न वा उ॑ ते त॒न्वा॑ त॒न्वं१॒॑ सं प॑पृच्यां पा॒पमा॑हु॒र्यः स्वसा॑रं नि॒गच्छा॑त् ।
अ॒न्येन॒ मत्प्र॒मुद॑: कल्पयस्व॒ न ते॒ भ्राता॑ सुभगे वष्ट्ये॒तत् ॥
ऋग्वेद 0 मण्डल:10 सूक्त:10 मन्त्र:12
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
na vā u te tanvā tanvaṁ sam papṛcyām pāpam āhur yaḥ svasāraṁ nigacchāt | anyena mat pramudaḥ kalpayasva na te bhrātā subhage vaṣṭy etat ||
पद पाठ
न । वै । ऊँ॒ इति॑ । ते॒ । त॒न्वा॑ । त॒न्व॑म् । सम् । प॒पृ॒च्या॒म् । पा॒पम् । आ॒हुः॒ । यः । स्वसा॑रम् । नि॒ऽगच्छा॑त् । अ॒न्येन॑ । मत् । प्र॒ऽमुदः॑ । क॒ल्प॒य॒स्व॒ । न । ते॒ । भ्राता॑ । सु॒ऽभ॒गे॒ । व॒ष्टि॒ । ए॒तत् ॥ १०.१०.१२
पदार्थान्वयभाषाः -हे रात्रे ! हाँ ठीक है कि दैवकृत आपद् से इस समय सम्भोग में असमर्थ होने से तथा नियोग की अनुज्ञा दे देने से ‘किं भ्राताऽसत्’ इस वचनानुसार शरीरसंयोगसम्बन्ध में वस्तुतः मैं भ्राता ही हो चुका हूँ और तू बहिन हो चुकी है, इसलिए (ते) तेरी (तन्वा) काया के साथ (तन्वम्) अपनी काया को (न वा-उ) बिल्कुल नहीं (सम्पपृच्याम्) मिलाऊँ, क्योंकि (यः) जो (स्वसारम्) बहिन के साथ (निगच्छात्) विषयभोग करे (पापमाहुः) भद्रजन उसको पाप कहते हैं, अतः (सुभगे) हे देवि ! (मत्) मुझसे (अन्येन) भिन्न पुरुष के साथ (प्रमुदः) पुत्रोत्पादन-सम्बन्धी भोग (कल्पयस्व) सम्पादन कर, मैं (ते) तेरा (भ्राता) प्रासङ्गिक-प्रसङ्गप्राप्त भाई (एतत्-न वष्टि) इस तेरे आग्रह किये भोग को नहीं चाहता ॥
{he raatre ! haan theek hai ki daivakrt aapad se is samay sambhog mein asamarth hone se tatha niyog kee anugya de dene se ‘kin bhraataasat’ is vachanaanusaar shareerasanyogasambandh mein vastutah main bhraata hee ho chuka hoon aur too bahin ho chukee hai, isalie (te) teree (tanva) kaaya ke saath (tanvam) apanee kaaya ko (na va-u) bilkul nahin (sampaprchyaam) milaoon, kyonki (yah) jo (svasaaram) bahin ke saath (nigachchhaat) vishayabhog kare (paapamaahuh) bhadrajan usako paap kahate hain, atah (subhage) he devi ! (mat) mujhase (anyen) bhinn purush ke saath (pramudah) putrotpaadan-sambandhee bhog (kalpayasv) sampaadan kar, main (te) tera (bhraata) praasangik-prasangapraapt bhaee (etat-na vashti) is tere aagrah kiye bhog ko nahin chaahata .}
भावार्थभाषाः -भाई-बहन का विवाह नहीं होना चाहिए, ऐसा करना पाप है। कदाचित् कोई ऐसा करे भी, तो समाज को पाप कहकर उसकी निन्दा करनी चाहिये और उसे रोकना चाहिये। गर्भाधान में असमर्थ पति नियोग की आज्ञा देने के अनन्तर पत्नी के साथ भ्रातृसम व्यवहार करे और पुनः उसके द्वारा सम्भोग के लिये आग्रह किये जाने पर दृढता से निषेध कर दे ॥
{bhaee-bahan ka vivaah nahin hona chaahie, aisa karana paap hai. kadaachit koee aisa kare bhee, to samaaj ko paap kahakar usakee ninda karanee chaahiye aur use rokana chaahiye. garbhaadhaan mein asamarth pati niyog kee aagya dene ke anantar patnee ke saath bhraatrsam vyavahaar kare aur punah usake dvaara sambhog ke liye aagrah kiye jaane par drdhata se nishedh kar de .}
No comments:
Post a Comment
ধন্যবাদ