निराकार ईश्वर से वेद उत्पत्ति कैसे ? - ধর্ম্মতত্ত্ব

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26 September, 2017

निराकार ईश्वर से वेद उत्पत्ति कैसे ?

इस विषय में कितने ही पुरुष ऐसा प्रश्न करते हैं कि ईश्वर निराकार है , उससे शब्द - रूप वेद कैसे उत्पन्न हो सकते हैं ? इस का यह उत्तर है । कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है , उसमें ऐसी शंका करनी स्वर्था व्यर्थ है , क्योंकि मुख और प्राण आदि साधनों के बिना भी परमेश्वर में मुख और प्राण आदि के काम करने का अनंत सामर्थ्य है , कि मुख के बिना मुख का काम और प्राण आदि के बिना प्राण आदि का काम वह अपने सामर्थ्य से यथावत कर सकता है । यह दोष तो हम जीव लोगों में आ सकता है कि मुख आदि के बिना मुख आदि के कार्य नहीं कर सकते हैं , क्योंकि हम लोग अल्प सामर्थ्य वाले हैं और इसमें यह दृष्टांत भी है कि मन में मुख आदि अवयव नहीं है तथापि जैसे उसके भीतर प्रश्न - उत्तर आदि शब्दों का उच्चारण मानस व्यापार में होता है वैसे ही परमेश्वर में भी जानना चाहिए और जो सम्पूर्ण सामर्थ्य वाला है सो किसी कार्य के करने में किसी की सहायता ग्रहण नहीं करता क्योंकि वह अपने सामर्थ्य से ही सब कार्यों को कर सकता है । जैसे हम लोग बिना सहायता से कोई काम नहीं कर सकते वैसा ईश्वर नहीं है । जैसे देखो की जब जगत उत्पन्न नहीं हुआ था उस समय निराकार ईश्वर ने सम्पूर्ण जगत को बनाया , तब वेदों के रचने में क्या शंका रही । जैसे वेदों में अत्यंत सूक्ष्म विद्या की रचना ईश्वर ने की है वैसे ही जगत में भी नेत्र आदि पदार्थ का अत्यंत आश्चर्यरूप रचना की है तो क्या वेदों की रचना निराकार ईश्वर नहीं कर सकता ? ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में प्रथम वेद रचे , उनको पढ़ने के पश्चात् ग्रन्थ रचने का सामर्थ्य किसी मनुष्य को हो सकता है , उसके पढ़ने और ज्ञान से बिना कोई भी मनुष्य विद्वान् नहीं हो सकता , किसी मनुष्य के बालक को जन्म से एकांत में रखके उसको अन्न और जल युक्ति से देवे , उसके साथ भाषा का व्यवहार लेशमात्र भी न करे , तो उसको भाषा का व मनुष्यपन का ज्ञान नहीं को सकता है , वह पशुओं की भाँति ही रहेगा , ऐसे ही सृष्टि के आरम्भ में यदि वेदों का ज्ञान नहीं मिलता तो सब मनुष्य पशुओं की भाँति रहते । इससे वेदों को ईश्वर ने ही रचा है , यही मानने में कल्याण है , अन्यथा नहीं । सृष्टि के आरम्भ में परमात्मा जो वेदों का उपदेश नहीं करता तो आज पर्यन्त किसी मनुष्य को धर्म आदि पदार्थों की यथार्थ विद्या नहीं होती । वेदों को उत्पन्न करने में ईश्वर का प्रयोजन यह है कि वह ईश्वर परोपकारी है । तो जो परोपकारी परमेश्वर अपनी विद्या को हम लोगों के लिए उपदेश न करे तो विद्या से जो पररापकार करना परमेश्वर का गुण है सो वह न रहता , इससे परमेश्वर ने अपनी वेद विद्या का हम लोगों के लिए उपदेश करके सफलता सिद्ध करी है , क्योंकि परमेश्वर हम लोगों का माता - पिता के समान है , हम सब लोग जो उसकी प्रजा हैं उन पर नित्य कृपा दृष्टि रखता है जैसे अपने सन्तानों के ऊपर पिता और माता सदैव करुणा को धारण करते हैं कि सब प्रकार से हमारे पुत्र सुख पावें , वैसे ही ईश्वर भी सब मनुष्य आदि सृष्टि पर कृपा दृष्टि सदैव रखता है , इससे ही वेदों का उपदेश हम लोगों के लिए किया है ।
साभार - ✍🏻 महर्षि दयानन्द सरस्वती कृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका

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