ग॒णानां॑ त्वा ग॒णप॑तिꣳहवामहे प्रि॒याणां॑ त्वा प्रि॒यप॑तिꣳहवामहे निधी॒नां त्वा॑ निधि॒पति॑ꣳ हवामहे वसो मम। आहम॑जानि गर्भ॒धमा त्वम॑जासि गर्भ॒धम् ॥१९ ॥-यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:19
पदार्थान्वयभाषाः -
हे जगदीश्वर ! हम लोग (गणानाम्) गणों के बीच (गणपतिम्) गणों के पालनेहारे (त्वा) आपको (हवामहे) स्वीकार करते (प्रियाणाम्) अतिप्रिय सुन्दरों के बीच (प्रियपतिम्) अतिप्रिय सुन्दरों के पालनेहारे (त्वा) आपकी (हवामहे) प्रशंसा करते (निधीनाम्) विद्या आदि पदार्थों की पुष्टि करनेहारों के बीच (निधिपतिम्) विद्या आदि पदार्थों की रक्षा करनेहारे (त्वा) आपको (हवामहे) स्वीकार करते हैं। हे (वसो) परमात्मन् ! जिस आप में सब प्राणी वसते हैं, सो आप (मम) मेरे न्यायाधीश हूजिये, जिस (गर्भधम्) गर्भ के समान संसार को धारण करने हारी प्रकृति को धारण करने हारे (त्वम्) आप (आ, अजासि) जन्मादि दोषरहित भलीभाँति प्राप्त होते हैं, उस (गर्भधम्) प्रकृति के धर्त्ता आपको (अहम्) मैं (आ, अजानि) अच्छे प्रकार जानूँ ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः -हे मनुष्यो ! जो सब जगत् की रक्षा, चाहे हुए सुखों का विधान, ऐश्वर्य्यों का भलीभाँति दान, प्रकृति का पालन और सब बीजों का विधान करता है, उसी जगदीश्वर की उपासना सब करो ॥१९ ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
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