ঋগ্বেদ মন্ডল ১০ সূক্ত ১০ মন্ত্র ৫ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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স্বাগতম

18 October, 2020

ঋগ্বেদ মন্ডল ১০ সূক্ত ১০ মন্ত্র ৫

 

গর্ভে নু নৌ জনিতা দংপতী কর্দেব¯তাষ্টা সবিতা বিশ্বরূপঃ।
নকিরস্য প্র মিনন্তি ব্রতানি বেদ নাকস্য পৃথিবী উত দৌঃ।। ৫।।
পদার্থঃ (বিশ্বরূপঃ) সংসারকে প্রকট কারী (ত্বষ্টা) সর্ব কৃত্যের নিয়ামক (সবিতা) বিবস্বান (কঃ) প্রজাপতি (দেবঃ) দেব (গর্ভ নু) গর্ভেই অর্থাৎ পৃথিবী তলে আনিবার পূর্বেই (নৌ) আমাদের দুজনকে (দম্পতী) পতি পতী (জনিতা) বানিয়েছে। হ্যা! দৈব নিয়মে কিভাবে? কি পূর্ব থেকেই দাম্পত্য সিদ্ধ হবার পরও আমি গর্ভধান রহিত যা সন্তান শূন্য রয়ে যাব! হ্যা আমার এই দুঃখ সহ্য হবে না। আমরা প্রজাপতির সম্পাদিত দাম্পত্য ফল বিনা ই এই ধরণের দুঃখ পঙ্ক হয়ে রয়ে যাবে। (নকিঃ) তো ফিরে (অস্য) এই প্রজাপতির (ব্রতানি) সকল নিয়ম (প্রমিনন্তি) ছিন্ন হয়ে যেতে চাইবে। এমনকি আমরা মিথ্যা বলছি না; আমাদের দাম্পত্য প্রজাপতি স্থির করে দিয়েছিলেন যাহার গর্ভধান ফলের জন্য আমরা বিলাপ করে থাকি, কিন্তু (অস্য) এই প্রজাপতিকে (পৃথিবী উত দৌঃ) দ্যাবাপৃথিবী এই এক মিথুন অর্থাৎ জোড়া ও (নৌ) আমরা দুজনে দিন রাত দাম্পত্যকে (বেদ) জানি, এমনকি আমাদের দুজনের বিবাহকে এই জোড়া দেখিয়ে দিয়েছে অতঃ এই দ্যাবাপৃথিবী মিথুন ও আমাদের সাক্ষী।। ৫।।
ভাবার্থঃ সৃষ্টতে জোড়া পদার্থ ঈশ্বরীয় ব্যবস্থায় হয়েছে, এই জোড়া বিনা সৃষ্টি কার্য চলতে পারে না। এজন্য গৃহস্থগণ নিয়মের উলঙ্ঘন করিবে না। বর বধূর বিবাহ অন্য বিবাহিত জনের সাক্ষ্যে হওয়া উচিত, সন্যাসী ও ব্রহ্মাচারী বিবাহে সাক্ষ্যে অপেক্ষিত নয়।।৫।।

गर्भे॒ नु नौ॑ जनि॒ता दम्प॑ती कर्दे॒वस्त्वष्टा॑ सवि॒ता वि॒श्वरू॑पः । 

नकि॑रस्य॒ प्र मि॑नन्ति व्र॒तानि॒ वेद॑ नाव॒स्य पृ॑थि॒वी उ॒त द्यौः ॥

ऋग्वेद  मण्डल:10 सूक्त:10 मन्त्र:5

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

garbhe nu nau janitā dampatī kar devas tvaṣṭā savitā viśvarūpaḥ | nakir asya pra minanti vratāni veda nāv asya pṛthivī uta dyauḥ ||

पद पाठ

गर्भे॑ । नु । नौ॒ । ज॒नि॒ता । दम्प॑ती॒ इति॒ दम्ऽप॑ती । कः॒ । दे॒वः । त्वष्टा॑ । स॒वि॒ता । वि॒श्वऽरू॑पः । नकिः॑ । अ॒स्य॒ । प्र । मि॒न॒न्ति॒ । व्र॒तानि॑ । वेद॑ । नौ॒ । अ॒स्य । पृ॒थि॒वी । उ॒त । द्यौः ॥ १०.१०.५

पदार्थान्वयभाषाः -(विश्वरूपः) संसार को प्रकट करनेवाला (त्वष्टा) सबके कृत्यों का नियामक (सविता) विवस्वान् (कः) प्रजापति (देवः) देव (गर्भे नु) गर्भ में ही अर्थात् पृथिवीतल पर आने से पूर्व ही (नौ) हम दोनों को (दम्पती) पति-पत्नी (जनिता) बना चुका है। हा ! दैव नियम कैसे हैं ? कि पूर्व ही से दाम्पत्य सिद्ध होने पर भी मैं गर्भाधानरहित या सन्तानशून्य रह जाऊँ। हा ! मुझे यह दुःख सहन नहीं होता है। हम प्रजापति के सम्पादित दाम्पत्यफल के बिना ही इस घने दुःखपङ्क में रह जावेंगे। (नकिः) तो फिर (अस्य) इस प्रजापति के (व्रतानि) सारे नियम (प्रमिनन्ति) टूट जाने चाहिएँ। क्योंकि हम तो झूठ बोलते ही नहीं कि हमारा दाम्पत्य प्रजापति ने स्थिर किया था, जिसके गर्भाधानफल के लिये हम विलाप कर रहे हैं, अपितु (अस्य) इस प्रजापति का (पृथ्वी-उत-द्यौः) द्यावापृथिवी यह एक मिथुन अर्थात् जोड़ा भी (नौ) हम दोनों ‘दिन-रात’ के दाम्पत्य को (वेद) जानता है, क्योंकि हमारे दोनों के विवाह को इस जोड़े ने देखा है, अतः यह द्यावापृथिवी मिथुन भी हमारा साक्षी है ॥

Translate-{(vishvaroopah) sansaar ko prakat karanevaala (tvashta) sabake krtyon ka niyaamak (savita) vivasvaan (kah) prajaapati (devah) dev (garbhe nu) garbh mein hee arthaat prthiveetal par aane se poorv hee (nau) ham donon ko (dampatee) pati-patnee (janita) bana chuka hai. ha ! daiv niyam kaise hain ? ki poorv hee se daampaty siddh hone par bhee main garbhaadhaanarahit ya santaanashoony rah jaoon. ha ! mujhe yah duhkh sahan nahin hota hai. ham prajaapati ke sampaadit daampatyaphal ke bina hee is ghane duhkhapank mein rah jaavenge. (nakih) to phir (asy) is prajaapati ke (vrataani) saare niyam (praminanti) toot jaane chaahien. kyonki ham to jhooth bolate hee nahin ki hamaara daampaty prajaapati ne sthir kiya tha, jisake garbhaadhaanaphal ke liye ham vilaap kar rahe hain, apitu (asy) is prajaapati ka (prthvee-ut-dyauh) dyaavaaprthivee yah ek mithun arthaat joda bhee (nau) ham donon ‘din-raat’ ke daampaty ko (ved) jaanata hai, kyonki hamaare donon ke vivaah ko is jode ne dekha hai, atah yah dyaavaaprthivee mithun bhee hamaara saakshee hai .}

भावार्थभाषाः -सृष्टि में जोड़े पदार्थ ईश्वरीय व्यस्था से हैं, उनके टूटने से सृष्टि नहीं चलेगी। ऐसे ही गृहस्थ-नियम का भी उल्लङ्घन न करें। वर-वधू का विवाह अन्य विवाहित जनों के साक्ष्य में होना चाहिए, संन्यासी व ब्रह्मचारी का विवाह में साक्ष्य अपेक्षित नहीं ॥५॥ समीक्षा (सायणभाष्य)-“मातुरुदरे सहवासजनित्वं दम्पतित्वं पृथिवी भूमिर्वेद जानाति, उतापि च द्यौर्द्युलोकोऽपि जानाति।” प्रस्तुत व्याख्या में द्यावापृथिवी सहवासजनित दम्पतित्व कैसे जानते हैं, इस बात को सायण अपनी कल्पनासिद्धि के आग्रह के कारण स्पष्ट न कर सके।

Translate-[srshti mein jode padaarth eeshvareey vyastha se hain, unake tootane se srshti nahin chalegee. aise hee grhasth-niyam ka bhee ullanghan na karen. var-vadhoo ka vivaah any vivaahit janon ke saakshy mein hona chaahie, sannyaasee va brahmachaaree ka vivaah mein saakshy apekshit nahin .5. sameeksha (saayanabhaashy)-“maaturudare sahavaasajanitvan dampatitvan prthivee bhoomirved jaanaati, utaapi ch dyaurdyulokopi jaanaati.” prastut vyaakhya mein dyaavaaprthivee sahavaasajanit dampatitv kaise jaanate hain, is baat ko saayan apanee kalpanaasiddhi ke aagrah ke kaaran spasht na kar sake.]

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