বেদে প্রাণী হত্যা বিধান - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

সাম্প্রতিক প্রবন্ধ

Post Top Ad

স্বাগতম

21 June, 2020

বেদে প্রাণী হত্যা বিধান

বেদে প্রাণী হত্যা বিধান
বেদে প্রাণী হত্যা বিধান
প্রার্পায়াতু শ্রেষ্ঠতমায় কর্মন আপ্যাযদ্ধম... অঘ্ন্যা যজমানস্য পশুন্ পাহি।
(যজুর্বেদ ১.১)
অনুবাদ-হে মনুষ্য প্রার্থনা কর যাতে সবসময় তুমি মহত্‍ কার্যে নিজেকে উত্‍সর্গ করতে পার,পশুসমূহ অঘ্ন্যা অর্থাত্‍ হত্যার অযোগ্য,ওদের রক্ষা কর।
इ॒षे त्वो॒र्जे त्वा॑ वा॒यव॑ स्थ दे॒वो वः॑ सवि॒ता प्रार्प॑यतु॒ श्रेष्ठ॑तमाय॒ कर्म॑ण॒ऽआप्या॑यध्वमघ्न्या॒ऽइन्द्रा॑य भा॒गं प्र॒जाव॑तीरनमी॒वाऽअ॑य॒क्ष्मा मा व॑ स्ते॒नऽई॑शत॒ माघश॑ꣳसो ध्रु॒वाऽअ॒स्मिन् गोप॑तौ स्यात ब॒ह्वीर्यज॑मानस्य प॒शून् पा॑हि ॥१॥-यजुर्वेद अध्याय:१ मन्त्र:१ पद पाठ इ॒षे। त्वा॒। ऊ॒र्ज्जे। त्वा॒। वा॒यवः॑। स्थ॒। दे॒वः। वः॒। स॒वि॒ता। प्र। अ॒र्प॒य॒तु॒। श्रे॑ष्ठतमा॒येति॒ श्रे॑ष्ठऽतमाय। कर्म्म॑णे। आ। प्या॒य॒ध्व॒म्। अ॒घ्न्याः॒। इन्द्रा॑य। भा॒गं। प्र॒जाव॑ती॒रिति॑। प्र॒जाऽव॑तीः। अ॒न॒मी॒वाः। अ॒य॒क्ष्माः। मा। वः॒। स्ते॒नः। ई॒श॒त॒। मा अ॒घश॑ꣳसः॒ इत्य॒घऽश॑ꣳसः। ध्रुवाः। अस्मिन्। गोप॑ता॒विति॒ गोऽप॑तौ। स्या॒त॒। ब॒ह्वीः। यज॑मानस्य। प॒शून्। पा॒हि॒ ॥१॥ पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्य लोगो ! जो (सविता) सब जगत् की उत्पत्ति करनेवाला सम्पूर्ण ऐश्वर्ययुक्त (देवः) सब सुखों के देने और सब विद्या के प्रसिद्ध करनेवाला परमात्मा है, सो (वः) तुम हम और अपने मित्रों के जो (वायवः) सब क्रियाओं के सिद्ध करानेहारे स्पर्श गुणवाले प्राण अन्तःकरण और इन्द्रियाँ (स्थ) हैं, उनको (श्रेष्ठतमाय) अत्युत्तम (कर्मणे) करने योग्य सर्वोपकारक यज्ञादि कर्मों के लिये (प्रार्पयतु) अच्छी प्रकार संयुक्त करे। हम लोग (इषे) अन्न आदि उत्तम-उत्तम पदार्थों और विज्ञान की इच्छा और (ऊर्जे) पराक्रम अर्थात् उत्तम रस की प्राप्ति के लिये (भागम्) सेवा करने योग्य धन और ज्ञान के भरे हुए (त्वा) उक्त गुणवाले और (त्वा) श्रेष्ठ पराक्रमादि गुणों के देने हारे आपका सब प्रकार से आश्रय करते हैं। हे मित्र लोगो ! तुम भी ऐसे होकर (आप्यायध्वम्) उन्नति को प्राप्त हो तथा हम भी हों। हे भगवन् जगदीश्वर ! हम लोगों के (इन्द्राय) परम ऐश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये (प्रजावतीः) जिनके बहुत सन्तान हैं तथा जो (अनमीवाः) व्याधि और (अयक्ष्माः) जिनमें राजयक्ष्मा आदि रोग नहीं हैं, वे (अघ्न्याः) जो-जो गौ आदि पशु वा उन्नति करने योग्य हैं, जो कभी हिंसा करने योग्य नहीं, जो इन्द्रियाँ वा पृथिवी आदि लोक हैं, उन को सदैव (प्रार्पयतु) नियत कीजिये। हे जगदीश्वर ! आपकी कृपा से हम लोगों में से दुःख देने के लिये कोई (अघशंसः) पापी वा (स्तेनः) चोर डाकू (मा ईशत) मत उत्पन्न हो तथा आप इस (यजमानस्य) परमेश्वर और सर्वोपकार धर्म के सेवन करनेवाले मनुष्य के (पशून्) गौ, घोड़े और हाथी आदि तथा लक्ष्मी और प्रजा की (पाहि) निरन्तर रक्षा कीजिये, जिससे इन पदार्थों के हरने को पूर्वोक्त कोई दुष्ट मनुष्य समर्थ (मा) न हो, (अस्मिन्) इस धार्मिक (गोपतौ) पृथिवी आदि पदार्थों की रक्षा चाहनेवाले सज्जन मनुष्य के समीप (बह्वीः) बहुत से उक्त पदार्थ (ध्रुवाः) निश्चल सुख के हेतु (स्यात) हों। इस मन्त्र की व्याख्या शतपथ-ब्राह्मण में की है, उसका ठिकाना पूर्व संस्कृत-भाष्य में लिख दिया और आगे भी ऐसा ही ठिकाना लिखा जायगा, जिसको देखना हो, वह उस ठिकाने से देख लेवे ॥१॥ भावार्थभाषाः -विद्वान् मनुष्यों को सदैव परमेश्वर और धर्मयुक्त पुरुषार्थ के आश्रय से ऋग्वेद को पढ़ के गुण और गुणी को ठीक-ठीक जानकर सब पदार्थों के सम्प्रयोग से पुरुषार्थ की सिद्धि के लिये अत्युत्तम क्रियाओं से युक्त होना चाहिये कि जिससे परमेश्वर की कृपापूर्वक सब मनुष्यों को सुख और ऐश्वर्य की वृद्धि हो। सब लोगों को चाहिये कि अच्छे-अच्छे कामों से प्रजा की रक्षा तथा उत्तम-उत्तम गुणों से पुत्रादि की शिक्षा सदैव करें कि जिससे प्रबल रोग, विघ्न और चोरों का अभाव होकर प्रजा और पुत्रादि सब सुखों को प्राप्त हों, यही श्रेष्ठ काम सब सुखों की खान है। हे मनुष्य लोगो ! आओ अपने मिलके जिसने इस संसार में आश्चर्यरूप पदार्थ रचे हैं, उस जगदीश्वर के लिये सदैव धन्यवाद देवें। वही परम दयालु ईश्वर अपनी कृपा से उक्त कामों को करते हुए मनुष्यों की सदैव रक्षा करता है ॥१॥ অগ্নে যে যজ্ঞমধ্বরং বিশ্বতঃ পরিভূরসি। স ঈদ্ দেবেষু গচ্ছতি।। ঋগ্বেদ~1/1/4 অর্থ-হে অগ্নি(জ্ঞানস্বরূপ পরমাত্না),তুমি অধ্বর অর্থাৎ হিংসারহিত যজ্ঞে ব্যাপ্ত থাকো এবং এইরকম যজ্ঞ সত্যনিষ্ঠ বিদ্বানেরা স্বীকার করে থাকেন। এইখানে,"অধ্বর" শব্দটি খেয়াল করুন।ঋগ্বেদের বহু মন্ত্রে,অধ্বর শব্দের প্রয়োগ আছে।যথা,1/26/1,1/44/13,1/74/1, 10/22/7 ইত্যাদি। এইবার নিরুক্তর প্রমাণ দেখা যাক- অধ্বরঃ ইতি যজ্ঞনাম ধ্বরতিহিংসাকর্মা তৎপ্রতিষেধঃ|| নিরুক্ত-প্রথম অধ্যায়ঃদ্বিতীয় পাদঃচতুর্থ পরিচ্ছেদ-শ্লোক- 15 শব্দার্থ-অধ্বরঃ ইতি(অধ্বর এই শব্দটি) যজ্ঞনাম(যজ্ঞের নাম),ধ্বরতিঃ(ধ্বর ধাতু),হিংসাকর্মা (হিংসাত্মক), তৎপ্রতিষেধঃ(যজ্ঞহিংসার অভাব যুক্ত)। অর্থ~অধ্বর হল,যজ্ঞের নাম।ধ্বর্ ধাতু হিংসাবাচক।যজ্ঞে হিংসা নেই বলে তা অধ্বর। আলোচনা~ অধ্বর মানে যজ্ঞ।ধ্বর্=হিংসা(ধ্বর্+অচ্)।ধ্বর বা হিংসা যাহাতে নেই তাহাই অধ্বর।অথবা,ধ্বর্+ঘ প্রত্যয়(পাণিনি~3/3/118)=ধ্বর।ধ্বর অর্থ যে কাজে হিংসা হয়।তাকে বারণ করা হচ্ছে অর্থাৎ হিংসার বিপরীত যা তাই অধ্বর বা অহিংসা।তাই যজ্ঞ হিংসারহিত বা অধ্বর। তাছাড়া, যর্জুবেদের অনেক মন্ত্রে পশুদের প্রতি হিংসা নিষিদ্ধ করা হয়েছে।যথা- দ্বিপাদব চতুস্পাদ পাহি-যর্জু-14/8 অর্থাৎ,দ্বিপদ বা মানুষ এবং চতুস্পদ বা পশুদের সর্বদা রক্ষা করা কর্তব্য।
"পাষণ্ড তারা যারা প্রানীমাংস ভোজন করে।তারা যেন প্রকারান্তরে বিষ ই পান করে।" -ঋগ্বেদ ১০.৮৭.১৬
অনাগো হত্যা বৈ ভীমা কৃত্যে মা নো গামশ্বং পুরুষং বধীঃ।
(অথর্ববেদ ১০.১.২৯)
অনুবাদ-নির্দোষদের হত্যা করা জঘন্যতম অপরাধ।কখনো মানুষ,গো-অশ্বাদিদের হত্যা করোনা।
घृ॒तेना॒क्तौ प॒शूँस्त्रा॑येथा॒ रेव॑ति॒ यज॑माने प्रि॒यं धाऽआवि॑श। उ॒रोर॒न्तरि॑क्षात् स॒जूर्दे॒वेन॒ वाते॑ना॒स्य ह॒विष॒स्त्मना॑ यज॒ सम॑स्य त॒न्वा᳖ भव। वर्षो॒ वर्षी॑यसि य॒ज्ञे य॒ज्ञप॑तिं धाः॒ स्वाहा॑ दे॒वेभ्यो॑ दे॒वेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥--यजुर्वेद अध्याय:६ मन्त्र:११॥
পশুস্ত্রাঁযেথাঙ অর্থাত্‍ পশুদের রক্ষা কর।-(যজুর্বেদ ৬.১১)
অর্থাত্‍ পবিত্র বেদে মূলত সকল পশুপাখীদের ই হত্যা না করতে বলা হয়েছে।তাহলে হিন্দুসমাজে গোহত্যার ব্যপারে অধিকতর কঠোর দৃষ্টিভঙ্গী বিদ্যমান কেন?
কেননা মানবসভ্যতার প্রধান দুটি অনুসঙ্গের সাথে জড়িত হল গরু তথা গাভী ও ষাঁড়।
মানবসভ্যতার প্রধান ভিত্তি কৃষিকার্জ যাতে অত্যন্ত গুরুত্বপূর্ন ভূমিকা রাখে বৃষ তথা ষাঁড়।অপরদিকে মানবশিশুর বেঁচে থাকা তথা বেড়ে ওঠার জন্য মায়ের বুকের দুধের পর গোদুগ্ধ ই সবচেয়ে সর্বোত্‍কৃষ্ট ও প্রধান ভূমিকা রেখে চলেছে।
এ বিষয়ে নবদ্বীপের কাজী মাওলানা চাঁদ কাজী সাহেবের উদ্দেশ্যে শ্রীচৈতন্যদেবের সেই বিখ্যাত উক্তিটি স্মরন করা যেতে পারে-
গোদুগ্ধ খাও গাভী তোমার মাতা, বৃষ অন্ন উপযায়, তাতে তেঁহো পিতা।।
(চৈতন্য চরিতামৃত আদি লীলা,১৭.১৫৩)
অর্থাত্‍ দেখো গোদুগ্ধ খেয়ে আমরা বড় হই তাই তার প্রতি আমরা মাতৃঋণে আবদ্ধ হই আর বৃষ কৃষিকাজে সাহায্য করে আমাদের জন্য অন্ন উত্‍পাদন করে তাই তার প্রতি আমরা পিতৃসম ঋণে আবদ্ধ হই।এরকম যাদের প্রতি আমরা ঋণী তাদেরকে হত্যা করা কি অমানুষের কাজ নয়?
এছাড়া বৈদিক ধর্মের মহাপুরুষ যোগেশ্বর শ্রীকৃষ্ণ বালককালে একজন রাখাল ছিলেন,বাছুরদের প্রতি তাঁর স্নেহ ছিল অসীম।এজন্য তাঁর অপর নাম ছিল গোপাল।এইসব নৈতিক এবং ঐতিহাসিক কারনেই হিন্দুসমাজে গোহত্যাকে কঠোর অপরাধ হিসেবেই দেখা হয়।
দ্বিতীয় ধাপে এখন আমরা অত্যন্ত প্রচলিত কিছু মন্ত্র দেখবে যেগুলো নাস্তিক বা বিধর্মীদের দ্বারা বিভিন্ন ক্ষেত্রে ব্যবহৃত হতে দেখা যায় এই প্রমান করতে যে পবিত্র বেদে প্রানীমাংস ভক্ষনের কথা বর্নিত রয়েছে।
"ওই শরীরের মাংসকে আগুনে পোড়ানো হল,সকল দেবতাদেরকে উত্‍সর্গ করা হল,তাদের সকলকে ডাক,এটি খুব ই সুগন্ধযুক্ত এবং সুস্বাদু,সকলকে ভাগ করে দাও..."
ঋগ্বেদ ১.১৬২.১১-১২
পশ্চিমাদের করা এই অনুবাদ নিয়ে যারা নির্লজ্জের মত আনন্দ করছেন তাদের প্রতি জিজ্ঞাসা,একজন বৈদিক পন্ডিতের অনুবাদ বাদ দিয়ে পশ্চিমাদের অনুবাদ দিয়ে এসব অপপ্রচার চালানো কতটা যুক্তিসংগত?
প্রকৃতপক্ষে এখানে বাজিনং শব্দটির অর্থ ধরা হয়েছে অশ্ব যার প্রকৃত অর্থ সাহসী/শক্তিশালী/ দ্রুতগামী।
মন্ত্রদুটিতে আসলে জাতির দ্রুত উন্নতির লক্ষে নিজের দেহ-মনকে আত্মোত্‍স্বর্গ করতে বলা হয়েছে।
অনেকে বলে থাকে অতিথিগ্ব/অতিথিগ্ন অর্থ হল অতিথিকে গোমাংস পরিবেশনকারী।প্রকৃতি পক্ষে গং ধাতুটির অর্থ ই হল যাওয়া গতিশীল।অর্থাত্‍ যিনি অতিথির দিকে যান বা অতিথিকে পরিবেশন করেন।
অনেকে আবার বেদে গোমাংস নিষিদ্ধতার স্পষ্ট প্রমান দেখে আমতা আমতা করে বলেন যে গোহত্য নিষিদ্ধ হলেও বেদে বৃদ্ধ এবং বন্ধ্যা,অনুপযুক্ত গরু হত্যা করতে বলা হয়েছে যাদেরকে বলা হয় "বশা"।
প্রকৃতপক্ষে বশা অর্থ মোটেও বন্ধ্যা গাভী নয় বরং এর অর্থ ঈশ্বরের ক্ষমতা।এর প্রমান হল অথর্ববেদ ১০.১০.৪ এ বশা বা ঈশ্বরের ক্ষমতাকে সহস্রধারা বা অসীম বলা হয়েছে।বশা অর্থ যদি বন্ধ্যা গাভী ই হত তবে গাভী কি করে অসীম হয়?
অনেকে বলে থাকেন যজ্ঞে নাকি পশু বলি করা হত।তারা এমনটাও বলে থাকেন অশ্বমেধ যজ্ঞে নাকি অশ্ব আর গোমেধ যজ্ঞে নাকি গরু বলি দেয়া হত!
আগে দেখে নেই 'যজ্ঞ' কে পবিত্র বেদে কি বলা হয়েছে।
পবিত্র বেদের প্রথম মন্ডলের প্রথম সুক্তের চার নং মন্ত্রে যজ্ঞকে 'অধ্বরং' বলা হয়েছে।এই অধ্বরং অর্থ কি?দেখে নেই সংস্কৃত ব্যকরন কি বলছে। বৈদিক ব্যকরন গ্রন্থ নিরুক্ত এর ২.৭ এ বলা হয়েছে
"অধ্বরাং ইতি যজ্ঞনাম।
ধ্বরাতিহিংসাকর্ম তত্‍প্রতিশেধহ।।" নিরুক্ত ১।২।৪।১৫
অনুবাদ- ধ্বরা কর্ম হিংসা ও বিদ্বেষযুক্ত,এর বিপরীত হল অধ্বরা যেমন যজ্ঞসমূহ।
মহর্ষি যস্ক এই শ্লোকের ব্যখ্যায় বলেছেন যে যজ্ঞ অধ্বরা অর্থাত্‍ সম্পূর্ন সাত্ত্বিক যেখানে সকল প্রকারের রক্তপাত,হিংসা বিদ্বেষ অনুপস্থিত।অর্থাৎ যজ্ঞে পশুবলীর কোন প্রশ্নই আসেনা।আর পবিত্র বেদে যেখানে শত শত মন্ত্রে পশুহত্যা নিষিদ্ধ করা হয়েছে,পশুদের উপকারী জীব বলে সেবা করতে বলা হয়েছে সেখানে যজ্ঞে পশুবলীর চিন্তা আনাটাও অমূলক!
অশ্বমেধ যজ্ঞ
"রাষ্টং বৈ অশ্ব মেধঃ । অগ্ন হি গৌঃ ।অগ্নির্বা অশ্বঃ আজ্যং মেধঃ ॥
(শতপথ ব্রাহ্মন ১৩.১.৬.৩)
অনুবাদ- অশ্ব হল রাষ্ট্রের প্রতীকি নাম(সুপ্রশাসকের প্রগতিশীল রাষ্ট্র অশ্বের ন্যয় বেগবান এই অর্থে)।
এই রাষ্ট্রের মেধ(প্রগতি) কামনায় যে যজ্ঞ রাজা করেন তাই অশ্বমেধ যজ্ঞ।
গোমেধ যজ্ঞ কি?
গো শব্দের ৯টি অর্থের মধ্যে একটি হল পৃথিবী।পৃথিবী ও পরিবেশের নির্মলতা কামনায় যে যজ্ঞ বা উপাসনা তাই গোমেধ যজ্ঞ।

অশ্ব,গবাদি পশু ইত্যাদি হত্যা করে ,হোম বা যজ্ঞ করার বিধান কোন প্রামাণ্য শাস্ত্রে নেই ।কেবল পৌরাণিক যুগে ভণ্ডের দল এই সব পাপাচার প্রচার করে সমাজের মহা সর্বনাশ করেছে। দয়া ,প্রেম ,সাম্য ,মানবতা ,অহিংসা মানুষের পরম ধর্ম। এর বিপরীত আচরন পশুহত্যা করে ধর্মাচরণ তো হয় না বরং পাপই হয়।

ঋগ্বেদে গোহত্যা নিষেধ-
মাতা রুদ্রাণাং দুহিতা বসূনাং স্বসাদিত্যানামমৃতস্য নাভিঃ।
প্রনুবোচং চিকিতুষে জনায়, মা গামনাগামদিতিং বধিষ্ট।।
(ঋগ্বেদ ৮/১০১/১৫)

मा॒ता रु॒द्राणां॑ दुहि॒ता वसू॑नां॒ स्वसा॑दि॒त्याना॑म॒मृत॑स्य॒ नाभि॑: । 

प्र नु वो॑चं चिकि॒तुषे॒ जना॑य॒ मा गामना॑गा॒मदि॑तिं वधिष्ट ॥

এই গাভী (রুদ্রাণাং মাতা) রুদ্রগণের মাতা, (বসূনাং দুহিতা) বসুগণের দুহিতা, (আদিত্যানাং স্বসা) আদিত্যগণের ভগিনী, (অমৃতস্য নাভিঃ) অমৃতস্বরূপ দুগ্ধের আবাসস্থান । তাই আমি (চিকিতৄষে জনায় নু প্রবোচং) বিবেকবান মনুষ্যের প্রতি এই উপদেশ দেই যে, (অনাগাং) নিরপরাধ (অদিতিং) অসীম গুণে সমৃদ্ধ গো দেবীকে (মা বধিষ্ট) বধ করো না।

অনুবাদঃ গাভী রুদ্র ব্রহ্মচারী বিদ্বানগণের মাতা, নির্মাতা। দুষ্টের রোদনকর্তা বিদ্বান্, সৈনিক, সেনাপতি ইত্যাদিগণ গাভীকে মাতৃতুল্য পূজনীয়া বলে মনে করেন। গাভী বিদ্বান্ বসুগণের পুত্রী। সমাজের সংস্থাপক ব্যবস্থাপক প্রবন্ধক আদির জন্য গাভী পুত্রী-সমা পালনীয়া, রক্ষণীয়া রূপে স্বীকৃত। গাভী অমৃতের কেন্দ্র। গোরক্ষার দ্বারা চিরজীবন সমাজচেতনা লাভ হয়। গো নির্দোষ, নিষ্পাপ, অদিতি, অখণ্ডনীয়, অবধ্য সুতরাং তাকে হত্যা করো না।

যজুর্বেদে গোহত্যা নিষেধ-
ইমং সাহস্রং শতধারমুৎসং বাচ্যমানং সরিরস্যমধ্যে।
ঘৃতং দুহানামদিতিং জনাযাগ্রে মা হিংসীঃ পরমে ব্যোমন্।।(যজুঃ ১৩/৪৯)
অনুবাদঃ- এই গাভী মানুষের অসংখ্য সুখের সাধন, দুগ্ধের জন্য বিভিন্নভাবে পালনীয়া। গো, ঘৃত দুগ্ধ দাতৃ, অদিতি অখণ্ডনীয়া। হে মানব, একে হত্যা করো না।
অজস্রমিন্দুমরুষং ভুরণ্যুমগ্নিমীডে পূর্বচিত্তিং নমোভিঃ। স পর্বাভির্ঋতুশঃ কল্পমানো গাং মা হিংসীরদিতিং বিরাজম্।।
(যজুর্বেদ ১৩/৪৩)
অনুবাদঃ অক্ষয়, ঐশ্বর্য্যযুক্ত, অক্রোধ, পূর্বতন ঋষিদের দ্বারা গৃহীত অন্ন দ্বারা অগ্নিকে স্তুতি করি। হে অগ্নি, প্রতিপর্বে প্রতিঋতুতে কর্মের সম্পাদক, তুমি অদিতি, নিরীহ গোসমূহকে হত্যা করো না।
অথর্ববেদে গোসমূহের নিরাপত্তার জন্য প্রার্থনা করা হয়েছে।
সংজগ্মানা অবিভ্যুষিরস্মিন্ গোষ্ঠে করীষিণীঃ।
বিভ্রতীঃ সোম্যং মধ্বনমীবা উপেতন।।
(অথর্ববেদ ৩/১৪/৩)
অনুবাদঃ- এই গোশালায় ধেনু সকল নির্ভয়ে থাকুক, একসঙ্গে মিলিয়া বিচরণ করুক, গোময় উৎপন্ন করুক, অমৃতময় দুগ্ধ ধারণ করুক এবং নীরোগ হইয়া আমার নিকট আসুক।
যূয়ং গাবো মেদয়থা কৃশং চিদশ্রীরং চিৎ কৃণুথা সুপ্রতীকম্।
ভদ্রং গৃহং কৃণুথ ভদ্রবাচো বৃহদ্বো বয় উচ্যতে সভাসু।।
(অথর্ববেদ ৪/২১/৬)
অনুবাদঃ হে ধেনু সকল, তোমরা কৃশ মনুষ্যকে হৃষ্ট পুষ্ট কর। বিশ্রী মানুষকে সুশ্রী কর, গৃহকে মঙ্গলময় কর। তোমাদের রব মঙ্গলময়। সভাসমূহে তোমাদের বহু গুণ বর্ণনা করা হয়।
শুধু তাই নয়, গোহত্যাকারীদের সীসার গুলি দ্বারা হত্যা করার নির্দেশ দেয়া হয়েছে -
যদি নো গাং হংসি যদ্যশ্বং যদি পূরুষম্।
তন্ত্বা সীসেন বিধ্যামো যথা নোহসি অবীরহা।।
(অথর্ববেদ ১/১৬/৪)
অনুবাদঃ যদি তুমি আমাদের গাভী সকল হত্যা কর, যদি আমাদের ঘোড়া ও পুরুষদের হত্যা কর, তাহলে তোমাকে সীসের গুলি করে ধ্বংস করা হবে যাতে, তুমি আমাদের কোন প্রকার ক্ষতি সাধন করতে না পারো।
গোঘাতকদের রাজ্য থেকে বহিষ্কার করার আদেশ এবং তাদের সর্বস্ব কেড়ে নেয়ার আদেশ পর্য্যন্ত দেয়া হয়েছে।
বিষং গাং বা যাতুধানা ভবন্তামা বৃশ্চন্তামদিতয়ে দুরেবাঃ।
পরেনৈনান্ দেবঃ সবিতা দদাতু পরা ভাগমোষ ধীনাং জয়ন্তাম্।।
(অথর্ববেদ ৮/৩/১৬)
অনুবাদঃ যদি প্রজার উপর অত্যাচারকারীরা গবাদিপশুকে বিষ দেয় ও গাভীকে কর্তন করে, তবে রাজা এদের রাজ্য থেকে বহিষ্কৃত করুন অথবা তাদের সর্বস্ব কেড়ে নিন এবং তারা যেন অন্ন ও ঔষধের অংশ প্রাপ্ত না হয়।
তাছাড়া যজুর্বেদ ৩০/১৮ তে গোহত্যাকারীকে মৃত্যুদণ্ড দেয়ার বিধান দেয়া হয়েছে-
অন্তকায় গোঘাতকম্।।
অর্থাৎ যে গোঘাতক তাকে মৃত্যুদণ্ড দেওয়া হোক।
এর চেয়ে বেশী গোহত্যাকে মহাপাপ ও মহাপরাধ প্রতিপন্ন করার অন্য আদেশ আর কী হতে পারে?
এছাড়া মহাভারতের শান্তিপর্বে ২৬২ অধ্যায়ের ৪৭ শ্লোকে বলা হয়েছে-
অঘ্ন্যা ইতি গাবাং নাম, ক্ব এতা হন্তুমর্হতি।
মহচ্চকারাকুশলং বৃষং গাং বা লভেত্তু যঃ।।
অনুবাদঃ গাভীর অপর নাম অঘ্ন্যা, এরা অবধ্যা। এই সকল গাভী ও বৃষকে হত্যা করে সে মহাপাপ করে।
 ব্যাস সংহিতার প্রথম অধ্যায়ের দ্বাদশ শ্লোকে গোমাংসভোজীদের নীচু, হীন, অন্ত্যজ জাতি বলা হয়েছে।
এরকম অসংখ্য প্রমাণ উপস্থাপন করা যায় যেখানে গোহত্যা মহাপাপ বলে পরিগণিত এবং গোহত্যাকারীদের শাস্তি দিতে বলা হয়েছে। বৈদিক আর্য্য সভ্যতায় বর্তমানে শাকাহারী ও মাংসাহারী দু'ধরনের লোক রয়েছে। যারা শাকাহারী তারা তো মাংস খায়ই না, যারা আর্য সভ্যতায় ঘোরতর মাংসাহারী তারাও গোমাংস ভক্ষণকে মহাপাপ ও অধর্ম বিবেচনা করে। গোহত্যাকারী তথা ওঁ তৎসৎ
#অনেক সনাতনীর মনে প্রায়শঃই প্রশ্ন জাগে যে সনাতনীরা গোমাংস ভক্ষণ করে না কেন? অনেক বিধর্মী তাদের গোমাংস ভক্ষণে প্ররোচিত করে। তারা প্রচার করে বেদে গোমাংস ভক্ষণের কোন নিষেধ নেই বরং গোমাংসভক্ষণের অনুমতি আছে। এ অপপ্রচারটা জাকির নায়েক নামক তথাকথিত পণ্ডিত(যে আদৌ সনাতনের কিছু বুঝে না) তার দ্বারা আরম্ভ হয় এবং তার লেকচার শুনে অনেকে সঠিকটা যাচাই না করে তার বাক্যকে সত্যবচন ভেবে ভুল পথে পা বাড়ায়, গোমাংসভক্ষণ এমনকি সনাতন ধর্মত্যাগ করতেও দ্বিধাবোধ করে না। তাদের জন্য অাকুল আবেদন সনাতন ধর্মের নামে প্রচারিত কুৎসাতে বিশ্বাস না করে নিজেই যাচাই করুন। যারা প্রশ্ন করেন সনাতনীরা গোমাংস ভক্ষণ করে না কেন- তার উত্তর স্বয়ং বেদে পরমেশ্বর প্রদান করেছেন-
ঋগ্বেদে গোহত্যা নিষেধ-
মাতা রুদ্রাণাং দুহিতা বসূনাং স্বসাদিত্যানামমৃতস্য নাভিঃ।
প্রনুবোচং চিকিতুষে জনায়, মা গামনাগামদিতিং বধিষ্ট।।
(ঋগ্বেদ ৮/১০১/১৫)
অনুবাদঃ গাভী রুদ্র ব্রহ্মচারী বিদ্বানগণের মাতা, নির্মাতা। দুষ্টের রোদনকর্তা বিদ্বান্, সৈনিক, সেনাপতি ইত্যাদিগণ গাভীকে মাতৃতুল্য পূজনীয়া বলে মনে করেন। গাভী বিদ্বান্ বসুগণের পুত্রী। সমাজের সংস্থাপক ব্যবস্থাপক প্রবন্ধক আদির জন্য গাভী পুত্রী-সমা পালনীয়া, রক্ষণীয়া রূপে স্বীকৃত। গাভী অমৃতের কেন্দ্র। গোরক্ষার দ্বারা চিরজীবন সমাজচেতনা লাভ হয়। গো নির্দোষ, নিষ্পাপ, অদিতি, অখণ্ডনীয়, অবধ্য সুতরাং তাকে হত্যা করো না।
যজুর্বেদে গোহত্যা নিষেধ-
ইমং সাহস্রং শতধারমুৎসং বাচ্যমানং সরিরস্যমধ্যে।
ঘৃতং দুহানামদিতিং জনাযাগ্রে মা হিংসীঃ পরমে ব্যোমন্।।(যজুঃ ১৩/৪৯)
অনুবাদঃ- এই গাভী মানুষের অসংখ্য সুখের সাধন, দুগ্ধের জন্য বিভিন্নভাবে পালনীয়া। গো, ঘৃত দুগ্ধ দাতৃ, অদিতি অখণ্ডনীয়া। হে মানব, একে হত্যা করো না।
অজস্রমিন্দুমরুষং ভুরণ্যুমগ্নিমীডে পূর্বচিত্তিং নমোভিঃ। স পর্বাভির্ঋতুশঃ কল্পমানো গাং মা হিংসীরদিতিং বিরাজম্।।
(যজুর্বেদ ১৩/৪৩)
অনুবাদঃ অক্ষয়, ঐশ্বর্য্যযুক্ত, অক্রোধ, পূর্বতন ঋষিদের দ্বারা গৃহীত অন্ন দ্বারা অগ্নিকে স্তুতি করি। হে অগ্নি, প্রতিপর্বে প্রতিঋতুতে কর্মের সম্পাদক, তুমি অদিতি, নিরীহ গোসমূহকে হত্যা করো না।
অথর্ববেদে গোসমূহের নিরাপত্তার জন্য প্রার্থনা করা হয়েছে।
সংজগ্মানা অবিভ্যুষিরস্মিন্ গোষ্ঠে করীষিণীঃ।
বিভ্রতীঃ সোম্যং মধ্বনমীবা উপেতন।।
(অথর্ববেদ ৩/১৪/৩)
অনুবাদঃ- এই গোশালায় ধেনু সকল নির্ভয়ে থাকুক, একসঙ্গে মিলিয়া বিচরণ করুক, গোময় উৎপন্ন করুক, অমৃতময় দুগ্ধ ধারণ করুক এবং নীরোগ হইয়া আমার নিকট আসুক।
যূয়ং গাবো মেদয়থা কৃশং চিদশ্রীরং চিৎ কৃণুথা সুপ্রতীকম্।
ভদ্রং গৃহং কৃণুথ ভদ্রবাচো বৃহদ্বো বয় উচ্যতে সভাসু।।
(অথর্ববেদ ৪/২১/৬)
অনুবাদঃ হে ধেনু সকল, তোমরা কৃশ মনুষ্যকে হৃষ্ট পুষ্ট কর। বিশ্রী মানুষকে সুশ্রী কর, গৃহকে মঙ্গলময় কর। তোমাদের রব মঙ্গলময়। সভাসমূহে তোমাদের বহু গুণ বর্ণনা করা হয়।
শুধু তাই নয়, গোহত্যাকারীদের সীসার গুলি দ্বারা হত্যা করার নির্দেশ দেয়া হয়েছে -
যদি নো গাং হংসি যদ্যশ্বং যদি পূরুষম্।
তন্ত্বা সীসেন বিধ্যামো যথা নোহসি অবীরহা।।
(অথর্ববেদ ১/১৬/৪)
অনুবাদঃ যদি তুমি আমাদের গাভী সকল হত্যা কর, যদি আমাদের ঘোড়া ও পুরুষদের হত্যা কর, তাহলে তোমাকে সীসের গুলি করে ধ্বংস করা হবে যাতে, তুমি আমাদের কোন প্রকার ক্ষতি সাধন করতে না পারো।
গোঘাতকদের রাজ্য থেকে বহিষ্কার করার আদেশ এবং তাদের সর্বস্ব কেড়ে নেয়ার আদেশ পর্য্যন্ত দেয়া হয়েছে।
বিষং গাং বা যাতুধানা ভবন্তামা বৃশ্চন্তামদিতয়ে দুরেবাঃ।
পরেনৈনান্ দেবঃ সবিতা দদাতু পরা ভাগমোষ ধীনাং জয়ন্তাম্।।
(অথর্ববেদ ৮/৩/১৬)
অনুবাদঃ যদি প্রজার উপর অত্যাচারকারীরা গবাদিপশুকে বিষ দেয় ও গাভীকে কর্তন করে, তবে রাজা এদের রাজ্য থেকে বহিষ্কৃত করুন অথবা তাদের সর্বস্ব কেড়ে নিন এবং তারা যেন অন্ন ও ঔষধের অংশ প্রাপ্ত না হয়।
তাছাড়া যজুর্বেদ ৩০/১৮ তে গোহত্যাকারীকে মৃত্যুদণ্ড দেয়ার বিধান দেয়া হয়েছে-
অন্তকায় গোঘাতকম্।।
অর্থাৎ যে গোঘাতক তাকে মৃত্যুদণ্ড দেওয়া হোক।
এর চেয়ে বেশী গোহত্যাকে মহাপাপ ও মহাপরাধ প্রতিপন্ন করার অন্য আদেশ আর কী হতে পারে?
এছাড়া মহাভারতের শান্তিপর্বে ২৬২ অধ্যায়ের ৪৭ শ্লোকে বলা হয়েছে-
অঘ্ন্যা ইতি গাবাং নাম, ক্ব এতা হন্তুমর্হতি।
মহচ্চকারাকুশলং বৃষং গাং বা লভেত্তু যঃ।।
অনুবাদঃ গাভীর অপর নাম অঘ্ন্যা, এরা অবধ্যা। এই সকল গাভী ও বৃষকে হত্যা করে সে মহাপাপ করে।
 ব্যাস সংহিতার প্রথম অধ্যায়ের দ্বাদশ শ্লোকে গোমাংসভোজীদের নীচু, হীন, অন্ত্যজ জাতি বলা হয়েছে।
এরকম অসংখ্য প্রমাণ উপস্থাপন করা যায় যেখানে গোহত্যা মহাপাপ বলে পরিগণিত এবং গোহত্যাকারীদের শাস্তি দিতে বলা হয়েছে। বৈদিক আর্য্য সভ্যতায় বর্তমানে শাকাহারী ও মাংসাহারী দু'ধরনের লোক রয়েছে। যারা শাকাহারী তারা তো মাংস খায়ই না, যারা আর্য সভ্যতায় ঘোরতর মাংসাহারী তারাও গোমাংস ভক্ষণকে মহাপাপ ও অধর্ম বিবেচনা করে। গোহত্যাকারী তথা
 ওঁ তৎসৎ
#অনেক সনাতনীর মনে প্রায়শঃই প্রশ্ন জাগে যে সনাতনীরা গোমাংস ভক্ষণ করে না কেন? অনেক বিধর্মী তাদের গোমাংস ভক্ষণে প্ররোচিত করে। তারা প্রচার করে বেদে গোমাংস ভক্ষণের কোন নিষেধ নেই বরং গোমাংসভক্ষণের অনুমতি আছে। এ অপপ্রচারটা জাকির নায়েক নামক তথাকথিত পণ্ডিত(যে আদৌ সনাতনের কিছু বুঝে না) তার দ্বারা আরম্ভ হয় এবং তার লেকচার শুনে অনেকে সঠিকটা যাচাই না করে তার বাক্যকে সত্যবচন ভেবে ভুল পথে পা বাড়ায়, গোমাংসভক্ষণ এমনকি সনাতন ধর্মত্যাগ করতেও দ্বিধাবোধ করে না। তাদের জন্য অাকুল আবেদন সনাতন ধর্মের নামে প্রচারিত কুৎসাতে বিশ্বাস না করে নিজেই যাচাই করুন। যারা প্রশ্ন করেন সনাতনীরা গোমাংস ভক্ষণ করে না কেন- তার উত্তর স্বয়ং বেদে পরমেশ্বর প্রদান করেছেন-
ঋগ্বেদে গোহত্যা নিষেধ-
মাতা রুদ্রাণাং দুহিতা বসূনাং স্বসাদিত্যানামমৃতস্য নাভিঃ।
প্রনুবোচং চিকিতুষে জনায়, মা গামনাগামদিতিং বধিষ্ট।।
(ঋগ্বেদ ৮/১০১/১৫)
অনুবাদঃ গাভী রুদ্র ব্রহ্মচারী বিদ্বানগণের মাতা, নির্মাতা। দুষ্টের রোদনকর্তা বিদ্বান্, সৈনিক, সেনাপতি ইত্যাদিগণ গাভীকে মাতৃতুল্য পূজনীয়া বলে মনে করেন। গাভী বিদ্বান্ বসুগণের পুত্রী। সমাজের সংস্থাপক ব্যবস্থাপক প্রবন্ধক আদির জন্য গাভী পুত্রী-সমা পালনীয়া, রক্ষণীয়া রূপে স্বীকৃত। গাভী অমৃতের কেন্দ্র। গোরক্ষার দ্বারা চিরজীবন সমাজচেতনা লাভ হয়। গো নির্দোষ, নিষ্পাপ, অদিতি, অখণ্ডনীয়, অবধ্য সুতরাং তাকে হত্যা করো না।
যজুর্বেদে গোহত্যা নিষেধ-
ইমং সাহস্রং শতধারমুৎসং বাচ্যমানং সরিরস্যমধ্যে।
ঘৃতং দুহানামদিতিং জনাযাগ্রে মা হিংসীঃ পরমে ব্যোমন্।।(যজুঃ ১৩/৪৯)
অনুবাদঃ- এই গাভী মানুষের অসংখ্য সুখের সাধন, দুগ্ধের জন্য বিভিন্নভাবে পালনীয়া। গো, ঘৃত দুগ্ধ দাতৃ, অদিতি অখণ্ডনীয়া। হে মানব, একে হত্যা করো না।
অজস্রমিন্দুমরুষং ভুরণ্যুমগ্নিমীডে পূর্বচিত্তিং নমোভিঃ। স পর্বাভির্ঋতুশঃ কল্পমানো গাং মা হিংসীরদিতিং বিরাজম্।।
(যজুর্বেদ ১৩/৪৩)
অনুবাদঃ অক্ষয়, ঐশ্বর্য্যযুক্ত, অক্রোধ, পূর্বতন ঋষিদের দ্বারা গৃহীত অন্ন দ্বারা অগ্নিকে স্তুতি করি। হে অগ্নি, প্রতিপর্বে প্রতিঋতুতে কর্মের সম্পাদক, তুমি অদিতি, নিরীহ গোসমূহকে হত্যা করো না।
অথর্ববেদে গোসমূহের নিরাপত্তার জন্য প্রার্থনা করা হয়েছে।
সংজগ্মানা অবিভ্যুষিরস্মিন্ গোষ্ঠে করীষিণীঃ।
বিভ্রতীঃ সোম্যং মধ্বনমীবা উপেতন।।
(অথর্ববেদ ৩/১৪/৩)
অনুবাদঃ- এই গোশালায় ধেনু সকল নির্ভয়ে থাকুক, একসঙ্গে মিলিয়া বিচরণ করুক, গোময় উৎপন্ন করুক, অমৃতময় দুগ্ধ ধারণ করুক এবং নীরোগ হইয়া আমার নিকট আসুক।
যূয়ং গাবো মেদয়থা কৃশং চিদশ্রীরং চিৎ কৃণুথা সুপ্রতীকম্।
ভদ্রং গৃহং কৃণুথ ভদ্রবাচো বৃহদ্বো বয় উচ্যতে সভাসু।।
(অথর্ববেদ ৪/২১/৬)
অনুবাদঃ হে ধেনু সকল, তোমরা কৃশ মনুষ্যকে হৃষ্ট পুষ্ট কর। বিশ্রী মানুষকে সুশ্রী কর, গৃহকে মঙ্গলময় কর। তোমাদের রব মঙ্গলময়। সভাসমূহে তোমাদের বহু গুণ বর্ণনা করা হয়।
শুধু তাই নয়, গোহত্যাকারীদের সীসার গুলি দ্বারা হত্যা করার নির্দেশ দেয়া হয়েছে -
যদি নো গাং হংসি যদ্যশ্বং যদি পূরুষম্।
তন্ত্বা সীসেন বিধ্যামো যথা নোহসি অবীরহা।।
(অথর্ববেদ ১/১৬/৪)
অনুবাদঃ যদি তুমি আমাদের গাভী সকল হত্যা কর, যদি আমাদের ঘোড়া ও পুরুষদের হত্যা কর, তাহলে তোমাকে সীসের গুলি করে ধ্বংস করা হবে যাতে, তুমি আমাদের কোন প্রকার ক্ষতি সাধন করতে না পারো।
গোঘাতকদের রাজ্য থেকে বহিষ্কার করার আদেশ এবং তাদের সর্বস্ব কেড়ে নেয়ার আদেশ পর্য্যন্ত দেয়া হয়েছে।
বিষং গাং বা যাতুধানা ভবন্তামা বৃশ্চন্তামদিতয়ে দুরেবাঃ।
পরেনৈনান্ দেবঃ সবিতা দদাতু পরা ভাগমোষ ধীনাং জয়ন্তাম্।।
(অথর্ববেদ ৮/৩/১৬)
অনুবাদঃ যদি প্রজার উপর অত্যাচারকারীরা গবাদিপশুকে বিষ দেয় ও গাভীকে কর্তন করে, তবে রাজা এদের রাজ্য থেকে বহিষ্কৃত করুন অথবা তাদের সর্বস্ব কেড়ে নিন এবং তারা যেন অন্ন ও ঔষধের অংশ প্রাপ্ত না হয়।
তাছাড়া যজুর্বেদ ৩০/১৮ তে গোহত্যাকারীকে মৃত্যুদণ্ড দেয়ার বিধান দেয়া হয়েছে-
অন্তকায় গোঘাতকম্।।
অর্থাৎ যে গোঘাতক তাকে মৃত্যুদণ্ড দেওয়া হোক।
এর চেয়ে বেশী গোহত্যাকে মহাপাপ ও মহাপরাধ প্রতিপন্ন করার অন্য আদেশ আর কী হতে পারে?
এছাড়া মহাভারতের শান্তিপর্বে ২৬২ অধ্যায়ের ৪৭ শ্লোকে বলা হয়েছে-
অঘ্ন্যা ইতি গাবাং নাম, ক্ব এতা হন্তুমর্হতি।
মহচ্চকারাকুশলং বৃষং গাং বা লভেত্তু যঃ।।
অনুবাদঃ গাভীর অপর নাম অঘ্ন্যা, এরা অবধ্যা। এই সকল গাভী ও বৃষকে হত্যা করে সে মহাপাপ করে।
 ব্যাস সংহিতার প্রথম অধ্যায়ের দ্বাদশ শ্লোকে গোমাংসভোজীদের নীচু, হীন, অন্ত্যজ জাতি বলা হয়েছে।
সুরা মৎসা মধু মাংসমাসবং কৃসরোদনমধুর্তেঃ প্রবর্তিতং হোতন্নৈবদ বেদেষু কল্পিতম
 সুরা মৎস মাংস তালরস এই সব বস্তু কে ধুর্তেরাই যজ্ঞে প্রচলিত করেছে। বেদে এসবের উপযোগের বিধান নেই। শান্তি পর্ব পৃ ২৬৫ :শ্লোক ৯
“অঘ্না ইব”—গাভী সমূহ বধের অযোগ্য। (যজুঃ ৬।১১)পশুদের রক্ষা করো তাদের পালন করো।। 

অথর্ববেদ ৬.৫৯.১ – ক্ষুধা তথা খাদ্যের জন্য যারা গো হত্যা করে তাদের দূর করো
– গো আদি পশু কখনো হত্যার যোগ্য নয়দ্বিপাদব চতুষ্পাৎ পাহিযজুর্বেদ ১৪।৮- দ্বিপদী [মনুষ্য ও পক্ষী আদি ] ও চতুষ্পদী [ অশ্ব, গো,মহিষাদি ] উভয়ের রক্ষা করো ।অনেকেই বলতে পারেন পশু অর্থ বা পশু শব্দে কি কি বোঝায় ।

তবেমে পঞ্চ পশবো বিভক্তা গাবো অশ্বাঃ পুরুষা অজাবয়ঃঅথর্ববেদ ১১.২.৯- পঞ্চ প্রকার পশু গোসমূহ, অশ্ব , মনুষ্য , ছাগ ও ভেড়া ।
স এতান্পঞ্চ পশূনপশ্যৎ । পুরুষমশ্বং গামবিমজং যদপশ্যত্তস্মাদেতে পশবঃশতপথ ব্রাহ্মণ ৬.২.১.২

সুতরাং দেখা যাচ্ছে জীব বা পশুর মধ্যে মনুষ্যও রয়েছে । আবার মন্ত্রে গাবো উল্লেখ রয়েছে যার অর্থ কিনা মহিষাদি সকল গোরূপ প্রাণী ।
♦  ব্রাম্মন শাস্ত্রে  
হে গৃহপত্নী ! সর্ব প্রথমে তুমি ষাঁড়, গোরু, বাছুর ও অন্য চতুষ্পদের জন্য শালা বা ঘর নির্মাণ করে দাও৷স ধেন্বৈ চানডুহশ্চ নাশ্নীয়াদ্ধেন্বনডুহৌ বা ইদং সর্বং বিভৃতস্তে দেবাশতপথ ব্রাহ্মণ ৩.১.২.২১

পরাশর সংহিতার একাদশ অধ্যায়ে বলা হয়েছে-
অমেধ্যরেতো গোমাংসং চণ্ডালান্নমথাপি বা ।
যদি ভুক্তন্তু বিপ্রেণ কৃচ্ছ্র চান্দ্রায়ণং চরেৎ।। ১
তথৈব ক্ষত্রিয়ো বৈশ্যস্তদর্দ্ধ্ন্তু সমাচরেৎ।
শূদ্রোহপ্যেবং যদা ভুঙ্ক্তে প্রাজাপত্যং সমাচরেৎ।। ২
অর্থাৎ,  বিপ্র যদি অপবিত্ররেতঃ, গোমাংস কিংবা চণ্ডালান্ন ভোজন করেন, তবে কৃচ্ছ্র চান্দ্রায়ণ ব্রত আচরণ করিবেন। সেই অবস্থায় ক্ষত্রিয় বৈশ্য ইহারা অর্ধেক ব্রত আচরণ করিবেন। আর শূদ্র যদি উল্লিখিত দ্রব্য ভোজন করে , তবে তাহাকে প্রাজাপত্য ব্রত আচরণ করিতে হইবে। শূদ্র পঞ্চগব্য ভোজন করিবে, দ্বিজ ব্রহ্মকুর্চ্চ  পান করিবে এবং ব্রাহ্মণ একটি গাভী, ক্ষত্রিয় দুইটি গাভী, বৈশ্য তিনটি গাভী এবং শূদ্র চারটি গাভী দান করিবে। (অনুবাদক- পঞ্চানন তর্ক রত্ন)

সব বেদে যজ্ঞের পর্যায় শব্দ বা বিশেষণ রূপে 'অধ্বর' শব্দের প্রয়ােগ শতাধিক স্থলে পাওয়া যায় যার ব্যুৎপত্তি করার সময় " নিরুক্তকার যাস্কাচার্য " লিখেছেন --
অধ্বর ইতি য়জ্ঞনাম- ধ্বরতির্হিংসাকর্মা তৎপ্রতিষেধঃ। নিরুক্ত ২.৭
অর্থাৎ যজ্ঞের নাম অধ্বর যার অর্থ হিংসারহিত কর্ম। চার বেদ থেকে কয়েকটি প্রমাণ এখানে প্রদত্ত হলাে। ঋগ্বেদের কয়েকটি মন্ত্র দেখুন -
(ক) অগ্নে য়ে য়জ্ঞমধ্বরং বিশ্বতঃ পরিভূরসি। স ঈদ্ দেবেষু গচ্ছতি।। -ঋগ০১.১.৪
এই মন্ত্রে বলা হয়েছে সে, হে জ্ঞানস্বরূপ পরমেশ্বর, তুমি হিংসারহিত যজ্ঞে ব্যাপ্ত থাকো এবং এইরকম যজ্ঞ সত্যনিষ্ঠ বিদ্বানেরা স্বীকার করে থাকেন।
(খ) রাজন্তমধ্বরানাং গােপামৃচতস্য দীদিবিম্ । বর্ধমানং স্বে দমে।। - ঋগ্০ ১.১.৮
এখানেও পরমাত্মাকে অধ্বর অর্থাৎ হিংসারহিত সব কর্মে বিরাজমান বলা হয়েছে। এর দ্বারা যজ্ঞে পশুবলি নিষেধ করা হয়।
(গ) ত্বং হােতা মনু্হিতােগ্নে য়জ্ঞেষু সীদসি। সেমং নাে অধ্বরং য়জ।। ঋগ০ ১.১৪.২১
এখানেও যজ্ঞের জন্য অধ্বর শব্দ ব্যবহৃত হয়েছে এবং হােতাকে বলা হয়েছে যে তুমি হিংসারহিত যজ্ঞ করাও।
( ঘ ) স সুক্রতুঃ পুরােহিতাে দমে দমেগ্নির্য়জ্ঞস্যাধ্বরস্য চেততি ক্রত্বা য়জ্ঞস্য চেততি । ঋগ০ ১.১২৮.৪
এখানে বলা হয়েছে যে, পরমাত্মা ও বেদজ্ঞানী পুরোহিত হিংসারহিত যজ্ঞের সর্বদা উপদেশ দিয়ে থাকেন।
( ঙ ) প্রতিত্যং চারুমধ্বরং গােপীথায় প্রহয়সে। মরুদ্‌ভিরগ্ন আগহি ।। - ঋগ০ ১.১৯.১
জ্ঞান স্বরূপ পরমাত্মা ও পুরােহিতকে অগ্নি নামে সম্বোধন করে বলা হয়েছে যে পাপাদি থেকে রক্ষা পাওয়ার জন্য এই চারু (সুন্দর), হিংসারহিত যজ্ঞরূপ শুভকর্মে আমরা তােমাকে আহ্বান করি। তুমি বিদ্বান ঋত্বিকদের অর্থাৎ প্রাণশক্তিদেরসহিত এখানে আগমন করাে।
মরুত ইতি ঋত্বিক নামসু ---‌ ‌ ‌ ‌ নিঘন্টু ৩.১৮
প্রাণা বৈ মরুত: --- ‌ ‌ ‌ ঐত০ ৩.১৬
( চ ) ‌ ‌ ঋগ্বেদের ৩.২০.১ মন্ত্রে যজ্ঞের জন্য অধ্বর অর্থাৎ হিংসারহিত বিশেষণের প্রয়ােগ করে বলা হয়েছে যে দেবগণ এইরকম হিংসারহিত যজ্ঞের কামনা করেন। মন্ত্রটির উত্তরার্ধ এরূপ --
সুজ্যোতিষাে নঃ শৃন্বন্ত দেবাঃ, সজোষসাে অধ্বরং বাবশানাঃ।।
ঋগ ৩.২০.১ অর্থাৎ উত্তম জ্ঞানজ্যোতিসম্পন্ন, প্রেমযুক্ত, অহিংস যজ্ঞ দেব - সত্যনিষ্ঠ বিদ্বান্ কামনা করেন, তাঁরা আমাদের প্রার্থনা শ্রবণ করুন।
(ছ) অগ্ন ইলা সমিধ্যসে বীতিহােত্রো অমর্ত্যঃ। জুষস্ব সূ নো অধ্বরম্।। ঋগ০ ১.২৪.২
এখানে অধ্বর অর্থাৎ হিংসারহিত কর্ম এই যজ্ঞে প্রয়ােগ হােক এবং জ্ঞান স্বরূপ পরমাত্মাকে স্বীকার করার প্রার্থনা করা হয়েছে।
(জ) য়স্য ত্বমগ্নে অধ্বরং জুজোষাে দেবাে মর্তস্য সুধিতং ররাণঃ।
প্রীতেদসদ্ধোত্তা সা য়বিষ্টাসাম য়স্য বিধতাে বৃধাসঃ।।
-- ঋগ০ ৪.২.১০
অর্থাৎ হে জ্ঞানময় পরমেশ্বর, যার হিংসারহিত যজ্ঞে তুমি প্রেমপূর্বক স্বীকার করাে তার বাণী অত্যন্তপ্রেমময়ী ও শক্তিশালিনী হয়ে যায়। এইরকম সত্য উপাসকদের সঙ্গতি লাভ করে আমরা বৃদ্ধিপ্রাপ্ত হই।
এইরূপ ঋগ্বেদের বহু মন্ত্রে "" অধ্বর "" শব্দের প্রয়ােগ লক্ষিত হয়,
যথা - মন্ত্র ১.২৬.১; ১.৪৪.১৩; ১.৭৪.১; ১.৯৩.১২; ১.১০.৮; ১.১৩৫.৩; ১.৫১.৩; ২.২.৫; ৩.১৭.৫; ৩.২০১; ৩.২০.৫; ৩.৫৪.১২; ৪.৯.৬; ৪.১৫.২; ৪.৩৭.১; ৫.৪.৮; ৫.২৬.৩; ৫.২৮.৬; ৫.৪০.৫; ৬.২.৩; ৬.১৫.৭; ৬.১৬.২; ৮.৯৩.২৩; ৯.৬৭.১; ৮.৭২.৫; ৮.৬৬.১; ৮.৭১.১২; ৮.৯৩.২৩; ৯.৬৭.১; ৮.৭২.৫; ৮.৮২.৩; ৮.৯৮.৩; ৭.৩.১; ৭.৪.১৬; ৮.৩.৫; ৭; ৮.২৭.১; ৮.৩৫.২৩; ৮.৪৬.১৮; ৮.৫০.৫; ১০; ৮.৬০.২; ৮.৬৬.১; ৮.৭১.১২; ৮.১০২.৬; ৮; ১০.৮.৩; ৮.১১.৪; ৮.১৭.৭; ৮.২১.৬; ৮.৩০.১৫; ১০.৭৭.৮;১০.২২.৭ ইত্যাদি।
যজুর্বেদ যজ্ঞার্থে অধ্বরাদি শব্দ
যজুর্বেদের অনেক মন্ত্রে যজ্ঞের জন্য অধ্বর শব্দের প্রয়ােগ হয়েছে এবং উপদেশের মাধ্যমে পশুহিংসার নিষেধ করা হয়েছে।
দূতে দৃংহ মা মিত্রস্য মা চক্ষুষা সর্বানি ভূতানি সমীক্ষা ।
মিত্রস্যাহং চক্ষুষা সর্বাণি ভূতাণি সমীক্ষে মিত্রস্য চক্ষুসা সমীক্ষামহে।।
-- যজুo ৩৬.১৮
অর্থাৎ হে অজ্ঞানান্ধকার নাশক প্রভাে, সব প্রাণী আমাকে মিত্রের দৃষ্টি দিয়ে দেখুক, আমি সব প্রাণীকে (কেবল মনুষ্যই নয়) মিত্রের প্রেমময়দৃষ্টি দিয়ে দেখি, আমরা সকলে পারস্পরিক মিত্রতা অক্ষুন্নরাখি।
যজু০ ১.১.মন্ত্রে যজ্ঞকে শ্রেষ্ঠতম কর্ম বলে সম্বোধন করে বলা হয়েছে পশূন্ পাহি, পশুদের রক্ষা করাে।
যজু০ ৬.১১ মন্ত্রে পতি-পত্নীকে উপদেশ দেওয়া হয়েছে " পশুংস্ত্রায়েথাম্ " পশুদের রক্ষা করাে।
যজু০ ১৪.৮ মন্ত্রে উপদেশ দেওয়া হয়েছে --
দ্বিপাদব চতুষ্পদ পাহি।
অর্থাৎ হে মনুষ্য, তুমি দ্বিপদ অর্থাৎ মনুষ্যদের এবং চতুষ্পদ অর্থাৎ পশুদের সর্বদা রক্ষা করাে।
এইরূপ পশুরক্ষার প্রতিপাদনে এবং পশু হিংসা নিষেধে নির্দেশ আছে -
গাং মা হিংসীরদিতিং বিরাজম্।। যজু০ ১৩.৪৩
ইমং মা হিংসীর্দ্বিপাদং পশুম্ ।। যজু০ ১৩.৪৭
ইমং মা হিংসীরেক শফং পশুং কনিক্রদং বাজিনং বাজিনেষু ।। যজু০ ১৩.৪৮
ইমমূর্ণায়ং বরুণস্য নাভিং ত্বচং পশূনাং দ্বিপদাং চতুষ্পদ।
ত্বঃ প্রজানাং পরম জনিত্রমগ্নে মা হিংসীঃ পরমে ব্যমন।।
--যজু০ ১৩.৫০
এরকম অজস্র মন্ত্র পাওয়া যায় যেখানে গাভী, অশ্ব, মেষাদি পশুদের প্রতিহিংসাকরা নিষেধ করা হয়েছে। অধ্বর শব্দ যজ্ঞের সমার্থক ও বিশেষণ রূপে ব্যবহৃত হয়েছে, এই রকম মন্ত্রের সংখ্যা কমপক্ষে ৪৩।
ক) ভদ্রো নো অগ্নিরাহুতাে ভদ্রা রাতিঃ সুভগ ভদ্রো অধ্বর : । ভদ্রা উত প্রশস্তয়ঃ।।
--- যজু০ ১৫.৩৮
খ) বীতিহােত্রং ত্বা কবে দ্যুমন্তং সমিধীমহি অগ্নে বৃহন্তমধ্বরে।। যজু০ ২.৪
গ) উপ প্রয়ত্নো অধ্বরং মন্ত্রং বাচেমাগ্নয়ে আরে অস্মে চ শৃন্বতে।। যজু০ ৩.১১
ঘ) হবিস্মতীরিমা আপাে হবিষ্মাং২ আ বিবাসতি। হবিষ্মান্ দেবাে অধ্বরাে হবিষ্মাং ২অস্তসূর্যঃ।। যজু০ ৬.২৩
ঙ) হৃদে ত্বা মনসে ত্বা দিবে ত্বা সূর্যায়ত্বা। উর্দ্ধমিমধ্বরং দিবি দেবেষুহােত্রায়চ্ছ।। যজু০ ৬.২৫

চ) মন্মানি ধীভিরুত যজ্ঞমৃন্ধন্ দেবত্রা চ কৃনুহ্যধ্বরং নঃ।। যজু ২৯.২৬
এরকম অসংখ্য প্রমাণ উপস্থাপন করা যায় যেখানে গোহত্যা মহাপাপ বলে পরিগণিত এবং গোহত্যাকারীদের শাস্তি দিতে বলা হয়েছে। বৈদিক আর্য্য সভ্যতায় বর্তমানে শাকাহারী ও মাংসাহারী দু'ধরনের লোক রয়েছে। যারা শাকাহারী তারা তো মাংস খায়ই না, যারা আর্য সভ্যতায় ঘোরতর মাংসাহারী তারাও গোমাংস ভক্ষণকে মহাপাপ ও অধর্ম বিবেচনা করে। গোহত্যাকারী তথা যবন ও বিদেশীরা বৈদিক আর্য সংস্কৃতি নষ্ট করার হাজারো চেষ্টা চালাচ্ছে, বেদের ব্যাখ্যা দূষিত করার চেষ্টা করছে যেমন মেক্সমুলার, গ্রিফিথ, হরফ প্রকাশনী ইত্যাদি বেদের অনুবাদ করার নামে বেদে গোমাংস ঢুকানোর মাধ্যমে সনাতনীদের মুসলিম, খ্রিস্টানে পরিণত করার অপচেষ্টা করেছিল যার পরিপ্রেক্ষিতে অনেক সনাতনী বিভ্রান্ত হয়ে সত্যতা যাচাই না করে গোমাংস ভক্ষণ ও খ্রিস্টান ও মুসলিম হয়ে যায়। তাই সকলের প্রতি অনুরোধ রইল কারো কথায় বিভ্রান্ত হওয়ার আগে পোস্টটি পড়ে নিন এবং পোস্টটা সংরক্ষণ করে রাখুন এবং সকলের মাঝে ছড়িয়ে দিন।
।। ওঁম্ শম্।।

No comments:

Post a Comment

ধন্যবাদ

বৈশিষ্ট্যযুক্ত পোস্ট

যজুর্বেদ অধ্যায় ১২

  ॥ ও৩ম্ ॥ অথ দ্বাদশাऽধ্যায়ারম্ভঃ ও৩ম্ বিশ্বা॑নি দেব সবিতর্দুরি॒তানি॒ পরা॑ সুব । য়দ্ভ॒দ্রং তন্ন॒ऽআ সু॑ব ॥ য়জুঃ৩০.৩ ॥ তত্রাদৌ বিদ্বদ্গুণানাহ ...

Post Top Ad

ধন্যবাদ