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वृहद विमान शास्त्र📕 pdf
सामान्यतः आजकल यह माना जाता है कि पक्षियों की तरह आकाश में उड़ने का मानव का स्वप्न राइट बंधुओं ने सन् १७ दिसम्बर १९०३ में विमान बनाकर पूरा किया और विमान विद्या विश्व को पश्चिम की देन है । इसमें संशय नहीं कि आज विमान विद्या अत्यंत विकसित अवस्था में पहॅंच चुकी है । परंतु महाभारत काल तथा उससे पूर्व भारतवर्ष में भी विमान विद्या का विकास हुआ था । न केवल विमान अपितु अंतरिक्ष में स्थित नगर रचना भी हुई थी इसके अनेक संदर्भ प्राचीन वांग्मय में मिलते हैं । |
विद्या वाचस्पति पं. मधुसूदन सरस्वती " इन्द्रविजय " नामक ग्रंथ में ऋग्वेद के छत्तीसवें सूक्त प्रथम मंत्र का अर्थ लिखते हुए कहते हैं कि ऋभुओं ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ बनाया था जो अंतरिक्ष में उड़ सकता था । पुराणों में विभिन्न देवी देवता , यक्ष , विद्याधर आदि विमानों द्वारा यात्रा करते हैं इस प्रकार के उल्लेख आते हैं । त्रिपुरा याने तीन असुर भाइयों ने अंतरिक्ष में तीन अजेय नगरों का निर्माण किया था , जो पृथ्वी, जल, व आकाश में आ जा सकते थे और भगवान शिव ने जिन्हें नष्ट किया । रामायण में पुष्पक विमान का वर्णन है । महाभारत में श्री कृष्ण, जरासंध आदि के विमानों का वर्णन आता है । भागवत में कर्दम ऋषि की कथा आती है । तपस्या में लीन रहने के कारण वे अपनी पत्नी की ओर ध्यान नहीं दे पाए । इसका भान होने पर उन्होंने अपने विमान से उसे संपूर्ण विश्व कादर्शन कराया । |
उपर्युक्त वर्णन जब आज का तार्किक व प्रयोगशील व्यक्ति सुनता या पढ़ता है तो उसके मन में स्वाभाविक विचार आता है कि यें सब कपोल कल्पनाएं हैं मानव के मनोंरंजन हेतु गढ़ी कहानियॉ हैं । ऐसा विचार आना सहज व स्वाभाविक है क्योंकि आज देश में न तो कोई प्राचीन अवशेष मिलते हैं जों सिद्ध कर सकें कि प्राचीनकाल में विमान बनाने की तकनीक लोग जानते थें । |
केवल सौभागय से एक ग्रन्थ उपलब्ध है, जो बताता है कि भारत में प्राचीनकाल में न केवल विमान विद्या थी, अपितु वह बहुत प्रगत अवस्था में भी थी । यह ग्रंथ इसकी विषय सूची में व इसमें किया गया वर्णन विगत अनेक वर्षों से अपने देश व विदेश में अध्येताओं को आकर्षित कर रहा है । गतवर्ष दिल्ली के एक उद्योगपति श्री सुबोध जी से प्राचीन भारत में विज्ञान की स्थिति के संदर्भ में बात हो रही थी । बातचीत में उन्होंन अपना एक अनुभव बताया । सुबोध जी के छोटे भाई अमेरिका में नासा में काम करते हैं । १९७३ में उनका नासा से फोन आया कि भारत में महर्षि भारद्वाज का विमानशास्त्र पर कोई ग्रन्थ है । वह नासा में कार्यरत उनके अमेरिकी मित्र वैज्ञानिक को चाहिए । यह सुनकर सुबोध जी को आश्चर्य हुआ , क्योंकि उन्होंने भी प्रथम बार ही इस ग्रन्थ के बारे में सुना था । बाद में प्रयन्त करके मैसूर से वह ग्रन्थ प्राप्त् करके उसे अमेरिका भिजवाया । महर्षि भारद्वाज ने " यंत्र सर्वस्व " नामक ग्रंथ लिखा था, जिसमे सभी प्रकार के यंत्रों के बनाने तथा उन के संचालन का विस्तृत वर्णन किया। उसका एक भाग वैमानिक शास्त्र है | |
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