प्राप्ते कलावहह दुष्टतरे च काले न त्वां भजन्ति मनुजा ननु वञ्चितास्ते।
धूर्तैः पुराणचतुरैहरिशंकराणां सेवापराश्च विहितास्तव निर्मितानाम्॥ [देवीभागवत ५।१९।१२]
अर्थ – इस घोर कलयुग में पुराणों के बनानेवाले, धूर्त, चतुर लोगों ने शिव, ब्रह्मा, विष्णु आदि की पूजा अपने पेट भरने के लिए चलाई है।
लीजिए, इस बात का भी निर्णय कर दिया कि इन देवताओं की पूजा क्यों चलाई है।
प्रस्तुति – ‘अवत्सार’
वैचारिक क्रांति के लिए “सत्यार्थ प्रकाश” पढ़े
वेदों की ओर लौटें
॥ओ३म्॥
No comments:
Post a Comment
ধন্যবাদ