तमिद्गर्भं॑ प्रथ॒मं द॑ध्र॒ आपो॒ यत्र॑ दे॒वाः स॒मग॑च्छन्त॒ विश्वे॑ ।
अ॒जस्य॒ नाभा॒वध्येक॒मर्पि॑तं॒ यस्मि॒न्विश्वा॑नि॒ भुव॑नानि त॒स्थुः ॥
tam id garbham prathamaṁ dadhra āpo yatra devāḥ samagacchanta viśve | ajasya nābhāv adhy ekam arpitaṁ yasmin viśvāni bhuvanāni tasthuḥ ||
তমিদগর্ভং প্রথমং দধ্র আপো যত্র দেবাঃ সমতচ্ছন্তু বিশ্বে।
অজস্য নাভাবধ্যেমর্পিতং যস্মিন বিশ্বানি ভুবনানি তসথূঃ।।
पदार्थान्वयभाषाः -(तम्-इत्) उस ही (प्रथमं गर्भम्) प्रमुख ग्रहण करनेवाले परमात्मा को (आपः-दध्रेः) व्याप्त परमाणु अपने ऊपर स्वामी रूप में धारण करते हैं (यत्र) जिस परमात्मा में (विश्वे देवाः) सब मुक्तात्माएँ (समगच्छन्त) सङ्गत होते हैं (अजस्य नाभौ अधि) अजन्मा परमात्मा के मध्य में (एकम्-अर्पितम्) एक हुआ जगत् आश्रित है (यस्मिन्) जिस जगत् में (विश्वानि भुवनानि) सब लोक-लोकान्तर (तस्थुः) स्थित हैं-रहते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः -परमात्मा में मुक्तात्माएँ आश्रय पाते हैं। जगत् के परमाणु और समस्त जगत् तथा लोक-लोकान्तर सब उसी परमात्मा में आश्रय लेते हैं ॥
হে মনুষ্য! সেই পরমাত্মাকে বুঝিতেছ না। তিনি এই জগৎ রচনা করিয়াছেন। তিনি তোমাদের মধ্যে বিরাজমান অথচ তিনি তোমা হইতে পৃথক। মুক্ত আত্মা পরমাত্মায় আশ্রয় পায়,জগতের পরমানু ও সমস্ত জগৎ তথা লোক লোকান্তর সমস্ত ঐ পরমাত্মাতে আশ্রয় নেই।-ব্রহ্মমুনি ভাষ্য
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