যজুর্বেদ অধ্যায় ২৩ মন্ত্র ২০ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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স্বাগতম

17 August, 2019

যজুর্বেদ অধ্যায় ২৩ মন্ত্র ২০

শঙ্কা  যজুর্বেদ অধ্যায় ২৩ মন্ত্র ২০- ঈশ্বর ঘোড়া দ্বারা যৌন কর্ম ও স্ত্রী যোনীপথে বীর্যপাত করতে বলে


সমাধানঃ
👉 মন্ত্রটি নিম্নরুপ---
→ताऽउभौ चतुरः पदः सम्प्र सारयाव स्वर्गे लोके।
→प्रोर्णुवाथां वृषा वाजी रेतोधा रेतो दधातु ॥
.
✔বঙ্গানুবাদ✔
 প্রভুর সাথে মিলিত  (একাত্মা) হয়েই প্রভুর কৃপাতেই ধর্ম, অর্থ, কাম এবং মোক্ষ এই চার পুরুষার্থ সিদ্ধ করো এবং এই উপায়তেই নিজেকে স্বর্গলোকে স্থাপিত করো ।। প্রভু যেন রাজা প্রজা সকলকে শক্তিশালী বানান ।।
(অনুবাদ- হরিশরণ সিদ্ধান্তলঙ্কার)
.
👉উক্ত মন্ত্রে মনুষ্যকে প্রভুর সাথে একাত্মা হয়ে  চার পুরুষার্থ সিদ্ধ করার কথা বলা হচ্ছে।
কোন খারাপ কিছুকে নির্দেশ করছেনা। ✌✌

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा और प्रजाजन परस्पर कैसे वर्त्तें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः -हे राजाप्रजाजनो ! तुम (उभौ) दोनों (तौ) प्रजा राजाजन जैसे (स्वर्गे) सुख से भरे हुए (लोके) देखने योग्य व्यवहार वा पदार्थ में (चतुरः) चारों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष (पदः) जो कि पाने योग्य हैं, उनको (प्रोर्णुवाथाम्) प्राप्त होओ, वैसे इन का हम अध्यापक और उपदेशक दोनों (संप्रसारयाव) विस्तार करें, जैसे (रेतोधाः) आलिङ्गन अर्थात् दूसरे से मिलने को धारण करने और (वृषा) दुष्टों के सामर्थ्य को बाँधने अर्थात् उन की शक्ति को रोकने हारा (वाजी) विशेष ज्ञानवान् राजा प्रजाजनों में (रेतः) अपने पराक्रम को स्थापन करे, वैसे प्रजाजन (दधातु) स्थापना करें ॥२० ॥
भावार्थभाषाः -इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो राजा-प्रजा पिता और पुत्र के समान अपना वर्त्ताव वर्त्तें तो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष फल की सिद्धि को यथावत् प्राप्त हों, जैसे राजा प्रजा के सुख और बल को बढ़ावें, वैसे प्रजा भी राजा के सुख और बल की उन्नति करे ॥२० ॥

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