यम-यमी - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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স্বাগতম

29 June, 2020

यम-यमी

◼️यम-यमी सूक्त◼️

प्रस्तुति -  ‘अवत्सार’

ऋग्वेद मण्डल १० का १०वाँ सूक्त ऋक्सर्वानुक्रमणी के अनुसार वैवस्वत यमयमी के संवादपरक है। यम और यमी भाई बहन हैं। यमी यम से शारीरिक सम्बन्ध की कामना करती है, यम उसे इस सम्बन्ध के लिये मना करता है। ऐसा सभी भाष्यकारों ने व्याख्यान किया है। निरुक्त ११।३४ में यास्क ने भी आख्यानपक्ष में ऐसा ही व्याख्यान दर्शाया है। [यमी यमं चकमे। तां प्रत्याचचक्ष इत्याख्यानम्।]
प्रकरणश एव तु मन्त्रा निर्वक्तव्याः नियम के अनुसार स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इस तथाकथित यमयमी संवादसूक्त का विषय अपनी चतुर्वेद विषयसूची के अन्तर्गत ऋग्वेदविषयसूची में जलादिपदार्थ विद्या विषय का निरूपण किया है।[द्र०-दयानन्दीय लघुग्रन्थसंग्रह, पृष्ठ १३२] इस तथाकथित संवाद सूक्त से पूर्व (ऋ० १०।९) का सूक्त का देवता आपः है । अतः इस सूक्त में पठित यमयमी का संबन्ध भी आप: के साथ होना युक्त है। ऋक्सर्वानुक्रमणी के अनुसार इस सूक्त का ऋषि यम और ऋषि का यमी विवस्वान् के पुत्र और पुत्री हैं।
विवस्वान् आदित्य है। आदित्य की किरणों से पृथिवीस्थ जल तपकर दो भागों में बँट कर ऊपर जाता है। ['कृष्णं नियान हरयः सुपर्णा अपो वसाना दिवमुत्पतन्ति'। ऋ० १।१६४।४७] ये दो भाग ही यम यमी हैं। एक योनि आप: से उत्पन्न होने के कारण भाई बहन हैं। इन्हें ही अन्यत्र मित्र और वरुण कहा है।[उर्वशी = विद्यत् के संयोग से मित्र और वरुण का मिलन हुआ तो उससे द्रवरूप गिरा हुआ बिन्दु वसिष्ठ = जल उत्पन्न हुआ । 'उतासि मैत्रावरुणो वसिष्ठो वश्या ब्रह्मन् मनसोऽधिजात:' ऋ० ७।३३।११] आधुनिक वैज्ञानिक नामावली में ये हाईड्रोजन और आक्सीजन गैसें हैं। हाईड्रोजन आक्सीजन की अपेक्षा हल्की होती है। अत: यम (हाईड्रोजन) अन्तरिक्ष स्थान से अतिक्रमण करता हुआ धुलोक तक पहुंचता है। अत: यम को निघण्टु (५।४,६) में अन्तरिक्ष एवं द्य दोनों स्थानों में पढ़ा है। यमी (आक्सीजन) भारी होने से अन्तरिक्ष स्थान तक ही गति करती है। स्त्री प्रत्यय महत्त्व अर्थ में भी होता है। [ हिमारण्ययोमहत्त्वे॥ महाभाष्य ४।१।४६॥ महद् हिमं हिमानी,महदरण्यम् अरण्यानी। महत्त्वं = घनत्वम्।] जब यम सूर्य की किरणों के साथ वापस लौटता है['त आववृत्रन्त्सदनादृतस्यादि घृतेन पृथिवी व्युद्यते' ॥ ऋ० १।१६।४७], तब अन्तरिक्ष में यमी के साथ विद्युत् के योग से यम का मेल होता है और उससे दोनों के मेल से पुष्कर (अन्तरिक्ष) से द्रव रूप वसिष्ठ ( =अतिशय वासयिता =जल) की उत्पत्ति होती है।[द्र० -पूर्व पृष्ठ टि. ४ में उद्धृत मन्त्र का उत्तरार्ध- 'द्रप्स स्कन्न दैव्येन ब्रह्मणा विश्वे देवा: पुष्करे त्वाददन्त' ॥ऋ० ७।३३।११] इसे ही आ घा ता गच्छानुत्तरा युगानि यत्र जामयः कृण्वन्नजामि (ऋ० १०।१०।१०) से सूचित किया है।
यमयमी सूक्त से पूर्व सूक्त में ही केवल आप: का वर्णन नहीं है, अपितु उत्तर के ११-१२-१३-१४ सूक्तों में भी प्रकारान्तर से यम द्रप्स घृतस्नू द्यावाभूमी का सम्बन्ध उपलब्ध होता है। इस प्रकार यह दशवाँ सूक्त संदश (सडासी के दोनों छोर) के मध्य में पठित होने से जलविद्या विषयक ही है। इस दृष्टि से स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ऋग्वेद विषयसूची में जलादिपदार्थविद्या विषय का जो उल्लेख किया है, वह सर्वथा युक्त है। इसमें यमयमी के संवाद पक्ष में जो घृणित पक्ष उपस्थित किया जाता है, वह भी नहीं है । आवश्यकता है, स्वामी दयानन्द सरस्वती की दिव्य दृष्टि के अनुसार पूरे सूक्त की व्याख्या की।
स्वामी दयानन्द सरस्वती संकलित चतुर्वेद विषयसूची के आधार पर यमयमी सूक्त के संबन्ध में जो विचार प्रस्तुत किया गया है, उससे दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं
◼️(क) वेदभाष्य रचने के उपक्रम से पूर्व स्वामी दयानन्द सरस्वती ने चारों वेदों की जो विषयसूची संकलित की थी, उसके लिये उन्होंने बड़ी गम्भीरता से पूर्वापर के सम्बन्ध को ध्यान में रखा था।
◼️(ख) इस चतुर्वेदविषयसूची के आधार पर ऋग्वेद के शेष भाग, सामवेद तथा अथर्ववेद, जिनका वे अपने जीवन में भाष्य नहीं कर पाये, के सम्बन्ध में उनके मूलभूत मन्त्र-विषय का परिज्ञान हो जाता है। इस प्रकार यह चतुर्वेद विषयसूची उनकी दृष्टि को समझने में विशेष सहायक है।
✍🏻 लेखक - महामहोपाध्याय पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक जी
प्रस्तुति - ‘अवत्सार’
পাণীনি (১.৪.৪৮) বিবাহিত দম্পতির নারী পার্টনারকে তথা সঙ্গিনীকে বলা হয় যমী। বৈদিক শব্দকোষ ঘেটেও যম শব্দের অর্থ পাণীনি অনুযায়ী বিবাহিত দম্পতির পুরুষ সঙ্গীই পাওয়া গিয়েছে। এবার দেখা যাক ব্ৰহ্মণ প্রস্থে কি অর্থ করা আছে যম-মীর:শতপথ ব্রাহ্মন ৭.২.১.১০ এবং গোপথ ব্রাহ্মন ২.৪.৮এ যম-যমীর অর্থ যথাক্রমে আগুন এবং পৃথিবী করা আছে। ভৈত্তরীয় সংহিতা ৩.৩.৮.৩ এও একই কথা বলা আছে। পুনরায় বৈদিক ব্যকরণ গ্রন্থে আলােকপাত করে করে দেখি সংস্কৃত ভাষায় যম যমীর আর কি অর্থ আছে -
মহা ঋষি যাস্ক তার অমর গ্রন্থ নিরুক্ত ৭.২৬ এ অধিদৈবিক অর্থ করে এর ব্যাখ্যা করেছেন। সেখানে বর্ণিত আছে বিবস্বত অর্থ সূর্য করা হয়েছে। নিরুক্ত ১২.১০-১১ অনুযায়ী যখনই যম এবং যমী যুগলদ্বয়কে বিবস্বাত তথা সূর্যের সহিত উল্লেখ করা হয় তখনই রুপকভাবে এটাই পরিস্কার হয়ে যায় সূর্য উদয়ের সাথে সাথেই রাত বা রাতের অন্ধকার অদৃশ্য হয়ে যায়।
উক্ত নিরুত্ততেই পরিষ্কার বর্ননা দেয়া আছে যে বিবস্বতের সাথে যমযমীর উল্লেখ করা হলে ওখালে দিন এবং রাত অর্থই ধরা হবে। সুতরাং মন্ত্রের বিষয়বস্তু অনুযায়ী এখানে যম যমীর রাত এবং দিনের অর্থটা উক্ত সুক্তে ধরা যেতে পারে।আর বৈবস্বাত অর্থ সূর্য এটারাে প্রমান চাইলে নিরুক্তর উপরােক্ত শ্লোকেও বর্ণিত আছে সেই সাথে নিরক্ত ১০.২০ এও এর অর্থ সূর্য করা।
নিরুক্ত ভাষ্যকর্তা স্কন্ধস্বামীজী যম যমীকে আদিত্য এবং রাত্রি মেনে (10/10 /8) মন্ত্রে ব্যাখ্যা করেছেন। স্বামী ব্রহ্মমুনিও যম যমীকে দিন রাত্রী মেনেছেন। আঘায় উক্ত শব্দের আধ্যাতি আয়েকটা অর্থও রয়েছে।
যমো যুচ্ছতীতি সতঃ নিরুক্ত ৯০, ১৯
অর্থাত যম সবকিছু শাষন এবং শৃঙ্খলা বিধান করেন সকল মানুষকে একত্রিত করে লােক থেকে লোকান্তরে নিয়ে যান।
নিরুক্ত ১০.২০ পারেইবাংসং পর্যাগতবন্তম প্রবত উদ্ধত নিবত ইতি অবতির্গতি কর্মান। অর্থাত যম অর্থই গতি ।পতন অভ্যুদয়ের ভিতর দিয়ে মানুষকে নিয়ে চলেন বিচিত্র পথে।
উক্ত শ্লোকে শ্লোকে এও আছে যে- 'অগ্নিরুপী যম উচ্যতে' অগ্নিকেও(Fire) তাই যম বলা হয়। উল্লেখ্য উপরিউল্লেখিত ব্রাহ্মন গ্রন্থেও এর অর্থ অগ্নি করা হয়েছে তা বর্ণিত হয়েছে।
নিরুক্ত ১০.২১-যম ইব জাত। যমাে জোনিষ্যমাণ: অৰ্থাৎ যা জন্মেছে কিংবা যা জন্মাবে অর্থাত জীবনের সস্কৃতি এবং সম্ভাবনার বীজ হলেন যম ।
॥ओ३म्॥

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