अद्रि॑णा ते म॒न्दिन॑ इन्द्र॒ तूया॑न्त्सु॒न्वन्ति॒ सोमा॒न्पिब॑सि॒ त्वमे॑षाम् ।
पच॑न्ति ते वृष॒भाँ अत्सि॒ तेषां॑ पृ॒क्षेण॒ यन्म॑घवन्हू॒यमा॑नः ॥
adriṇā te mandina indra tūyān sunvanti somān pibasi tvam eṣām | pacanti te vṛṣabhām̐ atsi teṣām pṛkṣeṇa yan maghavan hūyamānaḥ ||
पदार्थान्वयभाषाः -(इन्द्र) हे आत्मन् या राजन् ! (ते) तेरे लिये (अद्रिणा) प्रशंसक वैद्य या पुरोहित से प्रेरित (मन्दिनः) तेरे प्रसन्न करनेवाले पारिवारिक जन या राजकर्मचारी (तूयात् सोमान् सुन्वन्ति) रसमय सोमों को तय्यार करते हैं (तेषां त्वं पिबसि) उनको तू पी और (ते) तेरे लिए (वृषभान् पचन्ति) सुख बरसानेवाले भोगों को तय्यार करते हैं (मघवन् पृक्षेण हूयमानः) हे आत्मन् ! या राजन् ! स्नेह सम्पर्क से निमन्त्रित किया जाता हुआ (तेषाम्-अत्सि) उन्हें तू भोग ॥
भावार्थभाषाः -आत्मा जब शरीर में आता है, तब उसे अनुमोदित करनेवाले वैद्य और प्रसन्न करनेवाले पारिवारिक जन अनेक रसों और भोग्य पदार्थों को उसके लिये तय्यार करते हैं और स्नेह से खिलाते पिलाते हैं, जिससे कि शरीर पुष्ट होता चला जावे तथा राजा राजपद पर विराजमान होता है, तब उसके प्रशंसक पुरोहित और प्रसन्न करनेवाले राजकर्मचारी सोमादि ओषधियों के रस और भोगों को तय्यार करते हैं। वह स्नेह से आदर पाया हुआ उनका सेवन करता है ॥- বহ্মমুনি ভাষ্য
অর্থঃ হে ঐশ্বর্যবান ! হে শত্রুনাশক ! স্তুতিজন তোমার জন্য বিদর্ণ দৃঢ় ক্ষাত্র বল দ্বারা আশুগামী বীর পুরুষদিগের
অভিষেক করি, তুমি ইহাদের পালন করো, তোমার জন্যই (বৃষভান্) বলবান পুরুষদিগকে পরিপক্ক, দৃঢ় করে তথা জ্ঞান উপদেশ করে, হে উত্তম ঐশ্বর্যবান! তোমার স্নেহ পূর্বক এই ঐশ্বর্য কে ভোগ করে অথবা উহাদের প্রাপ্ত হয়।-(ভাষ্যকার পন্ডিত জয়দেব শর্মা)
No comments:
Post a Comment
ধন্যবাদ