ঋগ্বেদ ১/১৬৪/২০ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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স্বাগতম

14 November, 2017

ঋগ্বেদ ১/১৬৪/২০

ঋগ্বেদ ১/১৬৪/২০
द्वा सु॑प॒र्णा स॒युजा॒ सखा॑या समा॒नं वृ॒क्षं परि॑ षस्वजाते। तयो॑र॒न्यः पिप्प॑लं स्वा॒द्वत्त्यन॑श्नन्न॒न्यो अ॒भि चा॑कशीति ॥

সুপর্ণা সযুজা সখায়া সমানং বৃক্ষং পরি ষস্বজাতে।
তয়োরন্যঃ পিপ্পলং স্বাদ্বত্ত্যনপ্রশ্নন্যো অভি চাকশীতি।।

पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! (सुपर्णा) सुन्दर पंखोंवाले (सयुजा) समान सम्बन्ध रखनेवाले (सखाया) मित्रों के समान वर्त्तमान (द्वा) दो पखेरू (समानम्) एक (वृक्षम्) जो काटा जाता उस वृक्ष का (परि, सस्वजाते) आश्रय करते हैं (तयोः) उनमें से (अन्यः) एक (पिप्पलम्) उस वृक्ष के पके हुए फल को (स्वादु) स्वादुपन से (अत्ति) खाता है और (अन्यः) दूसरा (अनश्नत्) न खाता हुआ (अभि, चाकशीति) सब ओर से देखता है अर्थात् सुन्दर चलने-फिरने वा क्रियाजन्य काम को जाननेवाले व्याप्यव्यापकभाव से साथ ही सम्बन्ध रखते हुए मित्रों के समान वर्त्तमान जीव और ईश-परमात्मा समान कार्यकारणरूप ब्रह्माण्ड देह का आश्रय करते हैं। उन दोनों अनादि जीव ब्रह्म में जो जीव है वह पाप-पुण्य से उत्पन्न सुख-दुःखात्मक भोग को स्वादुपन से भोगता है और दूसरा ब्रह्मात्मा कर्मफल को न भोगता हुआ उस भोगते हुए जीव को सब ओर से देखता अर्थात् साक्षी है यह तुम जानो ॥
पदार्थान्वयभाषाः -(द्वा) द्वौ। अत्र सर्वत्र सुपां सुलुगित्याकारादेशः। (सुपर्णा) शोभनानि पर्णानि गमनागमनादीनि कर्म्माणि वा ययोस्तौ (सयुजा) यौ समानसम्बन्धौ व्याप्यव्यापकभावेन सहैव युक्तौ वा तौ (सखाया) मित्रवद्वर्त्तमानौ (समानम्) एकम् (वृक्षम्) यो वृश्च्यते छिद्यते तं कार्यकारणाख्यं वा (परि) सर्वतः (सस्वजाते) स्वजेते आश्रयतः। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (तयोः) जीवब्रह्मणोरनाद्योः (अन्यः) जीवः (पिप्पलम्) परिपक्वं फलं पापपुण्यजन्यं सुखदुःखात्मकभोगं वा (स्वादु) (अत्ति) भुङ्क्ते (अनश्नन्) उपभोगमकुर्वन् (अन्यः) परमेश्वरः (अभि) (चाकशीति) अभिपश्यति ॥
পদার্থঃ- (দ্বা) দুই (সুপর্ণা) সুন্দর পক্ষ বিশিষ্ট (সযুজা) সমান সম্বন্ধযুক্ত (সখায়া) মিত্রের সমান বর্ত্তমান (সমানম্) এক (বৃক্ষম্) বৃক্ষের (পরি) সব দিকে (ষস্বজাতে) আশ্রয় করিয়াছে (তয়োঃ) তাহাদের মধ্যে (অন্যঃ) একটি (পিপ্পলং) পরিপক্ক ফলকে (স্বাদু) স্বাদের জন্য (অত্তি) খায় (অনশ্নন্) না খেয়ে (অন্যঃ) অপরটি (অভি চাকশীতি) সব দিকে দেখিতে থাকে।
भावार्थभाषाः -इस मन्त्र में रूपकालङ्कार है। जीव, परमात्मा और जगत् का कारण ये तीन पदार्थ अनादि और नित्य हैं। जीव और ईश-परमात्मा यथाक्रम से अल्प अनन्त चेतन विज्ञानवान् सदा विलक्षण व्याप्यव्यापकभाव से संयुक्त और मित्र के समान वर्त्तमान हैं। वैसे ही जिस अव्यक्त परमाणुरूप कारण से कार्य्यरूप जगत् होता है वह भी अनादि और नित्य है। समस्त जीव पाप-पुण्यात्मक कार्यों को करके उनके फलों को भोगते हैं और ईश्वर एक सब ओर से व्याप्त होता हुआ न्याय से पाप-पुण्य के फल को देने से न्यायाधीश के समान देखता है ॥
অনুবাদঃ- সুন্দর পক্ষ বিশিষ্ট সম সম্বন্ধযুক্ত দুইটি পক্ষী মিত্র রূপে একই বৃক্ষ আশ্রয় করিয়া আছে। তাহাদের মধ্যে একটি, বৃক্ষের ফলকে স্বাদের জন্য ভক্ষণ করে এবং অন্যটি ফলকে ভক্ষণ না করিয়া সব দিক দেখিতেছে।
ভাবার্থঃ- বৃক্ষটি জগৎ এবং দুইটি পক্ষীর একটি জীব, অন্যটি ব্রহ্ম। জীব ও ব্রহ্ম উভয়ই অনাদি। উভয়ই সখা স্বরূপ। জীব সংসারে পাপ পূর্ণের ফল ভোগ করে এবং ব্রহ্ম ফল ভোগ না করিয়া সাক্ষী রূপে বর্ত্তমান।



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