आज सम्पूर्ण देश-विदेश में 2 अक्तूबर को गाँधी जयंती के रूप में मना रहे है लोग, विशेष कर भारत के राजधानी दिल्ली के राज घाट में ना जाने सर्वधर्म सभा रखा गया होगाऔर प्रायः वर्षों की तरह इस वर्ष भी सभी मजहब के मानने वाले अपनी अपनी मजहबी ग्रंथों का पाठ करते हैं अब तक यही होता आया है |
इसपर मैं पहले भी लिख चूका हूँ वीडियो बनाकर भी आप लोगों को दे चूका हूँ आज कुछ नई बातों को आप लोगों के सामने रखने जा रहा हूँ इसे ध्यान से पढ़ें इसे पढ़कर सत्य और असत्य का निर्णय लें |
गाँधी जी तथा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में दो महान नेता माने जाते है | सुभाष ने आई.सी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण करके अपने भावी जीवन की योजना के लिए भारत आते ही सीधे गाँधी जी से बम्बई के मणि भवन में 16 जुलाई 1921 को भेंट की | इस समय गाँधी जी की आयु 52 वर्ष थी और सुभाष की आयु 24 वर्ष के थे |
सुभाष ने गाँधी जी से तीन प्रश्न किए | पहला- गाँधी जी! आपका कहना है की असहयोग आन्दोलन का अंतिम कार्यक्रम यह है कि देश की जनता अंग्रेज सरकार को टैक्स न दे | तो आप यह बताएं की टैक्स न देने के बाद क्या होगा ?
दूसरा- आपने घोषणा की है कि एक वर्ष में स्वराज प्राप्त कर लेंगे | इस घोषणा का क्या आधार है ? हम कैसे माने की एक वर्ष में हमें राज्य देकर अंग्रेज चले जायेंगे ?
तीसरा – क्या टैक्स ना देने से अंग्रेज भारत से चले जायेंगे ?
सुभाष के इन प्रश्नों से गाँधी जी को बहुत जोर का धक्का लगा, मानो गाँधी का पसीना छुट गया |
एक भारी टकराव तब हुवा जब सुभाष चन्द्र बोस ने डोमिनियन स्टेट की जगह पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा |
1928 के कांग्रेस अधिवेशन में सुभाष ने जब पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा तो गाँधी जी अपने साथियों के साथ सुभाष चन्द्र बोस का विरोध किया | इसी समय गाँधी जी ने कांग्रेस छोड़ने की धमकी दी थी | पता नहीं कांग्रेसी गाँधी को क्या समझते थे, और आज के प्रधानमंत्री गाँधी जी को क्या समझते हैं ?
गाँधी और सुभाष का टकराव उसदिन हुवा जब 1931 कराची अधिवेशन में, भगत सिंह, राज गुरु, और सुखदेव की फांसी पर गाँधी जी ने सबसे अलग रूप अपनाया था, सभी लोग इन तीनों की वीरता की प्रशंसा कर रहे थे, किन्तु गाँधी ने कहा था की यदि हत्यारे लोगों की प्रशंसा की जायेगी तो हत्यारे का मनोबल बढेगा | इन बातों से यह साफ पता चला की गाँधी के नज़र में यह तीनों क्रांतिकारी नहीं किन्तु हत्यारे थे | भारत वासियों को यह पता होना चाहिए की जिन क्रांतिकारियों ने अपना स्वर्वस्य त्याग किया सिर्फ और सिर्फ भारत माता को अंग्रेजों से आज़ादी दिलाकर भारत को मुक्त कराना था जिस कारण उन्होने प्राणों की बाजी लगा दी गाँधी ने नज़र में वह लोग हत्यारे थे | इससे गाँधी की मानसिकता का पता लगा लेना चाहिए |
सुभाष ने दूसरी बार अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव दिया तो गाँधी व्यथित हो गए और अपने आप को संभल नही पाए, और निश्चय कर लिया कि किसी भी कीमत पर सुभाष को कांग्रेस का अध्यक्ष नही बनने दूंगा |
तो सुभाष ने आचार्यनरेंद्र जी के नाम का प्रस्ताव दिया परन्तु गाँधी ने नहीं माना, और अपना प्रतिनिधि पट्टाभि सीतारमैया को खड़ा किया, जो की बुरी तरह उनकी हार हुई | अब यह अहिंसा के पुजारी गाँधी बोखला गये और कहदिया सीता रमैया की हार मेरी हार है अतः सुभाष से त्याग पत्र लिया गया, इस पर और 13 सदस्यों ने भी त्याग पत्र दिया था | गाँधी ने बल्लभ पंत को सुभाष से कहने को भेजा की आप कोई भी योजना बनाये तो गाँधी जी से अवश्य सलाह लें |
ठीक इसी प्रकार का टकराव मौलाना अबुल कलामआजाद से भी रहा, गाँधी का परिचय मौलाना अबुलकलाम से 1920 में हकीमअजमल खान के घर पर हुवा | यहाँ लोकमान्य तिलक और अली भाई बंधू भी बैठे थे | गाँधी जी की अहिसा के निति से वह असंतुष्ट रहते थे | गाँधी अंग्रेजों को बिना शर्त के सहायता देने के पक्ष में थे, जब की सुभाष की तरह मौलाना आजाद भी सुभाष के पक्ष में अंग्रेजों को सहायता के विरोध में थे |
मौलाना आजाद 1940 से 1946 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे, किन्तु मुस्लिम लीग के लोग उनकी विचारों में मेल नहीं रखते थे | और ना मुस्लिम लीग का कोई सहयोग अबुलकलाम को मिला, और ना तो जिन्ना से मौलाना कलाम सहमत थे |
यहाँ तक की गाँधी जी का जिन्ना से बार बार मिलना यह भी अबुलकलाम आजाद को पसंद नहीं था, जिसका नतीजा आज सामने है | गाँधी द्वारा मुहम्मद अली जिन्ना को कायदे आजम कहने पर मौलाना कलाम खफा भी हो गये थे | मौलाना आजाद भारत विभाजन के पक्ष में नहीं थे आज़ाद की लिखी पुस्तक इण्डिया विन्स फ्रीडम के पृष्ट 186 औए 187 को पढने पर पता लगता है |
इन सब बातों से पाठक समझ गये होंगे की गाँधी जी एक देशद्रोही मुस्लमान जिन्ना को कायदे आजम की पदवी दे रहे है उसके घर जाकर तलवे चाट रहे है | दूसरी तरफ एक देश भक्त युवक, वीर- त्यागी, तपस्वी और भारत माता की आजादी और अखंडता कायम रखने के लिए पूर्ण समर्पित सुभाष चन्द्र बोस को देखकर भी खुश नही थे |
ऐसा व्यक्ति महात्मा नहीं हो सकता, देश द्रोहियों का सम्मान करने वाला भी देश द्रोही ही होता है | गाँधी की मुस्लिम परस्ती से भी मुस्लिम खुश नहीं थे मौलाना शौकत अली ने कहा एक भटका से भटका हुवा मुसलमान गाँधी से अच्छा है क्यों की वह मुसलमान है और गाँधी काफ़िर है |
गाँधी ने अपना अहिंसावाद का परिचय दिया गाय का दूध ना पी कर, कहा गाय दूध अपने बछड़े के लिए देती है उसके हक़ मैं नहीं मारूंगा यह कह कर, दूध पिया बकरी का, अब गाँधी से कोई यह पूछे की गाय दूध अपने बछड़े के लिए देती है तो क्या बकरी दूध गाँधी के लिए देती है ?
मात्र इतना ही नहीं गाय एक बच्चा देती है और बकरी दो- तीन- चार भी, तो एक का हक़ तो नहीं मारा किन्तु चार का मार दिया, यह है गाँधी का अहिंसावाद |
टोपी का नाम भी गाँधी टोपी रखागया, इस टोपी को ना मुसलमानों ने पहनी और ना गाँधी ने खुद इसे पहना | देश विभाजन हुवा हिन्दू मुस्लिम के नाम, सरदार पटेलने कहा मुसलमान उधर जाएँ, उधर से हिन्दू इधर आजायें, गाँधी होने नहीं दिया जिसका नतीजा आज भारत के हिन्दू भोग रहे हैं |
मुसलमानों को, यहाँ रखागया जो आज बन्दे मातरम बोलना भारत माता जी जय बोलने का विरोध से ले कर भारत के सुप्रीम कोर्ट का भी विरोध कर रहे |
यह सब गाँधी की ही महरवानी है, भारत वासियों आप लोगों ने सत्य को स्वीकारा ही नहीं | यह है सत्यता आज गाँधी जयंती ना मना कर अगर लालबहादुर शास्त्री जयंती मनाते तो भारत वासियों का जीवन सफल होता | महेन्द्रपाल आर्य
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