इन्द्रं॒ वर्ध॑न्तो अ॒प्तुर॑: कृ॒ण्वन्तो॒ विश्व॒मार्य॑म् । अ॒प॒घ्नन्तो॒ अरा॑व्णः ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
indraṁ vardhanto apturaḥ kṛṇvanto viśvam āryam | apaghnanto arāvṇaḥ ||
पद पाठ
इन्द्र॑म् । वर्ध॑न्तः । अ॒प्ऽतुरः॑ । कृ॒ण्वन्तः॑ । विश्व॑म् । आर्य॑म् । अ॒प॒ऽघ्नन्तः॑ । अरा॑व्णः ॥ ९.६३.५
ऋग्वेद मण्डल:9 सूक्त:63 मन्त्र:5
पदार्थान्वयभाषाः -(इन्द्रम्) शूरवीर के महत्त्व को (वर्धन्तः) बढ़ाते हुए और उसको (अप्तुरः) गतिशील (कृण्वन्तः) करते हुए और (अराव्णः) सब शत्रुओं को (अपघ्नन्तः) नाश करते हुए (विश्वं) सब प्रकार के (आर्यम्) आर्यत्व को दें ॥
भावार्थभाषाः -परमात्मा से प्रार्थना है कि परमात्मा श्रेष्ठ स्वभाव का प्रदान करे, ताकि आर्यता को धारण करके पुरुष राजधर्म का शासन करे ॥-आर्यमुनि
(इन्द्रं वर्धन्तः) शूरमहत्त्वं वर्धयन् तथा तत् (अप्तुरः) गत्वरं (कृण्वन्तः) कुर्वन् (अराव्णः) समस्तान् शत्रून् (अपघ्नन्तः) नाशयन् (विश्वम्) सर्वविधं (आर्यम्) आर्यत्वं ददातु ॥
ইন্দ্রং বর্ধন্তো অপ্তুরঃ কৃন্বন্তো বিশ্বমার্য্যম্।
অপঘ্নস্তো আরাব্-ণঃ।।
ঋগ্বেদ ৯/৬৩/৫
পদার্থ - (ইন্দ্রং বর্ধন্তঃ) ঈশ্বরের মহিমাকে বৃদ্ধি কর(অপ্তুরঃ অপঘ্নতঃ অরাব্-ণঃ)স্বত্বাপহারী অনার্য্যকে সমূচিত শিক্ষা দাও(কৃন্বন্তঃ বিশ্বম্ আর্য্যম্)বিশ্বের সকলকে আর্য্য কর।।
বঙ্গানুবাদ - হে মনুষ্য! ঈশ্বরের মহিমাকে বৃদ্ধি কর, স্বত্বাপহারী অনার্য্যকে সমুচিত শিক্ষা দাও, বিশ্বের সকলকে আর্য্য কর।।
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