ঋগ্বেদ ৭/৫৯/১২ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

সাম্প্রতিক প্রবন্ধ

Post Top Ad

স্বাগতম

08 September, 2020

ঋগ্বেদ ৭/৫৯/১২

মহামৃত্যুঞ্জয় মন্ত্র

त्र्य॑म्बकं यजामहे सु॒गन्धिं॑ पुष्टि॒वर्ध॑नम्।
 उ॒र्वा॒रु॒कमि॑व॒ बन्ध॑नान्मृ॒त्योर्मु॑क्षीय॒ मामृता॑त् ॥१२॥
-ऋग्वेद मण्डल 7 सूक्त 59 मन्त्र 12
ও৩ম্ এ‍্যম্বকং য়জামহে সুগন্ধিং পুষ্টিবর্ধনম্।
উর্বারুকমিব বন্ধনান্মৃত্যোর্মুক্ষীয় মামৃতাৎ ।।
ঋগ্বেদ মন্ডল ৭ সূক্ত ৫৯ মন্ত্র ১২

पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! जिस (सुगन्धिम्) अच्छे प्रकार पुण्यरूपय यशयुक्त (पुष्टिवर्धनम्) पुष्टि बढ़ानेवाले (त्र्यम्बकम्) तीनों कालों में रक्षण करने वा तीन अर्थात् जीव, कारण और कार्य्यों की रक्षा करनेवाले परमेश्वर को हम लोग (यजामहे) उत्तम प्रकार प्राप्त होवें उसकी आप लोग भी उपासना करिये और जैसे मैं (बन्धनात्) बन्धन से (उर्वारुकमिव) ककड़ी के फल के सदृश (मृत्योः) मरण से (मुक्षीय) छूटूँ, वैसे आप लोग भी छूटिये जैसे मैं मुक्ति से न छूटूँ, वैसे आप भी (अमृतात्) मुक्ति की प्राप्ति से विरक्त (मा, आ) मत हूजिये ॥
{he manushyo ! jis (sugandhim) achchhe prakaar punyaroopay yashayukt (pushtivardhanam) pushti badhaanevaale (tryambakam) teenon kaalon mein rakshan karane va teen arthaat jeev, kaaran aur kaaryyon kee raksha karanevaale parameshvar ko }

भावार्थभाषाः -इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! हम सब लोगों का उपास्य जगदीश्वर ही है, जिसकी उपासना से पुष्टि, वृद्धि, उत्तम यश और मोक्ष प्राप्त होता है, मृत्यु सम्बन्धि भय नष्ट होता है, उस का त्याग कर के अन्य की उपासना हम लोग कभी न करें ॥१२॥ इस सूक्त में वायु के दृष्टान्त से विद्वान् और ईश्वर के गुण और कृत्य के वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह ऋग्वेद में पाँचवे अष्टक में चौथा अध्याय तीसवाँ वर्ग तथा सप्तम मण्डल में उनसठवाँ सूक्त समाप्त हुआ ॥
{is mantr mein upamaalankaar hai. he manushyo ! ham sab logon ka upaasy jagadeeshvar hee hai, jisakee upaasana se pushti, vrddhi, uttam yash aur moksh praapt hota hai, mrtyu sambandhi bhay nasht hota hai, us ka tyaag kar ke any kee upaasana ham log kabhee na karen .12. is sookt mein vaayu ke drshtaant se vidvaan aur eeshvar ke gun aur krty ke varnan karane se is sookt ke arth kee isase poorv sookt ke arth ke saath sangati jaananee chaahiye . yah rgved mein paanchave ashtak mein chautha adhyaay teesavaan varg tatha saptam mandal mein unasathavaan sookt samaapt hua.}

ভাবার্থঃ হে পরমাত্মা,  তুমি সর্ব জগৎ ব‍্যাপ্ত করে "অম্বা" অর্থাৎ মায়ের হৃদয় নিয়ে বিরাজমান কর। আমার জন্য সুগন্ধিত,পুষ্টিকারক তথা বলবর্ধক ভোগ‍্য বস্তু প্রদান কর। আমি অত‍্যন্ত শ্রদ্ধা ও ভক্তি সহকারে তোমার আরাধনা করছি।"যজামহে" অর্থাৎ তোমার সাথে যুক্ত হতে চাই,যাহাতে, আমার মনে দিব‍্যগুণের স্ফূরণ হয়। হে ঈশ্বর, আমি পূর্ণ আয়ু ও পূর্ণ ভোগ করেই যেন এই শরীররূপী বন্ধন হতে মুক্ত হতে পারি।উর্বারূক ফলের ন্যায় মৃত্যুর বন্ধন হতে মুক্ত কর আমায় কিন্তু অমৃত থেকে নয় অর্থাৎ আমি যেন তোমার অমৃতময়ী স্নেহ হতে বঞ্চিত না হই।

No comments:

Post a Comment

ধন্যবাদ

বৈশিষ্ট্যযুক্ত পোস্ট

অথর্ববেদ ২/১৩/৪

  ह्यश्मा॑न॒मा ति॒ष्ठाश्मा॑ भवतु ते त॒नूः। कृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ दे॒वा आयु॑ष्टे श॒रदः॑ श॒तम् ॥ ত্রহ্যশ্মানমা তিষ্ঠাশ্মা ভবতুতে তনূঃ। কৃণ্বন্তু...

Post Top Ad

ধন্যবাদ