नास॑दासी॒न्नो सदा॑सीत्त॒दानीं॒ नासी॒द्रजो॒ नो व्यो॑मा प॒रो यत् ।
किमाव॑रीव॒: कुह॒ कस्य॒ शर्म॒न्नम्भ॒: किमा॑सी॒द्गह॑नं गभी॒रम् ॥
ऋग्वेद0 मण्डल १० सूक्त १२९ मन्त्र १
भावार्थभाषाः -
सृष्टि से पूर्व न शून्यमात्र अत्यन्त अभाव था, परन्तु वह जो था, प्रकटरूप भी न था, न रञ्जनात्मक कणमय गगन था, न परवर्ती सीमावर्ती आवर्त घेरा था, जब आवरणीय पदार्थ या जगत् न था, तो आवर्त भी क्या हो, वह भी न था, कहाँ फिर सुख शरण किसके लिये हो एवं भोग्य भोक्ता की वर्तमानता भी न थी, सूक्ष्मजलपरमाणुप्रवाह या परमाणुसमुद्र भी न था, कहने योग्य कुछ न था, पर था, कुछ अप्रकटरूप था ॥-ब्रह्ममुनि
आदरणीय आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक ने पिछले लगभग 2 दशकों से आधुनिक वैज्ञानिकों के समक्ष अनेकों ऐसे मूलभूत प्रश्न खड़े किये है जिनका उत्तर दे पाना अभी संभव नहीं है। विज्ञान के अनेकों अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर केवल वेद व ऋषिकृत आर्ष ग्रंथों के अन्वेषण से ही प्राप्त हो सकता है, ऐसा तर्क व प्रमाणों के आधार पर वैदिक वैज्ञानिक आचार्य अग्निव्रत जी सिद्ध करने में कुछ स्तर तक सफल हुए है और अभी उनका शोध कार्य अनवरत आगे बढ़ रहा है। जो वैदिक धर्मी सामर्थ्यवान है और सृष्टि विज्ञान पर वर्तमान और वैदिक विज्ञान को गहराई से समझना चाहता है अथवा शोध के क्षेत्र में है तो आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक द्वारा लिखित "वेद विज्ञान आलोक" नामक ऐतिहासिक व शोधपूर्ण ग्रन्थ अवश्य मंगवाएं।
इस पृथिवी पर जब से मनुष्य ने जन्म लिया है, तभी से वह सृष्टि की उत्पत्ति एवं संचालन प्रक्रिया के विषय में जानने का प्रयास निरन्तर करता रहा है। इस समय भी पृथिवी पर जहाँ-2 भी मनुष्य बसते हैं. वे चाहे पढ़े लिखे हों अथवा अनपढ़, सभी किसी न किसी स्तर पर इस ब्रह्माण्ड के विषय में विचारते ही हैं। यह विचार उनके विभिन्न बौद्धिक स्तरों की दृष्टि से भिन्न-2 होता है। सभी सम्प्रदाय अपने पृथक्-2 दर्शनों द्वारा इस सृष्टि पर नाना प्रकार की कल्पनाएं लिए हुए हैं। उधर वर्तमान विज्ञान ने पिछले लगभग 200-300 वर्षों से इस सृष्टि पर पर्याप्त विचार किया है। इस दिशा में सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक संगठित होकर अहर्निश भारी पुरुषार्थ कर रहे हैं। पुनरपि वर्तमान वैज्ञानिक जगत् में भी सृष्टि उत्पत्ति का कोई एक सर्वमान्य सिद्धान्त स्थापित नहीं हो सका है। यह बड़े विस्मय एवं दुःख की बात है कि जो वर्तमान विज्ञान प्रेक्षण, प्रयोग एवं गणित का आश्रय लेकर पूर्ण सत्य को उद्घाटित करने का दावा करता है, वह भी भाँति-2 के गुटों, कल्पनाओं, दुराग्रहों में विभाजित हुआ प्रतीत होता है। गुटबन्दी व कल्पनाओं की किलेबन्दी के लिए तो विश्व के विभिन्न सम्प्रदाय ही बहुत हैं, कम से कम विज्ञान को तो ऐसी भ्रान्त धारणाओं से ग्रस्त नहीं होना चाहिए। वैज्ञानिक प्रयोग, प्रेक्षण व गणित का आश्रय लेने वाले विभिन्न गुट, क्यों अभी तक एक ध्रुव सत्य की खोज नहीं कर पाए हैं? क्यों उनके भी पृथक्-2 मार्ग बने हुए हैं? क्यों उनमें भी सत्य ग्रहण व असत्य परित्याग की भावना नहीं है? क्यों उनमें अपनी दुर्बलता व दूसरे मत की सबलता को स्वीकार करने की उदारता नहीं है? क्या आधुनिक विज्ञान की अनुसंधान प्रक्रिया भी दोषपूर्ण है? यदि हाँ, तो उसे कैसे सत्यान्वेषी माना जाये? प्रयोग, प्रेक्षण व गणितीय निष्कर्षों को कैसे असंदिग्ध मान लिया जाये? कैसे इसे विज्ञान ही कहा जाये? जो प्रबुद्ध वा वैज्ञानिकता के पक्षधर महानुभाव हम अध्यात्मवादियों किंवा भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं वेदादि शास्त्रों पर गर्व करने वालों से वैदिक धर्म व दर्शन की वैज्ञानिकता के बारे में प्रश्न करते हैं, वे इसे बिना विचारे अवैज्ञानिक, रूढ़िवादी वा अन्धविश्वास आदि नाना विशेषणों से भूषित करते हैं, क्या वे अपने विज्ञान की वैज्ञानिकता को तलस्पर्शी विधि से जानने का प्रयास भी करते हैं? क्या वे कभी वर्तमान वैज्ञानिक मान्यताओं पर कोई प्रश्न खड़ा करने की इच्छा भी रखते हैं? अथवा उस पर बुद्धि के नेत्र बन्द करके पूर्ण विश्वास कर लेते हैं। यदि हाँ, तो इसी का नाम है, अन्धविश्वास, इसी का नाम है, रूढ़िवाद। कम से कम विज्ञान के क्षेत्र में तो ऐसा नहीं होना चाहिए। इस क्षेत्र में पक्षपात, हठ व दुराग्रह नहीं होना चाहिए। खेद है कि आज विकसित विज्ञान में भी यह सब कुछ हो रहा है।
इस विषय में सर्वप्रथम हम प्रयोग, प्रेक्षण व गणित की असंदिग्धता पर वर्तमान महान् वैज्ञानिकों के विचार ही उद्धृत् करते हैं-
प्रसिद्ध ब्रिटिश भौतिक शास्त्री Stephen Hawking कथन है-
“Any physical theory is always provisional in the sense that it is only a hypothesis, you can never prove it. No matter how many times the result of experiments agree with some theory. You can never be sure that the next time a result will not contradict the theory, on the other hand you can disprove a theory by finding even a single observation that disagree with the predictions.” (A Briefer History of Time- P.14)
इसका भाव यह है कि कोई भी भौतिक सिद्धान्त अस्थायी होता है। वस्तुतः एक परिकल्पना ही होता है। आप उसे कभी सिद्ध नहीं कर सकते, भले ही उसे आपने कई बार प्रयोगों से परीक्षित कर लिया हो। आप इसे सुनिश्चित नहीं कर सकते कि आगामी किसी प्रयोग में विपरीत निष्कर्ष प्राप्त न होवे। आपका कोई एक भी विपरीत निष्कर्ष आपकी कई भविष्यवाणियों को असिद्ध कर सकता है।
इसी प्रकार का विचार विश्वप्रसिद्ध भौतिक शास्त्री सर अल्बर्ट आइंस्टीन ने व्यक्त करते हुए लिखा है-
“No amount of experimentation can ever prove me right, a single experiment can prove me wrong.”
(Meeting the standards in primary science- By Lymn D. Newton, p.21)
विज्ञान की प्रायोगिकता के विषय में इन दो वैज्ञानिकों की टिप्पणी के पश्चात् इसके गणितीय आधार पर भी हम प्रख्यात अमरीकी वैज्ञानिक Richard P. Feynman के विचारों को उद्धृत करते हैं-
“But mathematical definitions can never work in the real world. A mathematical definition will be good for mathematics, in which all the logic can be followed out completely, but the physical world is complex.
(Lectures on Physics- P.148)
अर्थात् गणितीय व्याख्याएं कभी भी वास्तविक संसार में कार्य नहीं करतीं। ये व्याख्याएं गणित के लिए तो अच्छी हैं, जहाँ ये व्याख्याएं पूर्णतः तर्क का अनुसरण करती हैं परन्तु भौतिक संसार बहुत जटिल है। Feynman बड़े ही स्पष्ट शब्दों में स्वीकारते हैं-
“We do not yet known all basic laws. There is an expanding frontier of ignorance.
(वही पृ. 01)
अर्थात् अभी तक वैज्ञानिक विज्ञान के मूल सिद्धान्तों को नहीं जान पाये हैं।
अब वर्तमान विज्ञान का एक विचित्र लक्षण भी देखें। Stephen Hawking ने अपनी वेबसाइट hawking.org.uk पर एक स्थान पर लिखा है-
One can not ask whether the model represents reality, only whether it works. A model is a good model if first it interprets a wide range of observations, in terms of a simple and elegant model. And second, if the model makes definite predictions that can be tested and possibly falsified by observation.
यहाँ हॉकिंग स्वयं वर्तमान विज्ञान के खोखलेपन किंवा अनेकत्र मिथ्यापन को न केवल स्वीकार कर रहे हैं, अपितु प्रेक्षणों द्वारा मिथ्या सिद्ध हो सकने को विज्ञान का एक लक्षण वा विशेषता भी घोषित कर रहे हैं। ऐसा मिथ्या सिद्ध हो सकने वाला विज्ञान कैसे किसी सत्यपिपासु वा सत्यव्रती के लिए प्रमाण बन सकता है? क्या हम वैदिक वैज्ञानिकों को ऐसे विज्ञान से सत्यता का प्रमाणपत्र लेने की आवश्यकता है?
यहाँ इस सबको उद्धृत् करने का अभिप्राय यह है कि आधुनिक प्रबुद्ध वर्तमान विज्ञान के प्रवाह में प्राचीन ज्ञान विज्ञान का उपहास करते हैं, उन्हें यह बोध हो जाये कि विज्ञान के सभी सिद्धान्त सर्वथा असंदिग्ध एवं पूर्ण नहीं हैं। इतना कहने के उपरान्त भी मेरा तात्पर्य विज्ञान के प्रयोगों, प्रेक्षणों वा गणितीय व्याख्याओं की अनावश्यकता सिद्ध करना नहीं, बल्कि केवल यही बतलाना मात्र है कि विज्ञान के निष्कर्ष भी सर्वांश में प्रामाणिक नहीं होते। जैसे-2 प्रयोग परीक्षणों की तकनीक विकसित होती जाती है तथा गणित का उच्च व उच्चतर विकास होता जाता है, वैसे-2 विज्ञान के निष्कर्ष संशोधित वा परिवर्तित होते चले जाते हैं। यह विज्ञान की गतिशीलता वा परिवर्तनशीलता है, जो अच्छी बात अवश्य है परन्तु यह कोई गौरव की बात नहीं है। वस्तुतः वर्तमान विज्ञान निरन्तर भूलें करने, फिर उन्हें सुधारने का प्रयास करने में धन व श्रम का व्यय करता रहता है और यही उसकी विडम्बना है।
अब हम अपने विषय पर चर्चा प्रारम्भ करते हैं -
वर्तमान में विश्व में सर्वाधिक प्रसिद्ध अर्थात् प्रचलित सिद्धान्त है- “महाविस्फोट का सिद्धान्त” (Big Bang Theory) इस सिद्धान्त पर हम संक्षिप्त चर्चा करते हैं-
1929 में अमरीकी वैज्ञानिक एडविन हबल ने यह खोज की कि इस ब्रह्माण्ड में विभिन्न गैलेक्सियां एक-दूसरे से दूर भाग रही हैं। वस्तुतः उन्हें यह ज्ञात हुआ कि विभिन्न गैलेक्सियों से आने वाले प्रकाश की आवृत्ति निरन्तर न्यूनतर हो रही है। इससे उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि डॉप्लर प्रभाव के कारण प्रकाश की आवृत्ति न्यूनतर होती जा रही है। इससे उन्होंने घोषणा की कि सभी गैलेक्सियां निरन्तर एक-दूसरे से दूर भाग रही हैं। इस खोज के पश्चात् वैज्ञानिकों को प्रतीत हुआ कि ब्रह्माण्ड के इस निरन्तर प्रसार से यह सिद्ध है कि ये सभी गैलेक्सियां सर्वप्रथम एक ही स्थान पर एकत्रित थीं। यहाँ तक कि समूचा ब्रह्माण्ड एक बिन्दु रूप में विद्यमान था, जिसमें अकस्मात् महाविस्फोट होने से सम्पूर्ण पदार्थ दूर-2 बिखर कर भागने लगा और तभी से ये गैलेक्सियां दूर भागती चली आ रही हैं। गैलेक्सियों के परस्पर भागने का वेग V=HL माना जाता है जहाँ H = हबल स्थिरांक, V = वेग तथा L = दो गैलेक्सियों के मध्य दूरी
(Cosmology- the Science of the Universe, second edition P.280 By-Edward Harrison)
इस खोज के उपरान्त ही संसार के वैज्ञानिक जगत् में Big Bang की कल्पना प्रारम्भ हो गयी। इस खोज को विश्व में एक महती उपलब्धि के रूप में देखा व जाना गया। ब्रह्माण्ड के प्रसारण के सिद्धान्त पर नोबेल पुरस्कार भी मिले। वर्तमान सृष्टिविज्ञानियों में शीर्ष अमरीकी वैज्ञानिक Alan Guth के मत को रेखांकित करते हुए Stephen Hawking ने “A Briefer History of time” के पृष्ठ १३४ पर लिखा है-
“Alan Guth, suggested that the early universe might have gone through a period of very rapid expansion …… According to Guth, the radius of the universe increased by a million million million million million (10³°) times in only tiny fraction of a second. Guth suggested that the universe started out from the big bang in a very hot, but rather chaotic state.”
अब बिग बैंग (Big Bang) के समय की स्थिति पर वर्तमान विज्ञान का मत इस प्रकार है-
आयतन= शून्य । इस विषय में Stephen Hawking का मत है-
“The entire universe was squashed into single point with zero size like a sphere of radius zero.”
(A Briefer History of Time- P.68)
Hawking अपनी पुस्तक Brief History of Time के पृष्ठ 123 पर भी लिखते हैं-
“At the Big Bang itself, the universe
is thought to have had zero size, and so
to have been infinitely hot.”
अनेक वैज्ञानिकों ने इसे स्वीकार किया है। दिनांक 16/12/2006 को येरुशलम विश्वविद्यालय में Hawking ने अपने मत में आंशिक संशोधन इस प्रकार किया-
“A point of infinite density.” इससे संकेत मिलता है कि यहाँ आयतन शून्य के स्थान पर ब्रह्माण्ड को Point Size वाला मान रहे हैं। यहाँ Hawking ने इस Point को शून्य त्रिज्या वाला नहीं कहा है परन्तु कोई माप भी नहीं बताई है। इसके पश्चात् जुलाई 2010 में डिस्कवरी टी.वी. चैनल पर हाँकिंग ने उसका आकार Atom से भी सूक्ष्म कहा। हमें ऐसा प्रतीत होता है, जब भारतीय खगोलशास्त्री प्रो. आभास मित्रा ने सन 2004 में अपने एक शोध पत्र, जो अन्तर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ, में यह निष्कर्ष दिया कि कोई भी Black Hole कभी भी शून्य आकार को प्राप्त नहीं कर सकता। यदि ऐसा हुआ तो उसका द्रव्यमान भी शून्य ही होगा। वैज्ञानिक तो प्रारम्भिक ब्रह्माण्ड का द्रव्यमान अनन्त मानते हैं, तब उसका आयतन शून्य कैसे मानें? इस कारण प्रतीत होता है कि हाँकिंग शनैः-2 बिग बैंग के समय आयतन को शून्य कहने से बचने लगे। उसी समय अगस्त 2004 में World Congress of Vaidic Science, Banglore में अपने पत्र वाचन में मैंने सिद्ध किया कि शून्य आयतन में अनन्त द्रव्यमान वा अनन्त ऊर्जा का होना सम्भव ही नहीं, बल्कि शून्य आयतन में किंचिदपि द्रव्यमान व ऊर्जा का होना सम्भव नहीं है। Big Bang Theory का खण्डन करने वाला मैं उस Congress में एकमात्र वक्ता था। बिग बैंग थ्योरी के खण्डन में लिखी अपनी एक पुस्तक 16 अप्रैल 2006 में Stephen Hawking को भी भेजी थी। हम अनुभव करते हैं कि उसके पश्चात् हाँकिंग साहब का मत कुछ-2 परिवर्तित होता गया है। उधर Arthur Beiser का भी कथन है-
“The observed uniform expansion of the universe points to a big bang around 13 billion years ago that started from a singularity in spacetime, a point whose energy, density and spacetime curvature were both infinite.”
(Concepts of Modern Physics P.498)
अब हम इस पर विचार करते हैं कि यदि कभी Big Bang हुआ भी, तो उस समय बीज रूप ब्रह्माण्ड का आकार शून्य आयतन वाला क्यों नहीं हो सकता? वर्तमान विज्ञान की मान्यता के अनुसार उस समय
V = 0, M = ∞, ρ = ∞, T = ∞
अर्थात् आयतन शून्य तथा द्रव्यमान, घनत्व तथा ताप-ऊर्जा अनन्त थे। मैं यह बात दृढ़ता से कहना चाहूंगा कि शून्य आयतन में द्रव्यमान, ऊर्जा, ताप आदि का परिमाण शून्य ही हो सकता है। अनन्त की तो बात ही क्या, बल्कि वहाँ इनकी विद्यमानता ही सम्भव नहीं। मैं पूछता हूँ कि क्या शून्य आयतन का अर्थ emptiness अर्थात् nothing नहीं है। उस nothing में अनन्त अर्थात् everything समाना तो दूर, बल्कि something भी नहीं समा सकता। क्या द्रव्यमान व ऊर्जा के लिए space की आवश्यकता नहीं है? यहाँ Space का अर्थ हम कोई पदार्थ नहीं, बल्कि खाली स्थान emptiness ही ग्रहण करेंगे। वर्तमान विज्ञान मानता है कि ऊर्जा के quantas के लिए स्थान की आवश्यकता विशेष नहीं होती। एक ही स्थान पर अनेक quantas समा सकते हैं परन्तु किसी भी कण के विषय में ऐसा सम्भव नहीं है। हमारे मत में बिना किसी स्थान के कोई quanta भी नहीं रह सकता। यहाँ हमारा प्रश्न यह है कि उस समय ऊर्जा किस रूप में विद्यमान थी? वस्तुतः वर्तमान विज्ञान ऊर्जा के स्वरूप के विषय में पूर्ण स्पष्ट नहीं है। Richerd P. Feynman का मत है-
“It is important to realize that in
physics today, we have no knowledge
of what energy is?”
(Lectures on Physics- P. 40)
अर्थात् वर्तमान विज्ञान यह नहीं जानता कि Energy क्या है? उसका स्वरूप क्या है? जब किसी पदार्थ के स्वरूप का यथावत् बोध न हो, तब हम उस पदार्थ के विषय में असंदिग्ध रूप से कैसे कह सकते हैं कि वह पदार्थ अनन्त मात्रा में बिना किसी अवकाश के रह सकता है। यहाँ कोई सज्जन यह तर्क कर सकते हैं कि अनन्त आवृत्ति की ऊर्जा तरंग की तरंग दैध्र्य शून्य होगी, इस कारण उस तरंग के लिए अवकाश वा space की आवश्यकता नहीं होगी। ऐसी अनन्त आवृत्ति की अनन्त तरंगों के लिए भी Space अथवा अवकाश की आवश्यकता नहीं रहेगी। इस कारण अनन्त ऊर्जा भी शून्य आयतन मेें समा सकती है। दुर्जनतोषन्याय से यदि इसे मान भी लें, तब प्रश्न यह है कि इस अनन्त ऊर्जा के साथ-2 अनन्त द्रव्यमान भी माना जाता है, तब क्या द्रव्यमान हेतु भी space वा अवकाश की आवश्यकता नहीं होगी? तब द्रव्यमान ऊर्जा का होगा वा द्रव्य का? यदि वह अनन्त द्रव्यमान किसी द्रव्य का है, तब द्रव्य तो कथमपि बिना अवकाश वा आकाश के नहीं रह सकता। ऐसी स्थिति में शून्य आयतन में तो द्रव्य का अस्तित्व ही सम्भव नहीं है। यदि कोई यह माने कि यह द्रव्यमान ऊर्जा में ही विद्यमान होता है, तब हमारा प्रश्न यह है कि वर्तमान विज्ञान किसी भी Quanta का विराम द्रव्यमान शून्य मानता है। यहाँ शून्य द्रव्यमान के लिए विराम अवस्था का होना अनिवार्य है। इसका तात्पर्य है कि गतिशील Quanta का द्रव्यमान शून्य नहीं हो सकता। अब शून्य आयतन में विद्यमान ऊर्जा पर विचार करें। क्या वहाँ ऊर्जा तरंग रूप में गतिशील अवस्था में होती है, जिससे उसमें द्रव्यमान विद्यमान होता है और वह भी अनन्त मात्रा में। यदि हाँ, तब बिना space वा अवकाश के गति वा तरंग का होना सम्भव नहीं। यदि ऊर्जा विराम अवस्था में मानें, तब उसका द्रव्यमान शून्य ही होगा, अनन्त कदापि नहीं। इसके साथ ही घनत्व भी शून्य होगा। इस प्रकार वर्तमान विज्ञान की शून्य आयतन में अनन्त ऊर्जा, अनन्त द्रव्यमान एवं अनन्त घनत्व की अवधारणा किसी भी प्रकार पुष्ट नहीं हो पाती और Big Bang Theory का मूल आधार ही मिथ्या है। इस सिद्धान्त से ऐसा आभास होता है कि इस विचारधारा के वैज्ञानिक अभाव से भाव की उत्पत्ति मानते हैं, शून्य से ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति मानते हैं। इस बात को छुपाने हेतु वे अनन्त ऊर्जा, अनन्त द्रव्यमान व अनन्त घनत्व की बात करते हैं, परन्तु शून्य अर्थात् अभाव से भाव की उत्पत्ति सम्भव ही नहीं है। इसी मत पर आगे कुछ और चर्चा प्रारम्भ करते हैं-
जब Big Bang समर्थकों से यह प्रश्न किया जाता है कि Big Bang से ठीक पूर्व क्या था? तब ये वैज्ञानिक कहते हैं कि Big Bang से पूर्व काल व आकाश दोनों ही नहीं थे, तब यह प्रश्न व्यर्थ है कि बिग बैंग से पूर्व क्या था? मैं जानना चाहता हूँ कि आकाश व काल के न होने का क्या अर्थ है? काल एवं आकाश के विषय में अभी तक विज्ञान अंधेरे में है। इसी मत को पुष्ट करते हुए Richard P. Feynman ने भी लिखा है-
“In the first place, what do you mean by
time and space? It turns out that these
deep philosophical questions have to be
analyzed very carefully in physics, and
this is not so easy to do.”
(Lectures on Physics- P. 96)
जब काल व आकाश का स्वरूप ही निश्चित नहीं, तब कैसे कह सकते हैं कि बिग बैंग से पूर्व इन दोनों का ही अभाव था। काल व आकाश के वे कौन से लक्षण होते हैं, जो बिग बैंग से पूर्व विद्यमान नहीं थे? तब, उनकी अविद्यमानता को हम कैसे जान सकते हैं? बिग बैंग क्यों हुआ? काल व आकाश की उत्पत्ति बिग बैंग के साथ कैसे व किसने की? इस बात का कोई उत्तर इस मत के मानने वालों के पास नहीं है। मैं इस मत के समर्थकों से पूछना चाहता हूँ कि महाविस्फोट किसमें हुआ? क्या शून्य में? उस समय जब काल व आकाश दोनों नहीं थे, तब उस शून्य आयतन में अनन्त द्रव्यमान एवं अनन्त ऊर्जा वाले पदार्थ में कोई क्रिया, गति आदि का होना सम्भव नहीं क्योंकि क्रिया व गति आदि के लिए space वा अवकाश व काल का होना भी अनिवार्य है। इन दोनों के न होने पर किसी विस्फोट की सम्भावना ही कैसे हो सकती है? किसी भी पदार्थ में विस्फोट से ठीक पूर्व कुछ तो हलचल होगी। जब काल व आकाश ही नहीं, तो हल्की हलचल भी उत्पन्न कैसे व किसमें होगी?
अब यदि यह भी मान लें कि शून्य में ही विस्फोट हो गया, तब भी अनेक प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं। जिस स्थान विशेष, जो Big Bang समर्थकों के मत में शून्य ही था, में विस्फोट हुआ, तब जो पदार्थ बिखरा, वहाँ बिना अवकाश वा space के कहाँ बिखरा? जिसमें विस्फोट हुआ वहाँ भी स्थान शून्य था और उसके बाहर भी space नहीं था, तब वह पदार्थ कहाँ व कैसे फैला? यह प्रश्न उत्तर की अपेक्षा रखता है। वर्तमान विज्ञान की दृष्टि में Big Bang के पूर्व अथवा तुरन्त पश्चात् की अवस्था पर भौतिकी के नियम प्रकाश नहीं डाल सकते। वर्तमान विज्ञान अनेक स्थिरांकों में बंधा हुआ स्वयं को ऐसा बंधक बना लेता है, जहाँ उसे उन बंधनों से मुक्त होने का विचार भी नहीं आता। प्लांक समय, प्लांक दूरी के आगे वह अपनी बुद्धि को अनावश्यक रूप से स्वयं ही असमर्थ मान लेता है, यह बड़े अज्ञान की बात है। जहाँ हमारी तकनीक की सीमा नहीं हो, वहाँ तर्क का प्रयोग तो करना ही चाहिए। Big Bang के प्लांक समय अर्थात् 10⁻⁴³ सेेकण्ड पश्चात् से भौतिकी के नियम प्रारम्भ होते हैं। अमरीकी वैज्ञानिक J.H. Weaver ने The World of Physics में 10⁻⁴³ sec. समय पश्चात् ब्रह्माण्ड का आकार 10⁻¹⁵ m. तथा घनत्व 10⁹⁴ gm/cm³ बताया है। इससे स्पष्ट है कि विस्फोट के समय पदार्थ के प्रसार की गति 10²⁸ m/sec. थी। इधर वर्तमान विज्ञान के अनुसार किसी भी पदार्थ की गति प्रकाश की गति 10⁸ m/sec. से अधिक नहीं हो सकती। इस दुविधा को मिटाने हेतु बिग बैंग समर्थक एक नई कल्पना को प्रस्तुत करते हैं। इस विषय में अमेरिका खगोल वैज्ञानिक John Gribbin ने लिखा है-
“This inflation is that in a sense it proceeds faster than light..... This is possible because it is space itself that is expanding- nothing is travelling ‘through space’ at this speed.” (The Origin of The Future- Ten Questions for the next ten Questions, P. 61)
अर्थात् बिग बैंग (Big Bang) के समय ब्रह्माण्ड का फैलाव प्रकाश की गति की अपेक्षा बहुत अधिक तीव्र गति से होता है। ऐसा इस कारण सम्भव हो पाता है क्योंकि बिग बैंग (Big Bang) में पदार्थ नहीं, बल्कि space ही फैलता है। इस कथन से निम्न निष्कर्ष प्राप्त होता है-
(1) Space के प्रसार में सापेक्षता के सिद्धान्त (Theory of Relativity) का उल्लंघन होता है।
9(2) Space स्वयं एक पदार्थ है, जिसमें आकुंचन व प्रसारण दोनों ही कर्म होते हैं। यदि यह पदार्थ है, तब पदार्थ के रहने के लिए अवकाश अवश्य चाहिए। कोई भी पदार्थ बिना अवकाश के कैसे रहे? जिस बिन्दु विशेष में विस्फोट हुआ, उसके बाहर यदि अवकाश (emptiness) नहीं था, तो space नामक पदार्थ का फैलाव कैसे हुआ? यदि ये कहें कि बिग बैंग (Big Bang) के समय space व time नहीं थे परन्तु अकस्मात् धमाके के साथ दोनों की उत्पत्ति हो गयी। आश्चर्य है कि यह सिद्धान्त ऊर्जा, द्रव्यमान से युक्त पदार्थ की सत्ता को तो मानता है परन्तु space एवं time की सत्ता को स्वीकार नहीं करता। क्या यहाँ अभाव से भाव की उत्पत्ति नहीं मानी जा रही? कारण-कार्य के नियम के विषय में Arthur Beiser का कथन है-
“cause and effect are still related in quantum machanics, but what they concern needs careful interpretation.” (Concepts of Modern Physics- P. 161)
इससे संकेत मिलता है कि कारण-कार्य का नियम वर्तमान क्वाण्टम फिजिक्स (Quantum Physics) को भी स्वीकार्य है, तब बिग बैंग (Big Bang) के समय अभाव से आकाश व काल की उत्पत्ति कैसे मानी जाती है? यहाँ कोई बिग बैंग समर्थक यह कह सकता है कि बिग बैंग के समय अथवा उसके पूर्व भौतिकी के कोई नियम काम नहीं करते। इस कारण क्वाण्टम फिजिक्स (Quantum Physics) में मान्य कारण-कार्य का नियम भी वहाँ काम नहीं करता, इससे अभाव से भाव की उत्पत्ति में कोई बाधा नहीं। आश्चर्य है कि भौतिकी के नियमों के साथ तर्क को अपना आधार बताने वाला वैज्ञानिक बिग बैंग मॉडल (Big Bang Modal) की हठ में भौतिक के मूलभूत नियमों के साथ तर्क को भी उपेक्षित कर देते हैं और अध्यात्मवादियों से तर्क व विज्ञान को अपनाने की बात करते हैं। यह सत्यान्वेषक विज्ञान के लिए उचित नहीं है।
वस्तुतः एडविन हबल द्वारा देखी गयी red shift का कारण Doppler effect को माना जाता है और इससे ब्रह्माण्ड के प्रसार की पुष्टि की जाती है।
जब सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शून्य आयतन में समाया था और अनन्त ताप, ऊर्जा, द्रव्यमान व घनत्व को अपने अन्दर समेटे था। तब प्रश्न यह उठता है कि उस ऐसे अनिर्वचनीय पदार्थ में विस्फोट कैसे, किसने व क्यों किया? आधुनिक विज्ञान क्यों, किसने एवं किसके लिए इन तीन प्रश्नों का उत्तर नहीं देता। यहाँ इन प्रश्नों को उपेक्षित करते हुये भी यह तो विचार करेंगे ही कि बिग बैंग के ठीक पूर्व पदार्थ इतना सघन व गर्म कैसे हेाता है? इसके उत्तर में वैज्ञानिकों का कथन है कि उस समय grand unified force की ऐसी प्रबलता होती है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को संकुचित वा सघन करते हुए शून्य आयतन में बांधे रखता है। तब ऐसी स्थिति में उस बल को अनन्त मानना होगा। अब अनन्त आकर्षण बल युक्त पदार्थ में विस्फोट कैसे हो सकता है? वैज्ञानिक इसके उत्तर में कहते हैं कि असीम शक्ति वाली डार्क एनर्जी के कारण उस अति सघन पदार्थ में अकस्मात् पूर्वोक्त महाविस्फोट हो जाता है। यहाँ प्रश्न यह है कि जब आकाश व काल की सत्ता भी नहीं मानी जाती है, तब डार्क एनर्जी की सत्ता कैसे व कहाँ मानी जा सकती है? वह डार्क एनर्जी उस पदार्थ के बाहर विद्यमान होती है वा उसके अन्दर? यदि डार्क एनर्जी (dark energy) उस असीम घनत्व वाले पदार्थ से बाहर थी, तब क्या बाहर अवकाश था? यदि मानें कि डार्क एनर्जी के लिए भी अवकाश वा space की आवश्यकता नहीं होती है, तब बाहर से डार्क एनर्जी का प्रक्षेपक व प्रतिकर्षक बल कैसे कार्य करेगा?
जब पदार्थ के बाहर डार्क एनर्जी विद्यमान होगी, तो वह उस सघन ब्रह्माण्ड रूप पदार्थ को सब ओर से तीक्ष्ण बल से प्रतिकर्षित करेगी। इससे सभी ओर से बल सन्तुलित हो जावेगा, जिससे उस पदार्थ पर परिणामी शून्य बल लगेगा। इस प्रकार पदार्थ में विस्फोट बाहरी डार्क एनर्जी के कारण कभी नहीं होगा। यदि यह माना जाए, कि डार्क एनर्जी उस अनन्त बल के विपरीत पदार्थ को अपनी ओर खींचकर तीव्रता से बिखेर देती है, तब प्रश्न यह है कि डार्क एनर्जी बिग बैंग (Big Bang) के समय अकस्मात् कहाँ से उत्पन्न होती है? यदि वह उस पदार्थ के साथ-2 अनादि किंवा अवधि विशेष से विद्यमान होती है, तब विस्फोट एक निश्चित समय पर क्यों होता है? यदि वह बिग बैंग के समय ही उत्पन्न होती है. तो उसकी उत्पत्ति का क्या कारण है? फिर इसकी उत्पत्ति भी अकस्मात् एक निश्चित समय पर ही कैसे होती है? मुझे प्रतीत होता है कि इन प्रश्नों के उत्तर वर्तमान विज्ञान के पास नहीं हैं। यदि डार्क एनर्जी को उस पदार्थ के अन्दर ही मिश्रित मानें, तब यह एनर्जी उस अनन्त बल को निष्प्रभावी बना देगी, जिससे पदार्थ बिखर सकता है परन्तु, तब प्रश्न यह उठेगा कि उस पदार्थ के अन्दर डार्क एनर्जी की सत्ता कब से विद्यमान थी? यदि पूर्व से विद्यमान थी, तब उस पदार्थ का सघन रूप बन ही नहीं सकता। ऐसी स्थिति में ब्रह्माण्ड कोई point size, zero size अथवा किसी भी size वाला हो ही नहीं सकता। इस प्रकार बिग बैंग (big bang) की धारणा किसी भी प्रकार सत्य नहीं हो सकती। उधर हमारा प्रश्न यह भी है कि जब आपने बिग बैंग से पूर्व आकाश व काल की सत्ता को नकारा है, तब क्या आप जानते हैं कि काल व आकाश कोई पदार्थ विशेष हैं किंवा केवल काल्पनिक पदार्थ हैं? यदि इनकी वास्तविक सत्ता है, तो उसका स्वरूप आपको ज्ञात नहीं, पुनरपि भ्रान्त धारणा बना ली कि उस समय काल व आकाश की सत्ता ही नहीं थी।
जब Big Bang के पश्चात् space का अत्यन्त तीव्रता से प्रसार होने लगता है, तब शून्य में समाया हुआ पदार्थ space के साथ-2 फैलने लगता है। यह स्थिति इस प्रकार प्राप्त होती है, मानो किसी रबर की बनी सड़क पर दो कारें खड़ी हों और किसी ने उस सड़क को तीव्र वेग से दोनों ओर से खींचा हो। उस समय विराम अवस्था में उस सड़क पर खड़ी दोनों कारें एक-दूसरे से दूर भागती दिखाई देंगी। उनके बीच सड़क के प्रसार की गति से दूरी निरन्तर बढ़ती जाएगी। उस समय उन कारों का परस्पर टकराना कदापि सम्भव नहीं होगा। यदि उन कारों को मिलाना हो. तो एक ऐसी ऊर्जा की आवश्यकता होगी, जो या तो सड़क के प्रसार को रोक कर उसे सिकोड़ना प्रारम्भ कर दे अथवा उन दोनों कारों को सड़क के प्रसार वेग की दिशा के विपरीत घसीटता हुआ एक-दूसरे को मिला दे। जब तक ऐसी बाहरी शक्ति प्रकट नहीं होगी, वे कारें परस्पर कभी नहीं मिल पाएंगी।
जब Space का प्रसार होने लगता है, वह भी इस सृष्टि के सर्वाधिक प्रबल वेग 10²⁸ m/sec. की दर से, तब उस Space में विद्यमान पदार्थ Space के सापेक्ष स्थिरतापूर्वक ही विद्यमान रहेगा, पुनरपि Space के फैलने से वह पदार्थ निरन्तर विरल से विरलतर रूप धारण करता रहेगा। ऐसी स्थिति में उस सूक्ष्मतम पदार्थ में संघनन प्रक्रिया क्योंकर प्रारम्भ हो सकती है? जब संघनन की प्रक्रिया प्रारम्भ ही नहीं हो सकती, तब लेप्टाॅन (Leptons), क्वाकर्स, ग्लूऑन्स पुनः न्यूक्लिऑन्स आदि का निर्माण कैसे हो सकता है? निश्चित ही ये सूक्ष्म कण शून्य आयतन में नहीं समाये हो सकते? इसके लिए Space व Emptiness का होना अनिवार्य है। जब ये सूक्ष्म कण ही नहीं बन सकते, तब Atoms, molecules, cosmic dust का निर्माण होकर शनैः-2 विशाल लोकान्तर व गैलेक्सियां बनकर Cosmic fractals का निर्माण कदापि नहीं हो सकता। इस कारण भी Space का प्रसार मान्य नहीं हो सकता।
Big Bang Theory पर एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उपस्थित होता है कि शून्य वा सूक्ष्म आकार में अनन्त द्रव्यमान, ऊर्जा वाला पदार्थ आया कहाँ से? क्या वह पदार्थ अनादि काल से उसी स्थिति में था? यदि नहीं तो कहाँ से तथा कब आया? क्या विस्फोट से ठीक पूर्व आया? अथवा उससे पहले आया? यदि पहले आया, तो विस्फोट उसी समय क्यों नहीं हुआ? यदि उसी समय आया तो कहाँ से आकर अनन्त बल में अकस्मात् कैसे बंधा और फिर कैसे विस्फोट हुआ?
इसके उत्तर में कुछ वैज्ञानिक Big Bang Cycle की कल्पना प्रस्तुत करते हैं। उनका मानना है कि समस्त ब्रह्माण्ड एक समय शून्य आयतन में समा जायेगा, जिसमें विस्फोट होकर पुनः ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति प्रारम्भ हो जायेगी। पुनः वह ब्रह्माण्ड एक समय शून्य आयतन में संघनित हो जायेगा। इस प्रकार यह चक्र अनन्त काल तक चलता रहेगा। इस प्रकार यह चक्र अनादि व अनन्त है। जब पदार्थ संघनित होता है, तब डार्क एनर्जी का प्रभाव न्यून तथा गुरुत्व बल का प्रभाव अधिक होता चला जाता है। जब विस्फोट के माध्यम से पदार्थ फैलने लगता है, तब गुरुत्व बल का प्रभाव न्यून तथा डार्क एनर्जी का प्रभाव अधिक होने लगता है। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि डार्क एनर्जी की अति प्रबलता के चलते गुरुत्व बल की अति प्रबलता होकर संघनन क्रिया कैसे प्रारम्भ होती है और गुरुत्व बल की अति प्रबलता की स्थिति में डार्क एनर्जी कैसे अकस्मात् उत्पन्न व अति प्रबल वेग से क्रियाशील होने लगती है? यह सब क्यों होता है और इसे कौन सी सर्वोच्च शक्ति नियन्त्रित व संचालित करती है? ध्यातव्य है कि Grand unified force से सर्वप्रथम गुरुत्व बल ही पृथक् होता है, इस कारण हमने यहाँ इसी गुरुत्व बल की चर्चा की है। जो Big Bang Cycle को नहीं मानते, वे भी प्रारम्भ में अति तीव्र वेग से प्रसार (inflation), पुनः गुरुत्व बल के अवरोध के उत्पन्न होने से अपेक्षाकृत अति मंद वेग से Expansion होना मानते हैं। उन्हें इस प्रश्न का उत्तर देने में कोई रुचि नहीं कि Vaccuum energy, gravitation force, dark energy क्या हैं, व कैसे उत्पन्न होते हैं। वस्तुतः कल्पनाओं के जाल बुनता हुआ यह विज्ञान मृगतृष्णा में भटक रहा है।
अब हम उस कारण पर विचार करते हैं, जिसके कारण एडविन हबल को ब्रह्माण्ड फैलता हुआ अनुभव हुआ। वस्तुतः गैलेक्सियों का दूर भागना प्रत्यक्ष नहीं देखा जा सकता। उन्होंने गैलेक्सियों के प्रेक्षण के समय Red Shift अनुभव किया। Red Shift को परिभाषित करते हुए Alan Isaacs ने लिखा है- “A displacement of the lines in the spectra of certain galaxies towards the red end of the visible spectrum.” (Oxford Dictionary of Physics- P. 414)
इस प्रभाव से यह सिद्ध होता है कि गैलेक्सियों से आने वाली विद्युत् चुम्बकीय तरंगों की ऊर्जा-आवृत्ति में निरन्तर सूक्ष्म रूप से न्यूनता आती जा रही है। वैज्ञानिकोें के इस प्रेक्षण से असहमत होने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने Red Shift का प्रेक्षण किया है, तो सत्य ही होगा। इसका निष्कर्ष, कि विद्युत् चुम्बकीय तरंगों की आवृत्ति घट रही है, भी स्पष्टतः सत्य सिद्ध हुआ परन्तु आवृत्ति के घटने के कारण की मीमांसा अवश्य करनी चाहिये।
इस Red Shift वा गैलेक्सियों से आने वाली विद्युत् चुम्बकीय तरंगों की आवृत्ति में कमी होते जाने का कारण, वैज्ञानिक विशेषकर Big Bang समर्थक वैज्ञानिक डॉप्लर प्रभाव को मानते हैं। इस कारण ही वे कल्पना करते हैं कि सभी गैलेक्सियां परस्पर दूर भागती जा रही हैं। जब हम पूर्वोक्त कई कारण दर्शा चुके हैं, जिनसे ब्रह्माण्ड का प्रसार असिद्ध होता है, तब वैज्ञानिकों को Red Shift के अन्य कारणों पर भी विचार करने का प्रयत्न करना चाहिये। अनेक वैज्ञानिकों ने इस विषय में विचार किया भी है। ये वैज्ञानिक Red Shift के अनेक वैकल्पिक कारण बतलाते हैं-
(1) Tired Light- इस विषय में Edward Harrison का कथन है-
“The expansion interpretation of galactic redshift through dilightfully simple, has challanged many times. Fritz Zwicky, a famed astronomer who, among many other things pioneered the study of supernovas, advanced in 1929 the theory that light steadily loses energy while traveling across large regions of extra galactic space. This ‘tired light’ has been resurrected repeatedly since Zwicky first proposed it……(Cosmology- the science of the universe- IInd edition P. 312)
इससे स्पष्ट है कि ब्रह्माण्ड में विद्युत् चुम्बकीय तरंगें अपनी यात्रा के दौरान दीर्घकालोपरान्त धीरे-2 अपनी कुछ-2 ऊर्जा को खोने लगती हैं अर्थात् उनकी ऊर्जा-आवृत्ति में कुछ कमी आने लगती है। यही कमी Red Shift का कारण बनती है।
वर्तमान वैज्ञानिक विद्युत् चुम्बकीय तरंगों के अति दुर्बल रूप की विद्यमानता को Cosmic Microwave Background Radiation के रूप में स्वीकार करते हैं। इसकी खोज पर नोबेल पुरस्कार भी मिला है तथा इन विकिरणों को Big Bang का प्रमाण भी मानते हैं। वस्तुतः इसकी खोज के पश्चात् ही Big Bang Theory को एक नया बल मिला है। इस विकिरण के विषय में John Gribbin लिखते हैं-
“This radiation is interpreted as a leftover heat from the cosmic fireball in which the universe was born, the big bang itself. As the universe has expanded, this radiation has been redshifted and cooled until today it has a temperature only 2.7 degrees above the absolute zero of temperature, corresponding to minus 270.3 degrees on the familiar celsius scale....” (The Birth of Time- P.177)
इससे स्पष्ट है कि ऊष्मा विकिरण ठण्डे होकर कालान्तर में अत्यन्त ठंडे होकर Microwave Background Radiation का रूप धारण कर लेते हैं, तब विभिन्न गैलेक्सियों से आने वाला प्रकाश क्यों नहीं कम आवृत्ति का हो सकता? क्या Microwave Background Radiation भी Tired Radiation का उदाहरण नहीं है?
हमारी दृष्टि में Microwave Background Radiation की खोज से Big Bang Theory की पुष्टि नहीं, बल्कि उससे Tired Light की संकल्पना की पुष्टि होकर ब्रह्माण्ड के प्रसार का सिद्धान्त खण्डित होता है, जिससे Big Bang का आधार ही समाप्त होे जाता है।
जहाँ तक Microwave Background Radiation का प्रश्न है, तो वह पूर्व में गर्म विकिरणों के अस्तित्व की तो पुष्टि करता है, किसी विस्फोट की पुष्टि भी कर सकता है, अनेक बार अनेकत्र विस्फोट भी होते रहते हैं परन्तु उन्हें पूर्वोक्त अनेक कारणों से ब्रह्माण्ड की सर्वप्रथम अवस्था कहना उचित नहीं। इस विकिरण के विषय में भारतीय खगोलशास्त्री प्रो. आभास मित्रा का मानना है-
“The microwave background radiation here is of no primordial origin.... This microwave radiation emanating from nearest massive ECO.” (A New Case for an Eternally Odd Infinite Universe- By Dr. A.K. Mitra)
हम प्रो. मित्रा के इस उपर्युक्त कथन से इतना तो सहमत हैं कि Cosmic Background Radiation आदिम विकिरण का रूपान्तरण नहीं हैं क्योंकि इस मत पर हमारी पूर्वोक्त अनेक आपत्तियां हैं। यह मित्रा जी द्वारा परिकल्पित MECO जैसे किसी लोक से उत्सर्जित होते हैं वा नहीं, इस विषय में हम कुछ नहीं कह सकते परन्तु इतना फिर भी कहेंगे कि ये विकिरण किन्हीं लोक विशेषों से ही उत्सर्जित होते रहते हैं वा हुये हैं और निःसन्देह ऐसे वे लोक इस सृष्टि का मूल उपादान कारण नहीं हैं।
Tired Light: समस्या व समाधान
हाँ, Tired Light के विषय में Edward Harrison ने अपनी पूर्वोक्त Cosmology नामक पुस्तक में एक आपत्ति व्यक्त करते हुए लिखा है-
“A more subtle question is where all the entropy of the cosmic background radiation remains constant. But in a static universe, in which radiation suffers from growing fatigue and is reddened by old age. The entropy declines and no tired light advocate has yet been able to say where it all goes.” (P. 312)
इसका आशय है कि Tired Light के विचार को स्वीकार करने में एक प्रश्न यह है कि इसमें Entropy की स्थिरता नहीं रह पाती अर्थात् विकिरणों से क्षय हुई ऊर्जा कहाँ चली जाती है? इसका उत्तर Tired Light की वकालत करने वालों के पास नहीं है। निश्चित ही यह Big Bang मतवादियों का एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। यद्यपि वे Big Bang Theory पर उठायी जाने वाली पूर्वोक्त अनेक आपत्तियों को अपने प्रबल दुराग्रह वा पूर्वाग्रह एवं अपने पक्ष के संख्या बल के आधार पर अस्वीकार कर देते हैं। बिग बैंग से पूर्व काल व आकाश ही नहीं थे, इसीलिए उससे पूर्व क्या था? विस्फोट किसमें हुआ? ऐसे प्रश्न अनावश्यक व मिथ्या हैं, ऐसा अस्वीकरणीय व जालसाजी भरा उत्तर देते हैं। बिग बैंग से 10⁻⁴³ sec. तक भौतिकी के नियम काम नहीं करते, इस कारण इस समयान्तराल की बात भी मत पूछो, ऐसे उत्तर भी वे देते हैं परन्तु Tired Light के पक्षधरों से Entropy Constant रखने के सिद्धान्त की दृढ़तया आशा करते हैं। विभिन्न बलों की कार्यप्रणाली में Virtual Particles के Vacuum Energy से उत्पन्न व उसी में विलीन होने तथा इस प्रक्रिया में ऊर्जा व द्रव्यमान के संरक्षित न रह पाने के प्रश्न को सुन मौन रह जाते हैं परन्तु हमसे प्रत्येक प्रश्न के उत्तर की आशा अवश्य करते हैं। कोई बात नहीं, हम उनकी इस आशा को अवश्य पूर्ण करना चाहेंगे।
हमारी दृष्टि में न केवल Photons, अपितु सृष्टि का प्रत्येक कथित मूलकण यथा Quarks, Laptons, आदि न तो अनादि हैं और न ही अनन्त काल तक इनका अस्तित्व ही रहेगा। वर्तमान विज्ञान द्वारा जानी गयी ऊर्जा अथवा सूक्ष्म कथित मूलकण विभिन्न प्राण व छन्द रश्मियों से ही उत्पन्न होते हैं और समय आने पर उन्हीं में लीन भी हो जाते हैं। Tired Light से क्षय हुई ऊर्जा उन्हीं प्राण रश्मियों में परिवर्तित हो जाती है। इस कारण Tired Light के सिद्धान्त पर Entropy Constant न रह पाने की आपत्ति निरर्थक है। वर्तमान विज्ञान के नाना प्रेक्षण व प्रयोग आधुनिक तकनीक द्वारा ज्ञात सूक्ष्मतम पदार्थ अर्थात् विद्युत् चुम्बकीय तरंगों व कथित मूलकणों तक ही सीमित रहते हैं, उससे अधिक नहीं। Stephen Hawking ने "The Grand Design" में Tired Light की चर्चा तो की है परन्तु इसे बिना कोई कारण बताये उपेक्षित करके Big Bang का ही पक्ष लिया है। इस कारण हाँकिंग की भी यह उपेक्षावृत्ति किसी भी प्रकार से उचित नहीं मानी जा सकती।
(2) Compton Effect- Red Shift का द्वितीय कारण यह हो सकता है। गैलेक्सियों से आने वाला प्रकाश अपने मार्ग में अन्तरिक्षस्थ विभिन्न कणों से टकराता हुआ आता है, इससे भी उसकी ऊर्जा में निरन्तर कुछ क्षीणता आती रहती है। हम जानते हैं कि हमारे सूर्य के नाभिक में हाइड्रोजन के संलयन से प्रबल ऊर्जा वाली विद्युत् चुम्बकीय तरंगें ‘गामा’ उत्पन्न होती हैं। वे गामा तरंगे लगभग एक लाख वर्ष तक सूर्य में भटकती हुई, अनेक कणों से टकराती हुई बाहर उत्सर्जित होकर अन्तरिक्ष में यात्रा के लिए निकल पड़ती हैं। जब वे सूर्य की बाहरी सतह से बाहर आती हैं, तब तक उनकी ऊर्जा में भारी क्षीणता होकर वे गामा किरणें दृश्य प्रकाश एवं अवरक्त किरणों में परिवर्तित हो जाती हैं। यह सब भी Compton Effect के कारण ही होता है। इसी प्रकार सुदूर गैलेक्सियों से आने वाली प्रकाश तरंगों में भी ऊर्जा की क्षीणता होकर Red Shift का प्रभाव दिखाई दे सकता है। गैलेक्सियों से आने वाला प्रकाश अन्तरिक्ष में बहुत लम्बी यात्रा करता है। अन्तरिक्ष में सर्वत्र ही पदार्थ सूक्ष्म रूप से भरा रहता है। वर्तमान वैज्ञानिक दो गैलेक्सियों के मध्य भी गर्म हाइड्रोजन का भरा होना मानते हैं। जब दूरस्थ गैलेक्सियों से प्रकाश आता है, तब वह इस हाइड्रोजन आदि पदार्थ के परमाणुओं से टकराता हुआ ही आता है, इस कारण Compton Effect से उसकी ऊर्जा में कमी होती जाती है, यही Red Shift का कारण है।
(3) Gravitational Effect- दूरस्थ गैलेक्सियों से आने वाला प्रकाश अपनी लम्बी यात्रा में अनेकों पृथक्-2 गुरुत्वीय क्षेत्रों से गुजरता हुआ आता है। इस कारण भी उस प्रकाश की ऊर्जा में किंचित् न्यूनता का होना सम्भव है। इस बात से वर्तमान विज्ञान भी सहमत है कि गुरुत्वीय क्षेत्र विद्युत् चुम्बकीय तरंगों को interact करता है, इस कारण वह interaction विद्युत् चुम्बकीय तरंगों की ऊर्जा को भी प्रभावित कर सकता है, ऐसा हमारा मत है। Discovery of Cosmic Fractals नामक पुस्तक के पृष्ठ 195 पर Yurij Baryshav and pekka Teerikorpi ने भी Gravitational प्रभाव से Red Shift प्रभाव का होना स्वीकार किया है। हमारे मत में सभी प्रकार के बल वा Fields एक-दूसरे को अवश्य प्रभावित करते हैं, भले ही वह प्रभाव अत्यल्प हो, इसी कारण विद्युत् चुम्बकीय तरंगें भी गुरुत्वीय क्षेत्र से अवश्य ही प्रभावित होती हैं, इससे उन तरंगों की ऊर्जा कुछ मात्रा में क्षीण हो जाती है, जो Red Shift का कारण बनती है।
इन उपर्युक्त तीन कारणों से Red Shift का प्रभाव हमें दिखाई देता है। इसी प्रभाव को देखकर एडविन हबल को यह भ्रम हो गया कि गैलेक्सियां परस्पर दूर भाग रही हैं। कालान्तर में इस भ्रम से दूसरा महाभ्रम यह उत्पन्न हुआ कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक महाधमाके, वह भी शून्य में, से अकस्मात् उत्पन्न हुआ।
Cosmic Background Radiation की खोज ने Big Bang के महाभ्रम को और भी पुष्ट कर दिया, जबकि इस Radiation की उत्पत्ति की प्रक्रिया भी भ्रामक ही थी। यह भ्रम परम्परा अद्यतन न केवल जारी है, अपितु सृष्टि उत्पत्ति के अन्य सभी सिद्धान्तों को अपने मिथ्या प्रभाव से प्रभावित वा अभिभूत कर रही है। इस परम्परा के वैज्ञानिक अन्य किसी भी पक्ष के विचार तक सुनने को उद्यत नहीं हैं और न उनके आक्षेपों का उत्तर देने में समर्थ हैं। ब्रह्माण्ड के प्रसार के विषय में इन उपर्युक्त प्रश्नों के चलते अनेक वैज्ञानिक इसे कल्पना वा भौतिकी जगत् की एक बड़ी समस्या भी मान रहे हैं। Yurij Baryshav and pekka Teerikorpi का इस विषय में कथन है-
“In 1995, at the conference on key problems in Astronomy and Astrophysics held at the Canary Islands, Allan Sandage presented a list of 23 astronomy problems for the next three decades, in a form analogous to Hilbert’s famous 23 problem in mathematics. The first problem in cosmology was: Is the expansion real। (Discovery of Cosmic Fractals- P. 194)
इससे स्पष्ट है कि ब्रह्माण्ड का प्रसार भौतिक विज्ञान की एक अनसुलझी समस्या है। इसे 23 अनसुलझी समस्याओं में से प्रथम समस्या माना है। इतने पर भी ब्रह्माण्ड के प्रसार को यथार्थ मानकर Big Bang को सत्य मानना वैज्ञानिक जगत् के लिए दुर्भाग्य ही माना जायेगा।
मेरी इस विषय में वैज्ञानिकों से व्यापक चर्चा वर्षों से होती रही है। भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र (BARC) एवं टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फण्डामेण्टल रिसर्च, मुम्बई में मैं वर्षों से जाता रहा हूँ। इससे मुझे अनुभव हुआ है कि Big Bang सिद्धान्त पर हमारे प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं है। यद्यपि अनेक शीर्ष वैज्ञानिक स्वयं बिग बैंग मॉडल पर प्रश्न उठाते हैं परन्तु ऐसा माना जाता है कि यह मॉडल सृष्टि उत्पत्ति तथा मूलभूत भौतिकी की कई समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है। इसी कारण वे उभरते प्रश्नों के उपरान्त भी Big Bang की हठ करते हैं। इसके साथ ही इस हठ को पुष्ट करने हेतु अनेक आधारहीन कल्पनाएं करते रहते हैं। यदि इसे मान भी लें, तब भी बिग बैंग मॉडल पर उठने वाली आपत्तियों की नितान्त उपेक्षा करके अन्य पक्षों को नकारना सत्यान्वेषक माने जाने वाले विज्ञान को कदापि उचित नहीं है। गणित का कोई एक सूत्र अनेक प्रश्नों को हल करने में समर्थ होने पर भी उसी प्रकार के अन्य एक भी प्रश्न को हल न कर पाने की स्थिति में असिद्ध माना जाता है और असिद्ध माना जाना भी चाहिये, इसी प्रकार भले ही बिग बैंग मॉडल से कुछ समाधान प्राप्त होते हों, पुनरपि बिग बैंग के मूल पर ही उठ रही आपत्तियों का उत्तर यदि नहीं मिल पाये, तो बिग बैंग की हठ को छोड़कर अन्य पक्षों पर खुले मस्तिष्क से विचार करना चाहिये, यही विज्ञान सम्मत कहा जायेगा। जब Stephen Hawking अनेक प्रयोगों से सिद्ध सिद्धान्त को मात्र एक अन्य विपरीत प्रयोग से उस सिद्धान्त को असिद्ध मानते हैं, तब यहाँ क्यों अनेकों अनसुलझे प्रश्नों के रहते हुए भी वे तथा संसार के अन्य प्रख्यात् वैज्ञानिक
Big Bang को हठपूर्वक स्वीकार करते हैं?
मेरा संसार के प्रसिद्ध सृष्टि विज्ञानियों से निवेदन है कि यदि वे हमारे प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकते तो उन्हें वैदिक सृष्टि विज्ञान पर विचार करना चाहिए। यह आधुनिक सैद्धान्तिक भौतिकी की अनेक गम्भीर व अनसुलझी समस्याओं को समाधान करने में सक्षम है, ऐसा हमारा दृढ़ विश्वास ही नहीं अपितु दावा है। मैं ओजस्वी युवक प्रिय राहुल आर्य के चैनल "Thanks Bharat" जो राष्ट्र एवं वेद के क्षेत्र में सोशल मीडिया के माध्यम से क्रान्ति की मशाल जलाए हुए है, के माध्यम से विश्व के वैज्ञानिकों को वैदिक भौतिकी समझने का निमंत्रण देता हूँ और विश्वास दिलाता हूँ कि इससे उन्हें यथार्थ भौतिकी की ओर आगे बढ़ने का एक अभिनव वस्तुतः सनातन मार्ग प्राप्त होगा।
आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक, वैदिक वैज्ञानिक
अध्यक्ष, श्री वैदिक स्वस्ति पन्था न्यास
(वैदिक एवं आधुनिक विज्ञान शोध संस्थान)
वेद विज्ञान मन्दिर, भागलभीम, भीनमाल
जिला-जालोर (राजस्थान) पिन-343029
दूरभाषः-09414182173, 07424980963, 02969 222103
E-mail : swamiagnivrat@gmail.com
Website : www.vaidicphysics.org
बिग बैंग सिद्धांत में क्या गलत है | भाग - 1
बिग बैंग सिद्धांत में क्या गलत है | भाग - 2
Thnx (thanksbharat.com team)
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