यजुर्वेद अध्याय 31 मन्त्र 10 - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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25 August, 2020

यजुर्वेद अध्याय 31 मन्त्र 10

यत्पुरु॑षं॒ व्यद॑धुः कति॒धा व्य॑कल्पयन्।
 मुखं॒ किम॑स्यासी॒त् किं बा॒हू किमू॒रू पादा॑ऽउच्येते ॥१० ॥
पदार्थान्वयभाषाः -हे विद्वान् लोगो ! आप (यत्) जिस (पुरुषम्) पूर्ण परमेश्वर को (वि, अदधुः) विविध प्रकार से धारण करते हो, उसको (कतिधा) कितने प्रकार से (वि, अकल्पयन्) विशेषकर करते हैं और (अस्य) इस ईश्वर की सृष्टि में (मुखम्) मुख के समान श्रेष्ठ (किम्) कौन (आसीत्) है (बाहू) भुजबल का धारण करनेवाला (किम्) कौन (ऊरू) घोंटू के कार्य्य करने हारे और (पादौ) पाँव के समान नीच (किम्) कौन (उच्येते) कहे जाते हैं ॥१० ॥
भावार्थभाषाः -हे विद्वानो ! इस संसार में असंख्य सामर्थ्य ईश्वर का है, उस समुदाय में उत्तम अङ्ग मुख और बाहू आदि अङ्ग कौन हैं? यह कहिये ॥१० ॥

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