोसी हो वा किसी के नौकर हों जब अवसर पावें तभी लड़ाई वा घात करें। ऐसी बातें मुसलमानों से बहुत बन गई हैं इसी कुरान के लेख से। अब तो मुसलमान समझ के इन कुरानोक्त बुराइयों को छोड़ दें तो बहुत अच्छा है।।८९।।
९०-निश्चय परवरदिगार तुम्हारा अल्लाह है जिस ने पैदा किया आसमानों और पृथिवी को बीच छः दिन के। फिर करार पकड़ा ऊपर अर्श के, तदबीर करता है काम की।। -मं० ३। सि० ११। सू० १०। आ० ३।।
(समीक्षक) आसमान आकाश एक और बिना बना अनादि है। उस का बनाना लिखने से निश्चय हुआ कि वह कुरानकर्त्ता पदार्थविद्या को नहीं जानता था? क्या परमेश्वर के सामने छः दिन तक बनाना पड़ता है? तो जो ‘हो मेरे हुक्म से और हो गया’ जब कुरान में ऐसा लिखा है फिर छः दिन कभी नहीं लग सकते।। इससे छः दिन लगना झूठ है। जो वह व्यापक होता तो ऊपर अर्श के क्यों ठहरता? और जब काम की तदबीर करता है तो ठीक तुम्हारा खुदा मनुष्य के समान है क्योंकि जो सर्वज्ञ है वह बैठा-बैठा क्या तदबीर करेगा? इस से विदित होता है कि ईश्वर को न जानने वाले जंगली लोगों ने यह पुस्तक बनाया होगा।।९०।।
९१-शिक्षा और दया वास्ते मुसलमानों के।। -मं० ३। सि० ११। सू० १०। आ० ५७।।
(समीक्षक) क्या यह खुदा मुसलमानों ही का है? दूसरों का नहीं? और पक्षपाती है जो मुसलमानों ही पर दया करे अन्य मनुष्यों पर नहीं। यदि मुसलमान ईमानदारों को कहते हैं तो उन के लिये शिक्षा की आवश्यकता ही नहीं और मुसलमानों से भिन्नों को उपदेश नहीं करता तो खुदा की विद्या ही व्यर्थ है।।९१।।
९२-परीक्षा लेवे तुम को, कौन तुम में से अच्छा है कर्मों में। जो कहे तू! अवश्य उठाये जाओगे तुम पीछे मृत्यु के।। -मं० ३। सि० १२। सू० ११। आ० ७।।
(समीक्षक) जब कर्मों की परीक्षा करता है तो सर्वज्ञ ही नहीं। और जो मृत्यु पीछे उठाता है तो दौड़ा सुपुर्द रखता है और अपने नियम जो कि मरे हुए न जीवें उस को तोड़ता है। यह खुदा को बट्टा लगता है।।९२।।
९३-और कहा गया ऐ पृथिवी अपना पानी निगल जा और ऐ आसमान बस कर और पानी सूख गया।। और ऐ कौम यह है कि निशानी ऊंटनी अल्लाह की वास्ते तुम्हारे, बस छोड़ दो उस को बीच पृथिवी अल्लाह के खाती फिरे।। -मं० ३। सि० १२। सू० ११। आ० ४४। ६४।।
(समीक्षक) क्या लड़केपन की बात है! पृथिवी और आकाश कभी बात सुन सकते हैं? वाह जी वाह! खुदा के ऊंटनी भी है तो ऊंट भी होगा? तो हाथी घोडे़, गवमे आदि भी होंगे? और खुदा का ऊंटनी से खेत खिलाना क्या अच्छी बात है? क्या ऊंटनी पर चढ़ता भी है? जो ऐसी बातें हैं तो नवाबी की सी घसड़पसड़ खुदा के घर में भी हुई।।९३।।
९४-और सदैव रहने वाले बीच उस के जब तक कि रहें आसमान और पृथिवी।। और जो लोग सुभागी हुए बस बहिश्त के सदा रहने वाले हैं; जब तक रहें आसमान और पृथिवी।। -मं० ३। सि० १२। सू० ११। आ० १०७। १०८।।
(समीक्षक) जब दोजख और बहिश्त में कयामत के पश्चात् सब लोग जायेंगे फिर आसमान और पृथिवी किस लिए रहेगी? और जब दोज़ख और बहिश्त के रहने की आसमान पृथिवी के रहने तक अवधि हुई तो सदा रहेंगे बहिश्त वा दोजख में, यह बात झूठी हुई। ऐसा कथन अविद्वानों का होता है; ईश्वर वा विद्वानों का नहीं।।९४।।
९५-जब यूसुफ ने अपने बाप से कहा कि ऐ बाप मेरे मैंने एक स्वप्न में देखा।। -मं० ३। सि० १२। सू० १२। आ० ४ से ५९ तक।।
(समीक्षक) इस प्रकरण में पिता पुत्र का संवादरूप किस्सा कहानी भरी है इसलिये कुरान ईश्वर का बनाया नहीं। किसी मनुष्य ने मनुष्यों का इतिहास लिख दिया है।।९५।।
९६-अल्लाह वह है कि जिस ने खड़ा किया आसमानों को विना खम्भे के देखते हो तुम उस को। फिर ठहरा ऊपर अर्श के। आज्ञा वर्तने वाला किया सूरज और चांद को।। और वही है जिस ने बिछाया पृथिवी को।। उतारा आसमान से पानी बस बहे नाले साथ अन्दाजे अपने के।। अल्लाह खोलता है भोजन को वास्ते जिस को चाहे और तंग करता है।।
-मं० ३। सि० १३। सू० १३। आ० २। ३। १७। २६।।
(समीक्षक) मुसलमानों का खुदा पदार्थविद्या कुछ भी नहीं जानता था। जो जानता तो गुरुत्व न होने से आसमान को खम्भे लगाने की कथा कहानी कुछ भी न लिखता। यदि खुदा अर्शरूप एक स्थान में रहता है तो वह सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापक नहीं हो सकता । और जो खुदा मेघविद्या जानता तो आकाश से पानी उतारा लिखा पुनः यह क्यों न लिखा कि पृथिवी से पानी ऊपर चढ़ाया। इससे निश्चय हुआ कि कुरान का बनाने वाला मेघ की विद्या को भी नहीं जानता था। और जो विना अच्छे बुरे कामों के सुख दुःख देता है तो पक्षपाती अन्यायकारी निरक्षर भट्ट है।।९६।।
९७-कह निश्चय अल्लाह गुमराह करता है जिस को चाहता है और मार्ग दिखलाता है तर्फ अपनी उस मनुष्य को रुजू करता है।।
-मं० ३। सि० १३। सू० १३। आ० २७।।
(समीक्षक) जब अल्लाह गुमराह करता है तो खुदा और शैतान में क्या भेद हुआ? जब कि शैतान दूसरों को गुमराह अर्थात् बहकाने से बुरा कहाता है तो खुदा भी वैसा ही काम करने से बुरा शैतान क्यों नहीं? और बहकाने के पाप से दोजखी क्यों नहीं होना चाहिये? ।।९७।।
९८-इसी प्रकार उतारा हम ने इस कुरान को अर्बी में, जो पक्ष करेगा तू उन की इच्छा का पीछे इस के आई तेरे पास विद्या से।। बस सिवाय इस के नहीं कि ऊपर तेरे पैगाम पहुँचाना है और ऊपर हमारे है हिसाब लेना।। -मं० ३। सि० १३। सू० १३। आ० ३७। ४०।।
(समीक्षक) कुरान किधर की ओर से उतारा? क्या खुदा ऊपर रहता है? जो यह बात सच्च है तो वह एकदेशी होने से ईश्वर ही नहीं हो सकता क्योंकि ईश्वर सब ठिकाने एकरस व्यापक है। पैगाम पहुँचाना हल्कारे का काम है और हल्कारे की आवश्यकता उसी को होती है जो मनुष्यवत् एकदेशी हो। और हिसाब लेना देना भी मनुष्य का काम है; ईश्वर का नहीं क्योंकि वह सर्वज्ञ है। यह निश्चय होता है कि किसी अल्पज्ञ मनुष्य का बनाया कुरान है।।९८।।
९९-और किया सूर्य चन्द्र को सदैव फिरने वाला।। निश्चय आदमी अवश्य अन्याय और पाप करने वाला है।। -मं० ३। सि० १३। सू० १४। आ० ३३। ३४।।
(समीक्षक) क्या चन्द्र, सूर्य सदा फिरते और पृथिवी नहीं फिरती? जो पृथिवी नहीं फिरे तो कई वर्षों का दिन रात होवे। और जो मनुष्य निश्चय अन्याय और पाप करने वाला है तो कुरान से शिक्षा करना व्यर्थ है। क्योंकि जिन का स्वभाव पाप ही करने का है तो उन में पुण्यात्मता कभी न होगी और संसार में पुण्यात्मा और पापात्मा सदा दीखते हैं। इसलिये ऐसी बात ईश्वरकृत पुस्तक की नहीं हो सकती।।९९।।
१००-बस जब ठीक करूँ मैं उस को और फूंक दूं बीच उसके रूह अपनी से। बस गिर पड़ो वास्ते उस के सिजदा करते हुए।। कहा ऐ रब मेरे, इस कारण कि गुमराह किया तू ने मुझ को अवश्य जीनत दूंगा मैं वास्ते उन के बीच पृथिवी के और गुमराह करूंगा।। -मं० ३। सि० १४। सू० १५। आ० २९। से ३९। तक।।
(समीक्षक) जो खुदा ने अपनी रूह आदम साहेब में डाली तो वह भी खुदा हुआ और जो वह खुदा न था तो सिजदा अर्थात् नमस्कारादि भक्ति करने में अपना शरीक क्यों किया? जब शैतान को गुमराह करने वाला खुदा ही है तो वह शैतान का भी शैतान बड़ा भाई गुरु क्यों नहीं? क्योंकि तुम लोग बहकाने वाले को शैतान मानते हो तो खुदा ने भी शैतान को बहकाया और प्रत्यक्ष शैतान ने कहा कि मैं बहकाऊंगा। फिर भी उस को दण्ड देकर कैद क्यों न किया? और मार क्यों न डाला? ।।१००।।
१०१-और निश्चय भेजे हम ने बीच हर उम्मत के पैगम्बर।। जब चाहते हैं हम उस को, यह कहते हैं हम उस को हो! बस हो जाती है।।
-मं० ३। सि० १४। सू० १६। आ० ३५।४०।।
(समीक्षक) जो सब कौमों पर पैगम्बर भेजे हैं तो सब लोग जो कि पैगम्बर की राय पर चलते हैं वे काफिर क्यों? क्या दूसरे पैगम्बर का मान्य नहीं सिवाय तुम्हारे पैगम्बर के? यह सर्वथा पक्षपात की बात है। जो सब देश में पैगम्बर भेजे तो आर्य्यावर्त में कौन सा भेजा? इसलिये यह बात मानने योग्य नहीं। जब खुदा चाहता है और कहता है कि पृथिवी हो जा, वह जड़ कभी नहीं सुन सकती। खुदा का हुक्म क्योंकर बजा सकेगा? और सिवाय खुदा के दूसरी चीज नहीं मानते तो सुना किस ने? और हो कौन गया? ये सब अविद्या की बातें हैं। ऐसी बातों को अनजान लोग मानते हैं।।१०१।।
१०न-और नियत करते हैं वास्ते अल्लाह के बेटियां-पवित्रता है उस को- और वास्ते उनके हैं जो कुछ चाहें।। कसम अल्लाह की अवश्य भेजे हम ने पैगम्बर।।
-मं० ३। सि० १४। सू० १६। आ० ५७। ६३।।
(समीक्षक) अल्लाह बेटियों से क्या करेगा? बेटियां तो किसी मनुष्य को चाहिये, क्यों बेटे नियत नहीं किये जाते और बेटियां नियत की जाती हैं? इस का क्या कारण है? बताइये? कसम खाना झूठों का काम है, खुदा की बात नहीं। क्योंकि बहुधा संसार में ऐसा देखने में आता है कि जो झूठा होता है वही कसम खाता है। सच्चा सौगन्ध क्यों खावे? ।।१०२।।
१०३-ये लोग वे हैं कि मोहर रक्खी अल्लाह ने ऊपर दिलों उन के और कानों उन के और आंखों उन की के और ये लोग वे हैं बेखबर।। और पूरा दिया जावेगा हर जीव को जो कुछ किया है और वे अन्याय न किये जावेंगे।। -मं० ३। सि० १४। सू० १६। आ० १०८-१११।।
(समीक्षक)-जब खुदा ही ने मोहर लगा दी तो वे बिचारे विना अपराध मारे गये क्योंकि उन को पराधीन कर दिया। यह कितना बड़ा अपराध है? और फिर कहते हैं कि जिस ने जितना किया है उतना ही उस को दिया जायगा; न्यूनाधिक नहीं। भला! उन्होंने स्वतन्त्रता से पाप किये ही नहीं किन्तु खुदा के कराने से किये। पुनः उन का अपराध ही न हुआ। उन को फल न मिलना चाहिये। इस का फल खुदा को मिलना उचित है। और जो पूरा दिया जाता है तो क्षमा किस बात की जाती है? जो क्षमा की जाती है तो न्याय उड़ जाता है। ऐसा गड़बड़ाध्याय ईश्वर का कभी नहीं हो सकता किन्तु निर्बुद्धि छोकरों का होता है।।१०३।।
१०४-और किया हमने दोजख को वास्ते काफिरों के घेरने वाला स्थान।। और हर आदमी को लगा दिया हम ने उस को अमलनामा उस का बीच गर्दन उस की के और निकालेंगे हम वास्ते उस के दिन कयामत के एक किताब कि देखेगा उस को खुला हुआ।। और बहुत मारे हम ने कुरनून से पीछे नूह के।। -मं० ४। सि० १५। सू० १७। आ० ८-१३। १७।।
(समीक्षक) यदि काफिर वे ही हैं कि जो कुरान, पैगम्बर और कुरान के कहे खुदा, सातवें आसमान और नमाज आदि को न मानें और उन्हीं के लिये दोजख होवे तो यह बात केवल पक्षपात की ठहरे क्योंकि कुरान ही के मानने वाले सब अच्छे और अन्य के मानने वाले सब बुरे कभी हो सकते हैं? यह बड़ी लड़कपन की बात है कि प्रत्येक की गर्दन में कर्मपुस्तक! हम तो किसी एक की भी गर्दन में नहीं देखते। यदि इस का प्रयोजन कर्मों का फल देना है तो फिर मनुष्यों के दिलों, नेत्रें आदि पर मोहर रखना और पापों का क्षमा करना क्या खेल मचाया है? कयामत की रात को किताब निकालेगा खुदा तो आज कल वह किताब कहां है? क्या साहूकार की बही समान लिखता रहता है? यहां यह विचारना चाहिये कि जो पूर्वजन्म नहीं तो जीवों के कर्म ही नहीं हो सकते फिर कर्म की रेखा क्या लिखी? जो विना कर्म के लिखा तो उन पर अन्याय किया क्योंकि विना अच्छे बुरे कर्म्मों के उन को दुःख-सुख क्यों दिया? जो कहो कि खुदा की मरजी, तो भी उसने अन्याय किया। अन्याय उस को कहते हैं कि विना बुरे भले कर्म किये दुःख सुखरूप फल न्यूनाधिक देना और उस समय खुदा ही किताब बांचेगा वा कोई सरिश्तेदार सुनावेगा? जो खुदा ही ने दीर्घकाल सम्बन्धी जीवों को विना अपराध मारा तो वह अन्यायकारी हो गया। जो अन्यायकारी होता है वह खुदा ही नहीं हो सकता।।१०४।।
१०५-और दिया हमने समूद को ऊंटनी प्रमाण।। और बहका जिस को बहका सके।। जिस दिन बुलावेंगे हम सब लोगों को साथ पेशवाओं उन के बस जो कोई दिया गया अमलनामा उस का बीच दहिने हाथ उस के।।
-मं० ४। सि० १५। सू० १७। आ० ५९। ६४। ७१।।
(समीक्षक) वाह जी! जितनी खुदा की साश्चर्य निशानी हैं उन में से एक ऊंटनी भी खुदा के होने में प्रमाण अथवा परीक्षा में साधक है। यदि खुदा ने शैतान को बहकाने का हुक्म दिया तो खुदा ही शैतान का सरदार और सब पाप कराने वाला ठहरा। ऐसे को खुदा कहना केवल कम समझ की बात है। जब कयामत की रात अर्थात् प्रलय ही में न्याय करने कराने के लिये पैगम्बर और उन के उपदेश मानने वालों को खुदा बुलावेगा तो जब तक प्रलय न होगा तब तक सब दौरा सुपुर्द रहे और दौरा सुपुर्द सब को दुःखदायक है जब तक न्याय न किया जाय। इसलिये शीघ्र न्याय करना न्यायाधीश का उत्तम काम है। यह तो पोपांबाई का न्याय ठहरा। जैसे कोई न्यायाधीश कहे कि जब तक पचास वर्ष तक के चोर और साहूकार इकट्ठे न हों तब तक उन को दण्ड वा प्रतिष्ठा न करनी चाहिये। वैसा ही यह हुआ कि एक तो पचास वर्ष तक दौरा सुपुर्द रहा और एक आज ही पकड़ा गया। ऐसा न्याय का काम नहीं हो सकता। न्याय तो वेद और मनुस्मृति का देखो जिस में क्षण मात्र विलम्ब नहीं होता और अपने-अपने कर्मानुसार दण्ड वा प्रतिष्ठा सदा पाते रहते हैं। दूसरा पैगम्बरों को गवाही के तुल्य रखने से ईश्वर की सर्वज्ञता की हानि है। भला ! ऐसा पुस्तक ईश्वरकृत और ऐसे पुस्तक का उपदेश करने वाला ईश्वर कभी हो सकता है? कभी नहीं।।१०५।।
१०६-ये लोग वास्ते उन के हैं बाग हमेशह रहने के, चलती हैं नीचे उन के से नहरें, गहना पहिराये जावेंगे बीच उस के कंगन सोने के से और पोशाक पहिनेंगे वस्त्र हरित लाहि की से और ताफते की से तकिये किये हुए बीच उस के ऊपर तख़तों के। अच्छा है पुण्य और अच्छी है बहिश्त लाभ उठाने की।।
-मं० ४। सि० १५। सू० १८। आ० ३१।।
(समीक्षक) वाह जी वाह! क्या कुरान का स्वर्ग है जिस में बाग, गहने, कपड़े, गद्दी, तकिये आनन्द के लिये हैं। भला! कोई बुद्धिमान् यहां विचार करे तो यहां से वहाँ मुसलमानों के बहिश्त में अधिक कुछ भी नहीं है सिवा अन्याय के, वह यह कि कर्म उन के अन्त वाले और फल उन का अनन्त। और जो मीठा नित्य खावे तो थोड़े दिन में विष के समान प्रतीत होता है। जब सदा वे सुख भोगेंगे तो उन को सुख ही दुःखरूप हो जायगा। इसलिये महाकल्प पर्यन्त मुक्तिसुख भोग के पुनर्जन्म पाना ही सत्य सिद्धान्त है।।१०६।।
१०७-और यह बस्तियां हैं कि मारा हम ने उन को जब अन्याय किया उन्होंने और हम ने उन के मारने की प्रतिज्ञा स्थापन की।।
-मं० ४। सि० १५। सू० १८। आ० ५९।।
(समीक्षक) भला! सब बस्ती भर पापी कभी हो सकती है? और पीछे से प्रतिज्ञा करने से ईश्वर सर्वज्ञ नहीं रहा क्योंकि जब उन का अन्याय देखा तो प्रतिज्ञा की, पहिले नहीं जानता था। इस से दयाहीन भी ठहरा।।१०७।।
१०८-और वह जो लड़का, बस थे माँ बाप उस के ईमान वाले, बस डरे हम यह कि पकड़े उन को सरकशी में और कुफ्र में।। यहां तक कि पहुँचा जगह डूबने सूर्य्य की, पाया उसको डूबता था बीच चश्मे कीचड़ के ।। कहा उन ने ऐजुलकरनैन! निश्चय याजूज माजूज फिसाद करने वाले हैं बीच पृथिवी के।। -मं० ४। सि० १६। सू० १८। आ० ८०। ८६। ९४।।
(समीक्षक) भला! यह खुदा की कितनी बेसमझ है! शंका से डरा कि लड़के के माँ बाप कहीं मेरे मार्ग से बहका कर उलटे न कर दिये जावें। यह कभी ईश्वर की बात नहीं हो सकती। अब आगे की अविद्या की बात देखिये कि इस किताब का बनाने वाला सूर्य्य को एक झील में रात्रि को डूबा जानता है, फिर प्रातःकाल निकलता है। भला! सूर्य्य तो पृथिवी से बहुत बड़ा है। वह नदी वा झील वा समुद्र में कैसे डूब सकेगा? इस से यह विदित हुआ कि कुरान के बनाने वाले को भूगोल खगोल की विद्या नहीं थी। जो होती तो ऐसी विद्याविरुद्ध बात क्यों लिख देता । और इस पुस्तक को मानने वालों को भी विद्या नहीं है। जो होती तो ऐसी मिथ्या बातों से युक्त पुस्तक को क्यों मानते? अब देखिये खुदा का अन्याय! आप ही पृथिवी को बनाने वाला राजा न्यायाधीश है औार याजूज माजूज को पृथिवी में फसाद भी करने देता है। यह ईश्वरता की बात से विरुद्ध है। इस से ऐसी पुस्तक को जंगली लोग माना करते हैं; विद्वान् नहीं।।१०८।।
१०९-और याद करो बीच किताब के मर्यम को, जब जा पड़ी लोगों अपने से मकान पूर्वी में।। बस पड़ा उन से इधर पर्दा, बस भेजा हम ने रूह अपनी को अर्थात् फरिश्ता, बस सूरत पकड़ी वास्ते उस के आदमी पुष्ट की।। कहने लगी निश्चय मैं शरण पकड़ती हूँ रहमान की तुझ से, जो है तू परहेजगार।। कहने लगा सिवाय इस के नहीं कि मैं भेजा हुआ हूं मालिक तेरे के से, ताकि दे जाऊं मैं तुझ को लड़का पवित्र।। कहा कैसे होगा वास्ते मेरे लड़का नहीं हाथ लगाया मुझ को आदमी ने, नहीं मैं बुरा काम करने वाली।। बस गिर्भत हो गई साथ उस के और जा पड़ी साथ उस के मकान दूर अर्थात् जंगल में।।
-मं० ४। सि० १६। सू० १९। आ० १६। १७। १८। १९। २०-२३।।
(समीक्षक) अब बुद्धिमान् विचार लें कि फरिश्ते सब खुदा की रूह हैं तो खुदा से अलग पदार्थ नहीं हो सकते। दूसरा यह अन्याय कि वह मर्यम कुमारी के लड़का होना। किसी का संग करना नहीं चाहती थी परन्तु खुदा के हुक्म से फरिश्ते ने उस को गर्भवती किया। यह न्याय से विरुद्ध बात है। यहां अन्य भी असभ्यता की बातें बहुत लिखी हैं उन को लिखना उचित नहीं समझा।।१०९।।
११०-क्या नहीं देखा तू ने यह कि भेजा हम ने शैतानों को ऊपर काफिरों के बहकाते हैं उन को बहकाने कर।। -मं० ४। सि० १६। सू० १९। आ० ८३।।
(समीक्षक) जब खुदा ही शैतानों को बहकाने के लिये भेजता है तो बहकने वालों का कुछ दोष नहीं हो सकता और न उन को दण्ड हो सकता और न शैतानों को। क्योंकि यह खुदा के हुक्म से सब होता है। इस का फल खुदा को होना चाहिये। जो सच्चा न्यायकारी है तो उस का फल दोजख आप ही भोगे और जो न्याय को छोड़ के अन्याय को करे तो अन्यायकारी हुआ। अन्यायकारी ही पापी कहाता है।।११०।।
१११-और निश्चय क्षमा करने वाला हूँ वास्ते उस मनुष्य के तोबाः की और ईमान लाया और कर्म किये अच्छे, फिर मार्ग पाया।।
-मं० ४। सि० १६। सू० २०। आ० ८२।।
(समीक्षक) जो तोबाः से पाप क्षमा करने की बात कुरान में है यह सब को पापी कराने वाली है क्योंकि पापियों को इस से पाप करने का साहस बहुत बढ़ जाता है। इस से यह पुस्तक और इस का बनाने वाला पापियों को पाप करने में हौसला बढ़ाने वाले हैं। इस से यह पुस्तक परमेश्वरकृत और इस में कहा हुआ परमेश्वर भी नहीं हो सकता।।१११।।
११२-और किये हम ने बीच पृथिवी के पहाड़ ऐसा न हो कि हिल जावे।। -मं० ४। सि० १७। सू० २१। आ० ३०।।
(समीक्षक) यदि कुरान का बनाने वाला पृथिवी का घूमना आदि जानता तो यह बात कभी नहीं कहता कि पहाड़ों के धरने से पृथिवी नहीं हिलती। शंका हुई कि जो पहाड़ नहीं धरता तो हिल जाती! इतने कहने पर भी भूकम्प में क्यों डिग जाती है? ।।११२।।
११३-और शिक्षा दी हम ने उस औरत को और रक्षा की उस ने अपने गुह्य अंगों की। बस फूंक दिया हम ने बीच उस के रूह अपनी को।।
-मं० ४। सि० १७। सू० २१। आ० ९१।।
(समीक्षक) ऐसी अश्लील बातें खुदा की पुस्तक में खुदा की क्या और सभ्य मनुष्य की भी नहीं होतीं। जब कि मनुष्यों में ऐसी बातों का लिखना अच्छा नहीं तो परमेश्वर के सामने क्योंकर अच्छा हो सकता है? ऐसी-ऐसी बातों से कुरान दूषित होता है। यदि अच्छी बात होती तो अति प्रशंसा होती; जैसे वेदों की।।११३।।
११४-क्या नहीं देखा तूने कि अल्लाह को सिजदा करते हैं जो कोई बीच आसमानों और पृथिवी के हैं, सूर्य और चन्द्र तारे और पहाड़, वृक्ष और जानवर।। पहिनाये जावेंगे बीच उस के कंगन सोने और मोती के और पहिनावा उन का बीच उसके रेशमी है।। और पवित्र रख घर मेरे को वास्ते गिर्द फिरने वालों के और खड़े रहने वालों के।। फिर चाहिये कि दूर करें मैल अपने और पूरी करें भेंटें अपनी और चारों ओर फिरें घर कदीम के।। ताकि नाम अल्लाह का याद करें।। -मं० ४। सि० १७। सू० २२। आ० १८। २३। २६। २८। ३३।।
(समीक्षक) भला! जो जड़ वस्तु हैं, परमेश्वर को जान ही नहीं सकते, फिर वे उस की भक्ति क्योंकर कर सकते हैं? इस से यह पुस्तक ईश्वरकृत तो कभी नहीं हो सकता किन्तु किसी भ्रान्त का बनाया हुआ दीखता है। वाह! बड़ा अच्छा स्वर्ग है जहाँ सोने मोती के गहने और रेशमी कपड़े पहिरने को मिलें। यह बहिश्त यहां के राजाओं के घर से अधिक नहीं दीख पड़ता। और जब परमेश्वर का घर है तो वह उसी घर में रहता भी होगा फिर बुत्परस्ती क्यों न हुई? और दूसरे बुत्परस्तों का खण्डन क्यों करते हैं? जब खुदा भेंट लेता, अपने घर की परिक्रमा करने की आज्ञा देता है और पशुओं को मरवा के खिलाता है तो यह खुदा मन्दिर वाले और भैरव, दुर्गा के सदृश हुआ और महाबुत्परस्ती का चलाने वाला हुआ क्योंकि मूर्तियों से मस्जिद बड़ा बुत् है। इस से खुदा और मुसलमान बड़े बुत्परस्त और पुराणी तथा जैनी छोटे बुत्परस्त हैं।।११४।।
११५-फिर निश्चय तुम दिन कयामत के उठाये जाओगे।। -मं० ४। सि० १८। सू० २३। आ० १६।।
(समीक्षक) कयामत तक मुर्दे कबरों में रहेंगे वा किसी अन्य जगह? जो उन्हीं में रहेंगे तो सड़े हुए दुर्गन्धरूप शरीर में रहकर पुण्यात्मा भी दुःख भोग करेंगे? यह न्याय अन्याय है। और दुर्गन्ध अधिक होकर रोगोत्पत्ति करने से खुदा और मुसलमान पापभागी होंगे।।११५।।
११६-उस दिन की गवाही देवेंगे ऊपर उन के जबानें उन की और हाथ उन के और पांव उन के साथ उस वस्तु के कि थे करते।। अल्लाह नूर है आसमानों का और पृथिवी का, नूर उस के कि मानिन्द ताक की है बीच उस के दीप हो और दीप बीच कंदील शीशों के हैं, वह कंदील मानो कि तारा है चमकता, रोशन किया जाता है दीपक वृक्ष मुबारिक जैतून के से, न पूर्व की ओर है न पश्चिम की, समीप है तेल उस का रोशन हो जावे जो न लगे ऊपर रोशनी के मार्ग दिखाता है अल्लाह नूर अपने के जिस को चाहता है।।
-मं० ४। सि० १८। सू० २४। आ० २४। ३५।।
(समीक्षक) हाथ पग आदि जड़ होने से गवाही कभी नहीं दे सकते यह बात सृष्टिक्रम से विरुद्ध होने से मिथ्या है। क्या खुदा आगी बिजुली है? जैसा कि दृष्टान्त देते हैं ऐसा दृष्टान्त ईश्वर में नहीं घट सकता। हां! किसी साकार वस्तु में घट सकता है।।११६।।
११७-और अल्लाह ने उत्पन्न किया हर जानवर को पानी से बस कोई उन में से वह है कि जो चलता है पेट अपने के।। और जो कोई आज्ञा पालन करे अल्लाह की रसूल उस के की।। कह आज्ञा पालन करे खुदा की रसूल उस के की और आज्ञा पालन करो रसूल की ताकि दया किये जाओ।।
-मं० ४। सि० १८। सू० २४। आ० ४५। ५२। ५६।।
(समीक्षक) यह कौन सी फिलासफी है कि जिन जानवरों के शरीर में सब तत्त्व दीखते हैं और कहना कि केवल पानी से उत्पन्न किये। यह केवल अविद्या की बात है। जब अल्लाह के साथ पैगम्बर की आज्ञा पालन करना होता है तो खुदा का शरीक हो गया वा नहीं? यदि ऐसा है तो क्यों खुदा को लाशरीक कुरान में लिखा और कहते हो? ।।११७।।
११८-और जिस दिन कि फट जावेगा आसमान साथ बदली के और उतारे जावेंगे फरिश्ते।। बस मत कहा मान काफिरों का और झगड़ा कर उन से साथ झगड़ा बढ़ा ।। और बदल डालता है अल्लाह बुराइयों उन की को भलाइयों से।। और जो कोई तोबाः करे और कर्म करे अच्छे बस निश्चय आता है तरफ अल्लाह
की।। -मं० ४। सि० १९। सू० २५। आ० २५-५२। ७०। ७१।।
(समीक्षक) यह बात कभी सच नहीं हो सकती है कि आकाश बद्दलों के साथ फट जावे। यदि आकाश कोई र्मूर्त्तिमान् पदार्थ हो तो फट सकता है। यह मुसलमानों का कुरान शान्ति भंग कर गदर झगड़ा मचाने वाला है। इसीलिये धार्मिक विद्वान् लोग इस को नहीं मानते। यह भी अच्छा न्याय है कि जो पाप और पुण्य का अदला बदला हो जाय। क्या यह तिल और उड़द की सी बात है जो पलटा हो जावे? जो तोबा करने से पाप छूटे और ईश्वर मिले तो कोई भी पाप करने से न डरे। इसलिये ये सब बातें विद्या से विरुद्ध हैं।।११८।।
११९-वही की हम ने तरफ मूसा की यह कि ले चल रात को बन्दों मेरे को, निश्चय तुम पीछा किये जाओगे।। बस भेजे लोग फिरोन ने बीच नगरों के जमा करने वाले।। और वह पुरुष कि जिसने पैदा किया मुझ को है, बस वही मार्ग दिखलाता है।। और वह जो खिलाता है मुझ को पिलाता है मुझ को।। और उस पुरुष की आशा रखता हूँ मैं यह कि क्षमा करे वास्ते मेरे अपराध मेरा दिन कयामत के।। -मं० ५। सि० १९। सू० २६। आ० ५२। ५३। ७८। ७९। ८२।।
(समीक्षक) जब खुदा ने मूसा की ओर बही भेजी पुनः दाऊद, ईसा और मुहम्मद साहेब की ओर किताब क्यों भेजी? क्योंकि परमेश्वर की बात सदा एक सी और बेभूल होती है और उस के पीछे कुरान तक पुस्तकों का भेजना पहली पुस्तक को अपूर्ण भूलयुक्त माना जायगा। यदि ये तीन पुस्तक सच्चे हैं तो यह कुरान झूठा होगा। चारों का जो कि परस्पर प्रायः विरोध रखते हैं उन का सर्वथा सत्य होना नहीं हो सकता। यदि खुदा ने रूह अर्थात् जीव पैदा किये हैं तो वे मर भी जायेंगे अर्थात् उन का कभी नाश कभी अभाव भी होगा? जो परमेश्वर ही मनुष्यादि प्राणियों को खिलाता पिलाता है तो किसी को रोग होना न चाहिये और सब को तुल्य भोजन देना चाहिये । पक्षपात से एक को उत्तम और दूसरे को निकृष्ट जैसा कि राजा और कंगले को श्रेष्ठ निकृष्ट भोजन मिलता है; न होना चाहिये। जब परमेश्वर ही खिलाने पिलाने और पथ्य कराने वाला है तो रोग ही न होने चाहिये परन्तु मुसलमान आदि को भी रोग होते हैं। यदि खुदा ही रोग छुड़ा कर आराम करने वाला है तो मुसलमानों के शरीरों में रोग न रहना चाहिये। यदि रहता है तो खुदा पूरा वैद्य नहीं है यदि पूरा वैद्य है तो मुसलमानों के शरीरों में रोग क्यों रहते हैं? यदि वही मारता और जिलाता है तो उसी खुदा को पाप पुण्य लगता होगा। यदि जन्म जन्मान्तर के कर्मानुसार व्यवस्था करता है तो उस को कुछ भी अपराध नहीं। यदि वह पाप क्षमा और न्याय कयामत की रात में करता है तो खुदा पाप बढ़ाने वाला होकर पापयुक्त होगा। यदि क्षमा नहीं करता तो यह कुरान की बात झूठी होने से बच नहीं सकती है।।११९।।
१२०-नहीं तू परन्तु आदमी मानिन्द हमारी बस ले आ कुछ निशानी जो है तू सच्चों से।। कहा यह ऊंटनी है वास्ते उस के पानी पीना है एक बार।। -मं० ५। सि० १९। सू० २६। आ० १५४। १५५।।
(समीक्षक) भला! इस बात को कोई मान सकता है कि पत्थर से ऊंटनी निकले! वे लोग जंगली थे कि जिन्होंने इस बात को मान लिया। और ऊंटनी की निशानी देनी केवल जंगली व्यवहार है; ईश्वरकृत नहीं। यदि यह किताब ईश्वरकृत होती तो ऐसी व्यर्थ बातें इस में न होतीं।।१२०।।
१२१-ऐ मूसा बात यह है कि निश्चय मैं अल्लाह हूँ गालिब।। और डाल दे असा अपना, बस जब कि देखा उस को हिलता था मानो कि वह सांप है—ऐ मूसा मत डर, निश्चय नहीं डरते समीप मेरे पैगम्बर।। अल्लाह नहीं कोई माबूद परन्तु वह मालिक अर्श बड़े का।। यह कि मत सरकशी करो ऊपर मेरे और चले आओ मेरे पास मुसलमान होकर।।
-मं० ५। सि० १९। सू० २७। आ० ९। १०। २६। ३१।।
(समीक्षक) और भी देखिये अपने मुख आप अल्लाह बड़ा जबरदस्त बनता है। अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना श्रेष्ठ पुरुष का भी काम नहीं; खुदा का क्योंकर हो सकता है? तभी तो इन्द्रजाल का लटका दिखला जंगली मनुष्यों को वश कर आप जंगलस्थ खुदा बन बैठा। ऐसी बात ईश्वर के पुस्तक में कभी नहीं हो सकती। यदि वह बड़े अर्श अर्थात् सातवें आसमान का मालिक है तो वह एकदेशी होने से ईश्वर ही नहीं हो सकता है। यदि सरकशी करना बुरा है तो खुदा और मुहम्मद साहेब ने अपनी स्तुति से पुस्तक क्यों भर दिये? मुहम्मद साहेब ने अनेकों को मारे इस से सरकशी हुई वा नहीं? यह कुरान पुनरुक्त और पूर्वापर विरुद्ध बातों से भरा हुआ है।।१२१।।
१२२-और देखेगा तू पहाड़ों को अनुमान करता है तू उन को जमे हुए और वे चले जाते हैं मानिन्द चलने बादलों की, कारीगरी अल्लाह की जिसने दृढ़ किया हर वस्तु को, निश्चय वह खबरदार है उस वस्तु के कि करते हो।। -मं० ५। सि० २०। सू० २७। आ० ८७। ८८।।
(समीक्षक) बद्दलों के समान पहाड़ का चलना कुरान बनाने वालों के देश में होता होगा; अन्यत्र नहीं। और खुदा की खबरदारी तो शैतान बाजी को न पकड़ने और न दण्ड देने से ही विदित होती है कि जिस ने एक बाजी को भी अब तक न पकड़ पाया; न दण्ड दिया। इस से अधिक असावधानी क्या होगी।।१२२।।
१२३-बस मुष्ट मारा उस को मूसा ने, बस पूरी की आयु उस की।। कहा ऐ रब मेरे, निश्चय मैंने अन्याय किया जान अपनी को, बस क्षमा कर मुझ को, बस क्षमा कर दिया उस को, निश्चय वह क्षमा करने वाला दयालु है।। और मालिक तेरा उत्पन्न करता है, जो कुछ चाहता है और पसन्द करता है।।
-मं० ५। सि० २०। सू० २८। आ० १५। १६। ६८।।
(समीक्षक) अब अन्य भी देखिये मुसलमान और ईसाइयों के पैगम्बर और खुदा कि मूसा पैगम्बर मनुष्य की हत्या किया करे और खुदा क्षमा किया करे। ये दोनों अन्यायकारी हैं वा नहीं? क्या अपनी इच्छा ही से जैसा चाहता है वैसी उत्पत्ति करता है? क्या उस ने अपनी इच्छा ही से एक को राजा दूसरे को कंगाल और एक को विद्वान् दूसरे को मूर्खादि किया है? यदि ऐसा है तो न कुरान सत्य और न अन्यायकारी होने से यह खुदा ही हो सकता है।।१२३।।
१२४-और आज्ञा दी हम ने मनुष्य को साथ मा बाप के भलाई करना और जो झगड़ा करें तुझ से दोनों यह कि शरीक लावे तू साथ मेरे उस वस्तु को, कि नहीं वास्ते तेरे साथ उस के ज्ञान, बस मत कहा मान उन दोनों का, तर्फ मेरी है।। और अवश्य भेजा हम ने नूह को तर्फ कौम उस के कि बस रहा बीच उन के हजार वर्ष परन्तु पचास वर्ष कम।। -मं० ५। सि० २०। सू० २९। आ० ८। १४।।
(समीक्षक) माता-पिता की सेवा करना अच्छा ही है जो खुदा के साथ शरीक करने के लिये कहे तो उन का कहना न मानना यह भी ठीक है परन्तु यदि माता पिता मिथ्याभाषणादि करने की आज्ञा देवें तो क्या मान लेना चाहिये? इसलिये यह बात आवमी अच्छी और आधी बुरी है। क्या नूह आदि पैगम्बरों ही को खुदा संसार में भेजता है तो अन्य जीवों को कौन भेजता है? यदि सब को वही भेजता है तो सभी पैगम्बर क्यों नहीं? और जो प्रथम मनुष्यों की हजार वर्ष की आयु होती थी तो अब क्यों नहीं होती? इसलिये यह बात ठीक नहीं।।१२४।।
१२५-अल्लाह पहिली बार करता है उत्पत्ति, फिर दूसरी बार करेगा उस को, फिर उसी की ओर फेरे जाओगे।। और जिस दिन वर्षा अर्थात् खड़ी होगी कयामत निराश होंगे पापी।। बस जो लोग कि ईमान लाये और काम किये अच्छे बस वे बीच बाग के सिंगार किये जावेंगे।। और जो भेज दें हम एक बाव, बस देखें उसी खेती को पीली हुई।। इसी प्रकार मोहर रखता है अल्लाह ऊपर दिलों उन लोगों के कि नहीं जानते।। -मं० ५। सि० २१। सू० ३०। आ० ११। १२। १५। ५१। ५९।।
(समीक्षक) यदि अल्लाह दो बार उत्पत्ति करता है तीसरी बार नहीं तो उत्पत्ति की आदि और दूसरी बार के अन्त में निकम्मा बैठा रहता होगा? और एक तथा दो बार उत्पत्ति के पश्चात् उस का सामर्थ्य निकम्मा और व्यर्थ हो जायगा। यदि न्याय करने के दिन पापी लोग निराश हों तो अच्छी बात है परन्तु इस का प्रयोजन यह तो कहीं नहीं है कि मुसलमानों के सिवाय सब पापी समझ कर निराश किये जायें? क्योंकि कुरान में कई स्थानों में पापियों से औरों का ही प्रयोजन है। यदि बगीचे में रखना और शृंगार पहिराना ही मुसलमानों का स्वर्ग है तो इस संसार के तुल्य हुआ और वहाँ माली और सुनार भी होंगे अथवा खुदा ही माली और सुनार आदि का काम करता होगा। यदि किसी को कम गहना मिलता होगा तो चोरी भी होती होगी और बहिश्त से चोरी करने वालों को दोजख में भी डालता होगा। यदि ऐसा होता होगा तो सदा बहिश्त में रहेंगे यह बात झूठ हो जायगी। जो किसानों की खेती पर भी खुदा की दृष्टि है सो यह विद्या खेती करने के अनुभव ही से होती है। और यदि माना जाय कि खुदा ने अपनी विद्या से सब बात जान ली है तो ऐसा भय देना अपना घमण्ड प्रसिद्ध करना है। यदि अल्लाह ने जीवों के दिलों पर मोहर लगा पाप कराया तो उस पाप का भागी वही होवे जीव नहीं हो सकते। जैसे जय पराजय सेनाधीश का होता है वैसे यह सब पाप खुदा ही को प्राप्त होवे।।१२५।।
१२६-ये आयतें हैं किताब हिक्मत वाले की।। उत्पन्न किया आसमानों को बिना सुतून अर्थात् खम्भे के देखते हो तुम उस को और डाले बीच पृथिवी के पहाड़ ऐसा न हो कि हिल जावे।। क्या नहीं देखा तूने यह कि अल्लाह प्रवेश कराता है दिन को बीच रात के।। क्या नहीं देखा कि किश्तियां चलती हैं बीच दर्य्या के साथ निआमतों अल्लाह के, ताकि दिखलावे तुम को निशानियां अपनी।।
-मं० ५। सि० २१। सू० ३१। आ० २। १०। २९। ३१।।
(समीक्षक) वाह जी वाह! हिक्मतवाली किताब ! कि जिस में सर्वथा विद्या से विरुद्ध आकाश की उत्पत्ति और उस में खम्भे लगाने की शंका और पृथिवी को स्थिर रखने के लिये पहाड़ रखना। थोड़ी सी विद्या वाला भी ऐसा लेख कभी नहीं करता और न मानता और हिक्मत देखो कि जहाँ दिन है वहाँ रात नहीं और जहाँ रात है वहाँ दिन नहीं। उस को एक दूसरे में प्रवेश कराना लिखता है यह बड़े अविद्वानों की बात है। इसलिये यह कुरान विद्या की पुस्तक नहीं हो सकती। क्या यह विद्याविरुद्ध बात नहीं है कि नौका मनुष्य और क्रिया कौशलादि से चलती हैं वा खुदा की कृपा से? यदि लोहे वा पत्थरों की नौका बना कर समुद्र में चलावें तो खुदा की निशानी डूब जाय वा नहीं? इसलिये यह पुस्तक न विद्वान् और न ईश्वर का बनाया हुआ हो सकता है।।१२६।।
१२७-तदबीर करता है काम की आसमान से तर्फ पृथिवी की फिर चढ़ जाता है तर्फ उस की बीच एक दिन के कि है अवधि उसकी सहस्र वर्ष उन वर्षों से कि गिनते हो तुम।। यह है जानने वाला गैब का और प्रत्यक्ष का गालिब दयालु।। फिर पुष्ट किया उस को और फूंका बीच रूह अपनी से।। कह कब्ज करेगा तुम को फरिश्ता मौत का वह जो नियत किया गया है साथ तुम्हारे।। और जो चाहते हम अवश्य देते हम हर एक जीव को शिक्षा उस की, परन्तु सिद्ध हुई बात मेरी ओर से कि अवश्य भरूँगा मैं दोजख को जिनों से और आदमियों से इकट्ठे।। -मं० ५। सि० २१। सू० ३२। आ० ५। ६। ९। ११। १३।।
(समीक्षक) अब ठीक सिद्ध हो गया कि मुसलमानों का खुदा मनुष्यवत् एकदेशी है। क्योंकि जो व्यापक होता तो एकदेश से प्रबन्ध करना और उतरना चढ़ना नहीं हो सकता। यदि खुदा फरिश्ते को भेजता है तो भी आप एकदेशी हो गया। आप आसमान पर टंगा बैठा है और फरिश्तों को दौड़ाता है। यदि फरिश्ते रिश्वत लेकर कोई मामला बिगाड़ दें वा किसी मुर्दे को छोड़ जायें तो खुदा को क्या मालूम हो सकता है? मालूम तो उस को हो कि जो सर्वज्ञ तथा सर्वव्यापक हो, सो तो है ही नहीं; होता तो फरिश्तों के भेजने तथा कई लोगों की कई प्रकार से परीक्षा लेने का क्या काम था? और एक हजार वर्षों में तथा आने जाने प्रबन्ध करने से सर्वशक्तिमान् भी नहीं। यदि मौत का फरिश्ता है तो उस फरिश्ते का मारने वाला कौन सा मृत्यु है? यदि वह नित्य है तो अमरपन में खुदा के बराबर शरीक हुआ। एक फरिश्ता एक समय में दोजख भरने के लिये जीवों को शिक्षा नहीं कर सकता और उन को विना पाप किये अपनी मर्जी से दोजख भर के उन को दुःख देकर तमाशा देखता है तो वह खुदा पापी अन्यायकारी और दयाहीन है! ऐसी बातें जिस पुस्तक में हों न वह विद्वान् और ईश्वरकृत और जो दया न्यायहीन है वह ईश्वर भी कभी नहीं हो सकता।।१२७।।
१२८-कह कि कभी न लाभ देगा भागना तुम को जो भागो तुम मृत्यु वा कत्ल से।। ऐ बीबियो नबी की! जो कोई आवे तुम में से निर्लज्जता प्रत्यक्ष के, दुगुणा किया जायेगा वास्ते उसके अजाब और है यह ऊपर अल्लाह के सहल।।
-मं० ५। सि० २१। सू० ३३। आ० १५। ३०।।
(समीक्षक) यह मुहम्मद साहेब ने इसलिये लिखा लिखवाया होगा कि लड़ाई में कोई न भागे, हमारा विजय होवे, मरने से भी न डरे, ऐश्वर्य बढ़े, मजहब बढ़ा लेवें? और यदि बीबी निर्लज्जता से न आवे तो क्या पैगम्बर साहेब निर्लज्ज हो कर आवें? बीबियों पर अजाब हो और पैगम्बर साहेब पर अजाब न होवे। यह किस घर का न्याय है? ।।१२८।।
१२९-और अटकी रहो बीच घरों अपने के, आज्ञा पालन करो अल्लाह और रसूल की; सिवाय इसके नहीं।। बस जब अदा कर ली जैद ने हाजित उस से, ब्याह दिया हम ने तुझ से उस को ताकि न होवे ऊपर ईमान वालों के तंगी बीच बीबियों से ले पालकों उन के के, जब अदा कर लें उन से हाजित और है आज्ञा खुदा की की गई।। नहीं है ऊपर नबी के कुछ तंगी बीच उस वस्तु के।। नहीं है मुहम्मद बाप किसी मर्द का।। और हलाल की स्त्री ईमानवाली जो देवे बिना महर के जान अपनी वास्ते नबी के।। ढील देवे तू जिस को चाहे उन में से और जगह देवे तर्फ अपनी जिस को चाहे, नहीं पाप ऊपर तेरे।। ऐ लोगो! जो ईमान लाये हो मत प्रवेश करो घरों में पैगम्बर के।।
-मं० ५। सि० २२। सू० ३३। आ० ३३। ३६। ३७। ४०। ५०। ५१। ५२।।
(समीक्षक) यह बड़े अन्याय की बात है कि स्त्री घर में कैद के समान रहे और पुरुष खुल्ले रहें। क्या स्त्रियों का चित्त शुद्ध वायु, शुद्ध देश में भ्रमण करना, सृष्टि के अनेक पदार्थ देखना नहीं चाहता होगा? इसी अपराध से मुसलमानों के लड़के विशेषकर सयलानी और विषयी होते हैं। अल्लाह और रसूल की एक अविरुद्ध आज्ञा है वा भिन्न-भिन्न विरुद्ध? यदि एक है तो दोनों की आज्ञा पालन करो कहना व्यर्थ है और जो भिन्न-भिन्न विरुद्ध है तो एक सच्ची और दूसरी झूठी? एक खुदा दूसरा शैतान हो जायगा? और शरीक भी होगा? वाह कुरान का खुदा और पैगम्बर तथा कुरान को! जिस को दूसरे का मतलब नष्ट कर अपना मतलब सिद्ध करना इष्ट हो ऐसी लीला अवश्य रचता है। इस से यह भी सिद्ध हुआ कि मुहम्मद साहेब बड़े विषयी थे। यदि न होते तो (लेपालक) बेटे की स्त्री को जो पुत्र की स्त्री थी; अपनी स्त्री क्यों कर लेते? और फिर ऐसी बातें करने वाले का खुदा भी पक्षपाती बना और अन्याय को न्याय ठहराया। मनुष्यों में जो जंगली भी होगा वह भी बेटे की स्त्री को छोड़ता है और यह कितनी बड़ी अन्याय की बात है कि नबी को विषयासक्ति की लीला करने में कुछ भी अटकाव नहीं होना! यदि नबी किसी का बाप न था तो जैद (लेपालक) बेटा किस का था? और क्यों लिखा? यह उसी मतलब की बात है कि जिस से बेटे की स्त्री को भी घर में डालने से पैगम्बर साहेब न बचे, अन्य से क्योंकर बचे होंगे? ऐसी चतुराई से भी बुरी बात में निन्दा होना कभी नहीं छूट सकता। क्या जो कोई पराई स्त्री भी नबी से प्रसन्न होकर निकाह करना चाहे तो भी हलाल है? और यह महा अधर्म की बात है कि नबी तो जिस स्त्री को चाहे छोड़ देवे और मुहम्मद साहेब की स्त्री लोग यदि पैगम्बर अपराधी भी हो तो कभी न छोड़ सकें! जैसे पैगम्बर के घरों में अन्य कोई व्यभिचार दृष्टि से प्रवेश न करें तो वैसे पैगम्बर साहेब भी किसी के घर में प्रवेश न करें। क्या नबी जिस किसी के घर में चाहें निशंक प्रवेश करें और माननीय भी रहें? भला! कौन ऐसा हृदय का अन्धा है कि जो इस कुरान को ईश्वरकृत और मुहम्मद साहेब को पैगम्बर और कुरानोक्त ईश्वर को परमेश्वर मान सके। बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसे युक्तिशून्य धर्मविरुद्ध बातों से युक्त इस मत को अर्ब देशनिवासी आदि मनुष्यों ने मान लिया!।।१२९।।
१३०-नहीं योग्य वास्ते तुम्हारे यह कि दुःख दो रसूल को, यह कि निकाह करो बीबियों उस की को पीछे उस के कभी, निश्चय यह है समीप अल्लाह के बड़ा पाप।। निश्चय जो लोग कि दुःख देते हैं अल्लाह को और रसूल उस के को, लानत की है उन को अल्लाह ने।। और वे लोग कि दुःख देते हैं मुसलमानों को और मुसलमान औरतों को विना इस के, बुरा किया है उन्होंने बस निश्चय उठाया उन्होंने बोहतान अर्थात् झूठ और प्रत्यक्ष पाप।। लानत मारे, जहाँ पाये जावें पकड़े जावें कतल किये जावें खूब मारा जाना।। ऐ रब हमारे, दे उन को द्विगुणा अजाब से और लानत से बड़ी लानत कर।।
-मं० ५। सि० २२। सू० ३३। आ० ५३। ५४। ५५। ६१। ६८।।
(समीक्षक) वाह! क्या खुदा अपनी खुदाई को धर्म के साथ दिखला रहा है? जैसे रसूल को दुःख देने का निषेध करना तो ठीक है परन्तु दूसरे को दुःख देने में रसूल को भी रोकना योग्य था सों क्यों न रोका? क्या किसी के दुःख देने से अल्लाह भी दुःखी हो जाता है? यदि ऐसा है तो वह ईश्वर ही नहीं हो सकता। क्या अल्लाह और रसूल को दुःख देने का निषेध करने से यह नहीं सिद्ध होता कि अल्लाह और रसूल जिस को चाहें दुःख देवें? अन्य सब को दुःख देना चाहिये? जैसे मुसलमानों और मुसलमानों की स्त्रियों को दुःख देना बुरा है तो इन से अन्य मनुष्यों को दुःख देना भी अवश्य बुरा है।। जो ऐसा न माने तो उस की यह बात भी पक्षपात की है। वाह गदर मचाने वाले खुदा और नबी! जैसे ये निर्दयी संसार में हैं वैसे और बहुत थोड़े होंगे। जैसा यह कि अन्य लोग जहाँ पाये जावें, मारे जावें पकड़े जावें, लिखा है वैसी ही मुसलमानों पर कोई आज्ञा देवे तो मुसलमानों को यह बात बुरी लगेगी वा नहीं? वाह क्या हिंसक पैगम्बर आदि हैं कि जो परमेश्वर से प्रार्थना करके अपने से दूसरों को दुगुण दुःख देने के लिये प्रार्थना करना लिखा है। यह भी पक्षपात मतलबसिन्धुपन और महा अधर्म की बात है। इसी से अब तक भी मुसलमान लोगों में से बहुत से शठ लोग ऐसा ही कर्म करने में नहीं डरते। यह ठीक है कि सुशिक्षा के विना मनुष्य पशु के समान रहता है।।१३०।।
१३१-और अल्लाह वह पुरुष है कि भेजता है हवाओं को बस उठाती हैं बादलों को, बस हांक लेते हैं तर्फ शहर मुर्दे की, बस जीवित किया हम ने साथ उस के पृथिवी को पीछे मृत्यु उस की के, इसी प्रकार कबरों में से निकालना है।। जिस ने उतारा बीच घर सदा रहने के दया अपनी से, नहीं लगती हम को बीच उस के मेहनत और नहीं लगती बीच उस के माँदगी।।
-मं० ५। सि० २२। सू० ३५। आ० ९। ३५।।
(समीक्षक) वाह क्या फिलासफी खुदा की है। भेजता है वायु को, वह उठाता फिरता है बद्दलों को! और खुदा उस से मुर्दों को जिलाता फिरता है! यह बात ईश्वर सम्बन्धी कभी नहीं हो सकती, क्योंकि ईश्वर का काम निरन्तर एक सा होता रहता है। जो घर होंगे वे विना बनावट के नहीं हो सकते और जो बनावट का है वह सदा नहीं रह सकता। जिस के शरीर है वह परिश्रम के विना दुःखी होता और शरीर वाला रोगी हुए विना कभी नहीं बचता। जो एक स्त्री से समागम करता है वह विना रोग के नहीं बचता तो जो बहुत स्त्रियों से विषयभोग करता है उस की क्या ही दुर्दशा होती होगी? इसलिये मुसलमानों का रहना बहिश्त में भी सुखदायक सदा नहीं हो सकता।।१३१।।
१३२-कसम है कुरान दृढ़ की।। निश्चय तू भेजे हुओं से है।। ऊपर मार्ग सीधे के।। उतारा है गालिब दयावान् ने।।
-मं० ५। सि० २३। सू० ३६। आ० २। ३। ४। ५।।
(समीक्षक) अब देखिये! यह कुरान खुदा का बनाया होता तो वह इस की सौगन्द क्यों खाता? यदि नबी खुदा का भेजा होता तो (लेपालक) बेटे की स्त्री पर मोहित क्यों होता? यह कथनमात्र है कि कुरान के मानने वाले सीधे मार्ग पर हैं। क्योंकि सीधा मार्ग वही होता है जिस में सत्य मानना, सत्य बोलना, सत्य करना, पक्षपात रहित न्याय धर्म्म का आचरण करना आदि हैं और इन से विपरीत का त्याग करना। सो न कुरान में न मुसलमानों में और न इन के खुदा में ऐसा स्वभाव है। यदि सब पर प्रबल पैगम्बर मुहम्मद साहेब होते तो सब से अधिक विद्यावान् और शुभगुणयुक्त क्यों न होते? इसलिये जैसे कूंजड़ी अपने बेरों को खट्टा नहीं बतलाती वैसी यह बात भी है।।१३२।।
१३३-और फूंका जावेगा बीच सूर के बस नागहां व कबरों में से तर्फ मालिक अपने की दौडे़गें ।। और गवाही देंगे पांव उन के साथ उस वस्तु के थे कमाते।। सिवाय इसके नहीं कि आज्ञा उस की जब चाहे उत्पन्न करना किसी वस्तु को यह कि कहता वास्ते उस के कि ‘हो जा’, बस हो जाता है।।
-मं० ५। सि० २३। सू० ३६। आ० ५१। ६६। ८२।।
(समीक्षक) अब सुनिये ऊटपटांग बातें! पग कभी गवाही दे सकते हैं? खुदा के सिवाय उस समय कौन था जिस को आज्ञा दी? किस ने सुनी? और कौन बन गया? यदि न थी तो यह बात झूठी और जो थी तो वह बात-जो सिवाय खुदा के कुछ चीज नहीं थी और खुदा ने सब कुछ बना दिया-वह झूठी।।१३३।।
१३४-फिराया जावेगा उनके ऊपर पियाला शराब शुद्ध का।। सफेद मजा देने वाली वास्ते पीने वालों के।। समीप उन के बैठी होंगी नीचे आंख रखने वालियाँ, सुन्दर आंखों वालियां।। मानो कि वे अण्डे हैं छिपाये हुए।। क्या बस हम नहीं मरेंगे।। और अवश्य लूत निश्चय पैगम्बरों से था।। जब कि मुक्ति दी हम ने उस को और लोगों उस के को सब को।। परन्तु एक बुढ़िया पीछे रहने वालों में है।। फिर मारा हम ने औरों को।।
-मं० ६। सि० २३। सू० ३७। आ० ४५। ४६। ४८। ४९। ५६। १२७। १२८। १२९।।
(समीक्षक) क्यों जी! यहां तो मुसलमान लोग शराब को बुरा बतलाते हैं परन्तु इन के स्वर्ग में तो नदियां की नदियां बहती हैं। इतना अच्छा है कि यहां तो किसी प्रकार मद्य पीना छुड़ाया परन्तु यहां के बदले वहाँ उन के स्वर्ग में बड़ी खराबी है! मारे स्त्रियों के वहाँ किसी का चित्त स्थिर नहीं रहता होगा! और बड़े-बड़े रोग भी होते होंगे! यदि शरीर वाले होंगे तो अवश्य मरेंगे और जो शरीर वाले न होंगे तो भोग विलास ही न कर सकेंगे। फिर उन के स्वर्ग में जाना व्यर्थ है। यदि लूत को पैगम्बर मानते हो तो जो बाइबल में लिखा है कि उस से उस की लड़कियों ने समागम करके दो लड़के पैदा किये इस बात को भी मानते हो वा नहीं? जो मानते हो तो ऐसे को पैगम्बर मानना व्यर्थ है। और जो ऐसे और ऐसे के सिंगयों को खुदा मुक्ति देता है तो वह खुदा भी वैसा ही है। क्योंकि बुढ़िया की कहानी कहने वाला और पक्षपात से दूसरों को मारने वाला खुदा कभी नहीं हो सकता। ऐसा खुदा मुसलमानों ही के घर में रह सकता है; अन्यत्र नहीं।।१३४।।
१३५-बहिश्तें हैं सदा रहने की खुले हुए हैं दर उन के वास्ते उन के।। तकिये किये हुए बीच उन के मंगावेंगे बीच इस के मेवे और पीने की वस्तु।। और समीप होंगी उनके, नीचे रखने वालियां दृष्टि और दूसरों से समायु।। बस सिजदा किया फरिश्तों ने सब ने।। परन्तु शैतान ने न माना अभिमान किया और था काफिरों से।। ऐ शैतान किस वस्तु ने रोका तुझ को यह कि सिजदा करे वास्ते उस वस्तु के कि बनाया मैंने साथ दोनों हाथ अपने के, क्या अभिमान किया तूने वा था तू बड़े अधिकार वालों से ।। कहा कि मैं अच्छा हूँ उस वस्तु से, उत्पन्न किया तूने मुझ को आग से, उस को मट्टी से।। कहा बस निकल इन आसमानों में से, बस निश्चय तू चलाया गया है।। निश्चय ऊपर तेरे लानत है मेरी दिन जजा तक।। कहा ऐ मालिक मेरे, ढील दे उस दिन तक कि उठाये जावेंगे मुर्दे।। कहा कि बस निश्चय तू ढील दिये गयों से है ।। उस दिन समय ज्ञात तक।। कहा कि बस कसम है प्रतिष्ठा तेरी की, अवश्य गुमराह करूंगा उन को मैं इकट्ठे।।
-मं० ६। सि० २३। सू० ३८। आ० ४९। ५०। ५१। ५२। ७०। ७१। ७३। ७५। ७६। ७८। ८०। ८१।।
(समीक्षक) यदि वहाँ जैसे कि कुरान में बाग बगीचे नहरें मकानादि लिखे हैं वैसे हैं तो वे न सदा से थे न सदा रह सकते हैं। क्योंकि जो संयोग से पदार्थ होता है वह संयोग के पूर्व न था, अवश्यभावी वियोग के अन्त में न रहेगा। जब वह बहिश्त ही न रहेगा तो उस में रहने वाले सदा क्योंकर रह सकते हैं ? क्योंकि लिखा है कि गद्दी, तकिये, मेवे और पीने के पदार्थ वहाँ मिलेंगे। इससे यह सिद्ध होता है कि जिस समय मुसलमानों का मजहब चला उस समय अर्ब देश विशेष धनाढ्य न था। इसीलिये मुहम्मद साहेब ने तकिये आदि की कथा सुना कर गरीबों को अपने मत में फंसा लिया। और जहाँ स्त्रियां हैं। वहाँ निरन्तर सुख कहां? वे स्त्रियां वहाँ कहां से आई हैं? अथवा बहिश्त की रहने वाली हैं? यदि आई हैं तो जावेंगी और जो वहीं की रहने वाली हैं तो कयामत के पूर्व क्या करती थीं? क्या निकम्मी अपनी उमर को बहा रही थीं? अब देखिये खुदा का तेज कि जिस का हुक्म अन्य सब फरिश्तों ने माना और आदम साहेब को नमस्कार किया और शैतान ने न माना! खुदा ने शैतान से पूछा कहा कि मैंने उस को अपने दोनों हाथों से बनाया, तू अभिमान मत कर। इस से सिद्ध होता है कि कुरान का खुदा दो हाथ वाला मनुष्य था। इसलिए वह व्यापक वा सर्वशक्तिमान् कभी नहीं हो सकता। और शैतान ने सत्य कहा कि मैं आदम से उत्तम हूँ, इस पर खुदा ने गुस्सा क्यों किया? क्या आसमान ही में खुदा का घर है; पृथिवी में नहीं? तो काबे को खुदा का घर प्रथम क्यों लिखा? भला! परमेश्वर अपने में से वा सृष्टि में से अलग कैसे निकाल सकता है? और वह सृष्टि सब परमेश्वर की है। इस से स्पष्ट विदित हुआ कि कुरान का खुदा बहिश्त का जिम्मेदार था। खुदा ने उस को लानत धिक्कार दिया और कैद कर लिया और शैतान ने कहा कि हे मालिक! मुझ को कयामत तक छोड़ दे। खुदा ने खुशामद से कयामत के दिन तक छोड़ दिया। जब शैतान छूटा तो खुदा से कहता है कि अब मैं खूब बहकाऊंगा और गदर मचाऊंगा। तब खुदा ने कहा कि जितनों को तू बहकावेगा मैं उन को दोजख में डाल दूंगा और तुझ को भी। अब सज्जन लोगो विचारिये! कि शैतान को बहकाने वाला खुदा है वा आप से वह बहका? यदि खुदा ने बहकाया तो वह शैतान का शैतान ठहरा। यदि शैतान स्वयं बहका तो अन्य जीव भी स्वयं बहकेंगे; शैतान की जरूरत नहीं। और जिस से इस शैतान बागी को खुदा ने खुला छोड़ दिया, इस से विदित हुआ कि वह भी शैतान का शरीक अधर्म कराने में हुआ। यदि स्वयं चोरी करा के दण्ड देवे तो उस के अन्याय का कुछ भी पारावार नहीं।।१३५।।
१३६-अल्लाह क्षमा करता है पाप सारे, निश्चय वह है क्षमा करने वाला दयालु।। और पृथिवी सारी मूठी में है उस की दिन कयामत के और आसमान लपेटे हुए हैं बीच दाहिने हाथ उसके के।। और चमक जावेगी पृथिवी साथ प्रकाश मालिक अपने के और रक्खे जावेंगे कर्मपत्र और लाया जावेगा पैगम्बरों को और गवाहों को और फैसला किया जावेगा।। -मं० ६। सि० २४। सू० ३९। आ० ५३। ६७। ६९।।
(समीक्षक) यदि समग्र पापों को खुदा क्षमा करता है तो जानो सब संसार
को पापी बनाता है और दयाहीन है क्योंकि एक दुष्ट पर दया और क्षमा करने से वह अधिक दुष्टता करेगा और अन्य बहुत धर्मात्माओं को दुःख पहुँचावेगा। यदि किञ्चित् भी अपराध क्षमा किया जावे तो अपराध ही अपराध जगत् में छा जावे। क्या परमेश्वर अग्निवत् प्रकाश वाला है? और कर्मपत्र कहां जमा रहते हैं? और कौन लिखता है? यदि पैगम्बरों और गवाहों के भरोसे खुदा न्याय करता है तो वह असर्वज्ञ और असमर्थ है । यदि वह अन्याय नहीं करता न्याय ही करता है तो कर्मों के अनुसार करता होगा। वे कर्म पूर्वापर वर्त्तमान जन्मों के हो सकते हैं तो फिर क्षमा करना, दिलों पर ताला लगाना और शिक्षा न करना, शैतान से बहकवाना, दौरा सुपुर्द रखना केवल अन्याय है।।१३६।।
१३७-उतारना किताब का अल्लाह गालिब जानने वाले की ओर से है।। क्षमा करने वाला पापों का और स्वीकार करने वाला तोबाः का।।
-मं० ६। सि० २४। सू० ४०। आ० १। २। ३।।
(समीक्षक) यह बात इसलिये है कि भोले लोग अल्लाह के नाम से इस पुस्तक को मान लेवें कि जिस में थोड़ा सा सत्य छोड़ असत्य भरा है और वह सत्य भी असत्य के साथ मिलकर बिगड़ा सा है। इसीलिये कुरान और कुरान का खुदा और इस को मानने वाले पाप बढ़ाने हारे और पाप करने कराने वाले हैं। क्योंकि पाप का क्षमा करना अत्यन्त अधर्म है। किन्तु इसी से मुसलमान लोग पाप और उपद्रव करने में कम डरते हैं।।१३७।।
१३८-बस नियत किया उस को सात आसमान बीच दो दिन के, और डाल दिया बीच हम ने उस के काम उस का।। यहां तक कि जब जावेंगे उस के पास साक्षी देंगे ऊपर उन के कान उन के और आंखें उन की और चमड़े उन के कर्म से।। और कहेंगे वास्ते चमड़े अपने के क्यों साक्षी दी तू ने ऊपर हमारे, कहेंगे कि बुलाया है हम को अल्लाह ने जिस ने बुलाया हर वस्तु को।। अवश्य जिलाने वाला है मुर्दों को।। -मं० ६। सि० २४। सू० ४१। आ० १२। २०। २१। ३९।।
(समीक्षक) वाह जी वाह मुसलमानो ! तुम्हारा खुदा जिस को तुम सर्वशक्तिमान् मानते हो वह सात आसमानों को दो दिन में बना सका? और जो सर्वशक्तिमान् है वह क्षणमात्र में सब को बना सकता है। भला कान, आंख और चमड़े को ईश्वर ने जड़ बनाया है वे साक्षी कैसे दे सकेंगे? यदि साक्षी दिलावे तो उस ने प्रथम जड़ क्यों बनाये? और अपना पूर्वापर काम नियमविरुद्ध क्यों किया? एक इस से भी बढ़ कर मिथ्या बात यह कि जब जीवों पर साक्षी दी तब वे जीव अपने-अपने चमड़े से पूछने लगे कि तूने हमारे पर साक्षी क्यों दी? चमड़ा बोलेगा खुदा ने दिलायी मैं क्या करूं! भला यह बात कभी हो सकती है? जैसे कोई कहे कि बन्ध्या के पुत्र का मुख मैंने देखा, यदि पुत्र है तो बन्ध्या क्यों? जो बन्ध्या है तो उस के पुत्र ही होना असम्भव है। इसी प्रकार की यह भी मिथ्या बात है। यदि वह मुर्दों को जिलाता है तो प्रथम मारा ही क्यों? क्या आप भी मुर्दा हो सकता है वा नहीं? यदि नहीं हो सकता तो मुर्देपन को बुरा क्यों समझता है? और कयामत की रात तक मृतक जीव किस मुसलमान के घर में रहेंगे? और दौरासुपुर्द खुदा ने विना अपराध क्यों रक्खा? शीघ्र न्याय क्यों न किया? ऐसी-ऐसी बातों से ईश्वरता में बट्टा लगता है।।१३८।।
१३९-वास्ते उस के कुंजियां हैं आसमानों की और पृथिवी की, खोलता
है भोजन जिस के वास्ते चाहता है और तंग करता है।। उत्पन्न करता है जो कुछ चाहता है और देता है जिस को चाहे बेटियां और देता है जिस को चाहे बेटे।। वा मिला देता है उन को बेटे और बेटियाँ और कर देता है जिस को चाहे बाँझ।। और नहीं है शक्ति किसी आदमी को कि बात करे उस से अल्लाह परन्तु जी में डालने कर वा पीछे परदे१ के से वा भेजे फरिश्ते पैगाम लाने वाला।।
-मं० ६। सि० २५। सू० ४२। आ० १०। १२।४७। ४८। ४९।।
(समीक्षक) खुदा के पास कुञ्जियों का भण्डार भरा होगा। क्योंकि सब ठिकाने के ताले खोलने होते होंगे! यह लड़कपन की बात है। क्या जिस को चाहता है उस को विना पुण्य कर्म के ऐश्वर्य देता है? और विना पाप के तंग करता है? यदि ऐसा है तो वह बड़ा अन्यायकारी है। अब देखिये कुरान बनाने वाले की चतुराई! कि जिस से स्त्रीजन भी मोहित हो के फसें। यदि जो कुछ चाहता है उत्पन्न करता है तो दूसरे खुदा को भी उत्पन्न कर सकता है वा नहीं? यदि नहीं कर सकता तो सर्वशक्तिमत्ता यहां पर अटक गई। भला मनुष्यों को तो जिस को चाहे बेटे बेटियां खुदा देता है परन्तु मुरगे, मच्छी, सूअर आदि जिन के बहुत बेटा बेटियां होती हैं कौन देता है? और स्त्री पुरुष के समागम विना क्यों नहीं देता? किसी को अपनी इच्छा से बांझ रख के दुःख क्यों देता है? वाह! क्या खुदा तेजस्वी है कि उस के सामने कोई बात ही नहीं कर सकता! परन्तु उसने पहले कहा है कि पर्दा डाल के बात कर सकता है वा फरिश्ते लोग खुदा से बात करते हैं अथवा पैगम्बर। जो ऐसी बात है तो फरिश्ते और पैगम्बर खूब अपना मतलब करते होंगे! यदि कोई कहे खुदा सर्वज्ञ सर्वव्यापक है तो परदे से बात करना अथवा डाक के तुल्य खबर मंगा के जानना लिखना व्यर्थ है। और जो ऐसा ही है तो वह खुदा ही नहीं किन्तु कोई चालाक मनुष्य होगा। इसलिये यह कुरान ईश्वरकृत कभी नहीं हो सकता।।१३९।।
१४०-और जब आया ईसा साथ प्रमाण प्रत्यक्ष के।। -मं० ६। सि० २५। सू० ४३। आ० ६३।।
(समीक्षक) यदि ईसा भी भेजा हुआ खुदा का है तो उस के उपदेश से विरुद्ध कुरान खुदा ने क्यों बनाया? और कुरान से विरुद्ध इञ्जील क्यों की? इसीलिये ये किताबें ईश्वरकृत नहीं हैं।।१४०।।
१४१-पकड़ो उस को बस घसीटो उस को बीचों बीच दोजख के।। इसी प्रकार रहेंगे और व्याह देंगे उन को साथ गोरियों अच्छी आंखों वालियों के।।
-मं० ६। सि० २५। सू० ४४। आ० ४७। ५४।।
(समीक्षक) वाह! क्या खुदा न्यायकारी होकर प्राणियों को पकड़ाता और घसीटवाता है? जब मुसलमानों का खुदा ही ऐसा है तो उस के उपासक मुसलमान अनाथ निर्बलों को पकड़ें घसीटें तो इस में क्या आश्चर्य है? और वह संसारी मनुष्यों
१– इस आयत के भाष्य ‘तफसीरहुसैनी’ में लिखा है कि मुहम्मद साहेब दो परदों में थे और खुदा की आवाज सुनी। एक पर्दा जरी का था दूसरा श्वेत मोतियों का और दोनों परदों के बीच में सत्तर वर्ष चलने योग्य मार्ग था ? बुद्धिमान् लोग इस बात को विचारें कि यह खुदा है वा परदे की ओट बात करने वाली स्त्री ? इन लोगों ने तो ईश्वर ही की दुर्दशा कर डाली। कहां वेद तथा उपनिषदादि सद्ग्रन्थों में प्रतिपदित शुद्ध परमात्मा और कहां कुरानोक्त परदे की ओट से बात करने वाला खुदा! सच तो यह है कि अरब के अविद्वान् लोग थे, उत्तम बात लाते किस के घर से।
के समान विवाह भी कराता है, जानो कि मुसलमानों का पुरोहित ही है।।१४१।।
१४२-बस जब तुम मिलो उन लोगों से कि काफिर हुए बस मारो गर्दनें उन की यहां तक कि जब चूर कर दो उन को बस दृढ़ करो कैद करना।। और बहुत बस्तियां हैं कि वे बहुत कठिन थीं शक्ति में बस्ती तेरी से, जिस ने निकाल दिया तुझ को मारा हम ने उन को, बस न कोई हुआ सहाय देने वाला उन का।। तारीफ उस बहिश्त की कि प्रतिज्ञा किये गये हैं परहेजगार, बीच उस के नहरें हैं बिन बिगड़े पानी की, और नहरें हैं दूध की कि नहीं बदला मजा उन का, और नहरें हैं शराब की मजा देने वाली वास्ते पीने वालों के और नहरें हैं शहद साफ किये गये की और वास्ते उन के बीच उस के मेवे हैं प्रत्येक प्रकार से दान मालिक उन के से।। -मं० ६। सि० २६। सू० ४७। आ० ४। १३। १५।।
(समीक्षक) इसी से यह कुरान खुदा और मुसलमान गदर मचाने, सब को दुःख देने और अपना मतलब साधने वाले दयाहीन हैं। जैसा यहां लिखा है वैसा ही दूसरा कोई दूसरे मत वाला मुसलमानों पर करे तो मुसलमानों को वैसा ही दुःख जैसा कि अन्य को देते हैं हो वा नहीं? और खुदा बड़ा पक्षपाती है कि जिन्होंने मुहम्मद साहेब को निकाल दिया उनको खुदा ने मारा। भला! जिसमें शुद्ध पानी, दूध, मद्य और शहद की नहरें हैं वह संसार से अधिक हो सकता है? और दूध की नहरें कभी हो सकती हैं? क्योंकि वह थोड़े समय में बिगड़ जाता है! इसीलिये बुद्धिमान् लोग कुरान के मत को नहीं मानते।।१४२।।
१४३-जब कि हिलाई जावेगी पृथिवी हिलाये जाने कर।। और उड़ाये जावेंगे पहाड़ उड़ाये जाने कर।। बस हो जावेंगे भुनगे टुकड़े-टुकड़े।। बस साहब दाहनी ओर वाले क्या हैं साहब दाहनी ओर के।। और बाईं ओर वाले क्या हैं बाईं ओर के।। ऊपर पलंग सोने के तारों से बुने हुए हैं।। तकिये किये हुए हैं ऊपर उनके आमने-सामने।। और फिरेंगे ऊपर उनके लड़के सदा रहने वाले।। साथ आबखोरों के और आफताबों के और प्यालों के शराब साफ से ।। नहीं माथा दुखाये जावेंगे उस से और न विरुद्ध बोलेंगे।। और मेवे उस किस्म से कि पसन्द करें।। और गोश्त जानवर पक्षियों के उस किस्म से कि पसन्द करें।। और वास्ते उन के औरतें हैं अच्छी आंखों वाली।। मानिन्द मोतियों छिपाये हुओं की।। और बिछौने बड़े।। निश्चय हम ने उत्पन्न किया है औरतों को एक प्रकार का उत्पन्न करना है।। बस किया है हम ने उन को कुमारी।। सुहागवालियां बराबर अवस्था वालियां।। बस भरने वाले हो उस से पेटों को।। बस कसम खाता हूँ मैं साथ गिरने तारों के।।
-मं० ७। सि० २७। सू० ५६। आ० ४। ५। ६। ८। ९। १५। १६। १७। १८। १९।
२०। २१। २२। २३। ३३। ३४। ३५। ३६। ३७। ३८। ५३।।
(समीक्षक) अब देखिये कुरान बनाने वाले की लीला को! भला पृथिवी तो हिलती ही रहती है उस समय भी हिलती रहेगी। इस से यह सिद्ध होता है कि कुरान बनाने वाला पृथिवी को स्थिर जानता था! भला पहाड़ों को क्या पक्षीवत् उड़ा देगा? यदि भुनगे हो जावेंगे तो भी सूक्ष्म शरीरधारी रहेंगे तो फिर उन का दूसरा जन्म क्यों नहीं? वाह जी ! जो खुदा शरीरधारी न होता तो उस के दाहिनी ओर और बाईं ओर कैसे खड़े हो सकते? जब वहाँ पलंग सोने के तारों से बुने हुए हैं तो बढ़ई सुनार भी वहाँ रहते होंगे और खटमल काटते होंगे जो उन को रात्रि में सोने भी नहीं देते होंगे। क्या वे तकिये लगाकर निकम्मे बहिश्त में बैठे ही रहते हैं वा कुछ काम किया करते हैं? यदि बैठे ही रहते होंगे तो उन को अन्न पचन न होने से वे रोगी होकर शीघ्र मर भी जाते होंगे? और जो काम किया करते होंगे तो जैसे मेहनत मजदूरी यहां करते हैं वैसे ही वहाँ परिश्रम करके निर्वाह करते होंगे फिर यहां से वहाँ बहिश्त में विशेष क्या है? कुछ भी नहीं। यदि वहाँ लड़के सदा रहते हैं तो उन के माँ बाप भी रहते होंगे और सासू श्वसुर भी रहते होंगे तब तो बड़ा भारी शहर बसता होगा फिर मल मूत्रदि के बढ़ने से रोग भी बहुत से होते होंगे क्योंकि जब मेवे खावेंगे, गिलासों में पानी पीवेंगे और प्यालों से मद्य पीवेंगे न उन का सिर दूखेगा और न कोई विरुद्ध बोलेगा यथेष्ट मेवा खावेंगे और जानवरों तथा पक्षियों के मांस भी खावेंगे तो अनेक प्रकार के दुःख, पक्षी, जानवर वहाँ होंगे, हत्या होगी और हाड़ जहाँ तहां बिखरे रहेंगे और कसाइयों की दुकानें भी होंगी। वाह क्या कहना इनके बहिश्त की प्रशंसा कि वह अरब देश से भी बढ़ कर दीखती है!!! और जो मद्य मांस पी खा के उन्मत्त होते हैं इसी लिये अच्छी-अच्छी स्त्रियां और लौंडे भी वहाँ अवश्य रहने चाहिये नहीं तो ऐसे नशेबाजों के शिर में गरमी चढ़ के प्रमत्त हो जावें। अवश्य बहुत स्त्री पुरुषों के बैठने सोने के लिये बिछौने बड़े-बड़े चाहिये। जब खुदा कुमारियों को बहिश्त में उत्पन्न करता है तभी तो कुमारे लड़कों को भी उत्पन्न करता है। भला! कुमारियों का तो विवाह जो यहां से उम्मीदवार हो कर गये हैं उन के साथ खुदा ने लिखा पर उन सदा रहने वाले लड़कों का भी किन्हीं कुमारियों के साथ विवाह न लिखा तो क्या वे भी उन्हीं उम्मीदवारों के साथ कुमारीवत् दे दिये जावेंगे? इस की व्यवस्था कुछ भी न लिखी। यह खुदा में बड़ी भूल क्यों हुई? यदि बराबर अवस्था वाली सुहागिन स्त्रियाँ पतियों को पा के बहिश्त में रहती हैं तो ठीक नहीं हुआ क्योंकि स्त्रियों से पुरुष का आयु दूना ढाई गुना चाहिये, यह तो मुसलमानों के बहिश्त की कथा है। और नरक वाले सिहोड़ अर्थात् थोर के वृक्षों को खा के पेट भरेंगे तो कण्टक वृक्ष भी दोजख में होंगे तो कांटे भी लगते होंगे और गर्म पानी पीयेंगे इत्यादि दुःख दोजख में पावेंगे।। कसम का खाना प्रायः झूठों का काम है; सच्चों का नहीं। यदि खुदा ही कसम खाता है तो वह भी झूठ से अलग नहीं हो सकता।।१४३।।
१४४-निश्चय अल्लाह मित्र रखता है उन लोगों को कि लड़ते हैं बीच मार्ग उसके के।। -मं० ७। सि० २८। सू० ६१। आ० ४।।
(समीक्षक) वाह ठीक है! ऐसी-ऐसी बातों का उपदेश करके विचारे अर्ब देशवासियों को सब से लड़ा के शत्रु बनाकर परस्पर दुःख दिलाया और मजहब का झण्डा खड़ा करके लड़ाई फैलावे ऐसे को कोई बुद्धिमान् ईश्वर कभी नहीं मान सकते।। जो मनुष्य जाति में विरोध बढ़ावे वही सब को दुःखदाता होता है।।१४४।।
१४५-ऐ नबी क्यों हराम करता है उस वस्तु को कि हलाल किया है खुदा ने तेरे लिये, चाहता है तू प्रसन्नता बीबियों अपनी की, और अल्लाह क्षमा करने वाला दयालु है।। जल्दी है मालिक उस का जो वह तुम को छोड़ दे तो यह है कि उस को तुम से अच्छी मुसलमान और ईमान वालियां बीबियां बदल दे सेवा करने वालियां तोबाः करने वालियां भक्ति करने वालियां रोजा रखने वालियां पुरुष देखी हुईं और बिन देखी हुईं।। -मं० ७। सि० २८। सू० ६६। आ० १। ५।।
(समीक्षक) ध्यान देकर देखना चाहिये कि खुदा क्या हुआ मुहम्मद साहेब के घर का भीतरी और बाहरी प्रबन्ध करने वाला भृत्य ठहरा !! प्रथम आयत पर दो कहानियां हैं एक तो यह कि मुहम्मद साहेब को शहद का शर्बत प्रिय था। उन की कई बीबियां थीं उन में से एक के घर पीने में देर लगी तो दूसरियों को असह्य प्रतीत हुआ उन के कहने सुनने के पीछे मुहम्मद साहेब सौगन्ध खा गये कि हम न पीवेंगे। दूसरी यह कि उनकी कई बीबियों में से एक की बारी थी। उसके यहां रात्री को गये तो वह न थी; अपने बाप के यहां गई थी। मुहम्मद साहेब ने एक लौंडी अर्थात् दासी को बुला कर पवित्र किया। जब बीबी को इस की खबर मिली तो अप्रसन्न हो गई। तब मुहम्मद साहेब ने सौगन्ध खाई कि मैं ऐसा न करूँगा। और बीबी से भी कह दिया तुम किसी से यह बात मत कहना। बीबी ने स्वीकार किया कि न कहूँगी। फिर उन्होंने दूसरी बीबी से जा कहा। इस पर यह आयत खुदा ने उतारी ‘जिस वस्तु को हम ने तेरे पर हलाल किया उस को तू हराम क्यों करता है? ’ बुद्धिमान् लोग विचारें कि भला कहीं खुदा भी किसी के घर का निमटेरा करता फिरता है? और मुहम्मद साहेब के तो आचरण इन बातों से प्रकट ही हैं क्योंकि जो अनेक स्त्रियों को रक्खे वह ईश्वर का भक्त वा पैगम्बर कैसे हो सके? और जो एक स्त्री का पक्षपात से अपमान करे और दूसरी का मान्य करे वह पक्षपाती होकर अधर्मी क्यों नहीं और जो बहुत सी स्त्रियों से भी सन्तुष्ट न होकर बाँदियों के साथ फंसे उस की लज्जा, भय और धर्म कहां से रहे? किसी ने कहा है कि-
‘कामातुराणां न भयं न लज्जा’।।
जो कामी मनुष्य हैं उन को अधर्म से भय वा लज्जा नहीं होती। और इन का खुदा भी मुहम्मद साहेब की स्त्रियों और पैगम्बर के झगड़े का फैसला करने में जानो सरपंच बना है। अब बुद्धिमान् लोग विचार लें कि यह कुरान विद्वान् वा ईश्वरकृत है वा किसी अविद्वान् मतलबसिन्धु का बनाया? स्पष्ट विदित हो जाएगा और दूसरी आयत से प्रतीत होता है कि मुहम्मद साहेब से उन की कोई बीबी अप्रसन्न हो गई होगी, उस पर खुदा ने यह आयत उतार कर उस को धमकाया होगा कि यदि तू गड़बड़ करेगी और मुहम्मद साहेब तुझे छोड़ देंगे तो उन को उन का खुदा तुझ से अच्छी बीबियां देगा कि जो पुरुष से न मिली हों। जिस मनुष्य को तनिक सी बुद्धि है वह विचार ले सकता है कि ये खुदा वुदा के काम हैं वा अपना प्रयोजन सिद्धि के! ऐसी-ऐसी बातों से ठीक सिद्ध है कि खुदा कोई नहीं कहता था केवल देशकाल देखकर अपने प्रयोजन सिद्ध होने के लिए खुदा की तर्फ से मुहम्मद साहेब कह देते थे। जो लोग खुदा ही की तर्फ लगाते हैं उन को हम सब क्या, सब बुद्धिमान् यही कहेंगे कि खुदा क्या ठहरा मानो मुहम्मद साहेब के लिये बीबियां लाने वाला नाई ठहरा!!! ।।१४५।।
१४६-ऐ नबी झगड़ा कर काफिरों और गुप्त शत्रुओं से और सख्ती कर ऊपर उन के।। -मं० ७। सि० २८। सू० ६६। आ० ९।।
(समीक्षक) देखिये मुसलमानों के खुदा की लीला! अन्य मत वालों से लड़ने के लिये पैगम्बर और मुसलमानों को उचकाता है इसीलिये मुसलमान लोग उपद्रव करने में प्रवृत्त रहते हैं। परमात्मा मुसलमानों पर कृपादृष्टि करे जिस से ये लोग उपद्रव करना छोड़ के सब से मित्रता से वर्त्तें।।१४६।।१४७-फट जावेगा आसमान, बस वह उस दिन सुस्त होगा।। और फरिश्ते होंगे ऊपर किनारों उस के के; और उठावेंगे तख्त मालिक तेरे का ऊपर अपने उस दिन आठ जन।। उस दिन सामने लाये जाओगे तुम, न छिपी रहेगी कोई बात छिपी हुई ।। बस जो कोई दिया गया कर्मपत्र अपना बीच दाहिने हाथ अपने के, बस कहेगा लो पढ़ो कर्मपत्र मेरा।। और जो कोई दिया गया कर्मपत्र बीच बांये हाथ अपने के, बस कहेगा हाथ न दिया गया होता मैं कर्मपत्र अपना।।
-मं० ७। सि० २९। सू० ६९। आ० १६। १७। १८। १९। २५।।
(समीक्षक) वाह क्या फिलासफी और न्याय की बात है! भला आकाश भी कभी फट सकता है? क्या वह वस्त्र के समान है जो फट जावे? यदि ऊपर के लोक को आसमान कहते हैं तो यह बात विद्या से विरुद्ध है। अब कुरान का खुदा शरीरधारी होने में कुछ संदिग्ध न रहा । क्योंकि तख्त पर बैठना, आठ कहारों से उठवाना विना मूर्तिमान् के कुछ भी नहीं हो सकता? और सामने वा पीछे भी आना-जाना मूर्तिमान् ही का हो सकता है। जब वह मूर्तिमान् है तो एकदेशी होने से सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान् नहीं हो सकता और सब जीवों के सब कर्मों को कभी नहीं जान सकता। यह बडे़ आश्चर्य की बात है कि पुण्यात्माओं के दाहिने हाथ में पत्र देना, बचवाना, बहिश्त में भेजना और पापात्माओं के बायें हाथ में कर्मपत्र का देना, नरक में भेजना, कर्मपत्र बांच के न्याय करना! भला यह व्यवहार सर्वज्ञ का हो सकता है? कदापि नहीं। यह सब लीला लड़केपन की है।।१४७।।
१४८-चढ़ते हैं फरिश्ते और रूह तर्फ उस की वह अजाब होगा बीच उस दिन के कि है परिमाण उस का पचास हजार वर्ष।। जब कि निकलेंगे कबरों में से दौड़ते हुए मानो कि वह बुतों के स्थानों की ओर दौड़ते हैं।
-मं० ७। सि० २९। सू० ७०। आ० ४। ४३।।
(समीक्षक) यदि पचास हजार वर्ष दिन का परिमाण है तो पचास हजार वर्ष की रात्रि क्यों नहीं? यदि उतनी बड़ी रात्रि नहीं है तो उतना बड़ा दिन कभी नहीं हो सकता। क्या पचास हजार वर्षों तक खुदा फरिश्ते और कर्मपत्र वाले खड़े वा बैठे अथवा जागते ही रहेंगे? यदि ऐसा है तो सब रोगी हो कर पुनः मर ही जायेंगे। क्या कबरों से निकल कर खुदा की कचहरी की ओर दौड़ेंगे? उन के पास सम्मन कबरों में क्योंकर पहुँचेंगे? और उन बिचारों को जो कि पुण्यात्मा वा पापात्मा हैं। इतने समय तक सभी को कबरों में दौरेसुपुर्द कैद क्यों रक्खा? और आजकल खुदा की कचहरी बन्ध होगी और खुदा तथा फरिश्ते निकम्मे बैठे होंगे? अथवा क्या काम करते होंगे। अपने-अपने स्थानों में बैठे इधर-उधर घूमते, सोते, नाच तमाशा देखते व ऐश आराम करते होंगे । ऐसा अन्धेर किसी के राज्य में न होगा। ऐसी-ऐसी बातों को सिवाय जंगलियों के दूसरा कौन मानेगा? ।।१४८।।
१४९-निश्चय उत्पन्न किया तुम को कई प्रकार से।। क्या नहीं देखा तुम ने कैसे उत्पन्न किया अल्लाह ने सात आसमानों को ऊपर तले।। और किया चांद को बीच उन के प्रकाशक और किया सूर्य को दीपक।।
-मं० ७। सि० २९। सू० ७१। आ० १४। १५। १६।।
(समीक्षक) यदि जीवों को खुदा ने उत्पन्न किया है तो वे नित्य अमर कभी नहीं रह सकते? फिर बहिश्त में सदा क्योंकर रह सकेंगे? जो उत्पन्न होता है वह वस्तु अवश्य नष्ट हो जाता है। आसमान को ऊपर तले कैसे बना सकता है? क्योंकि वह निराकार और विभु पदार्थ है। यदि दूसरी चीज का नाम आकाश रखते हो तो भी उस का आकाश नाम रखना व्यर्थ है। यदि ऊपर तले आसमानों को बनाया है तो उन सब के बीच में चांद सूर्य्य कभी नहीं रह सकते। जो बीच
में रक्खा जाय तो एक ऊपर और एक नीचे का पदार्थ प्रकाशित हो दूसरे से लेकर सब में अन्धकार रहना चाहिये। ऐसा नहीं दीखता, इस लिये यह बात सर्वथा मिथ्या है।।१४९।।
१५०-यह कि मसजिदें वास्ते अल्लाह के हैं, बस मत पुकारो साथ अल्लाह के किसी को।। -मं० ७। सि० २९। सू० ७२। आ० १८।।
(समीक्षक) यदि यह बात सत्य है तो मुसलमान लोग ‘लाइलाह इल्लिलाः मुहम्मदर्रसूलल्लाः’ इस कलमे में खुदा के साथ मुहम्मद साहेब को क्यों पुकारते हैं? यह बात कुरान से विरुद्ध है और जो विरुद्ध नहीं करते तो इस कुरान की बात को झूठ करते हैं। जब मसजिदें खुदा के घर हैं तो मुसलमान महाबुत्परस्त हुए। क्योंकि जैसे पुराणी, जैनी छोटी सी मूर्त्ति को ईश्वर का घर मानने से बुत्परस्त ठहरते हैं; ये लोग क्यों नहीं? ।।१५०।।
१५१-इकट्ठा किया जावेगा सूर्य और चांद।।
-मं० ७। सि० २९। सू० ७५। आ० ९।।
(समीक्षक) भला सूर्य्य चांद कभी इकट्ठे हो सकते हैं ? देखिये! यह कितनी बेसमझ की बात है । और सूर्य्य चन्द्र ही के इकट्ठे करने में क्या प्रयोजन था? अन्य सब लोकों को इकट्ठे न करने में क्या युक्ति है? ऐसी-ऐसी असम्भव बातें परमेश्वरकृत कभी हो सकती हैं? बिना अविद्वानों के अन्य किसी की भी नहीं होतीं।।१४९।।
१५२-और फिरेंगे ऊपर उनके लड़के सदा रहने वाले, जब देखेगा तू उन को, अनुमान करेगा तू उन को मोती बिखरे हुए।। और पहनाये जावेंगे कंगन चाँदी के और पिलावेगा उन को रब उन का शराब पवित्र।।
-मं० ७। सि० २९। सू० ७६। आ० १९। २१।।
(समीक्षक) क्यों जी मोती के वर्ण से लड़के किस लिये वहाँ रक्खे जाते हैं? क्या जवान लोग सेवा वा स्त्री जन उनको तृप्त नहीं कर सकतीं? क्या आश्चर्य है कि जो यह महा बुरा कर्म लड़कों के साथ दुष्ट जन करते हैं उस का मूल यही कुरान का वचन हो ! और बहिश्त में स्वामी सेवकभाव होने से स्वामी को आनन्द और सेवक को परिश्रम होने से दुःख तथा पक्षपात क्यों है? और जब खुदा ही उनको मद्य पिलावेगा तो वह भी उन का सेवकवत् ठहरेगा, फिर खुदा की बड़ाई क्योंकर रह सकेगी? और वहाँ बहिश्त में स्त्री पुरुष का समागम और गर्भस्थिति और लड़केबाले भी होते हैं वा नहीं? यदि नहीं होते तो उन का विषयसेवन करना व्यर्थ हुआ और जो होते हैं तो वे जीव कहां से आये? और विना खुदा की सेवा के बहिश्त में क्यों जन्मे? यदि जन्मे तो उन को बिना ईमान लाने और खुदा की भक्ति करने से बहिश्त मुफ्त मिल गया। किन्हीं बिचारों को ईमान लाने और किन्हीं को विना धर्म के सुख मिल जाय इस से दूसरा बड़ा अन्याय कौन सा होगा? ।।१५२।।
१५३-बदला दिये जावेंगे कर्मानुसार।। और प्याले हैं भरे हुए ।। जिस दिन खड़े होंगे रूह और फरिश्ते सफ बांध कर।।
-मं० ७। सि० ३०। सू० ७८। आ० २६। ३४। ३८।।
(समीक्षक) यदि कर्मानुसार फल दिया जाता तो सदा बहिश्त में रहने वाले हूरें फरिश्ते और मोती के सदृश लड़कों को कौन कर्म के अनुसार सदा के लिये बहिश्त मिला? जब प्याले भर-भर शराब पीयेंगे तो मस्त हो कर क्यों न लड़ेंगे? रूह नाम यहां एक फरिश्ते का है जो सब फरिश्तों से बड़ा है! क्या खुदा रूह तथा अन्य फरिश्तों को पंक्तिबद्ध खड़े कर के पलटन बांधेगा? क्या पलटन से सब जीवों को सजा दिलावेगा? और खुदा उस समय खड़ा होगा वा बैठा? यदि कयामत तक खुदा अपनी सब पलटन एकत्र करके शैतान को पकड़ ले तो उस का राज्य निष्कण्टक हो जाय। इस का नाम खुदाई है।।१५३।।
१५४-जब कि सूर्य लपेटा जावे।। और जब कि तारे गदले हो जावें।। और जब कि पहाड़ चलाये जावें।। और जब आसमान की खाल उतारी जावे।।
-मं० ७। सि० ३०। सू० ८१। आ० १। २। ३। ११।।
(समीक्षक) यह बड़ी बेसमझ की बात है कि गोल सूर्यलोक लपेटा जावेगा? और तारे गदले क्योंकर हो सकेंगे? और पहाड़ जड़ होने से कैसे चलेंगे? और आकाश को क्या पशु समझा कि उस की खाल निकाली जावेगी? यह बड़ी बेसमझ और जंगलीपन की बात है।।१५४।।
१५५-और जब कि आसमान फट जावे।। और जब तारे झड़ जावें।। और जब दर्या चीरे जावें।। और जब कबरें जिला कर उठाई जावें।।
-मं० ७। सि० ३०। सू० ८२। आ० १। २। ३। ४।।
(समीक्षक) वाह जी कुरान के बनाने वाले फिलासफर! आकाश को क्योंकर फाड़ सकेगा? और तारों को कैसे झाड़ सकेगा? और दर्या क्या लकड़ी है जो चीर डालेगा? और कबरें क्या मुरदे हैं जो जिला सकेगा? ये सब बातें लड़कों के सदृश हैं।।१५५।।
१५६-कसम है आसमान बुर्जों वाले की।। किन्तु वह कुरान है बड़ा।। बीच लौह महफूज के (अर्थात् सुरक्षित तख्ती पर लिखा हुआ) ।।
-मं० ७। सि० ३०। सू० ८५। आ० १। २१। २२।।
(समीक्षक) इस कुरान के बनाने वाले ने भूगोल खगोल कुछ भी नहीं पढ़ा था। नहीं तो आकाश को किले के समान बुर्जों वाला क्यों कहता? यदि मेषादि राशियों को बुर्ज कहता है तो अन्य बुर्ज क्यों नहीं? इसलिये ये बुर्ज नहीं हैं किन्तु सब तारे लोक हैं। क्या वह कुरान खुदा के पास है? यदि यह कुरान उस का किया है तो वह भी विद्या और युक्ति से विरुद्ध अविद्या से अधिक भरा होगा।।१५६।।
१५७-निश्चय वे मकर करते हैं एक मकर।। और मैं भी मकर करता हूँ एक मकर।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ८६। आ० १६।१७।।
(समीक्षक) मकर कहते हैं ठगपन को, क्या खुदा भी ठग है? और क्या चोरी का जवाब चोरी और झूठ का जवाब झूठ है? क्या कोई चोर भले आदमी के घर में चोरी करे तो क्या भले आदमी को चाहिए कि उस के घर में जा के चोरी करे! वाह! वाह जी!! कुरान के बनाने वाले।।१५७।।
१५८-और जब आवेगा मालिक तेरा और फरिश्ते पंक्ति बांध के ।। और लाया जावेगा उस दिन दोजख को।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ८९। आ० २१। २२।।
(समीक्षक) कहो जी! जैसे कोटवाल वा सेनाध्यक्ष अपनी सेना को लेकर पंक्ति बांध फिरा करे वैसा ही इन का खुदा है? क्या दोजख को घड़ा सा समझा है कि जिस को उठा के जहाँ चाहे वहाँ ले जावे! यदि इतना छोटा सा है तो असंख्य कैदी उस में कैसे समा सकेंगे? ।।१५८।।
१५९-बस कहा था वास्ते उन के पैगम्बर खुदा के ने, रक्षा करो ऊंटनी खुदा की को, और पानी पिलाना उस के को।। बस झुठलाया उस को, बस पांव काटे उस के, बस मरी डाली ऊपर उन के, रब उन के ने।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ९१। आ० १३। १४।।
(समीक्षक) क्या खुदा भी ऊंटनी पर चढ़ के सैल किया करता है? नहीं तो किस लिये रक्खी? और विना कयामत के अपना नियम तोड़ उन पर मरी रोग क्यों डाला? यदि डाला तो उन को दण्ड किया, फिर कयामत की रात में न्याय और उस रात का होना झूठ समझा जायगा? फिर इस ऊंटनी के लेख से यह अनुमान होता है कि अरब देश में ऊंट, ऊंटनी के सिवाय दूसरी सवारी कम होती है। इस से सिद्ध होता है कि किसी अरब देशी ने कुरान बनाया है।।१५९।।
१६०-यों जो न रुकेगा अवश्य घसीटेंगे उस को हम साथ बालों माथे के।। वह माथा कि झूठा है और अपराधी।। हम बुलावेंगे फरिश्ते दोजख के को।। -मं० ७। सि० ३०। सू० ९६। आ० १५। १६। १८।।
(समीक्षक) इस नीच चपरासियों के काम घसीटने से भी खुदा न बचा। भला माथा भी कभी झूठा और अपराधी हो सकता है? सिवाय जीव के, भला यह कभी खुदा हो सकता है कि जैसे जेलखाने के दरोगा को बुलावा भेजे।।१६०।।
१६१-निश्चय उतारा हम ने कुरान को बीच रात -कदर के।। और क्या जाने तू क्या है रात -कदर की? ।। उतरते हैं फरिश्ते और पवित्रत्मा बीच उस के, साथ आज्ञा मालिक अपने के वास्ते हर काम के।।
-मं० ७। सि० ३०। सू० ९७। आ० १। २। ४।।
(समीक्षक) यदि एक ही रात में कुरान उतारा तो वह आयत अर्थात् उस समय में उतरी और धीरे-धीरे उतारा यह बात सत्य क्योंकर हो सकेगी? और रात्री अन्धेरी है इस में क्या पूछना है? हम लिख आये हैं ऊपर नीचे कुछ भी नहीं हो सकता और यहां लिखते हैं कि फरिश्ते और पवित्रत्मा खुदा के हुक्म से संसार का प्रबन्ध करने के लिये आते हैं। इस से स्पष्ट हुआ कि खुदा मनुष्यवत् एकदेशी है। अब तक देखा था कि खुदा फरिश्ते और पैगम्बर तीन की कथा है । अब एक पवित्रत्मा चौथा निकल पड़ा! अब न जाने यह चौथा पवित्रत्मा क्या है? यह तो ईसाइयों के मत अर्थात् पिता पुत्र और पवित्रत्मा तीन के मानने से चौथा भी बढ़ गया। यदि कहो कि हम इन तीनों को खुदा नहीं मानते, ऐसा भी हो, परन्तु जब पवित्रत्मा पृथक् है तो खुदा फरिश्ते और पैगम्बर को पवित्रत्मा कहना चाहिये वा नहीं? यदि पवित्रत्मा है तो एक ही का नाम पवित्रत्मा क्यों? और घोड़े आदि जानवर, रात दिन और कुरान आदि की खुदा कसमें खाता है। कसमें खाना भले लोगों का काम नहीं।।१६१।।
अब इस कुरान के विषय को लिख के बुद्धिमानों के सम्मुख स्थापित करता हूँ कि यह पुस्तक कैसा है? मुझ से पूछो तो यह किताब न ईश्वर, न विद्वान् की बनाई और न विद्या की हो सकती है। यह तो बहुत थोड़ा सा दोष प्रकट किया इसलिये कि लोग धोखे में पड़कर अपना जन्म व्यर्थ न गमावें। जो कुछ इस में थोड़ा सा सत्य है वह वेदादि विद्या पुस्तकों के अनुकूल होने से जैसे मुझ को ग्राह्य है वैसे अन्य भी मजहब के हठ और पक्षपातरहित विद्वानों और बुद्धिमानों को ग्राह्य है । इस के विना जो कुछ इस में है सब अविद्या भ्रमजाल और मनुष्य के आत्मा को पशुवत् बनाकर शान्तिभंग करा के उपद्रव मचा मनुष्यों में विद्रोह फैला परस्पर दुःखोन्नति करने वाला विषय है। और पुनरुक्त दोष का तो कुरान जानो भण्डार ही है। परमात्मा सब मनुष्यों पर कृपा करे कि सब से सब प्रीति परस्पर मेल और एक दूसरे के सुख की उन्नति करने में प्रवृत्त हों। जैसे मैं अपना वा दूसरे मतमतान्तरों का दोष पक्षपात रहित होकर प्रकाशित करता हूँ। इसी प्रकार यदि सब विद्वान् लोग करें तो क्या कठिनता है कि परस्पर का विरोध छूट, मेल होकर आनन्द में एकमत होके सत्य की प्राप्ति सिद्ध हो। यह थोड़ा सा कुरान के विषय में लिखा। इस को बुद्धिमान् धार्मिक लोग ग्रन्थकार के अभिप्राय को समझ, लाभ लेवें। यदि कहीं भ्रम से अन्यथा लिखा गया हो तो उस को शुद्ध कर लेवें। अब एक बात यह शेष है कि बहुत से मुसलमान ऐसा कहा करते और लिखा वा छपवाया करते हैं कि हमारे मजहब की बात अथर्ववेद में लिखी है। इस का यह उत्तर है कि अथर्ववेद में इस बात का नाम निशान भी नहीं है।
(प्रश्न) क्या तुम ने सब अथर्ववेद देखा है ? यदि देखा है तो अल्लोपनिषद् देखो। यह साक्षात् उसमें लिखी है। फिर क्यों कहते हो कि अथर्ववेद में मुसलमानों का नाम निशान भी नहीं है।
अथाल्लोपनिषदं व्याख्यास्यामः
अस्मांल्लां इल्ले मित्रवरुणा दिव्यानि धत्ते।
इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्द्ददु ।
ह या मित्रे इल्लां इल्लल्ले इल्लां वरुणो मित्रस्तेजस्काम ।।१।।
होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्रा ।
अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्णं ब्रह्माणं अल्लाम्।।२।।
अल्लोरसूलमहामदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्।।३।।
आदल्लाबूकमेककम्।। अल्लाबूक निखातकम्।।४।।
अल्लो यज्ञेन हुतहुत्वा। अल्ला सूर्यचन्द्रसर्वनक्षत्र ।।५।।
अल्ला ऋषीणां सर्वदिव्याँ इन्द्राय पूर्वं माया परममन्तरिक्षा ।।६।।
अल्ल पृथिव्या अन्तरिक्षं विश्वरूपम्।।७।।
इल्लां कबर इल्लां कबर इल्लाँ इल्लल्लेति इल्लल्ला ।।८।।
ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादिस्वरूपाय अथर्वणा श्यामा हुं ह्रीं
जनानपशूनसिद्धान् जलचरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट्।।९।।
असुरसंहारिणी हुं ह्रीं अल्लोरसूलमहमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्
इल्लल्लेति इल्लल्ला ।।१०।।
इत्यल्लोपनिषत् समाप्ता।।
जो इस में प्रत्यक्ष मुहम्मद साहब रसूल लिखा है इस से सिद्ध होता है कि मुसलमानों का मत वेदमूलक है।
(उत्तर) यदि तुम ने अथर्ववेद न देखा हो तो हमारे पास आओ आदि से पूर्त्ति तक देखो । अथवा जिस किसी अथर्ववेदी के पास बीस काण्डयुक्त मन्त्रसंहिता अथर्ववेद को देख लो। कहीं तुम्हारे पैगम्बर साहब का नाम वा मत का निशान न देखोगे। और जो यह अल्लोपनिषद् है वह न अथर्ववेद में, न उस के गोपथ ब्राह्मण वा किसी शाखा में है। यह तो अकबरशाह के समय में अनुमान है कि किसी ने बनाई है। इस का बनाने वाला कुछ अर्बी और कुछ संस्कृत भी पढ़ा हुआ दीखता है क्योंकि इस में अरबी और संस्कृत के पद लिखे हुए दीखते हैं। देखो! (अस्माल्लां इल्ले मित्रवरुणा दिव्यानि धत्ते) इत्यादि में जो कि दश अंक में लिखा है, जैसे-इस में (अस्माल्लां और इल्ले) अर्बी और (मित्रवरुणा दिव्यानि धत्ते) यह संस्कृत पद लिखे हैं वैसे ही सर्वत्र देखने में आने से किसी संस्कृत और अर्बी के पढ़े हुए ने बनाई है। यदि इस का अर्थ देखा जाता है तो यह कृत्रिम अयुक्त वेद और व्याकरण रीति से विरुद्ध है। जैसी यह उपनिषद् बनाई है, वैसी बहुत सी उपनिषदें मतमतान्तर वाले पक्षपातियों ने बना ली हैं। जैसी कि स्वरोपनिषद्, नृसिहतापनी, रामतापनी, गोपालतापनी बहुत सी बना ली हैं।
(प्रश्न) आज तक किसी ने ऐसा नहीं कहा अब तुम कहते हो। हम तुम्हारी बात कैसे मानें?
(उत्तर) तुम्हारे मानने वा न मानने से हमारी बात झूठ नहीं हो सकती है। जिस प्रकार से मैंने इस को अयुक्त ठहराई है उसी प्रकार से जब तुम अथर्ववेद, गोपथ वा इस की शाखाओं से प्राचीन लिखित पुस्तकों में जैसे का तैसा लेख दिखलाओ और अर्थसंगति से भी शुद्ध करो तब तो सप्रमाण हो सकता है।
(प्रश्न) देखो! हमारा मत कैसा अच्छा है कि जिस में सब प्रकार का सुख और अन्त में मुक्ति होती है ।
(उत्तर)-ऐसे ही अपने-अपने मत वाले सब कहते हैं कि हमारा ही मत अच्छा है, बाकी सब बुरे। विना हमारे मत के दूसरे मत में मुक्ति नहीं हो सकती।
अब हम तुम्हारी बात को सच्ची मानें वा उन की? हम तो यही मानते हैं कि सत्यभाषण, अहिंसा, दया आदि शुभ गुण सब मतों में अच्छे हैं और बाकी वाद, विवाद, ईर्ष्या, द्वेष, मिथ्याभाषणादि कर्म सब मतों में बुरे हैं। यदि तुम को सत्य मत ग्रहण की इच्छा हो तो वैदिक मत को ग्रहण करो।
इसके आगे स्वमन्तव्यामन्तव्य का प्रकाश संक्षेप से लिखा जायगा।
इति श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिकृते सत्यार्थप्रकाशे
सुभाषाविभूषिते यवनमतविषये
चतुर्दशसमुल्लासः सम्पूर्णः।।१४।।
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