সৎ চিৎ আনন্দ এগুলো ঈশ্বরের বিশেষণ-মান্ডূক্যোপনিষদ্
সৎ, চিৎ ও আন্দনময় = সচ্চিদানন্দ
সৎ(The formless)
বেনস্তৎপশ্যন্নিহিতং গুহা সদ্যত্র বিশ্বং ভবত্যেকনীডম্।
তস্মিন্নিদং সং চ বিচৈতি সর্বং স ওতঃ প্রোতশ্ব বিভূঃ প্রজাসু।।
(যজুর্বেদ, ৩২/৮)
वे॒नस्तत्प॑श्य॒न्निहि॑तं॒ गुहा॒ सद्यत्र॒ विश्वं॒ भव॒त्येक॑नीडम्।
तस्मि॑न्नि॒दꣳ सं च॒ वि चै॑ति॒ सर्व॒ꣳ सऽ ओतः॒ प्रोत॑श्च वि॒भूः प्र॒जासु॑ ॥
पद पाठ
वे॒नः। तत्। प॒श्य॒त्। निहि॑त॒मिति॒ निऽहि॑तम्। गुहा॑। सत्। यत्र॑। विश्व॑म्। भव॑ति। एक॑नीड॒मित्येकऽनीडम् ॥ तस्मि॑न्। इ॒दम। सम्। च॒। वि। च॒। ए॒ति॒। सर्व॑म्। सः। ओत॒ इत्याऽउ॑तः। प्रोत॒ इति॒ प्रऽउ॑तः। च॒। वि॒भूरिति॑ वि॒ऽभूः। प्र॒जास्विति॑ प्र॒ऽजासु॑ ॥
पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! (यत्र) जिसमें (विश्वम्) सब जगत् (एकनीडम्) एक आश्रयवाला (भवति) होता (तत्) उस (गुहा) बुद्धि वा गुप्त कारण में (निहितम्) स्थित (सत्) नित्य चेतन ब्रह्म को (वेनः) पण्डित विद्वान् जन (पश्यत्) ज्ञानदृष्टि से देखता है, (तस्मिन्) उसमें (इदम्) यह (सर्वम्) सब जगत् (सम्, एति) प्रलय समय में संगत होता (च) और उत्पत्ति समय में (वि) पृथक् स्थूलरूप (च) भी होता है, (सः) वह (विभूः) विविध प्रकार व्याप्त हुआ (प्रजासु) प्रजाओं में (ओतः) ठाढ़े सूतों में जैसे वस्त्र (च) तथा (प्रोतः) आड़े सूतों में जैसे वस्त्र वैसे ओत-प्रोत हो रहा है, वही सबको उपासना करने योग्य है ॥
Translate:-(he manushyo ! (yatr) jisamen (vishvam) sab jagat (ekaneedam) ek aashrayavaala (bhavati) hota (tat) us (guha) buddhi va gupt kaaran mein (nihitam) sthit (sat) nity chetan brahm ko (venah) pandit vidvaan jan (pashyat) gyaanadrshti se dekhata hai, (tasmin) usamen (idam) yah (sarvam) sab jagat (sam, eti) pralay samay mein sangat hota (ch) aur utpatti samay mein (vi) prthak sthoolaroop (ch) bhee hota hai, (sah) vah (vibhooh) vividh prakaar vyaapt hua (prajaasu) prajaon mein (otah) thaadhe sooton mein jaise vastr (ch) tatha (protah) aade sooton mein jaise vastr vaise ot-prot ho raha hai, vahee sabako upaasana karane yogy hai .)
भावार्थभाषाः -हे मनुष्यो ! विद्वान् ही जिसको बुद्धि बल से जानता, जो सब आकाशादि पदार्थों का आधार, प्रलय समय सब जगत् जिसमें लीन होता और उत्पत्ति समय में जिससे निकलता है और जिस व्याप्त ईश्वर के बिना कुछ भी वस्तु खाली नहीं है, उसको छोड़ किसी अन्य को उपास्य ईश्वर मत जानो ॥- स्वामी दयानन्द सरस्वती
Translate:-(he manushyo ! vidvaan hee jisako buddhi bal se jaanata, jo sab aakaashaadi padaarthon ka aadhaar, pralay samay sab jagat jisamen leen hota aur utpatti samay mein jisase nikalata hai aur jis vyaapt eeshvar ke bina kuchh bhee vastu khaalee nahin hai, usako chhod kisee any ko upaasy eeshvar mat jaano)
বঙ্গানুবাদঃ- যাহাতে সর্বজগৎ আশ্রয় গ্রহণ করিয়াছে সেই বুদ্ধিগম্য চেতন ব্রহ্মকে মেধাবী পুরুষ জ্ঞান দৃষ্টিতে দর্শন করেন। সর্ব্ব জগৎ প্রলয়কালে তাঁহাতে সূক্ষ্মরূপে মিলিত হয় এবং উৎপত্তিকালে পৃথক স্থুলরুপে পরিণত হয়। সেই সত্যস্বরুপ পরমাত্মা জীব ও প্রকৃতিতে ওতঃপ্রোতঃ ভাবে ব্যপক রহিয়াছেন।
চিৎ(Consciousness of the universe)
নিকাব্যা বেধসঃ শশ্বতস্কর্হস্তে দধানো নর্য্যা পুরূনি।
অগ্নির্ভূবদ্রয়ি পতী রয়ীনাং সত্রা চক্রাণো অমৃতানি বিশ্বা।।
(ঋগ্বেদ, ১/৭২/১)
नि काव्या॑ वे॒धसः॒ शश्व॑तस्क॒र्हस्ते॒ दधा॑नो॒ नर्या॑ पु॒रूणि॑।
अ॒ग्निर्भु॑वद्रयि॒पती॑ रयी॒णां स॒त्रा च॑क्रा॒णो अ॒मृता॑नि॒ विश्वा॑ ॥
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
ni kāvyā vedhasaḥ śaśvatas kar haste dadhāno naryā purūṇi | agnir bhuvad rayipatī rayīṇāṁ satrā cakrāṇo amṛtāni viśvā ||
पद पाठ
नि। काव्या॑। वे॒धसः॑। शश्व॑तः। कः॒। हस्ते॑। दधा॑नः। नर्या॑। पु॒रूणि॑। अ॒ग्निः। भु॒व॒त्। र॒यि॒ऽपतिः॑। र॒यी॒णाम्। स॒त्रा। च॒क्रा॒णः। अ॒मृता॑नि। विश्वा॑ ॥
ऋग्वेद मण्डल:1 सूक्त:72 मन्त्र:1
पदार्थान्वयभाषाः -जो (अग्निः) अग्नि के तुल्य विद्वान् मनुष्य (वेधसः) सब विद्याओं के धारण और विधान करनेवाले (शश्वतः) अनादिस्वरूप परमेश्वर के सम्बन्ध से प्रकाशित हुए (पुरूणि) बहुत (सत्रा) सत्य अर्थ के प्रकाश करने तथा (अमृतानि) मोक्षपर्यन्त अर्थों को प्राप्त करनेवाले (विश्वा) सब (नर्य्या) मनुष्यों को सुख होने के हेतु (काव्या) सर्वज्ञ निर्मित वेदों के स्तोत्र हैं, उन को (हस्ते) हाथ में प्रत्यक्ष पदार्थ के तुल्य (दधानः) धारण कर तथा विद्याप्रकाश को (चक्राणः) करता हुआ धर्माचरण को (नि कः) निश्चय करके सिद्ध करता है, वह (रयीणाम्) विद्या, चक्रवर्त्ति राज्य आदि धनों का (रयिपतिः) पालन करनेवाला श्रीपति (भुवत्) होता है ॥
Translate:-(hai manushyo ! vidvaan haiai jisako buddhi bal sai jaanat, jo sab aakaashaadi padaarthon ka aadhaar, pralay samay sab jagat jisamain laiain hot aur utpatti samay maiin jisasai nikalat hai aur jis vyaapt aiaishvar kai bin kuchhh bhaiai vastu khaalaiai nahin hai, usako chhhod kisaiai any ko upaasy aiaishvar mat jaano)
भावार्थभाषाः -हे मनुष्यो ! अनन्त सत्यविद्यायुक्त अनादि सर्वज्ञ परमेश्वर ने तुम लोगों के हित के लिए जिन अपने विद्यामय अनादिरूप वेदों को प्रकाशित किया है, उनको पढ़-पढ़ा और धर्मात्मा विद्वान् होकर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, आदि फलों को सिद्ध करो ॥ -स्वामी दयानन्द सरस्वती
Translate:-(he manushyo ! anant satyavidyaayukt anaadi sarvagy parameshvar ne tum logon ke hit ke lie jin apane vidyaamay anaadiroop vedon ko prakaashit kiya hai, unako padh-padha aur dharmaatma vidvaan hokar dharm, arth, kaam, moksh, aadi phalon ko siddh karo .)
অনুবাদ অর্থঃ— যে বিদ্বান, পুরুষ, সর্ববিদ্যার ধারণকর্তা অনাদি স্বরুপ পরমেশ্বর কৃর্তৃক প্রকাশিত, নানাবিধ সত্যার্থের প্রকাশক, মোক্ষদাতা ও মনুষ্যের সুখের মূল জ্ঞানরাশিকে প্রত্যক্ষ পদার্থের ন্যায় হস্তে ধারণ করিয়া কৃত ধর্মাচরণকে নিশ্চিতরূপে সিদ্ধ করেন তিনি অনন্ত বিদ্যাধনৈশ্বর্য্যকে রক্ষা করেন এবং অনন্ত শোভা সৌন্দর্য্যকে ধারণ করেন।
আনন্দ(Pure love, bliss and joy)
আনন্দা মোদা প্রমুদোহভীমোদ মুদশ্চ যে।
উচ্ছিষ্টাজ্জঞ্জিরে সর্বে দিবিদেবা দিবিশ্রিত।।
(অথর্ববেদ, ১১/৭/২৬)
অনুবাদ অর্থঃ— জীবাত্মার মোক্ষ-সুখ, বিষয়-সুখ, পরমানন্দ এবং জ্ঞানাশ্রিত আনন্দ—এ সকল পরমাত্মা হইতেই নিঃসৃত হয়।
আনন্দ- কস্ত্বা সত্যো মদানাং ম হিষ্টো মৎসদন্ধসঃ।
দৃঢ়া চিদারুজে বসু।।
(যজুর্বেদ, ৩৬/৫)
कस्त्वा॑ स॒त्यो मदा॑नां॒ मꣳहि॑ष्ठो मत्स॒दन्ध॑सः।
दृ॒ढा चि॑दा॒रुजे॒ वसु॑ ॥५ ॥
पद पाठ
कः। त्वा॒। स॒त्यः। मदा॑नाम्। मꣳहि॑ष्ठः। म॒त्स॒त्। अन्धसः॑ ॥ दृ॒ढा। चि॒त्। आ॒रुज॒ऽइत्या॒रुजे॑। वसु॑ ॥५ ॥
यजुर्वेद अध्याय:36 मन्त्र:5
पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! (मदानाम्) आनन्दों के बीच (मंहिष्ठः) अत्यन्त बढ़ा हुआ (कः) सुखस्वरूप (सत्यः) विद्यमान पदार्थों में श्रेष्ठतम प्रजा का रक्षक परमेश्वर (अन्धसः) अन्नादि पदार्थ से (त्वा) तुझको (मत्सत्) आनन्दित करता और (आरुजे) दुःखनाशक तेरे लिये (चित्) भी (दृढा) दृढ़ (वसु) धनों को देता है ॥
Translate:-(he manushyo ! (madaanaam) aanandon ke beech (manhishthah) atyant badha hua (kah) sukhasvaroop (satyah) vidyamaan padaarthon mein shreshthatam praja ka rakshak parameshvar (andhasah) annaadi padaarth se (tva) tujhako (matsat) aanandit karata aur (aaruje) duhkhanaashak tere liye (chit) bhee (drdha) drdh (vasu) dhanon ko deta hai .)
भावार्थभाषाः -हे मनुष्यो ! जो अन्नादि और सत्य के जताने से धनादि पदार्थ देके सबको आनन्दित करता है, उस सुखस्वरूप परमात्मा की ही तुम लोग नित्य उपासना करो ॥-स्वामी दयानन्द सरस्वती
Translate:-(he manushyo ! jo annaadi aur saty ke jataane se dhanaadi padaarth deke sabako aanandit karata hai, us sukhasvaroop paramaatma kee hee tum log nity upaasana karo.)
অনুবাদ অর্থঃ— হে মনুষ্য! আনন্দসমূহের মধ্যে যিনি সর্বমশ্রেষ্ঠ ও সুখ স্বরুপ, যিনি অবিনশ্বর, তিনি তোমাকে অন্নাদি পদার্থ দ্বারা আনন্দ দান করেন এবং দ্রোহশূন্য জীবকে শাশ্বত ধন প্রদান করেন।
ঈশ্বর আনন্দস্বরুপ (অথর্ব: ১০/৭/১)
সম্পুর্ণ বিষয়
Honest is the creative power or pure consciousness that never changes. Sat is that never changes, Truth, Absolute Being. Chit is consciousness. Ananda is bliss, the Absolute Bliss. consciousness existence bless.
(সত্য যে পরিবর্তন না, সত্য, পরম হচ্ছে)
চিৎ হলো পরিচালিকা শক্তি বা আত্মা সচেতনতা বা চৈতন্য।
(চিত্ত চেতনা)
আর আনন্দ হলো নিশ্বার্থ ভালো লাগা , প্রাপ্তি ভিন্ন ভালো লাগা৷
চিৎ হলো পরিচালিকা শক্তি বা আত্মা সচেতনতা বা চৈতন্য।
(চিত্ত চেতনা)
আর আনন্দ হলো নিশ্বার্থ ভালো লাগা , প্রাপ্তি ভিন্ন ভালো লাগা৷
(আনন্দ আনন্দ, পরম আনন্দ)
তার মানে ভগবান আমাদের চেতনায় ধরা দেন এই রূপে চেতনা অস্তিত্ব আশীর্বাদ।
তার মানে ভগবান আমাদের চেতনায় ধরা দেন এই রূপে চেতনা অস্তিত্ব আশীর্বাদ।
ध्रु॒वं ज्योति॒र्निहि॑तं दृ॒शये॒ कं मनो॒ जवि॑ष्ठं प॒तय॑त्स्व॒न्तः।
विश्वे॑ दे॒वाः सम॑नसः॒ सके॑ता॒ एकं॒ क्रतु॑म॒भि वि य॑न्ति सा॒धु ॥
ऋग्वेद0मण्डल:६ सूक्त:९ मन्त्र:५
पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! जो (दृशये) दर्शन के लिये (ध्रुवम्) निश्चल (निहितम्) स्थित (कम्) सुखस्वरूप (ज्योतिः) अपने से प्रकाशित और सब का प्रकाशक ब्रह्म है, उसके आधार में जो (जविष्ठम्) अतिवेगयुक्त (पतयत्सु) पति सदृश के आचरण करते हुओं में (अन्तः) मध्य में वर्त्तमान (मनः) अन्तःकरण का व्यापार है, उसके आश्रय से (समनसः) सहकारि साधन मन जिनका और (सकेताः) तुल्य बुद्धि जिनकी वे (विश्वे) संपूर्ण (देवाः) अपने-अपने विषयों को प्रकाशित करनेवाली श्रोत्र आदि इन्द्रियाँ (एकम्) सहायरहित (ऋतुम्) जीव के प्रज्ञान को (साधु) उत्तम प्रकार (अभि) सन्मुख (वि) विशेष करके (यन्ति) प्राप्त होते हैं, यह आप लोग जानो ॥
[(ध्रुवम्) निश्चलम् (ज्योतिः) स्वप्रकाशं सर्वप्रकाशकं वा (निहितम्) स्थितम् (दृशये) दर्शनाय (कम्) सुखस्वरूपम् (मनः) अन्तःकरणवृत्तिः (जविष्ठम्) वेगवत्तमम् (पतयत्सु) पतिरिवाचरत्सु (अन्तः) आभ्यन्तरे (विश्वे) सर्वे (देवाः) स्वस्वविषयप्रकाशकानि श्रोत्रादीनीन्द्रियाणि (समनसः) समानं सहकारि साधनं मनो येषान्ते (सकेताः) समानं केतः प्रज्ञा येषान्ते (एकम्) असहायम् (क्रतुम्) जीवस्य प्रज्ञानम् (अभि) आभिमुख्ये (वि) (यन्ति) प्राप्नुवन्ति (साधु) ॥]
भावार्थभाषाः -हे मनुष्यो ! इस शरीर में सच्चिदानन्दस्वरूप अपने से प्रकाशित ब्रह्म, द्वितीय जीव, तृतीय मन, चौथी इन्द्रियाँ, पाँचवें प्राण, छठा शरीर वर्त्तमान है, ऐसा होने पर सम्पूर्ण व्यवहार सिद्ध होते हैं । जिनके मध्य से सब का आधार ईश्वर, देह, अन्तःकरण प्राण और इन्द्रियों का धारण करनेवाला और जीवादिकों का अधिष्ठान शरीर है, यह जानो ॥-स्वामी दयानन्द सरस्वती
Translate:-(he manushyo ! is shareer mein sachchidaanandasvaroop apane se prakaashit brahm, dviteey jeev, trteey man, chauthee indriyaan, paanchaven praan, chhatha shareer varttamaan hai, aisa hone par sampoorn vyavahaar siddh hote hain . jinake madhy se sab ka aadhaar eeshvar, deh, antahkaran praan aur indriyon ka dhaaran karanevaala aur jeevaadikon ka adhishthaan shareer hai, yah jaano .)
-শিব্ম-
No comments:
Post a Comment
ধন্যবাদ