पुनर्जन्म सिद्धान्त - ধর্ম্মতত্ত্ব

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14 July, 2020

पुनर्जन्म सिद्धान्त

पुनर्जन्म सिद्धान्त
पुनर्जन्म आज एक धार्मिक सिद्धान्त मात्र नहीं है। इस पर विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों एवं परामनोवैज्ञानिक शोध संस्थानों में ठोस कार्य हुआ है। वर्तमान में यह अंधविश्वास नहीं बल्कि वैज्ञानिक तथ्य के रुप में स्वीकारा जा चुका है। पुनरागमन को प्रमाणित करने वाले अनेक प्रमाण आज विद्यमान हैं। इनमें से सबसे बड़ा प्रमाण ऊर्जा संरक्षण का सिद्धांत है। विज्ञान के सर्वमान्य संरक्षण सिद्धांत के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश नहीं होता है, मात्र ऊर्जा का रुप परिवर्तन हो सकता है। अर्थात् जिस प्रकार ऊर्जा नष्ट नहीं होती, वैसे ही चेतना का नाश नहीं हो सकता। चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। चेतना सत्ता का मात्र एक शरीर से निकल कर नए शरीर में प्रवेश संभव है। पुनर्जन्म का भी यही सिद्धांत है। भौतिक ऊर्जा और आत्म ऊर्जा में फ़र्क़ इतना ही है कि आत्म ऊर्जा चेतना युक्त होती है जबकि भौतिक ऊर्जा चेतना से रहित होती है। कर्मफल एवं जन्म-मरण का चक्र पुनर्जन्म का वास्तविक अर्थ है आत्मा अपनी आवश्यकता के अनुसार एक नया शरीर धारण करना। हमारा भौतिक शरीर पांच तत्वों पृथ्वीजलअग्निवायु और आकाश से मिलकर बना है। मृत्यु के पश्चात् शरीर पुन: इन्हीं पांचों तत्वों में विलिन हो जाता है। किसी कारण, आवश्यकता या परिस्थिति के अनुसार यह आत्मा शरीर को छोड़कर मुक्त हो जाता है। एक निर्धारित समय तक मुक्त रहने के पश्चात् आत्मा अपने पूर्व कर्मों एवं संस्कारों के अनुसार पुन: एक नया शरीर प्राप्त करता है। जब तक कि समस्त पिछले कर्मों एवं संस्कारों का पूर्णत: समापन नहीं हो जाता, आत्मा को जन्म मृत्यु के चक्र में घूमना पड़ता है।
पुनर्जन्म का दूसरा प्रत्यक्ष प्रमाण पूर्वजन्म की स्मृति युक्त बालकों का जन्म लेना है। बालकों के पूर्वजन्म की स्मृति की परीक्षा आजकल दार्शनिक और परामनोवैज्ञानिक करते हैं। पूर्वभव के संस्कारों के बिना मोर्जाट चार वर्ष की अवस्था में संगीत नहीं कम्पोज कर सकता था। लार्ड मेकाले और विचारक मील चलना सीखने से पूर्व लिखना सीख गए थे। वैज्ञानिक जान गास तब तीन वर्ष का था तभी अपने पिताजी की गणितीय त्रुटियों को ठीक करता था। इससे प्रकट है कि पूर्वभव में ऐसे बालकों को अपने क्षेत्र में विशेष महारथ हासिल थी। तभी वर्तमान जीवन में संस्कार मौजूद रहे। प्रथमतः शिशु जन्म लेते ही रोता है। स्तनपान करने पर चुप हो जाता है। कष्ट में रोना और अनुकूल स्थिति में प्रसन्नता प्रकट करता है। शिशु बतख स्वतः तैरना सीख जाती है। इस तरह की घटनाएं हमें विवश करती हैं यह सोचने के लिए कि जीव पूर्वजन्म के संस्कार लेकर आता है। वरन् नन्हें शिशुओं को कौन सिखाता है ?

पुनर्जन्म पर शोध

अमेरिका के वर्जीनिया यूनिवर्सिटी वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेन्सन ने अपने अनुसंधान के दौरान कुछ ऐसे मामले भी देखे हैं जिसमें व्यक्ति के शरीर पर उसके पूर्वजन्म के चिह्न मौजूद हैं। यद्यपि आत्मा का रुपान्तरण तो समझ में आता है लेकिन दैहिक चिह्नों का पुनः प्रकटन आज भी एक पहेली है। एक छोटे से लड़के ने अपने इक्कीस साल के मैकेनिक होने की बात कही। उसने बताया की उसकी मौत एक बीच रोड पर तेजी से आती कार की टक्कर से हुई थी। बहुत सारे लोगों के सामने उसने ड्राईवर का नाम, एक्सीडेंट की जगह, मैकेनिक के माता-पिता का नाम, उसके चचेरे भाई-बहनों और दोस्तों के बारे में बताया। लोगों ने उसकी बताई बातों की विस्तार से खोजबीन की और पाया कि सूक्ष्मतम विवरण सही हैं, जबकि वह मैकेनिक उस लड़के के पैदा होने के कई साल पहले ही मर गया था। वैज्ञानिक स्टीवन्सन ने इस घटना का गहराई से अध्ययन किया। उसने लड़के की बातचीत से लेकर अन्य सभी बातों के सिलसिलेवार दस्तावेज बनाये। उसने लड़के के जन्म चिह्न, घावों और कटने के निशान इत्यादि को मृतक के रिकॉर्ड से मिलाया और पाया की वे एकदम एक से है। उस वैज्ञानिक ने चालीस साल तक ऐसी ही घटनाओं का अध्ययन किया और पूरी दुनिया में पुनर्जन्म के मामलों का परीक्षण कर एक किताब लिखी, जिसका नाम है रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि इस किताब को पढ़ने के बाद अमेरिका के कई वैज्ञानिकों ने पुनर्जन्म को स्वीकारना शुरू कर दिया है। उनकी इस किताब को पढ़कर एक लेखिका एलिजाबेथ कुबलर-रोज ने लिखा है कि मुझे अपनी ज़िंदगी की ढलान पर यह जानने को मिला कि प्रो. ईयान स्टिवंस ने पुनर्जन्म को एक हकीकत साबित कर दिया है। मुझे बहुत ही खुशी हो रही है कि दूसरे मिलिनियम के अंत में इस सत्य को आखिर वैज्ञानिक रूप से सिध्द कर दिया गया है।
डॉ. सतवंत पसरिया का शोध
पुनर्जन्म
पुनर्जन्म और पूर्वजन्म विषय पर अमेरिका में इयान स्टीवंस ने जिस तरह से शोध किया है, ठीक उसी प्रकार का शोध भारत में डॉ. सतवंत पसरिया ने भी किया है। बेंगलोर की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसीजय में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के रूप में कार्यरत डॉ. सतवंत ने ईस्वी सन् 1973 से लेकर अभी तक भारत में प्रकाश में आई पुनर्जन्म के क़रीब 500 घटनाओं का संकलन किया है। इसे एक पुस्तक का आकार दिया गया है, जिसका नाम है श्क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनरू एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडिया। उल्लेखनीय है कि बेंगलोर की ये महिला वैज्ञानिक ने अपने शोध के लिए अमेरिका की वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक प्रो. इयान स्टिवेंस के साथ ही काम किया है। इस किताब की प्रस्तावना भी प्रो. स्टिवेंस ने ही लिखी है। वे कहते हैं कि जो इस तरह के किस्सों को पहली बार पढ़ रहे होंगे, उनके लिए इसमें शामिल घटनाओं को सच मानने में बहुत मुश्किल होगी, इसके बाद भी पाठक यह विश्वास रखें कि इस पुस्तक में जो भी घटनाएँ शामिल की गई हैं, वे सभी काफ़ी सावधानीपूर्वक और प्रामाणिकता के साथ लिखी गई हैं।
उत्तर भारत में यह मान्यता है कि जो बच्चे अपने पिछले जन्म के बारे में जानकारी रखते हैं, उनकी मृत्यु छोटी उम्र में ही हो जाती है। इसलिए जो बच्चे पुनर्जन्म की घटनाओं को याद रखते हैं, उनके लिए पालक उसकी इस स्मृति को भुलाने के लिए कई तरह के जतन करते हैं। कई बार तो उसे कुम्हार के चाक पर बैठाकर चाक को उल्टा घुमाया जाता है, ताकि उसकी स्मृति का लोप हो जाए। डॉ. सतवंत के अनुसार जिन बच्चों को अपना पूर्वजन्म याद रहता है, वे 3 से 9 वर्ष तक की उम्र के होते हैं। डॉ. सतवंत ने पहली बार 1973 में वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ऑफ साइकियाट्री इयान स्टिवंस के बारे में जाना, फिर उनके साथ काम किया। इस दौरान उसने जाना कि मानव विज्ञान में इंसान की कई गतिविधियाँ अभी तक समझ से बाहर हैं, ऐसे में पुनर्जन्म की थ्योरी से इसे बखूबी समझा जा सकता है। इस आधार पर उन्होंने अपना शोध शुरू किया। शुरुआत में जब उनके सामने एक के बाए एक किस्से आने लगे, तो उन्हें इस पर विश्वास नहीं होता था। इतने में उनके सामने मथुरा ज़िले की मंजू शर्मा नाम की एक कन्या का मामला सामने आया। उसे अपने पूर्वजन्म की घटना याद की। इसका प्रमाण भी उनके सामने था, तब वे पुनर्जन्म पर विश्वास करने लगी।
बेंगलोर में डॉ. सतवंत के सहकर्मियों एवं उच्च अधिकारियों ने उनके इस शोध की उपेक्षा की। किंतु डॉ. सतवंत की तर्कबत्र कार्यपध्दति से प्रभावित होकर उनका साथ देना शुरू कर दिया। कुछ दिनों बाद उन्हें भी डॉ. सतवंत की सच्चाई पर विश्वास होने लगा। डॉ. सतवंत कहती हैं कि पुनर्जन्म, इंद्रियातीत शक्तियों और मृत्यु जैसे अनुभवों पर विश्वास करें या न करें, अब इसका सवाल ही पैदा नहीं होता। विश्वभर में इस मामले पर वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं, इनका अस्तित्व अब वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो रहा है। कई बार तो ऐसे मामले सामान्य बुद्धि से भी समझे जा सकते हैं। पर जहाँ सामान्य बुद्धि की सीमा समाप्त हो जाती है, तब पुनर्जन्म की बात को स्वीकारना पड़ता है।
अपने अनुभवों से गुजरते हुए डॉ. सतवंत कहती हैं कि कल्पना करो कि कोई बच्चा यदि पानी में जाने से डरता है, तो यह तय है कि पिछले जन्म में उसकी मौत पानी में डूबने से हुई होगी, या फिर उसकी मौत के पीछे पानी ही कोई कारण रहा होगा। कई बच्चों के शरीर पर जन्म से ही कई तरह के निशान होते हैं, इससे यह धारणा सत्य साबित होती है कि पिछले जन्म में उसे किसी तरह की चोट लगी होंगी। सामान्य रूप से यह माना जाता है कि पूर्वजन्म को याद रखने वाले कम उम्र में ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं, पर नागपुर की उत्तरा का किस्सा कुछ और ही है। जब यह 30 वर्ष की थीं, तब वह कहने लगी कि वह बंगाल की शारदा है और चटोपाध्याय परिवार की सदस्य है। मराठी भाषी उत्तरा अब धाराप्रवाह रूप से बंगला बोलने लगी। यही नहीं 18 वीं सदी के रीति-रिवाजों पर बात करने लगी। पूर्वजन्म में ऐसा होता है कि मृत्यु के एक वर्ष बाद फिर से जन्म होता है। पर यहाँ तो बंगाल की शारदा की मृत्यु के 110 वर्ष बाद उसका पुनर्जन्म हो रहा है। इस मामले को विस्तार से डॉ. सतवंत ने अपनी किताब में बताया है।
मुंबई की एक महिला बासंती भायाणी अपने परिवार में हुई पुनर्जन्म की एक घटना 8 सितम्बर 2004 के एक गुजराती अखबार में प्रकाशित हुई है। इस घटना में जूनागढ़ की एक ब्राह्मण कन्या गीता का जन्म भावनगर के एक जैन परिवार में राजुल के रूप में हुआ। राजुल जब अपने पिछले जन्म को याद करने लगी, तो उसे जूनागढ़ ले जाया गया, यहाँ उसने अपना घर, स्वजन ही नहीं, बल्कि अपनी गुडिया तक को पहचान लिया। जब राजुल की शादी हुई, तब उसके पूर्वजन्म के परिजनों ने उसे बहुत सारा दहेज भी दिया। आज राजुल अहमदाबाद में अपने छोटे से परिवार में रहती है।

एक समय ऐसा था जब अपने को तार्किक बताने वाले बुद्धिजीवी पुनर्जन्म की घटना को बकवास कहकर हँसी उड़ाते थे, पर अब समय बदल रहा है, अधिकांश तार्किक यह मानने लगे हैं कि जिसे बुद्धि समझ नहीं सकती, वैसा ही इस दुनिया में कुछ हो रहा है। भारत के प्रखर बुद्धिवादी जस्टिस वी.आर. कृष्णा अय्यर का अनुभव कहता है कि उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद वह रोज उनके सपने में आकर उनसे बात करतीं थीं। इसका ज़िक्र उन्होंने अपनी किताब डेथ ऑटरय में भी किया है। इस किताब को कोणार्क पब्लिकेशंस ने प्रकाशित किया है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार पुनर्जन्म का संबंध टेलीपेथी या मानवशास्त्र से हो सकता है। विद्यार्थी टेस्ट बुक के रूप में इंट्रोडक्शन टु साइकोलॉजी का अध्ययन करते हैं, उसके लेखक रिचर्ड अटिकिंसन कहते हैं - पेरासाइकोलॉजी विषय में जो शोध हो रहे हैं, इस बारे में हमें बहुत सी शंकाएँ हैं। पर हाल ही में टेलिपेथी के संबंध में जो शोध हुए हैं, वे हमें विवश करते हैं कि हम उसे स्वीकार लें। पुनर्जन्म और टेलिपेथी पर किताब लिखने वाले डॉ. डीन रेडिन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात कहते हैं - इस प्रकार की घटनाओं के जितने सुबूत पेश किए गए हैं, उतने सुबूत यदि किसी अन्य विषय पर पेश किए होते, तो वैज्ञानिक कब का इसे स्वीकार चुके होते। यही विज्ञान और धर्म के बीच संघर्ष का जन्म होता है।
 एक तालाब के किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे। तालाब में पत्थर फेंक रहे थे जिससे कुछ बुलबुले उठ रहे थे। बुलबुले उठते और समाप्त हो जाते फिर नए बुलबुले उठते और वे भी समाप्त हो जाते। क्या इन बुलबुलों का जन्म होगा? क्या ये बुलबुले पहले भी कोई जन्म ले चुके हैं?
एक कुम्हार ने बहुत सारे खिलौने बनाए। एक गुड़िया बहुत सुंदर थी जिसे ऊंचे दाम में एक रईस परिवार के बच्चे ने खरीद लिया। वह उसके हाथ से छूट कर चकनाचूर हो गई। क्या इस गुड़िया का पुनर्जन्म होगा?
एक बहुत हरा भरा मैदान था जिसमें घास की असंख्य पत्तियां उग रही थीं। घर बनाने के लिए सारी घास को उखाड़ दिया गया। घास सूख कर समाप्त हो गई। क्या घास की उन पत्तियों का पुनर्जन्म होगा?
रोशनी की चकाचैंघ में लाखों पतंगे उड़ रहे थे। प्रातः तक उस रोशनी में सभी पतंगे अपना शरीर छोड़ चुके थे। क्या उन पतंगों का पुनर्जन्म होगा?
मनुष्य का शरीर अरबों खरबों कोशिकाओं से निर्मित है। शरीर में अनेक प्रकार के जीवाणु भी पल रहे हैं। प्रत्येक कोशिका व जीवाणु अपने आप में जीवित है। हर क्षण कोशिकाएं व जीवाणु मर रहे हैं और नए पैदा हो रहे हैं। क्या इन कोशिकाओं व जीवाणुओं का पुनर्जन्म होगा?
यदि ध्यान से विचार करें तो समुद्र की लहर समुद्र में समा गई, जल जल में विलीन हो गया और जो दूसरी लहर उठी, उसे पहली लहर का पुनर्जन्म कहें तो यह तर्कसंगत नहीं लगता। इसी प्रकार से जीव भी मृत्योपरांत पंचमहाभूत में विलीन हो जाता है और पंचमहाभूत के समुद्र से अर्थात इस सृष्टि से नए जीव की उत्पत्ति होती है। इस शरीर का पिछले शरीर से कोई संबंध है यह कहना कठिन है।
यदि कहें कि शरीर का विलय तो होता ही रहता है, पुनर्जन्म तो आत्म तत्व का होता है, तो इसका क्या अर्थ होगा जबकि आत्मा एक है और समान रूप से हर जगह विद्यमान है। यह जीव अजीव में एक रूप से विद्यमान है। यदि जीव का पुनर्जन्म होता है तो हर अजीव का भी पुनर्जन्म होना चाहिए।

यदि कहें कि पुनर्जन्म आत्मा का न होकर जीवात्मा का होता है तो क्या आत्मा और जीवात्मा में भेद है? तो क्या यह जीवात्मा पेड़ पौधों में या अजीव पदार्थों में नहीं होती? जीव सर्वदा अजीव पर निर्भर है और अजीव में जीवन सुषुप्त अवस्था में विद्यमान रहता है जैसे बीज के अंदर पूरा वृक्ष। अतः जीवात्मा चराचर में एक रूप से विद्यमान है। तो पुनर्जन्म किसका?
शरीर के अंदर अन्य जीवाणु व कोशिकाएं विद्यमान हैं तो क्या एक जीवात्मा के अंदर बहुत सारी जीवात्माएं स्थित हैं। एक जीवात्मा के मरने से क्या उन सबकी भी मृत्यु हो जाती है और बाद में उनका भी पुनर्जन्म होता है? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जिनका उत्तर पुनर्जन्म के सिद्धांत के आधार पर देना कठिन है।
मूलतः मनुष्य का अपने जीवन से मोह उसे नष्ट होते हुए नहीं देख सकता। उसे अपने जीवन का पंचमहाभूत में विलीन होना जीवन का अंत नहीं लगता। अतः वह जन्म मृत्यु के चक्र द्वारा अपनी मृत्यु के पुनर्जन्म का अहसास करता है। हमारे शास्त्र भी इसे सर्वसम्मति से स्वीकार करते हैं क्योंकि प्रथमतः जीव को अपना जीवन निरर्थक न लगे एवं दूसरे वह इस पुनर्जन्म के भय के कारण इस जन्म में मनमानी नहीं करे और अपने कर्मों से दूसरे जन्म को अच्छा बनाने में प्रयासरत रहे।
यदि हमारा जीवन इस शरीर तक ही है तो शास्त्र हमें वस्तुओं का उपभोग करने की अनुमति क्यों नहीं देते। क्यों शास्त्र तप व त्याग के लिए ही प्रेरित करते रहते हैं? कारण यह है कि उपभोग शरीर को केवल कुछ समय के लिए ही आनंद देते हैं व उपभोग से शरीर की क्षमताएं कम हो जाती हैं।
तप व त्याग कड़वी दवाई की तरह से हैं जो शरीर, मन व बुद्धि को पुष्ट रखने के साथ साथ चिर आनंद देते हैं। पुनर्जन्म का सिद्धांत तो जीवन की गहराइयों के प्रति गहरा विष्वास बनाए रखने के लिए एवं इस जीवन के महत्व को बढ़ाने के लिए निरूपित किया गया है। लेकिन पुनर्जन्म को हमने इतना सच मान लिया है कि इसके विपरीत सोचना हमें निरर्थक लगता है।
पुनर्जन्म की कथाओं को क्या हम अस्वीकार करें जो पुनर्जन्म को सिद्ध करती हैं? इसके उत्तर में यही कहना है कि बहुत सी बातें इस चेतन शरीर से हम महसूस कर लेते हैं जो हमने कभी नहीं देखी होती हैं या फिर वे भविष्य में होने वाली होती हैं। अनेकानेक स्वप्न भी हमें भविष्य का पूर्वाभास कराते हैं। विज्ञान ने भी माना है कि भूत या भविष्य को देखा या महसूस किया जा सकता है।
जैसे एक बच्चा भी बिना देखे घंटी बजने पर जान जाता है कि उसके पिता कार्य से लौटे हैं। जैसे फोन की घंटी बजते ही हमें अहसास हो जाता है कि यह अमुक का फोन है। पूर्वाभास होना चेतन शरीर का गुणधर्म है जिसे हम आत्मरूप से समझने लगते हैं। इस शरीर के अंदर जीव तत्व का अस्तित्व समझ लेना गणेश जी की प्रतिमा को दूध पिलाने के समान ही है।
अंततः पुनर्जन्म के सिद्धांत का प्रतिपादन जीवन के स्वरूप को आम मनुष्य को समझाने के लिए ही किया गया है। आत्मा तो अमर है और सर्वव्यापक है। जो अमर है उसका पुनर्जन्म हो ही नहीं सकता। शरीर जो नश्वर है, पंचमहाभूत में विलीन हो ही जाता है और दूसरे शरीर के जन्म का पहले शरीर से संबंध तर्कसंगत नहीं है। केवल शास्त्रों के प्रति हमारी श्रद्धा ही पुनर्जन्म के सिद्धांत को नकारने में अवरोधक है।
पुनर्जन्म सिद्धान्त समीक्षा :-

प्रश्न :- पुनर्जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर :- आत्मा और इन्द्रियों का शरीर के साथ बार बार सम्बन्ध टूटने और बनने को पुनर्जन्म या प्रेत्याभाव कहते हैं ।

प्रश्न :- प्रेत किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जब आत्मा और इन्द्रियों का शरीर से सम्बन्ध टूट जाता है तो जो बचा हुआ शरीर है उसे शव या प्रेत कहा जाता है ।

प्रश्न :- भूत किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जो व्यक्ति मृत हो जाता है वह क्योंकि अब वर्तमान काल में नहीं है और भूतकाल में चला गया है इसी कारण वह भूत कहलाता है ।

प्रश्न :- पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है ?
उत्तर :- पुनर्जन्म को समझने के लिये आपको पहले जन्म और मृत्यु के बारे मे समझना पड़ेगा । और जन्म मृत्यु को समझने से पहले आपको शरीर को समझना पड़ेगा ।

प्रश्न :- शरीर के बारे में समझाएँ ।
उत्तर :- शरीर तीन प्रकार का होता है :- (१) सूक्ष्म शरीर ( मन, बुद्धि ),(२)स्थूल शरीर (५ ज्ञानेन्द्रियाँ ,५ कर्मेन्द्रियाँ ) इस शरीर के द्वारा आत्मा कर्मों को करता है ।(३)कारण शरीर(सत्व,रज,तम से युक्त)

प्रश्न :- जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर :- आत्मा का सूक्ष्म शरीर को लेकर स्थूल शरीर के साथ सम्बन्ध हो जाने का नाम जन्म है।और ये सम्बन्ध प्राणों के साथ दोनो शरीरों में स्थापित होता है । जन्म को जाति भी कहा जाता है ( उदाहरण :- पशु जाति, मनुष्य जाति, पक्षी जाति, वृक्ष जाति आदि )

प्रश्न :- मृत्यु किसे कहते हैं ?
उत्तर :- सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच में प्राणों का सम्बन्ध है । उस सम्बन्ध के टूट जाने का नाम मृत्यु है ।

प्रश्न :- मृत्यु और निद्रा में क्या अंतर है ?
उत्तर :- मृत्यु में दोनों शरीरों के सम्बन्ध टूट जाते हैं और निद्रा में दोनों शरीरों के सम्बन्ध स्थापित रहते हैं ।

प्रश्न :- मृत्यु कैसे होती है ?
उत्तर :- आत्मा अपने सूक्ष्म शरीर को पूरे स्थूल शरीर से समेटता हुआ किसी एक द्वार से बाहर निकलता है और जिन जिन इन्द्रियों को समेटता जाता है वे सब निष्क्रिय होती जाती हैं । तभी हम देखते हैं कि मृत्यु के समय बोलना, दिखना, सुनना सब बंद होता चला जाता है ।

प्रश्न :- जब मृत्यु होती है तो हमें कैसा लगता है ?
उत्तर :- ठीक वैसा ही जैसा कि हमें बिस्तर पर लेटे लेटे नींद में जाते हुए लगता है । हम ज्ञान शून्य होने लगते हैं । यदि मान लो हमारी मृत्यु स्वाभाविक नहीं है और कोई तलवार से धीरे धीरे गला काट रहा है तो पहले तो निकलते हुए रक्त और तीव्र पीड़ा से हमें तुरंत मूर्छा आने लगेगी और हम ज्ञान शून्य हो जायेंगे और ऐसे ही हमारे प्राण निकल जायेंगे ।

प्रश्न :- मृत्यु और मुक्ति में क्या अंतर है ?
उत्तर :- जीवात्मा को बार बार कर्मो के अनुसार शरीर प्राप्त करे के लिये सूक्ष्म शरीर मिला हुआ होता है । जब सामान्य मृत्यु होती है तो आत्मा सूक्ष्म शरीर को लेकर उस स्थूल शरीर ( मनुष्य, पशु, पक्षी आदि ) से निकल जाता है परन्तु जब मुक्ति होती है तो आत्मा स्थूल शरीर ( मनुष्य ) को तो छोड़ता ही है लेकिन ये सूक्ष्म शरीर भी छोड़ देता है और सूक्ष्म शरीर प्रकृत्ति में लीन हो जाता है । ( मुक्ति केवल मनुष्य शरीर में योग समाधि आदि साधनों से ही होती है )

प्रश्न :- मुक्ति वा मोक्ष की अवधि कितनी है ?
उत्तर :- मुक्ति की अवधि 36000 सृष्टियाँ हैं । 1 सृष्टि = 8640000000 वर्ष । यानी कि इतनी अवधि तक आत्मा मुक्त रहता है और ब्रह्माण्ड में ईश्वर के आनंद में मग्न रहता है । और ये अवधि पूरी करते ही किसी शरीर में कर्मानुसार फिर से आता है ।

प्रश्न :- मृत्यु की अवधि कितनी है ?
उत्तर :- एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेता है ।

प्रश्न :- जन्म किसे कहते हैं ?
उत्तर :- ईश्वर के द्वारा जीवात्मा अपने सूक्ष्म शरीर के साथ कर्म के अनुसार किसी माता के गर्भ में प्रविष्ट हो जाता है और वहाँ बन रहे रज वीर्य के संयोग से शरीर को प्राप्त कर लेता है । इसी को जन्म कहते हैं ।

प्रश्न :- जाति किसे कहते हैं ?
उत्तर :- जन्म को जाति कहते है । कर्मों के अनुसार जीवात्मा जिस शरीर को प्राप्त होता है वह उसकी जाति कहलाती है । जैसे :- मनुष्य जाति, पशु जाति, वृक्ष जाति, पक्षी जाति आदि ।

प्रश्न :- ये कैसे निश्चय होता है कि आत्मा किस जाति को प्राप्त होगा ?
उत्तर :- ये कर्मों के अनुसार निश्चय होता है । ऐसे समझिए ! आत्मा में अनंत जन्मों के अनंत कर्मों के संस्कार अंकित रहते हैं । ये कर्म अपनी एक कतार में खड़े रहते हैं जो कर्म आगे आता रहता है उसके अनुसार आत्मा कर्मफल भोगता है । मान लो आत्मा ने कभी किसी शरीर में ऐसे कर्म किये हों जिसके कारण उसे सूअर का शरीर मिलना हो । और ये सूअर का शरीर दिलवाने वाले कर्म कतार में सबसे आगे खड़े हैं तो आत्मा उस प्रचलित शरीर को छोड़ तुरंत किसी सूअरिया के गर्भ में प्रविष्ट होगी और सूअर का जन्म मिलेगा । अब आगे चलिये सूअर के शरीर को भोग जब आत्मा के वे कर्म निवृत होंगे तो कतार में उससे पीछे मान लो भैंस का शरीर दिलाने वाले कर्म खड़े हो गए तो सूअर के शरीर में मरकर आत्मा भैंस के शरीर को भोगेगा । बस ऐसे ही समझते जाइए कि कर्मों की कतार में एक के बाद एक एक से दूसरे शरीर में पुनर्जन्म होता रहेगा । यदि ऐसे ही आगे किसी मनुष्य शरीर में आकर वो अपने जीवन की उपयोगिता समझकर योगी हो जायेगा तो कर्मो की कतार को 36000 सृष्टियों तक के लिये छोड़ देगा । उसके बाद फिर से ये क्रम सब चालू रहेगा ।

प्रश्न :- लेकिन हम देखते हैं एक ही जाति में पैदा हुई आत्माएँ अलग अलग रूप में सुखी और दुखी हैं ऐसा क्यों ?
उत्तर :- ये भी कर्मों पर आधारित है । जैसे किसी ने पाप पुण्य रूप में मिश्रित कर्म किये और उसे पुण्य के आधार पर मनुष्य शरीर तो मिला परंतु वह पाप कर्मों के आधार पर किसी ऐसे कुल मे पैदा हुआ जिसमें उसे दुख और कष्ट अधिक झेलने पड़े । आगे ऐसे समझिए जैसे किसी आत्मा ने किसी शरीर में बहुत से पाप कर्म और कुछ पुण्य कर्म किए जिस पाप के आधार पर उसे गाय का शरीर मिला और पुण्यों के आधार उस गाय को ऐसा घर मिला जहाँ उसे उत्तम सुख जैसे कि भोजन, चिकित्सा आदि प्राप्त हुए । ठीक ऐसे ही कर्मों के मिश्रित रूप में शरीरों का मिलना तय होता है ।

प्रश्न :- जो आत्मा है उसकी स्थिति शरीर में कैसे होती है ? क्या वो पूरे शरीर में फैलकर रहती है या शरीर के किसी स्थान विशेष में ?
उत्तर :- आत्मा एक सुई की नोक के करोड़वें हिस्से से भी अत्यन्त सूक्ष्म होती है और वह शरीर में हृदय देश में रहती है वहीं से वो अपने सूक्ष्म शरीर के द्वारा स्थूल शरीर का संचालन करती है । आत्मा पूरे शरीर में फैली नहीं होती या कहें कि व्याप्त नहीं होती। क्योंकि मान लें कोई आत्मा किसी हाथी के शरीर को धारण किये हुए है और उसे त्यागकर मान लो उसे कर्मानुसार चींटी का शरीर मिलता है तो सोचो वह आत्मा उस चींटी के शरीर में कैसे घुसेगी ? इसके लिये तो उस आत्मा की पर्याप्त काट छांट करनी होगी जो कि शास्त्र विरुद्ध सिद्धांत है, कोई भी आत्मा काटा नहीं जा सकता । ये बात वेद, उपनिषद्, गीता आदि भी कहते हैं।

प्रश्न :- लोग मृत्यु से इतना डरते क्यों हैं ?
उत्तर :- अज्ञानता के कारण । क्योंकि यदि लोग वेद, दर्शन, उपनिषद् आदि का स्वाध्याय करके शरीर और आत्मा आदि के ज्ञान विज्ञान को पढ़ेंगे तो उन्हें सारी स्थिति समझ में आ जायेगी और लेकिन इससे भी ये मात्र शाब्दिक ज्ञान होगा यदि लोग ये सब पढ़कर अध्यात्म में रूचि लेते हुए योगाभ्यास आदि करेंगे तो ये ज्ञान उनको भीतर से होता जायेगा और वे निर्भयी होते जायेंगे । आपने महापुरुषों के बारे में सुना होगा कि जिन्होंने हँसते हँसते अपने प्राण दे दिए । ये सब इसलिये कर पाए क्योंकि वे लोग तत्वज्ञानी थे जिसके कारण मृत्यु भय जाता रहा । सोचिए महाभारत के युद्ध में अर्जुण भय के कारण शिथिल हो गया था तो योगेश्वर कृष्ण जी ने ही उनको सांख्य योग के द्वारा ये शरीर, आत्मा आदि का ज्ञान विज्ञान ही तो समझाया था और उसे निर्भयी बनाया था । सामान्य मनुष्य को तो अज्ञान मे ये भय रहता ही है ।

प्रश्न :- क्या वास्तव में भूत प्रेत नहीं होते ? और जो हम ये किसी महिला के शरीर मे चुड़ैल या दुष्टात्मा आ जाती है वो सब क्या झूठ है ?
उत्तर :- झूंठ है । लीजिए इसको क्रम से समझिए । पहली बात तो ये है कि किसी एक शरीर कां संचालन दो आत्माएँ कभी नहीं कर सकतीं । ये सिद्धांत विरुद्ध और ईश्वरीय नियम के विरुद्ध है । तो किसी एक शरीर में दूसरी आत्मा का आकर उसे अपने वश में कर लेना संभव ही नही है । और जो आपने बोला कि कई महिलाओं में जो डायन या चुड़ैल आ जाती है जिसके कारण उनकी आवाज़ तक बदल जाति है तो वो किसी दुष्टात्मा के कारण नहीं बल्कि मन के पलटने की स्थिति के कारण होता है । विज्ञान की भाषा में इसे Multiple Personality Disorder कहते हैं जिसमें एक व्यक्ति परिवर्तित होकर अगले ही क्षण दूसरे में बदल जाता है । ये एक मान्सिक रोग है ।

प्रश्न :- पुनर्जन्म का साक्ष्य क्या है ? ये सिद्धांतवादी बातें अपने स्थान पर हैं पर इसके प्रत्यक्ष प्रमाण क्या हैं ?
उत्तर :- आपने ढेरों ऐसे समाचार सुने होंगे कि किसी घर में कोई बालक पैदा हुआ और वह थोड़ा बड़ा होते ही अपने पुराने गाँव, घर, परिवार और उन सदस्यों के बारे में पूरी जानकारी बताता है जिनसे उसका प्रचलित जीवन में दूर दूर तक कोई संबन्ध नहीं रहा है । और ये सब पुनर्जन्म के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । सुनिए ! होता ये है कि जैसा आपको ऊपर बताया गया है कि आत्मा के सूक्ष्म शरीर में कर्मो के संस्कार अंकित होते रहते हैं और किसी जन्म में कोई अवसर पाकर वे उभर आते हैं इसी कारण वह मनुष्य अपने पुराने जन्म की बातें बताने लगता है । लेकिन ये स्थिति सबके साथ नहीं होती । क्योंकि करोड़ों में कोई एक होगा जिसके साथ ये होता होगा कि अवसर पाकर उसके कोई दबे हुए संस्कार उग्र हो गए और वह अपने बारे में यहाँ तक कि अलग अलग युग में हुई घटनाएँ भी बताने लगा ।
ब्रह्मचारी कृष्णदत्त (पूर्व जन्म में ऋषि श्रृंगी) इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।

प्रश्न :- क्या हम जान सकते हैं कि हमारा पूर्व जन्म कैसा था ?
उत्तर :- महर्षि दयानंद सरस्वती जी कहते हैं कि सामान्य रूप में तो नहीं परन्तु यदि आप योगाभ्यास को सिद्ध करेंगे तो आपके करोंड़ों वर्षों का इतिहास आपके सामने आकर खड़ा हो जायेगा । और यही तो मुक्ति के लक्षण हैं ।

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অথর্ববেদ ২/১৩/৪

  ह्यश्मा॑न॒मा ति॒ष्ठाश्मा॑ भवतु ते त॒नूः। कृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ दे॒वा आयु॑ष्टे श॒रदः॑ श॒तम् ॥ ত্রহ্যশ্মানমা তিষ্ঠাশ্মা ভবতুতে তনূঃ। কৃণ্বন্তু...

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ধন্যবাদ