অজ্যোষ্ঠাসো অকনিষ্ঠাস এতে সং ভ্রাতারো তাবৃধুঃ সৌভগায় যুবা পিতা স্বপা রুদ্র এযাং সুদুঘা পুশ্নিঃ সুদিনা মরুদ্ভঃ।।" ( ঋগ্বেদ ৫.৬০.৫)
अ॒ज्ये॒ष्ठासो॒ अक॑निष्ठास ए॒ते सं भ्रात॑रो वावृधुः॒ सौभ॑गाय। युवा॑ पि॒ता स्वपा॑ रु॒द्र ए॑षां सु॒दुघा॒ पृश्निः॑ सु॒दिना॑ म॒रुद्भ्यः॑ ॥५॥
পদার্থঃ- (তে) তাহারা (অজ্যেষ্ঠাঃ) বড় নয়, (অকনিষ্ঠাঃ) ছোট নয়, (অমধ্যমাসঃ) মধ্যম নয়,(উৎ ভিদঃ) উন্নত (মহসা) উৎসাহের সঙ্গে (বি) বিশেষভাবে (বাবৃধুঃ ) ক্রমোন্নতির জন্য (জনুষঃ) জন্ম হইতেই(সুজাতাসঃ) উত্তম কুলীন ( পৃশ্নি মাতারঃ) জন্মভূমির সন্তান( দিবঃ) দিব্য (মর্য্যা) মনুষ্য ( ন অচ্ছা) আমার নিকট (আ জিগতন) ভালো ভাবে আসুক।
সরলার্থঃ- কর্ম ও গুণভেদে কেউ ব্রাহ্মণ, কেউ ক্ষত্রিয়, কেউ বৈশ্য, কেউ শূদ্র। তাঁদের মধ্যে কেহ বড় নয় কেহ ছোট নয়। ইহারা ভাই ভাই। সৌভাগ্য লাভের জন্য ইহারা প্রযত্ন করে। ইহাদের পিতা তরুন শুভকর্ম ঈশ্বর এবং জননীরূপ প্রকৃতি। পুরুষার্থী সন্তানই সৌভাগ্য প্রাপ্ত হন।
पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! जैसे (स्वपाः) श्रेष्ठ कर्म का अनुष्ठान करनेवाला (युवा) युवावस्थायुक्त और (रुद्रः) अन्यों को रुलानेवाला (पिता) पालक जन और (एषाम्) इन की (सुदुघा) उत्तम प्रकार मनोरथ को पूर्ण करनेवाली (सुदिना) सुन्दर दिन जिससे वह (पृश्निः) अन्तरिक्ष के सदृश बुद्धि (मरुद्भ्यः) मनुष्यों के लिये विद्यादि दान देती है, वैसे (अज्येष्ठासः) जेठेपन से रहित (अकनिष्ठासः) कनिष्ठपन से रहित (एते) ये (भ्रातरः) बन्धु जन (सौभगाय) श्रेष्ठ ऐश्वर्य्य होने के लिये (सम्, वावृधुः) बढ़ते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः -जो मनुष्य पूर्ण युवावस्था में विद्याओं को समाप्त कर और सुशीलता को स्वीकार कर बहुत ही उत्तम हुए उत्तम स्वभावयुक्त स्त्रियों को विवाह द्वारा स्वीकार करके प्रयत्न करते हैं, वे ऐश्वर्य्य को प्राप्त होकर आनन्दित होते हैं ॥५॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
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