ইন্দ্রে ভুজং শমমানাস সূরো দৃশীকে বৃষণশ্চ পৌস্যে।
প্র য়ে ন্বস্যার্হণা ততত্তিরে য়ুজং ব্রজং নৃষদনেষু কারবঃ।।
इन्द्रे॒ भुजं॑ शशमा॒नास॑ आशत॒ सूरो॒ दृशी॑के॒ वृष॑णश्च॒ पौंस्ये॑ ।
प्र ये न्व॑स्या॒र्हणा॑ ततक्षि॒रे युजं॒ वज्रं॑ नृ॒षद॑नेषु का॒रव॑: ॥
indre bhujaṁ śaśamānāsa āśata sūro dṛśīke vṛṣaṇaś ca pauṁsye | pra ye nv asyārhaṇā tatakṣire yujaṁ vajraṁ nṛṣadaneṣu kāravaḥ ||
पद पाठ
इन्द्रे॑ । भुज॑म् । श॒श॒मा॒नासः॑ । आ॒श॒त॒ । सूरः॑ । दृशी॑के । वृष॑णः । च॒ । पौंस्ये॑ । प्र । ये । नु । अ॒स्य॒ । अ॒र्हणा॑ । त॒त॒क्षि॒रे । युज॑म् । वज्र॑म् । नृ॒ऽसद॑नेषु । का॒रवः॑ ॥
पदार्थान्वयभाषाः -(शशमानासः) परमात्मा की प्रशंसा करनेवाले (इन्द्रे भुजम्-आशत) ऐश्वर्यवान् परमात्मा में-उसके आश्रय में रक्षण और आनन्द भोग को प्राप्त करते हैं (सूरः-वृषणः-च) जो सूर्य की भाँति तथा वृषभ की भाँति हैं, (तस्य) उसके (दृशीके पौंस्ये) दर्शन और पौरुष में स्थित होते हैं (ये-नु) जो भी (कारवः) स्तुति करनेवाले (अस्य-अर्हणा ततक्षिरे) इसकी पूजा करते हैं (नृसदनेषु युजं वज्रं) विद्वत्सदनों में योजनीय ओज को प्राप्त करते हैं ॥
भावार्थभाषाः -परमात्मा ज्ञानप्रकाशक और सुखवर्षक है। जो महानुभाव उसकी प्रशंसा करनेवाले होते हैं, वे उसके रक्षण और आनन्दभोग को प्राप्त करते हैं तथा उसके दर्शन और स्वरूप में निमग्न रहते हैं, सभा सम्मेलन स्थानों में उसकी पूजा प्रशंसा करते हुए उत्तम ओज को प्राप्त होते हैं ॥(ब्रह्ममुनि)
No comments:
Post a Comment
ধন্যবাদ