যজুর্বেদ অধ্যায় ২৬মন্ত্র ২ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

সাম্প্রতিক প্রবন্ধ

Post Top Ad

স্বাগতম

13 July, 2020

যজুর্বেদ অধ্যায় ২৬মন্ত্র ২


यथे॒मां वाचं॑ कल्या॒णीमा॒वदा॑नि॒ जने॑भ्यः।
 ब्र॒ह्म॒रा॒ज॒न्या᳖भ्या शूद्राय॒ चार्या॑य च॒ स्वाय॒ चार॑णाय च।
 प्रि॒यो दे॒वानां॒ दक्षि॑णायै दा॒तुरि॒ह भू॑यासम॒यं मे॒ कामः॒ समृ॑ध्यता॒मुप॑ मा॒दो न॑मतु ॥यजुर्वेद  अध्याय:26 मन्त्र:2
যথেমাং বাচং কল্যানীমাবদানি জনেভ্যঃ । 
ব্রহ্ম রাজন্যাভ্যাং শূদ্রায় চার্য্যায় চ স্বায় চারণায় চ।।
প্রিয়ো দেবানাং দক্ষিণায়ৈ দাতুরিহ, ভূয়াসময়ং মে কামঃ সমৃধ্যতামুপ মাদো নমতু ।।
 
যজুর্বেদ, অধ্যায় ২৬মন্ত্র ২

অনুবাদঃ- হে মনুষ্যগণ আমি যে রূপে সমগ্র মনুষ্য জাতির জন্য (ব্রাক্ষণ, ক্ষত্রিয়, বৈশ্য, শূদ্র, স্ত্রীলোক এবং অন্যান্য সমস্ত জনগনকে ) এই কল্যাণদায়িনী পবিত্র বেদবাণী বলিতেছি, তোমরাও সেই রূপ কর। যেমন বেদবাণীর উপদেশ করিয়া আমি বিদ্বানদের প্রিয় হয়েছি, তোমরাও সেইরূপ হও। আমার ইচ্ছা বেদ বিদ্যা প্রচার হোক। এর দ্বারা সকলে মোক্ষ এবং সুখ লাভ করুক।

এখানে দেখা যাচ্ছে বেদের সত্যদ্রষ্টা ঋষি বলছেন ব্রাহ্মণ, ক্ষত্রিয়, বৈশ্য, শূদ্র স্ত্রীলোক এবং অন্যান্য সকল জনগণের জন্যই এই পবিত্র বেদবাণী। তাই বেদ মন্ত্র উচ্চারণে ও চর্চা সকলেরই সমান অধিকার।
-পরমেশ্বর কল্যাণকারী বেদবানী সকল মনুষ্যের হৃতার্থে উপদেশ করিয়াছেন কোন পক্ষপাত করেন নি। পরমেশ্বর যেমন পক্ষপাত রহিত সকলের প্রিয় তেমন মানুষেরও উচিত 
"অজ্ঞানতার কারনে যার নিম্ন জীবনস্থিতি,যে কেবল সেবা আদি কার্য করে,ওইরূপ মানুষ শূদ্র"- তৈ০৩।২।৩।৯
पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! मैं ईश्वर (यथा) जैसे (ब्रह्मराजन्याभ्याम्) ब्राह्मण, क्षत्रिय (अर्याय) वैश्य (शूद्राय) शूद्र (च) और (स्वाय) अपने स्त्री, सेवक आदि (च) और (अरणाय) उत्तम लक्षणयुक्त प्राप्त हुए अन्त्यज के लिए (च) भी (जनेभ्यः) इन उक्त सब मनुष्यों के लिए (इह) इस संसार में (इमाम्) इस प्रगट की हुई (कल्याणीम्) सुख देनेवाली (वाचम्) चारों वेदरूप वाणी का (आवदानि) उपदेश करता हूँ, वैसे आप लोग भी अच्छे प्रकार उपदेश करें। जैसे मैं (दातुः) दान देने वाले के संसर्गी (देवानाम्) विद्वानों की (दक्षिणायै) दक्षिणा अर्थात् दान आदि के लिये (प्रियः) मनोहर पियारा (भूयासम्) होऊँ और (मे) मेरी (अयम्) यह (कामः) कामना (समृध्यताम्) उत्तमता से बढ़े तथा (मा) मुझे (अदः) वह परोक्षसुख (उप, नमतु) प्राप्त हो, वैसे आप लोग भी होवें और वह कामना तथा सुख आप को भी प्राप्त होवे ॥
अन्वय -
(यथा) येन प्रकारेण (इमाम्) प्रत्यक्षीकृताम् (वाचम्) वेदचतुष्टयीं वाणीम् (कल्याणीम्) कल्याणनिमित्ताम् (आवदानि) समन्तादुपदिशेयम् (जनेभ्यः) मनुष्येभ्यः (ब्रह्मराजन्याभ्याम्) ब्रह्म ब्राह्मणश्च राजन्यः क्षत्रियश्च ताभ्याम् (शूद्राय) चतुर्थवर्णाय (च) (अर्याय) वैश्याय। अर्यः स्वामिवैश्ययोः [अ꠶३.१.१०३] इति पाणिनिसूत्रम् (च) (स्वाय) स्वकीयाय (च) (अरणाय) सल्लक्षणाय प्राप्तायान्त्यजाय (प्रियः) कमनीयः (देवानाम्) विदुषाम् (दक्षिणायै) दानाय (दातुः) दानकर्त्तुः (इह) अस्मिन् संसारे (भूयासम्) (अयम्) (मे) मम (कामः) (सम्) (ऋध्यताम्) वर्द्धताम् (उप) (मा) माम् (अदः) परोक्षसुखम् (नमतु) प्राप्नोतु ॥
भावार्थभाषाः -इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। परमात्मा सब मनुष्यों के प्रति इस उपदेश को करता है कि यह चारों वेदरूप कल्याणकारिणी वाणी सब मनुष्यों के हित के लिए मैंने उपदेश की है, इस में किसी को अनधिकार नहीं है, जैसे मैं पक्षपात को छोड़ के सब मनुष्यों में वर्तमान हुआ पियारा हूँ, वैसे आप भी होओ। ऐसे करने से तुम्हारे सब काम सिद्ध होंगे ॥

No comments:

Post a Comment

ধন্যবাদ

বৈশিষ্ট্যযুক্ত পোস্ট

অথর্ববেদ ২/১৩/৪

  ह्यश्मा॑न॒मा ति॒ष्ठाश्मा॑ भवतु ते त॒नूः। कृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ दे॒वा आयु॑ष्टे श॒रदः॑ श॒तम् ॥ ত্রহ্যশ্মানমা তিষ্ঠাশ্মা ভবতুতে তনূঃ। কৃণ্বন্তু...

Post Top Ad

ধন্যবাদ