যজুর্বেদ রুদ্রাধ্যায় - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

সাম্প্রতিক প্রবন্ধ

Post Top Ad

স্বাগতম

30 October, 2020

যজুর্বেদ রুদ্রাধ্যায়

                                           

देवता: रुद्रो देवता ऋषि: परमेष्ठी वा कुत्स ऋषिः छन्द: आर्षी गायत्री स्वर: षड्जः

বেদের রুদ্রাধ্যায় ১৬ অধ্যায় সমন্ধ্যে পৌরাণিকগণের এই আক্ষেপ যে, দয়ানন্দ জী রুদ্র অর্থ ঈশ্বর কেন মানেন নি।  বিষয়টি বিশ্লেষনের পৃুর্বে আমাদের অনান্য ভাষ্যকারদের মত পর্যালোচনা করা প্রয়োজন। যজুর্বেদের পৌরাণিক খ্যাতনামা দুই ভাষ্যকার প্রসিদ্ধ - উব্বট এবং মহিধর। রুদ্র শব্দে এই দুই ভাষ্যকার এর মত এবং এ অধ্যায়ের ক্রমান্বয়ে মন্ত্রগুলো পর্যালোচনা করলে বিষয় টি পরিষ্কার হয়ে যাবে। 

যজুর্বেদ ১৬।৫৯ "যে ভূতানামধিপতয়" মন্ত্রে উব্বট মহিধর রুদ্রশব্দ কে ঈশ্বর পক্ষে লাগান নি বরং ভূতের রক্ষক পক্ষে লাগিয়েছেন যাহাতে ক্ষত্রিয় রাজার আশয় সিদ্ধ হয়। 

শুধু এই নয় দেখুন

"যেতীর্থানি প্রচরন্তিমৃকাহস্তানিষঙ্গিণঃ " যজু ১৬। ৬১

ये ती॒र्थानि॑ प्र॒चर॑न्ति सृ॒काह॑स्ता निष॒ङ्गिणः॑।

तेषा॑ सहस्रयोज॒नेऽव॒ धन्वा॑नि तन्मसि ॥६१ ॥

(यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:61)

पद पाठ

ये। ती॒र्थानि॑। प्र॒चर॒न्तीति॑ प्र॒ऽचर॑न्ति। सृ॒काह॑स्ता॒ इति॑ सृ॒काऽह॑स्ताः। नि॒ष॒ङ्गिणः॑। तेषा॑म्। स॒ह॒स्र॒यो॒ज॒न इति॑ सहस्रऽयोज॒ने। अव॑। धन्वा॑नि। त॒न्म॒सि॒ ॥६१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हम लोग (ये) जो (सृकाहस्ताः) हाथों में वज्र धारण किये हुए (निषङ्गिणः) प्रशंसित बाण और कोश से युक्त जनों के समान (तीर्थानि) दुःखों से पार करने हारे वेद आचार्य सत्यभाषण और ब्रह्मचर्यादि अच्छे नियम अथवा जिनसे समुद्रादिकों को पार करते हैं, उन नौका आदि तीर्थों का (प्रचरन्ति) प्रचार करते हैं (तेषाम्) उन के (सहस्रयोजने) हजार योजन के देश में (धन्वानि) शस्त्रों को (अव, तन्मसि) विस्तृत करते हैं ॥६१ ॥

(ham log (ye) jo (srkaahastaah) haathon mein vajr dhaaran kiye hue (nishanginah) prashansit baan aur kosh se yukt janon ke samaan (teerthaani) duhkhon se paar karane haare ved aachaary satyabhaashan aur brahmacharyaadi achchhe niyam athava jinase samudraadikon ko paar karate hain, un nauka aadi teerthon ka (pracharanti) prachaar karate hain (teshaam) un ke (sahasrayojane) hajaar yojan ke desh mein (dhanvaani) shastron ko (av, tanmasi) vistrt karate hain .)

भावार्थभाषाः -मनुष्यों के दो प्रकार के तीर्थ हैं, उन में पहिले तो वे जो ब्रह्मचर्य, गुरु की सेवा, वेदादि शास्त्रों का पढ़ना-पढ़ाना, सत्सङ्ग, ईश्वर की उपासना और सत्यभाषण आदि दुःखसागर से मनुष्यों को पार करते हैं और दूसरे वे जिनसे समुद्रादि जलाशयों के इस पार उस पार जाने आने को समर्थ हों ॥६१

(manushyon ke do prakaar ke teerth hain, un mein pahile to ve jo brahmachary, guru kee seva, vedaadi shaastron ka padhana-padhaana, satsang, eeshvar kee upaasana aur satyabhaashan aadi duhkhasaagar se manushyon ko paar karate hain aur doosare ve jinase samudraadi jalaashayon ke is paar us paar jaane aane ko samarth hon .)

এই মন্ত্রের ভাষ্য মহিধর লিখেছেন -

  "যে রুদ্রা তীর্থানি প্রয়াগকাশ্যাদীনি  প্রচরন্তি গচ্ছতি। কীদৃশাঃ। সৃকাহস্তা সৃকা ইত্যায়ুধনাম সৃকা আয়ুধানি হস্তে যেসাং তে " 

অর্থঃ

যে রুদ্র প্রয়াগাদি তীর্থে শস্ত্র হাতে নিয়ে বিচরন করেন (নিষঙ্গিণঃ) খড়গ ধারণ করে। 


এই বিষয়ে উব্বটও একই অর্থ করেছেন।  এই অর্থ দ্বারা সিদ্ধ হয় হয় যে,  আপনারও ভাষ্যকার রুদ্র শব্দের অর্থ সব জায়গায় ঈশ্বর মানেন নি। 

এই ভাষ্যকারদের মতে রুদ্র শব্দ ক্ষত্রিয় বিশেষ বা দেব বিশেষের বাচকই নয় বরং কোথাও কোথাও চোর ডাকুর বাচক হিসেবে রুদ্র শব্দ ব্যবহার করেছেন।  এই অধ্যায়ের ৬০ নং মন্ত্রে উব্বট লিখেছেন " চোরাদয়ো বা রুদ্রা " অর্থ- রুদ্র শব্দের অর্থ চোর আদি।  

এরূপে মহর্ষি দয়ানন্দ সরস্বতী উক্ত অধ্যায়  রাজপক্ষে ব্যাখ্যা করেছেন। অধ্যায়ের প্রারম্ভে তিনি বলেছেন - "অথ রাজধর্ম উপদিশ্যতে" অর্থাৎ ষোড়শ অধ্যায় আরম্ভ হলো।  এই অধ্যায়ের প্রথম মন্ত্রে রাজধর্মের উপদেশ করা হয়েছে - 

नम॑स्ते रुद्र म॒न्यव॑ऽउ॒तो त॒ऽइष॑वे॒ नमः॑।

बा॒हुभ्या॑मु॒त ते॒ नमः॑ ॥१ ॥(यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:1)

पद पाठ

नमः॑। ते॒। रु॒द्र॒। म॒न्यवे॑। उ॒तोऽइत्यु॒तो। ते॒। इष॑वे। नमः॑। बा॒हु॒भ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। उ॒त। ते॒। नमः॑ ॥१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे (रुद्र) दुष्ट शत्रुओं को रुलानेहारे राजन् ! (ते) तेरे (मन्यवे) क्रोधयुक्त वीर पुरुष के लिये (नमः) वज्र प्राप्त हो (उतो) और (इषवे) शत्रुओं को मारनेहारे (ते) तेरे लिये (नमः) अन्न प्राप्त हो (उत) और (ते) तेरे (बाहुभ्याम्) भुजाओं से (नमः) वज्र शत्रुओं को प्राप्त हो ॥१ ॥

भावार्थभाषाः -जो राज्य किया चाहें, वे हाथ पाँव का बल, युद्ध की शिक्षा तथा शस्त्र और अस्त्रों का संग्रह करें ॥१ ॥-(स्वामी दयानन्द सरस्वती)

নমস্তে রুদ্র মন্যব উতো ত ইষুবে নমঃ

বাহুভ্যাভূত তে নমঃ।। (শুক্ল যজুর্বেদ, ১৬/১)

ভাষার্থঃ

হে (রুদ্র) দুষ্ট শত্রু কে রোদনকারী রাজন! তোমার (মন্যবে) ক্রোধযুক্ত বীর পুরুষের জন্য (নমঃ) বজ্র প্রাপ্ত হোক (উতো) এবং (ইষবে) শত্রুকে নাশকারী (তে) তোমার জন্য (নমঃ) অন্ন প্রাপ্ত হোক (উত) এবং (তে) তোমার (বাহুভ্যাম্) ভুজা দ্বারা (নমঃ) বজ্র শত্রুকে প্রাপ্ত হোক।। ১।।

নোটঃ মন্ত্রে দয়ানন্দ জী রুদ্র শব্দের অর্থ রাজন করেছেন। রুদ্র কে  জীব পক্ষে করার পক্ষে তিনি শতপথ এবং উণাদি কোষ থেকে ব্যাখ্যা প্রদান করেছেন।  যথাঃ

  "কতমে রুদ্র ইতি দশমে পুরুষ প্রাণা একদশ আত্মা।  একাদশ রুদ্রাঃ কস্মাদেতে রুদ্রা যদসম্মান্ মর্তাচ্ছরীরদুৎক্রামন্ত্যথ রোদয়ন্তি যত্তদ্রোদয়ন্তি তস্মাদ্ রুদ্রা।।  ইতি শতপথ ব্রাহ্মণে [বৃহঃ উপঃ ৩।৯।৪ ]

 

রোদের্ণিলুক্ চ [উণা০ ২.২৪] অনেনেণাদিগণসুত্রেণ রোদিধাতো রক্ প্রত্যয়ো  ণিলুক্ চ। " 

অর্থাৎ রুদ্র কয়টি?  অর্থাৎ পঞ্চ প্রাণ এবং পঞ্চ উপপ্রাণ এই দশ প্রাণ  এবং জীবাত্মা মিলে একাদশ রুদ্র। এই এগারো দেহান্তকালে রোদন করায় বলিয়া রুদ্র বলা হয়।




এই প্রকার  পরবর্তী মন্ত্রগুলো বিচার করলে অধ্যায় টির আশয় পরিষ্কার হয়ে যাবে -

या ते॑ रुद्र शि॒वा त॒नूरघो॒राऽपा॑पकाशिनी।

 तया॑ नस्त॒न्वा᳕ शन्त॑मया॒ गिरि॑शन्ता॒भि चा॑कशीहि ॥२ ॥

(यजुर्वेद 0अध्याय:16 मन्त्र:2)

पद पाठ

या। ते॒। रु॒द्र॒। शि॒वा। त॒नूः। अघो॑रा। अपा॑पकाशि॒नीत्यपा॑पऽकाशिनी। तया॑। नः॒। त॒न्वा᳕। शन्त॑म॒येति॒ शम्ऽत॑मया। गिरि॑श॒न्तेति॒ गिरि॑ऽशन्त। अ॒भि। चा॒क॒शी॒हि॒ ॥२ ॥


पदार्थान्वयभाषाः -हे (गिरिशन्त) मेघ वा सत्य उपदेश से सुख पहुँचाने वाले (रुद्र) दुष्टों को भय और श्रेष्ठों के लिये सुखकारी शिक्षक विद्वन् ! (या) जो (ते) आप की (अघोरा) घोर उपद्रव से रहित (अपापकाशिनी) सत्य धर्मों को प्रकाशित करने हारी (शिवा) कल्याणकारिणी (तनूः) देह वा विस्तृत उपदेश रूप नीति है (तया) उस (शन्तमया) अत्यन्त सुख प्राप्त करानेवाली (तन्वा) देह वा विस्तृत उपदेश की नीति से (नः) हम लोगों को आप (अभि, चाकशीहि) सब ओर से शीघ्र शिक्षा कीजिये ॥२ ॥

भावार्थभाषाः -शिक्षक लोग शिष्यों के लिये धर्मयुक्त नीति की शिक्षा दें और पापों से पृथक् करके कल्याणरूपी कर्मों के आचरण में नियुक्त करें ॥२ ॥

যা তে রুদ্র শিবা তনুরঘোরাহপাপকাশিনী।

তয়া নস্তন্বা শান্তময়া গিরিসন্তাভি চাকশীহি।।(শুক্ল যজুর্বেদ, ১৬/২)

ভাষার্থঃ

হে (গিরিশন্ত) মেঘ বা সত্য উপদেশ দ্বারা সুখ পৌছানো (রুদ্র) দুষ্ট কে ভয় এবং শ্রেষ্ঠ এর জন্য সুখকারী শিক্ষক বিদ্বান! (যা) যে (তে) আপনার (অঘোরা) ঘোর উপদ্রব রহিত (অপাপকাশিনী) সত্য ধর্মের প্রকাশিত কারক (শিবা) কল্যাণকারিণী (তনুঃ) দেহ বা বিস্তৃত উপদেশ রূপ নীতি (তয়া) সেই (শান্তময়া) অত্যন্ত সুখ প্রাপ্ত করানো (তন্বা) দেহ বা বিস্তৃত উপদেশ কে নীতি দ্বারা (নঃ) আমাদের কে আপনি (অভি চাকশীহি) সব প্রকারে শীঘ্র শিক্ষা করুন।

নোটঃ

এই মন্ত্রে সাকারবাদীরা কৈলাসবাসী শিব অর্থে লাগানোর জন্য (গিরিশন্ত)  এর অর্থ "গিরিকৈলাসে স্থিতঃ শং সুখং তনোনীতি গিরিশন্ত" গিরি কৈলাশে বসে সুখের বিস্তার করে তাকে "গিরিশন্ত" বলে এরূপ অর্থ করে।  উব্বট আদি আচার্য্য  গিরিশন্ত এর তিন প্রকার অর্থ করেছেন - এক  যিনি (গিরি) বাণী দ্বারা সুখের বিস্তার করে,দুই যিনি (গিরি) মেঘের বৃষ্টি দ্বারা সুখের বিস্তার করে,  তিন যিনি (গিরি) কৈলাশে স্থিত হয়ে সুখের বিস্তার করে।

কিন্তু সাকার প্রেমী পৌরাণিকদের কৈলাশবাসী শিব অর্থে অধিক প্রেম। কারন এতে করে শিবের সাকারত্ব সিদ্ধ হবে।

কিন্তু উক্ত তিন অর্থ দ্বারা কৈলাশবাসী ঈশ্বর কদাপি সিদ্ধ হয় না।  কারন গিরি শব্দের অর্থ পর্বতমাত্র।  তাহাতে অবস্থান করে সুখের বিস্তার করার আশয় হচ্ছে - যে রাজ পুরুষ হিমালয়ের উচ্চ শিখরে থাকে তিনিই "গিরিশন্ত" শব্দের বাচ্য (গিরি) শব্দের অর্থ কৈলাশ নেবার কোন প্রমাণ নেই। বাণী দ্বারা সুখের বিস্তার করে সত্যপদেশক এবং রাজ পুরুষই এখানে অভিপ্রেত।  এবং মেঘ দ্বারা আশয় এই যে মেঘের বৃষ্টির সমান অনবরত সত্যোপদেশ করেন তাকে "গিরিশন্ত" বলে। 

এই কথাগুলো স্পষ্ট করে দেয় যে এই অধ্যায়ে সাকার ঈশ্বরের বর্ণনা নয়,  বরং শস্ত্রধারী ক্ষাত্র ধর্মের যোদ্ধার বর্ণনা।  কৈলাসবাসী পৌরাণিক শিব এই অধ্যায়ের বিষয় নয়।

যামিষু গিরিশন্ত হস্তে বিভর্ষ্যস্তবে।

শিবাং গিরিত্র তাং কুরু হিংসীঃ পুরুষ জগৎ।।৩।।

यामिषुं॑ गिरिशन्त॒ हस्ते॑ बि॒भर्ष्यस्त॑वे।

 शि॒वां गि॑रित्र॒ तां कु॑रु॒ मा हि॑ꣳसीः॒ पुरु॑षं॒ जग॑त् ॥३ ॥

पद पाठ

याम्। इषु॑म्। गि॒रि॒श॒न्तेति॑ गिरिऽशन्त। हस्ते॑। बि॒भर्षि॑। अस्त॑वे। शि॒वाम्। गि॒रि॒त्रेति॑ गिरिऽत्र। ताम्। कु॒रु॒। मा। हि॒ꣳसीः॒। पुरु॑षम्। जग॑त् ॥३ ॥


यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:3

पदार्थान्वयभाषाः -हे (गिरिशन्त) मेघ द्वारा सुख पहुँचानेवाले सेनापति ! जिस कारण तू (अस्तवे) फेंकने के लिये (याम्) जिस (इषुम्) बाण को (हस्ते) हाथ में (बिभर्षि) धारण करता है, इसलिये (ताम्) उसको (शिवाम्) मङ्गलकारी (कुरु) कर। हे (गिरित्र) विद्या के उपदेशकों वा मेघों की रक्षा करनेहारे राजपुरुष ! तू (पुरुषम्) पुरुषार्थयुक्त मनुष्यादि (जगत्) संसार को (मा) मत (हिंसीः) मार ॥३ ॥

भावार्थभाषाः -राजपुरुषों को चाहिये कि युद्धविद्या को जान और शस्त्र-अस्त्रों को धारण करके मनुष्यादि श्रेष्ठ प्राणियों को क्लेश न देवें वा न मारें, किन्तु मङ्गलरूप आचरण से सब की रक्षा करें ॥३ ॥

ভাষার্থঃ

হে (গিরিশন্ত) মেঘের দ্বারা সুখ পৌছানোকারী সেনাপতি! যেই কারণে তুমি (অস্তবে) নিক্ষেপের জন্য (যাম্) যেই (ইষুম্) বাণ কে (হস্তে) হাতে (বিভর্ষি) ধারন করেছো,  এই জন্য (তাম্) তাকে (শিবাম্) মঙ্গলকারী (কুরু) করো। হে (গিরিত্র) বিদ্যার উপদেশক বা মেঘের রক্ষাকারী রাজপুরুষ! তুমি (পুরুষম্) পুরুষার্থযুক্ত মনুষ্যাদি (জগৎ) সংসার কে (মা) না (হিংসী) মার।।৩।।

নোটঃ

এখানে বৈদিক ধর্মের মর্যাদায় স্থিত ক্ষত্রিয় কে পাওয়া গেলো।  তাহার নিকট প্রার্থনা করা হয়েছে যে, "গিরিত্র" সেই বাণ কে আপনি মঙ্গল ময়করুণ যাতে এই বাণ ধর্মার্থ কাম মোক্ষ এই ফল চতুষ্টয়সম্পন্ন জগৎ কে হিংসা না করে। অর্থাৎ রাজপুরুষের উচিৎ যে যুদ্ধবিদ্যাকে জেনে এবং অস্ত্র শস্ত্রের ধারণ করে মনুষ্যাদি শ্রেষ্ঠ প্রাণী কে কষ্ট দেবে না কিংবা মারবে না,  বরং মঙ্গলময় আচরন দ্বারা সবার রক্ষা করবে। 

শিবেন বচসাত্বা গিরি শাচ্ছাবদামসি।

যথা নঃ সর্ব মিজ্জগদ যক্ষ্মং সুমনা অসত্।।৪।।

शि॒वेन॒ वच॑सा॒ त्वा॒ गिरि॒शाच्छा॑ वदामसि।

 यथा॑ नः॒ सर्व॒मिज्जग॑दय॒क्ष्म सु॒मना॒ऽअस॑त् ॥४ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:4

पद पाठ

शि॒वेन॑। वच॑सा। त्वा॒। गिरि॒शेति॒ गिरि॑ऽश। अच्छ॑। व॒दा॒म॒सि॒। यथा॑। नः॒। सर्व॑म्। इत्। जग॑त्। अ॒य॒क्ष्मम्। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। अस॑त् ॥४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे (गिरिश) पर्वत वा मेघों में सोनेवाले रोगनाशक वैद्यराज ! तू (सुमनाः) प्रसन्नचित्त होकर आप (यथा) जैसे (नः) हमारा (सर्वम्) सब (जगत्) मनुष्यादि जङ्गम और स्थावर राज्य (अयक्ष्मम्) क्षय आदि राजरोगों से रहित (असत्) हो वैसे (इत्) ही (शिवेन) कल्याणकारी (वचसा) वचन से (त्वा) तुझ को हम लोग (अच्छ वदामसि) अच्छा कहते हैं ॥४ ॥

भावार्थभाषाः -इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो पुरुष वैद्यकशास्त्र को पढ़ पर्वतादि स्थानों की ओषधियों वा जलों की परीक्षा कर और सब के कल्याण के लिये निष्कपटता से रोगों को निवृत्त करके प्रिय वाणी से वर्त्ते, उस वैद्य का सब लोग सत्कार करें ॥४ ॥

ভাষ্যার্থঃ 

হে (গিরিশ) পর্বত বা মেঘে রমণ কারী রোগনাশক বৈদ্যরাজ! তুমি (সুমনাঃ) প্রসন্নচিত্র হয়ে আপনি (যথা) যেমন (নঃ) আমাদের (সর্বম্) সমস্ত মনুষ্যাদি জঙ্গম এবং স্থাবর রাজ্য (অযক্ষ্মম্) ক্ষয় আদি রাজরোগ থেকে রহিত (অসত্) হয় ওইরূপ (ইত্) ই (শিবেন) কল্যাণকারী (বচসা) বচন দ্বারা (ত্বা) তোমাকে আমরা (অচ্ছ বদামসি) উত্তম বলি।।৪।।

নোটঃ

এই মন্ত্রে কেবল এক গিরিষ শব্দ এসেছে যার অর্থ পৌরাণিকরা কৈলাশবাসী শিব করে।  বাস্তবে অর্থ এই যে গিরৌপর্বতে ঔষধার্থ শেতে রমতে, ইতি গিরিশ।  অর্থাৎ যে পর্বতে ঔষুধ খোজার জন্য শেতে অর্থাৎ অত্যন্ত দক্ষচিত্ত হয়ে রমন করেন। আর এক পদ ধ্যান দেবার যোগ্য যে মন্ত্রে শিব মঙ্গল বাচক শব্দ। যেমন বলা হয় শিবং ভবতু অর্থাৎ তোমার কল্যাণ হোক।  এই প্রকার কেবল শিব শব্দ আসাতে ঈশ্বর গ্রহন হয় না।  সামনের মন্ত্রে ভিষক শব্দ স্পষ্ট ভাবে পাঠ রয়েছে যাহাতে মন্ত্র বৈদ্যের অভিপ্রায় সিদ্ধ হয়। 

অধ্যবোচদধিবক্তা প্রথমো দৈব্যোভিষক্।

অহিংশ্চ সর্বাঞ্জম্ভয়ন্ত্সর্ব্বাশ্চ যাতুধান্যোহধরাচীঃ পরা সুব।।৫।।

अध्य॑वोचदधिव॒क्ता प्र॑थ॒मो दैव्यो॑ भि॒षक्।

 अही॑श्चँ॒ सर्वा॑ञ्ज॒म्भय॒न्त्सर्वा॑श्च यातुधा॒न्यो᳖ऽध॒राचीः॒ परा॑ सुव ॥५ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:5

पद पाठ

अधि॑। अ॒वो॒च॒त्। अ॒धि॒व॒क्तेत्य॑धिऽव॒क्ता। प्र॒थ॒मः। दैव्यः॑। भि॒षक्। अही॑न्। च॒। सर्वा॑न्। ज॒म्भय॑न्। सर्वाः॑। च॒। या॒तु॒धा॒न्य᳖ इति॑ यातुऽधा॒न्यः᳖। अ॒ध॒राचीः॑। परा॑। सु॒व॒ ॥५ ॥


पदार्थान्वयभाषाः -हे रुद्र रोगनाशक वैद्य ! जो (प्रथमः) मुख्य (दैव्यः) विद्वानों में प्रसिद्ध (अधिवक्ता) सब से उत्तम कक्षा के वैद्यकशास्त्र को पढ़ाने तथा (भिषक्) निदान आदि को जान के रोगों को निवृत्त करनेवाले आप (सर्वान्) सब (अहीन्) सर्प के तुल्य प्राणान्त करनेहारे रोगों को (च) निश्चय से (जम्भयन्) ओषधियों से हटाते हुए (अध्यवोचत्) अधिक उपदेश करें सो आप जो (सर्वाः) सब (अधराचीः) नीच गति को पहुँचानेवाली (यातुधान्यः) रोगकारिणी ओषधि वा व्यभिचारिणी स्त्रियाँ हैं, उनको (परा) दूर (सुव) कीजिये ॥५ ॥

भावार्थभाषाः -राजादि सभासद् लोग सब के अधिष्ठाता मुख्य धर्मात्मा जिसने सब रोगों वा ओषधियों की परीक्षा ली हो उस वैद्य को राज्य और सेना में रख के बल और सुख के नाशक रोगों तथा व्यभिचारिणी स्त्री और पुरुषों को निवृत्त करावें ॥५ ॥

ভাষার্থঃ

 হে রোগনাশক বৈদ্য! যে (প্রথমঃ) মুখ্য (দৈব্যঃ) বিদ্বানদের মধ্যে প্রসিদ্ধ (অধিবক্তা) সব থেকে উত্তম কক্ষের বৈদ্যকশাস্ত্র কে পাঠ করানো তথা (ভিষক্) নিদান আদি কে জানা রোগ কে নিবৃত্ত করানোকারী আপনি (সর্বান্) সমস্ত (অহীন্) সর্পের তুল্য প্রাণান্ত করানোকারী রোগ কে (চ) নিশ্চয় রূপে (জম্ভয়ন্) ঔষধি দ্বারা দূর করে (অধ্যবোচৎ) অধিক উপদেশ করেন, তো আপনি (সর্বাঃ) সমস্ত (অধরাচীঃ) নিচ গতি কে পৌছানোকারী (যাতুধান্যঃ) রোগকারিণী ঔষধি বা ব্যভিচারিণী স্ত্রী, তাহাকে (পরা) দূর (সুব) করুন।।৫।।

নোটঃ

উব্বট এবং মহিধর এই মন্ত্রের অর্থে বিশেষ ভেদ নেই,  নিজ মনোর্থে রুদ্র কে বৈদ্য মেনে মন্ত্রার্থ করেছেন।  মন্ত্রের বিষয়ে যে বৈদ্যের উপদেশ রয়েছে তাহা তারাও ছাড়তে পারে নি।  একটু ভেদ রয়েছেন তা হলো - (যাতুধান্যঃ) এর অর্থ রাক্ষসী করেছেন।  অমরকোষের রীতি অনুসারে যাতুধান নাম রাক্ষসের এই কারণে বেদার্থে ভূত প্রেতাদির সন্দেহ প্রদর্শন করেছেন। বাস্তবে "যাতুনি দুখানি প্রাণিষু ধারয়ন্তীতি যাতুধান্যঃ" যে প্রাণীদের দুঃখ উৎপন্ন করে তাকে যাতুধান্য বলে। 

অসৌ যস্তাম্রোহঅরুণহউত বভ্রুঃ সুমঙ্গলঃ।

যে চৈনং রুদ্রাহভিতো দিক্ষু শ্রিতাঃ সহস্রশোহবৈষাং হেডহইমহে।।৬।।

अ॒सौ यस्ता॒म्रोऽअ॑रु॒णऽउ॒त ब॒भ्रुः सु॑म॒ङ्गलः॑।

 ये चै॑नꣳ रु॒द्राऽअ॒भितो॑ दि॒क्षु श्रि॒ताः स॑हस्र॒शोऽवै॑षा हेड॑ऽईमहे ॥६ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:6

पद पाठ

अ॒सौ। यः। ता॒म्रः। अ॒रु॒णः। उ॒त। ब॒भ्रुः। सु॒म॒ङ्गल॒ इति॑ सुऽम॒ङ्गलः॑। ये। च॒। ए॒न॒म्। रु॒द्राः। अ॒भितः॑। दि॒क्षु। श्रि॒ताः। स॒ह॒स्र॒श इति॑ सहस्र॒ऽशः। अव॑। ए॒षा॒म्। हेडः॑। ई॒म॒हे॒ ॥६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे प्रजास्थ मनुष्यो ! (यः) जो (असौ) वह (ताम्रः) ताम्रवत् दृढाङ्गयुक्त (हेडः) शत्रुओं का अनादर करने हारा (अरुणः) सुन्दर गौराङ्ग (बभ्रुः) किञ्चित् पीला वा धुमेला वर्णयुक्त (उत) और (सुमङ्गलः) सुन्दर कल्याणकारी राजा हो (च) और (ये) जो (सहस्रशः) हजारहों (रुद्राः) दुष्ट कर्म करनेवालों को रुलानेहारे (अभितः) चारों ओर (दिक्षु) पूर्वादि दिशाओं में (एनम्) इस राजा के (श्रिताः) आश्रय से वसते हों (एषाम्) इन वीरों का आश्रय लेके हम लोग (अवेमहे) विरुद्धाचरण की इच्छा नहीं करते हैं ॥६ ॥

भावार्थभाषाः -हे मनुष्यो ! जो राजा अग्नि के समान दुष्टों को भस्म करता, चन्द्र के तुल्य श्रेष्ठों को सुख देता, न्यायकारी, शुभलक्षणयुक्त और जो इस के तुल्य भृत्य राज्य में सर्वत्र वसें, विचरें वा समीप में रहें, उन का सत्कार करके उन से दुष्टों का अपमान तुम लोग कराया करो ॥६ ॥

ভাষ্যার্থঃ

হে প্রজাস্থ মনুষ্যো! (যঃ) যে (অসৌ) তিনি (তাপ্রঃ) তাম্রবৎ দৃঢাঙ্গ যুক্ত (হেডঃ)শত্রুর অনাদর কারী (অরুণঃ) সুন্দর গৌরাঙ্গ (বভূঃ) কিঞ্চিত হলুদ বা ধূমেলা বর্ণযুক্ত (উত) এবং (সুমঙ্গলঃ) সুন্দর কল্যাণকারী রাজা হও (চ) এবং (যে) যে (সহস্রশঃ) হাজার (রুদ্রাঃ) দুষ্ট কর্ম কারী কে রোদনকারী (অভিতঃ) চোর এবং (দিক্ষু) পূর্বাদি দিশাতে (এনম্) এই রাজার (শ্রিতাঃ) আশ্রয়ে অবস্থান করো (এষাম্) এই বীরের আশ্রয় নিয়ে আমরা (অবেমহে) বিরুদ্ধাচরণের ইচ্ছা করি না।।৬।।

নোটঃ 


উব্বট মহিধর মন্ত্র কে সূর্যপক্ষে লাগিয়েছেন এবং অর্থ করেছেন - "আদিত্যরূপেন রুদ্রঃ স্তুয়তে....কিরণরূপেন সহস্রসংখ্যাঃ এষাং হেডঃ ক্রোধমস্পদপরাধজং বয়মেব ঈমহে নিবারয়ামঃ ভক্ত্যা নিরাকুর্ম্মঃ।" অর্থাৎ রুদ্ররূপ সূর্য্য কে স্তুতি করি।  সহস্রসংখ্যক যে কীরণ রয়েছে তাহাকে স্তুতি করি এবং তাহার ক্রোধ আমরা ভক্তি দিয়ে করি। এখানে মহিধর  জড় সূ্র্যাদির উপাসনার  তথা ভক্তির ঈঙ্গিত করেছেন নিজ কল্পনা বশতঃ।

অসৌ যোহবসর্পতি নীলগ্রীব বিলোহিত।

উতৈনং গোপাহঅদশ্রন্নুদাহর্য্যঃ স দৃষ্ট মৃডয়াতি নঃ।। ৭।।

अ॒सौ योऽव॒सर्प॑ति॒ नील॑ग्रीवो॒ विलो॑हितः।

 उ॒तैनं॑ गो॒पाऽअ॑दृश्र॒न्नदृ॑श्रन्नुदहा॒र्य्यः᳕ स दृ॒ष्टो मृ॑डयाति नः ॥७ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:7

पद पाठ

अ॒सौ। यः। अ॒व॒सर्प्प॒तीत्य॑व॒ऽसर्प्प॒ति। नील॑ग्रीव॒ इति॒ नील॑ऽग्रीवः। विलो॑हित॒ इति॒ विऽलो॑हितः। उ॒त। ए॒न॒म्। गो॒पाः। अ॒दृ॒श्र॒न्। अदृ॑श्रन्। उ॒द॒हा॒र्य्य᳕ इत्यु॑दऽहा॒र्य्यः᳕। सः। दृ॒ष्टः। मृ॒ड॒या॒ति॒। नः॒ ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -(यः) जो (असौ) वह (नीलग्रीवः) नीलमणियों की माला पहिने (विलोहितः) विविध प्रकार के शुभ गुण, कर्म और स्वभाव से युक्त श्रेष्ठ (रुद्रः) शत्रुओं का हिंसक सेनापति (अवसर्पति) दुष्टों से विरुद्ध चलता है। जिस (एनम्) इसको (गोपाः) रक्षक भृत्य (अदृश्रन्) देखें (उत) और (उदहार्य्यः) जल लानेवाली कहारी स्त्रियाँ (अदृश्रन्) देखें (सः) वह सेनापति (दृष्टः) देखा हुआ (नः) हम सब धार्मिकों को (मृडयाति) सुखी करे ॥७ ॥

भावार्थभाषाः -जो दुष्टों का विरोधी श्रेष्ठों का प्रिय दर्शनीय सेनापति सब सेनाओं को प्रसन्न करे, वह शत्रुओं को जीत सके ॥७ ॥

পদার্থঃ

(যঃ) যে (অসৌ) তিনি (নীলগ্রীবঃ) নীলমণির মালা পরিহিতা (বিলোহিতঃ) বিবিধ প্রকারের শুভ, গুণ, কর্ম এবং স্বভাব দ্বারা যুক্ত (রুদ্রঃ) শত্রুর হিংসক সেনাপতি (অবসর্পতি) দুষ্ট থেকে বিরুদ্ধ চলেন।  যেই (এনম্) ইহাকে (গোপাঃ) রক্ষক ভৃত্য (অদৃশ্রন্) দেখে (উত) এবং (উদহার্য্যঃ) জল আনয়নকারী স্ত্রী (অদৃশ্রন্) দেখে (সঃ) সেই সেনাপতি (দৃষ্টঃ) দৃষ্টি দিয়ে (নঃ) আমাদের সব ধার্মিক কে (মৃডয়াতি) সুখি করেন।। ৭।।

নোটঃ 

পৌরাণিকরা এই মন্ত্রে নীল কন্ঠের সহায়তা নিয়ে সমুদ্র মন্থন এবং শিবের বিষভক্ষনের কাহিনীর বেদে দেখানোর চেষ্টা করে।  কিন্তু এর খন্ডন করে উব্বটাচার্য্য লিখেছেন "নীলগ্রীব ইবাস্তং গচ্ছন্ লক্ষতে" অর্থাৎ সূর্য অস্ত হওয়ার সময় নীল কন্ঠের সমান প্রতীত হয়।  সমুদ্র মন্থনের কারণে উত্থিত বিষ পানে যদি শিবের কন্ঠ নীল হয়েছে এরূপ তত্ত্ব হতো তাহলে উব্বট কেন সূর্যের নীল গ্রীব বললেন? পৌরাণিকদের একটা চিরন্তর অভ্যাস এই যে বেদে যদি তারা পুরাণের একটুও ইঙ্গিত পান সেটাকে একদম পৌরাণিক কাহিনী বানিয়ে ছাড়বে।

নমস্তে নীলগ্রীবায় সহস্রাক্ষায় মীঢুষে।

অথৌ যেহঅস্য সত্বানোহহং তেভ্যহকরং নমঃ।।৮।।

नमो॑ऽस्तु॒ नील॑ग्रीवाय सहस्रा॒क्षाय॑ मी॒ढुषे॑।

 अथो॒ येऽअ॑स्य॒ सत्वा॑नो॒ऽहं तेभ्यो॑ऽकरं॒ नमः॑ ॥८ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:8

पद पाठ

नमः॑। अ॒स्तु॒। नील॑ग्रीवा॒येति॒ नील॑ऽग्रीवाय। स॒ह॒स्रा॒क्षायेति॑ सहस्रऽअ॒क्षाय॑। मी॒ढुषे॑। अथो॒ऽइत्यथो॑। ये। अ॒स्य॒। सत्वा॑नः। अ॒हम्। तेभ्यः॑। अ॒क॒र॒म्। नमः॑ ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -(नीलग्रीवाय) जिसका कण्ठ और स्वर शुद्ध हो उस (सहस्राक्षाय) हजारहों भृत्यों के कार्य देखनेवाले (मीढुषे) पराक्रमयुक्त सेनापति के लिये मेरा दिया (नमः) अन्न (अस्तु) प्राप्त हो (अथो) इसके अनन्तर (ये) जो (अस्य) इस सेनापति के अधिकार में (सत्वानः) सत्त्व गुण तथा बल से युक्त पुरुष हैं (तेभ्यः) उनके लिये भी (अहम्) मैं (नमः) अन्नादि पदार्थों को (अकरम्) सिद्ध करूँ ॥८ ॥

भावार्थभाषाः -सभापति आदि राजपुरुषों को चाहिये कि अन्नादि पदार्थों से जैसा सत्कार सेनापति का करें, वैसा ही सेना के भृत्यों का भी करें ॥८ ॥

ভাষ্যার্থঃ

(নীলগ্রীবায়) যাহার কন্ঠ এবং স্বর শুদ্ধ সেই (সহস্রাক্ষায়) হাজার ভৃত্যের কার্য দর্শনশীল (মীঢুষে) পরাক্রমযুক্ত সেনাপতির জন্য আমার দানকৃত (নমঃ) অন্ন (অস্তু) প্রাপ্ত হোক (অথো) ইহার অনন্তর (যে) যে (অস্য) এই সেনাপতির অধিকারে (সত্বানঃ) সত্ব গুণ তথা বলা দ্বারা যুক্ত পুরুষ (তেভ্যঃ) তাহাদের জন্যও (অহম্) আমি (নমঃ) অন্নাদি পদার্থ কে (অক্ররম্) সিদ্ধ করবো।।৮।।

নোটঃ

 মহীধর এই মন্ত্রের অর্থ করেছেন যে,  সেই রুদ্রের ভৃত্য কে নমস্কার করি।  ইহাতে স্পষ্ট সিদ্ধ হয় যে, ইহা রাজধর্মের প্রকরণ মন্ত্র।  অন্যথা ভৃত্যকে নমস্কার করার কি তাৎপর্য্য,  আমাদের পক্ষে তো ইহা কোন দোষ নয়, কারণ সেনাপতির ভৃত্যও অন্ন দান আদির যোগ্য। 

নমঃ-অন্নাদি পদার্থ  নিঘন্টু ২.৭

প্রমুশ্চ ধন্বনস্ত্বমুভয়োরার্ত্ন্যোর্জ্যাম্ 

যাশ্চ তে হস্ত ইষবঃ পরা তো ভগব বপ।।৯।।

प्रमु॑ञ्च॒ धन्व॑न॒स्त्वमु॒भयो॒रार्त्न्यो॒र्ज्याम्।

 याश्च॑ ते॒ हस्त॒ऽइष॑वः॒ परा॒ ता भ॑गवो वप ॥९ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:9

पद पाठ

प्र। मु॒ञ्च॒। धन्व॑नः। त्वम्। उ॒भयोः॑। आर्त्न्योः॑। ज्याम्। याः। च॒। ते॒। हस्ते॑। इष॑वः। परा॑। ताः। भ॒ग॒व॒ इति॑ भगवः। व॒प॒ ॥९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे (भगवः) ऐश्वर्ययुक्त सेनापते ! (ते) तेरे (हस्ते) हाथ में (याः) जो (इषवः) बाण हैं (ताः) उन को (धन्वनः) धनुष् के (उभयोः) दोनों (आर्त्न्योः) पूर्व पर किनारों की (ज्याम्) प्रत्यञ्चा में जोड़ के शत्रुओं पर (त्वम्) तू (प्र, मुञ्च) बल के साथ छोड़ (च) और जो तेरे पर शत्रुओं ने बाण छोड़े हुए हों उन को (परा, वप) दूर कर ॥९ ॥

भावार्थभाषाः -सेनापति आदि राजपुरुषों को चाहिये कि धनुष् से बाण चलाकर शत्रुओं को जीतें और शत्रुओं के फेंके हुए बाणों का निवारण करें ॥९ ॥

ভাষ্যার্থঃ 

হে (ভগবঃ) ঐশ্বর্য্যযুক্ত সেনাপতি! (তে) তোমার (হস্তে) হাতে (যাঃ) যে  (ইষবঃ) বাণ (তাঃ) তাহা (ধন্বনঃ) ধনুকের (উভয়োঃ) উভয় (আর্ত্ন্যোঃ) পূর্ব পর কিনারায় (জ্যাম্) প্রযত্নে যুক্ত করে শত্রুর উপর (ত্বম্) তুমি (প্র, মুচ্চ) বলের সাথে ছেড়ে দাও (চ) এবং যে তোমার উপর শত্রু বাণ ছুড়েছে তাকে (পরা, বপ) দূর করো।।৯।।

নোটঃ 

এই মন্ত্রে উব্বট মহিধর পৌরাণিক মতানুযায়ী এই ভাষ্য করেছে যে,  "হে ভগবান তোমার ধনুকের উভয় দিকের জ্যা খুলে ফেলো এবং তোমার হাতের বাণ ফেলে দাও " এখানে এই অর্থ পরিষ্কার না যে এই বাণ ফেলে দেওয়া রুদ্র কে?  পৌরাণিক রুদ্রের না কোন অন্য ভগবানের?  এখানে তো মিতভাষীর মতো অর্থ করা হয়েছে। এখানে কি বাণ কে হাত থেকে ফেলে দেবার অর্থ রুদ্র কাউকে না মারে?  অথবা কোন শত্রুর উপর নিক্ষেপ করে?  যদি প্রথম অর্থ মানা যায় যে রুদ্র নিজ হাত থেকে বাণ ফেলে দিয়ে শান্তরূপ হবে,  তো আপনার রুদ্রের রুদ্রত্ব কি থাকলো তবে?  আর যদি শত্রুর উপর নিক্ষেপ করার উপদেশ করা হয় তো রুদ্রের প্রবল শত্রু কে?  এভাবে রুদ্র পরমাত্মা পক্ষে এই অর্থ করা উচিৎ নয় কারণ পরমাত্মার কোন শত্রু নেই এই জন্য এই প্রকরণ রাজধর্মের। ।।৯।।

বিজং ধনুকপির্দিনো বিশাল্ল্যো বাণবাংউত। 

অনে শন্নস্য যাহইষব আভূরস্য নিষঙ্গধি।।১০।।

विज्यं॒ धनुः॑ कप॒र्दिनो॒ विश॑ल्यो॒ बाण॑वाँ२ऽउ॒त।

 अने॑शन्नस्य॒ याऽइष॑वऽआ॒भुर॑स्य निषङ्ग॒धिः ॥१० ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:10

पद पाठ

विज्य॒मिति॒ विऽज्य॑म्। धनुः॑। क॒प॒र्द्दिनः॑। विश॑ल्य॒ इति॒ विऽश॑ल्यः। बाण॑वा॒निति॒ बाण॑ऽवान्। उ॒त। अने॑शन्। अ॒स्य॒। याः। इष॑वः। आ॒भुः। अ॒स्य॒। नि॒ष॒ङ्ग॒धिरिति॑ निषङ्ग॒ऽधिः ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे धनुर्वेद को जानने हारे पुरुषो ! (अस्य) इस (कपर्द्दिनः) प्रशंसित जटाजूट को धारण करने हारे सेनापति का (धनुः) धनुष् (विज्यम्) प्रत्यञ्चा से रहित न होवे तथा यह (विशल्यः) बाण के अग्रभाग से रहित और (आभुः) आयुधों से खाली मत हो (उत) और (अस्य) इस अस्त्र-शस्त्रों को धारण करनेवाले सेनापति की (निषङ्गधिः) बाणादि शस्त्रास्त्र कोष खाली मत हो तथा यह (बाणवान्) बहुत बाणों से युक्त होवे (याः) जो (अस्य) इस सेनापति के (इषवः) बाण (अनेशन्) नष्ट हो जावें, वे इस को तुम लोग नवीन देओ ॥१० ॥

भावार्थभाषाः -युद्ध की इच्छा करनेवाले पुरुषों को चाहिये कि धनुष् की प्रत्यञ्चा आदि को दृढ़ और बहुत से बाणों को धारण करें। सेनापति आदि को चाहिये कि लड़ते हुए अपने भृत्यों को देख के यदि उन के पास बाणादि युद्ध के साधन न रहें तो फिर भी दिया करें ॥१० ॥

ভাষ্যার্থঃ 

হে ধনুর্বেদ জ্ঞাত পুরুষ! (অস্য) এই (কপর্দ্দিনঃ) প্রসংশিত জটাজুট ধারণকারী সেনাপতির (ধনুঃ) ধনুক (বিজ্যম্) প্রত্যঞ্চা রহিত না হোক তথা এই (বিশল্যঃ) বাণের অগ্রভাগ থেকে রহিত এবং (আভূঃ) আয়ুধ থেকে খালী না হোক (উত) এবং (অস্য) এই অস্ত্র শস্ত্রের ধারণ কারী সেনাপতি কে (নিষঙ্গধিঃ) বাণাদি শস্ত্রাস্ত্র কোষ খালি না হোক তথা (বাণবান্) বহু বাণ দ্বারা যুক্ত হোক (যাঃ) যে (অস্য) এই সেনাপতির (ইষবঃ)  বাণ (অনেশন্)  নষ্ট হয়ে যাবে, তখন তাহাকে তোমরা নতুন দাও।।১০।।

নোটঃ

এই মন্ত্রে মহিধর এবং উব্বট অর্থ করেছে যে, " জটাজুটধারীর রুদ্রের ধনুর জ্যা রহিত হোক, তাহার বাণের অগ্রভাগ রহিত হোক,  বাণগুলো নষ্ট হোক ও তুণীর শূণ্য হোক"। এবং শেষে বলেছেন - "রুদ্র অস্মান্ প্রনিন্যস্তসর্ব শস্ত্ররিত্বত্যর্থঃ"  অর্থাৎ রুদ্র আমাদের জন্য সমস্ত শস্ত্র রহিত হোক। 

কিন্তু সামনের ১১ নং মন্ত্রেই শস্ত্রধারী রুত্রেে কাছে পালনের প্রার্থনা করা হয়েছে। তাই এই মন্ত্রে  শস্ত্র নাশের প্রার্থনা অসঙ্গত। ১১ নং মন্ত্রার্থ দেখুন - 

যা তে হেডিমিঢুষ্টম হস্তে বভূব তে ধনুঃ।

তয়াস্মান্ বিশ্বতস্ত্বময়ক্ষ্ময়া পরি ভুজ।।১১।।

या ते॑ हे॒तिर्मी॑ढुष्टम॒ हस्ते॑ ब॒भूव॑ ते॒ धनुः॑।

 तया॒स्मान् वि॒श्वत॒स्त्वम॑य॒क्ष्मया॒ परि॑ भुज ॥११ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:11

पद पाठ

या। ते॒। हे॒तिः। मी॒ढु॒ष्ट॒म॒। मी॒ढु॒स्त॒मेति॑ मीढुःऽतम। हस्ते॑। ब॒भूव॑। ते॒। धनुः॑। तया॑। अ॒स्मान्। वि॒श्वतः॑। त्वम्। अ॒य॒क्ष्मया॑। परि॑। भु॒ज॒ ॥११ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे (मीढुष्टम) अत्यन्त वीर्य के सेचक सेनापते ! (या) जो (ते) तेरी सेना है और जो (ते) तेरे (हस्ते) हाथ में (धनुः) धनुष् तथा (हेतिः) वज्र (बभूव) हो (तया) उस (अयक्ष्मया) पराजय आदि की पीड़ा निवृत्त करने हारी सेना से और उस धनुष् आदि से (अस्मान्) हम प्रजा और सेना के पुरुषों की (त्वम्) तू (विश्वतः) सब ओर से (परि) अच्छे प्रकार (भुज) पालना कर ॥११ ॥

भावार्थभाषाः -विद्या और अवस्था में वृद्ध उपदेशक विद्वानों को चाहिये कि सेनापति आदि को ऐसा उपदेश करें कि आप लोगों के अधिकार में जितना सेना आदि बल है, उससे सब श्रेष्ठों की सब प्रकार रक्षा किया करें और दुष्टों को ताड़ना दिया करें ॥११ ॥

ভাষ্যার্থঃ 

হে (মীঢুষ্টম্) অত্যন্ত বীর্যের সেচক সেনাপতি! (যা) যে (তে) তোমার সেনা এবং যে (তে) তোমার (হস্তে) হস্তে (ধনুঃ) ধনুক তথা (হেতিঃ) বজ্র (বভূব) হয় (তয়া) সেই (অয়ক্ষ্ময়া) পরাজয় আদির পীড়া নিবৃত্ত কারী সেনা দ্বারা এবং সেই ধনুক আদি দ্বারা (অস্মান্) আমাদের প্রজা এবং সেনা পুরুষ কে (ত্বম্) তুমি  (বিশ্বতঃ) সব প্রকারে (ভুজ) পালন করো।।।।১১।।

নোটঃ  

এই মন্ত্রের অর্থে মহিধর বলেছেন - "হে কামবর্ষী তোমার হাতে যে  ধনুকরূপ আয়ুধ আছে তা দ্বারা আমাদের সকল দিক হতে রক্ষা করো।" কিন্তু পূর্বের মন্ত্রেই রুদ্র কে শস্ত্রনাশের জন্য প্রার্থনা করা হয়েছে। রুদ্র কে শস্ত্রহীন প্রার্থনা করে আবার শস্ত্রধারী রুদ্রের নিকট পালন প্রার্থনা প্রকরণ বিরুদ্ধ তথা অসঙ্গত।

परि॑ ते॒ धन्व॑नो हे॒तिर॒स्मान् वृ॑णक्तु वि॒श्वतः॑। 

अथो॒ यऽइ॑षु॒धिस्तवा॒रेऽअ॒स्मन्निधे॑हि॒ तम् ॥१२ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:12

पद पाठ

परि॑। ते॒। धन्व॑नः। हे॒तिः। अ॒स्मान्। वृ॒ण॒क्तु॒। वि॒श्वतः॑। अथो॒ऽइत्यथो॑। यः। इ॒षु॒धिरिती॑षु॒ऽधिः। तव॑। आ॒रे। अ॒स्मत्। नि। धे॒हि॒। तम् ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे सेनापति ! जो (ते) आप के (धन्वनः) धनुष् की (हेतिः) गति है, उस से (अस्मान्) हम लोगों को (विश्वतः) सब ओर से (आरे) दूर में आप (परिवृणक्तु) त्यागिये। (अथो) इस के पश्चात् (यः) जो (तव) आप का (इषुधिः) बाण रखने का घर अर्थात् तर्कस है (तम्) उस को (अस्मत्) हमारे समीप से (नि, धेहि) निरन्तर धारण कीजिये ॥१२ ॥

भावार्थभाषाः -राज और प्रजाजनों को चाहिये कि युद्ध और शस्त्रों का अभ्यास कर के शस्त्रादि सामग्री सदा अपने समीप रक्खें। उन सामग्रियों से एक-दूसरे की रक्षा और सुख की उन्नति करें ॥१२ ॥

अ॒व॒तत्य॒ धनु॒ष्ट्व सह॑स्राक्ष॒ शते॑षुधे।

 नि॒शीर्य॑ श॒ल्यानां॒ मुखा॑ शि॒वो नः॑ सु॒मना॑ भव ॥१३ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:13

पद पाठ

अ॒व॒तत्येत्य॑व॒ऽतत्य॑। धनुः॑। त्वम्। सह॑स्रा॒क्षेति॒ सह॑स्रऽअक्ष। शते॑षुध॒ इति॒ शत॑ऽइषुधे। नि॒शीर्य्येति॑ नि॒ऽशीर्य॑। श॒ल्याना॑म्। मुखा॑। शि॒वः। नः॒। सु॒मना॒ इति॑ सु॒ऽमनाः॑। भ॒व॒ ॥१३ ॥


पदार्थान्वयभाषाः -हे (सहस्राक्ष) असंख्य युद्ध के कार्यों को देखने हारे (शतेषुधे) शस्त्र-अस्त्रों के असंख्य प्रकाश से युक्त सेना के अध्यक्ष पुरुष ! (त्वम्) तू (धनुः) धनुष् और (शल्यानाम्) शस्त्रों के (मुखा) अग्रभागों का (अवतत्य) विस्तार कर तथा उनसे शत्रुओं को (निशीर्य) अच्छे प्रकार मारके (नः) हमारे लिये (सुमनाः) प्रसन्नचित्त (शिवः) मङ्गलकारी (भव) हूजिये ॥१३ ॥

भावार्थभाषाः -राजपुरुष साम, दाम, दण्ड और भेदादि राजनीति के अवयवों के कृत्यों को सब ओर से जान, पूर्ण शस्त्र-अस्त्रों का सञ्चय कर और उनको तीक्ष्ण करके शत्रुओं में कठोरचित्त दुःखदायी और अपनी प्रजाओं में कोमलचित्त सुख देनेवाले निरन्तर हों ॥१३ ॥

नम॑स्त॒ऽआयु॑धा॒याना॑तताय धृ॒ष्णवे॑।

 उ॒भाभ्या॑मु॒त ते॒ नमो॑ बा॒हुभ्यां॒ तव॒ धन्व॑ने ॥१४ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:14

पद पाठ

नमः॑। ते॒। आयु॑धाय। अना॑तताय। धृ॒ष्णवे॑। उ॒भाभ्या॑म्। उ॒त। ते॒। नमः॑। बा॒हुभ्या॒मिति॑ बा॒हुऽभ्या॑म्। तव॑। धन्व॑ने ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे सभापति ! (आयुधाय) युद्ध करने (अनातताय) अपने आशय को गुप्त सङ्कोच में रखने और (धृष्णवे) प्रगल्भता को प्राप्त होनेवाले (ते) आपके लिये (नमः) अन्न प्राप्त हो (उत) और (ते) भोजन करने हारे आप के लिये अन्न देता हूँ (तव) आपके (उभाभ्याम्) दोनों (बाहुभ्याम्) बल और पराक्रम से (धन्वने) योद्धा पुरुष के लिये (नमः) अन्न को नियुक्त करूँ ॥१४ ॥

भावार्थभाषाः -सेनापति आदि राज्याधिकारियों को चाहिये कि अध्यक्ष और योद्धा दोनों को शस्त्र देके शत्रुओं से निःशङ्क अच्छे प्रकार युद्ध करावें ॥१४ ॥

 এর পর ১৫ এবং ১৬ নং মন্ত্রে একজন সেনাপতির যু্দ্ধের বিধি নিষেধের বর্ণনা করা হচ্ছে-

মা নো মহান্তমুত মা নোহঅর্ভকং মা নোহউক্ষন্তমুত মা নোহউক্ষিতম্।

মা নো বধীঃ পিতরং মাতে মাতরং মা নঃ প্রিয়াস্তন্বো রুদ্র রীরিষ।।১৫।।

मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ऽअर्भ॒कं मा न॒ऽउक्ष॑न्तमु॒त मा न॑ऽउक्षि॒तम्। मा नो॑ वधीः पि॒तरं॒ मोत मा॒तरं॒ मा नः॑ प्रि॒यास्त॒न्वो᳖ रुद्र रीरिषः ॥१५ ॥(यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:15)

पद पाठ

मा। नः॒। म॒हान्त॑म्। उ॒त। मा। नः॒। अ॒र्भ॒कम्। मा। नः॒। उक्ष॑न्तम्। उ॒त। मा। नः॒। उ॒क्षि॒तम्। मा। नः॒। व॒धीः॒। पि॒तर॑म्। मा। उ॒त। मा॒तर॑म्। मा। नः॒। प्रि॒याः। त॒न्वः᳖। रु॒द्र॒। री॒रि॒ष॒ इति॑ रीरिषः ॥१५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे (रुद्र) युद्ध की सेना के अधिकारी विद्वन् पुरुष ! आप (नः) हमारे (महान्तम्) उत्तम गुणों से युक्त पूज्य को (मा) मत (उत) और (अर्भकम्) छोटे क्षुद्र पुरुष को (मा) मत (नः) हमारे (उक्षन्तम्) गर्भाधान करने हारे को (मा) मत (उत) और (नः) हमारे (उक्षितम्) गर्भ को (मा) मत (नः) हमारे (पितरम्) पालन करने हारे पिता को (मा) मत (उत) और (नः) हमारी (मातरम्) मान्य करने हारी माता को भी (मा) मत (वधीः) मारिये और (नः) हमारे (प्रियाः) स्त्री आदि के पियारे (तन्वः) शरीरों को (मा) मत (रीरिषः) मारिये ॥१५ ॥

भावार्थभाषाः -योद्धा लोगों को चाहिये कि युद्ध के समय वृद्धों, बालकों, युद्ध से हटनेवाले ज्वानों, गर्भों, योद्धाओं के माता पितरों, सब स्त्रियों, युद्ध के देखने वा प्रबन्ध करनेवालों और दूतों को न मारें, किन्तु शत्रुओं के सम्बन्धी मनुष्यों को सदा वश में रक्खें ॥१५ ॥

পদার্থঃ 

হে (রুদ্র) যুদ্ধের সেনার অধিকারী বিদ্বান পুরুষ! আপনি (নঃ) আমাদের (উত্তম গুন দ্বারা যুক্ত পূজ্য কে (মা) না (উত) এবং (অর্ভকম্) ছোট ক্ষুদ্র পুরুষ কে (মা) না (নঃ) আমাদের (উক্ষন্তম্) গর্ভাধান কারী কে (মা) না (উত) এবং (নঃ) আমাদের (উক্ষিতম্) গর্ভ কে (মা) না (নঃ) আমাদের (পিতরম্) পালন কারী পিতা কে (মা) না (উত) এবং (নঃ) আমাদের (মাতরম্) মান্য কারক মাতা কেও (মা) না (বধীঃ) মারো এবং (নঃ) আমাদের (প্রিয়া)  স্ত্রী আদির প্রিয় (তন্বঃ) শরীর কে (মা) না (রীরিষঃ) মারো।।।১৫।।

ভাবার্থঃ

যোদ্ধা লোকের উচিৎ যে যুদ্ধের সময় বৃদ্ধ, বালক, যুদ্ধ থেকে নিরস্ত হওয়া, গর্ভ, যোদ্ধার মাতা পিতা  সমস্ত স্ত্রী,  যুদ্ধ দেখা বা প্রবন্ৎ কারী এবং দুত কে  মারবে নন,  কিন্তু শত্রুর সম্বন্ধী মনুষ্য কে সদা বশে রাখবে।

মা নস্তোকে তনয়ে মা নহআয়ুষি মা নো গোষু মা নোহঅশ্বেষু রীরিষ।

মা নো বীরান্ রুদ্র ভামিনো বধীর্হবিষ্মন্তঃ সদমিত ত্ববা হবামহে।।১৬।।

मा न॑स्तो॒के तन॑ये॒ मा न॒ऽआयु॑षि॒ मा नो॒ गोषु॒ मा नो॒ऽअश्वे॑षु रीरिषः।

 मा नो॑ वी॒रान् रु॑द्र भा॒मिनो॑ वधीर्ह॒विष्म॑न्तः॒ सद॒मित् त्वा॑ हवामहे ॥१६ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:16

पद पाठ

मा। नः॒। तो॒के। तन॑ये। मा। नः॒। आयु॑षि। मा। नः॒। गोषु॑। मा। नः॒। अश्वे॑षु। री॒रिष॒ इति॑ रीरिषः। मा। नः॒। वी॒रान्। रु॒द्र॒। भा॒मिनः॑। व॒धीः॒। ह॒विष्म॑न्तः। सद॑म्। इत्। त्वा॒। ह॒वा॒म॒हे॒ ॥१६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे (रुद्र) सेनापति ! तू (नः) हमारे (तोके) तत्काल उत्पन्न हुए सन्तान को (मा) मत (नः) हमारे (तनये) पाँच वर्ष से ऊपर अवस्था के बालक को (मा) मत (नः) हमारी (आयुषि) अवस्था को (मा) मत (नः) हमारे (गोषु) गौ, भेड़, बकरी आदि को (मा) मत (नः) हमारे और (अश्वेषु) घोड़े, हाथी और ऊँट आदि को (मा) मत (रीरिषः) मार और (नः) हमारे (भामिनः) क्रोध को प्राप्त हुए (वीरान्) शूरवीरों को (मा) मत (वधीः) मार। इस से (हविष्मन्तः) बहुत से देने-लेने योग्य वस्तुओं से युक्त हम लोग (सदम्) न्याय में स्थिर (त्वा) तुझ को (इत्) ही (हवामहे) स्वीकार करते हैं ॥१६ ॥

भावार्थभाषाः -राजपुरुषों को चाहिये कि अपने वा प्रजा के बालकों, कुमार और गौ, घोड़े आदि; वीर, उपकारी जीवों की कभी हत्या न करें और बाल्यावस्था में विवाह कर व्यभिचार से अवस्था की हानि भी न करें। गौ आदि पशु दूध आदि पदार्थों को देने से सब का उपकार करते हैं, उससे उन की सदैव वृद्धि करें ॥१६ ॥


ভাষ্যার্থঃ হে (রুদ্র) সেনাপতি! তুমি (নঃ) আমাদের (তোকে) তৎকাল উৎপন্ন সন্তান কে (মা) না (নঃ) আমাদের (তনয়ে) পাঁচ বর্ষের উপর অবস্থার বালক কে (মা) না (নঃ) আমাদের (আয়ুধি) অবস্থা কে (মা) না (নঃ) আমাদের (গোষু) গাভী, ভেড়া ছাগল আদি কে (মা) না (নঃ) আমাদের এবং (অশ্বেষু) ঘোড়া,  হাতি এবং উট আদি কে (মা) না (রীরিষঃ) মারো এবং (নঃ) আমাদের (ভামিনঃ) ক্রোধ কে প্রাপ্ত (বীরান্) শূরবীর কে (মা) না (বধীঃ) মার। ইহা দ্বারা (হবিষ্মন্তঃ) অনেক দেওয়া নেওয়ার যোগ্য বস্তু দ্বারা যুক্ত আমরা (সদস্) ন্যায়ে স্থির (ত্বা) তোমাকে (ইত্) ই (হবামহে) স্বীকার করি।।১৬।।

ভাবার্থঃ 

রাজপুরুষের উচিৎ যে আপন প্রজার বালক, কুমার এবং গাভী, ঘোড়া আদি, বীর, উপকারী জীব কে কখনো হত্যা  করবে না এবং বাল্যাবস্থায় বিবাহ করে ব্যভিচার দ্বারা অবস্থার হানি করবে না। গাভী আদি পশু দুধ আদি পদার্থ কে দান দ্বারা সবার উপকার করে,  তাহাকে সদৈব বৃদ্ধি করবে।

উপরোক্ত মন্ত্র দুটিতে ক্ষাত্রধর্মের জন্য হননের নিয়ম বেধে দেওয়া হয়েছে যে, কোন কোন মানুষদের হনন করা উচিৎ নয়। এরূপ উত্তম শিক্ষা ইহাই সিদ্ধ করে যে এটা ক্ষাত্রধর্ম শিক্ষার প্রকরণ। কারন এখানে নানা প্রকার শস্ত্রের বর্ণন এবং সেনা সেনাপতির বর্ণন পাওয়া যায়।  কিন্তু পৌরাণিক রুদ্রের সেনা শস্ত্রাদির কি আবশ্যকতা?  যখন তিনি নিজেই ঈশ্বর সেনা আর শস্ত্রের কি প্রয়োজন?

যদি বলা হয় যে,  সাকারবাদীর মতে ঈশ্বরের শস্ত্রধারী হওয়াতে কোন দোষ নেই, যেমন রামচন্দ্রাদি ধনুক ধারী ছিলেন। এর উত্তর এই যে, রামচন্দ্রাদির সমান সাকার রুদ্র যদি মানা হয় তবে পুরাণ মতে রুদ্রের উৎপত্তি ব্রহ্মার থেকে। কূর্মপুরাণের ১০ম অধ্যায়ে রুদ্রের উৎপত্তির বর্ণনা এভাবে রয়েছে - 

"ব্রহ্মা প্রজা সৃষ্টির জন্য অনেক তপ করলেন, এবং কোন কিছু উৎপন্ন না হলে তখন ব্রহ্মার চোখ থেকে অশ্রু ঝড়ে পড়লো ।  এবং সেই অশ্রু বিন্দু থেকে ভূত প্রেত উৎপন্ন হলো।  তারপর ক্রোধে ব্রহ্মা দেহত্যাগ করলেন। সেই সময় ব্রহ্মার মুখ থেকে সূর্যের মতো অগ্নির তূল্য রুদ্র প্রাদুর্ভূত হলেন। তা দেখে মহাদেব ক্রন্দন করতে লাগলেন। তাই দেখে ব্রহ্মা বললেন, কেঁদো  না। তিনি আরো বললেন তুমি রোদন করছো বলে জহতে তোমার নাম হবে রুদ্র।" [সংক্ষেপিত]

পুরাণের এই উদ্ধৃতি অনুসারে রুদ্রের উৎপত্তি ব্রহ্মার থেকে বলা হয়েছে। আর পৌরাণিক মতানুসারে ব্রহ্মাই সর্বপ্রথম বেদ জ্ঞান লাভ করেন।  তাহলে যে রুদ্রের উৎপত্তি ব্রহ্মার থেকে এবং যে রুদ্র  নাম ব্রহ্মাই দিলেন তাহলে সে রুদ্রের বর্ণনা বেদে থাকা কিভাবে সম্ভব?  এ থেকে স্পষ্ট যে বেদে  কোন পৌরানিক রুদ্রের বর্ণনা নেই। আমরা উব্বট, মহিধর আদি আচার্যের ভাষ্য অনুসারে দেখিয়েছি যে, এ অধ্যায়ে  রুদ্র সর্বত্র ঈশ্বর পক্ষে তাহারাও ঘটান নি।  বরং এখানে সাকার রূপ যে রুদ্রের বর্ননা পাওয়া যায় তাতে ক্ষাত্র ধর্মের যোদ্ধার বর্ননাই সিদ্ধ হয় যা মহর্ষি দয়ানন্দ সরস্বতী সুন্দরভাবে ব্যাখ্যা করেছেন।  

কিন্তু সেসব পৌরাণিকগণ "যাতে রুদ্র শিবা তনুঃ" এই মন্ত্র দ্বারা রুদ্রের শরীর সিদ্ধ করতে মন্ত্রটিকে ঈশ্বর পক্ষে লাগিয়ে যারা ঈশ্বরের সাকারত্বের পক্ষে ওকালতি করে তারা উক্ত অধ্যায়ের নিম্নোক্ত মন্ত্রগুলোতে  রুদ্রের অর্থ কি করবে? 

नमो॒ हिर॑ण्यबाहवे सेना॒न्ये᳖ दि॒शां च॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ वृ॒क्षेभ्यो॒ हरि॑केशेभ्यः पशू॒नां पत॑ये॒ नमो॒ नमः॑ श॒ष्पिञ्ज॑राय॒ त्विषी॑मते पथी॒नां पत॑ये॒ नमो॒ नमो॒ हरि॑केशायोपवी॒तिने॑ पु॒ष्टानां॒ पत॑ये॒ नमः॑ ॥१७ ॥यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:17

पद पाठ

नमः॑। हिर॑ण्यबाहव॒ इति॒ हिर॑ण्यऽबाहवे। से॒ना॒न्य᳖ इति॑ सेना॒ऽन्ये᳖। दि॒शाम्। च॒। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। वृ॒क्षेभ्यः॑। हरि॑केशेभ्य॒ इति॒ हरि॑ऽकेशेभ्यः। प॒शू॒नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। श॒ष्पिञ्ज॑राय। त्विषी॑मते। त्विषी॑मत॒ इति॒ त्विषी॑ऽमते। प॒थी॒नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। हरि॑केशा॒येति॒ हरि॑ऽकेशाय। उ॒प॒वी॒तिन॒ इत्युप॑ऽवी॒तिने॑। पु॒ष्टाना॑म्। पत॑ये। नमः॑ ॥१७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे शत्रुताड़क सेनाधीश ! (हिरण्यबाहवे) ज्योति के समान तीव्र तेजयुक्त भुजावाले (सेनान्ये) सेना के शिक्षक तेरे लिये (नमः) वज्र प्राप्त हो (च) और (दिशाम्) सर्व दिशाओं के राज्य भागों के (पतये) रक्षक तेरे लिये (नमः) अन्नादि पदार्थ मिले (हरिकेशेभ्यः) जिन में हरणशील सूर्य की किरण प्राप्त हों ऐसे (वृक्षेभ्यः) आम्रादि वृक्षों को काटने के लिये (नमः) वज्रादि शस्त्रों को ग्रहण कर (पशूनाम्) गौ आदि पशुओं के (पतये) रक्षक तेरे लिये (नमः) सत्कार प्राप्त हो (शष्पिञ्जराय) विषयादि के बन्धनों से पृथक् (त्विषीमते) बहुत न्याय के प्रकाशों से युक्त तेरे लिये (नमः) नमस्कार और अन्न हो (पथीनाम्) मार्ग में चलने हारों के (पतये) रक्षक तेरे लिये (नमः) आदर प्राप्त हो (हरिकेशाय) हरे केशोंवाले (उपवीतिने) सुन्दर यज्ञोपवीत से युक्त तेरे लिये (नमः) अन्नादि पदार्थ प्राप्त हों और (पुष्टानाम्) नीरोगी पुरुषों की (पतये) रक्षा करने हारे के लिये (नमः) नमस्कार प्राप्त हो ॥१७ ॥

भावार्थभाषाः -मनुष्यों को चाहिये कि श्रेष्ठों के सत्कार, भूख से पीड़ितों को अन्न देने, चक्रवर्ति राज्य की शिक्षा, पशुओं की रक्षा, जाने-आनेवालों को डाकू और चोर आदि से बचाने, यज्ञोपवीत के धारण करने और शरीरादि की पुष्टि के साथ प्रसन्न रहें ॥१७ ॥

नमो॑ बभ्लु॒शाय॑ व्या॒धिनेऽन्ना॑नां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ भ॒वस्य॑ हे॒त्यै जग॑तां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ रु॒द्राया॑तता॒यिने॒ क्षेत्रा॑णां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमः॑ सू॒तायाह॑न्त्यै॒ वना॑नां॒ पत॑ये॒ नमः॑ ॥१८ ॥यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:18

पद पाठ

नमः॑। ब॒भ्लु॒शाय॑। व्या॒धिने॑। अन्ना॑नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। भ॒वस्य॑। हे॒त्यै। जग॑ताम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। रु॒द्राय॑। आ॒त॒ता॒यिन॒ इत्या॑ततऽआ॒यिने॑। क्षेत्रा॑णाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। सू॒ताय॑। अह॑न्त्यै। वना॑नाम्। पत॑ये। नमः॑ ॥१८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -राजपुरुष आदि मनुष्यों को चाहिये कि (बभ्लुशाय) राज्यधारक पुरुषों में सोते हुए (व्याधिने) रोगी के लिये (नमः) अन्न देवें (अन्नानाम्) गेहूँ आदि अन्न के (पतये) रक्षक का (नमः) सत्कार करें (भवस्य) संसार की (हेत्यै) वृद्धि के लिये (नमः) अन्न देवें (जगताम्) मनुष्यादि प्राणियों के (पतये) स्वामी का (नमः) सत्कार करें (रुद्राय) शत्रुओं को रुलाने और (आततायिने) अच्छे प्रकार विस्तृत शत्रुसेना को प्राप्त होनेवाले को (नमः) अन्न देवें (क्षेत्राणाम्) धान्यादियुक्त खेतों के (पतये) रक्षक को (नमः) अन्न देवें (सूताय) क्षत्रिय से ब्राह्मण की कन्या में उत्पन्न हुए प्रेरक वीर पुरुष और (अहन्त्यै) किसी को न मारने हारी राजपत्नी के लिये (नमः) अन्न देवें और (वनानाम्) जङ्गलों की (पतये) रक्षा करने हारे पुरुष को (नमः) अन्नादि पदार्थ देवें ॥१८ ॥

भावार्थभाषाः -जो अन्नादि से सब प्राणियों का सत्कार करते हैं, वे जगत में प्रशंसित होते हैं ॥१८ ॥

नमो॒ रोहि॑ताय स्थ॒पत॑ये वृ॒क्षाणां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ भुव॒न्तये॑ वारिवस्कृ॒तायौष॑धीनां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ म॒न्त्रिणे॑ वाणि॒जाय॒ कक्षा॑णां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नम॑ऽउ॒च्चैर्घो॑षायाक्र॒न्दय॑ते पत्ती॒नां पत॑ये॒ नमः॑ ॥१९ ॥यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:19

पद पाठ

नमः॑। रोहि॑ताय। स्थ॒पत॑ये। वृ॒क्षाणा॑म्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। भु॒व॒न्तये॑। वा॒रि॒व॒स्कृ॒ताय॑। वा॒रि॒वः॒कृ॒तायेति॑ वारिवःऽकृ॒ताय॑। ओष॑धीनाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। म॒न्त्रिणे॑। वा॒णि॒जाय॑। कक्षा॑णाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। उ॒च्चैर्घो॑षा॒येत्यु॒च्चैःऽघो॑षाय। आ॒क्र॒न्दय॑त॒ इत्या॑ऽक्र॒न्दय॑ते। प॒त्ती॒नाम्। पत॑ये। नमः॑ ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -राजा और प्रजा के पुरुषों को चाहिये कि (रोहिताय) सुखों की वृद्धि के कर्त्ता और (स्थपतये) स्थानों के स्वामी रक्षक सेनापति के लिये (नमः) अन्न (वृक्षाणाम्) आम्रादि वृक्षों के (पतये) अधिष्ठाता को (नमः) अन्न (भुवन्तये) आचारवान् (वारिवस्कृताय) सेवन करने हारे भृत्य को (नमः) अन्न और (ओषधीनाम्) सोमलतादि ओषधियों के (पतये) रक्षक वैद्य को (नमः) अन्न देवें (मन्त्रिणे) विचार करने हारे राजमन्त्री और (वाणिजाय) वैश्यों के व्यवहार में कुशल पुरुष का (नमः) सत्कार करें (कक्षाणाम्) घरों में रहनेवालों के (पतये) रक्षक को (नमः) अन्न और (उच्चैर्घोषाय) ऊँचे स्वर से बोलने तथा (आक्रन्दयते) दुष्टों को रुलानेवाले न्यायाधीश का (नमः) सत्कार और (पत्तीनाम्) सेना के अवयवों की (पतये) रक्षा करने हारे पुरुष का (नमः) सत्कार करें ॥१९ ॥

भावार्थभाषाः -मनुष्यों को चाहिये कि वन आदि के रक्षक मनुष्यों को अन्नादि पदार्थ देके वृक्षों और ओषधि आदि पदार्थों की उन्नति करें ॥१९ ॥

नमः॑ कृत्स्नाय॒तया॒ धाव॑ते॒ सत्व॑नां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमः॒ सह॑मानाय निव्या॒धिन॑ऽआव्या॒धिनी॑नां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ निष॒ङ्गिणे॑ ककु॒भाय॑ स्ते॒नानां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ निचे॒रवे॑ परिच॒रायार॑ण्यानां॒ पत॑ये॒ नमः॑ ॥२० ॥यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:20

पद पाठ

नमः॑। कृ॒त्स्ना॒य॒तयेति॑ कृत्स्नऽआय॒तया॑। धाव॑ते। सत्व॑नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। सह॑मानाय। नि॒व्या॒धिन॒ इति॑ निऽव्या॒धिने॑। आ॒व्या॒धिनी॑ना॒मित्याऽव्या॒धिनी॑नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। नि॒ष॒ङ्गिणे॑। क॒कु॒भाय॑। स्ते॒नाना॑म्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। नि॒चे॒रव॒ इति॑ निऽचे॒रवे॑। प॒रि॒च॒रायेति॑ परिऽच॒राय॑। अर॑ण्यानाम्। पत॑ये। नमः॑ ॥२० ॥

पदार्थान्वयभाषाः -मनुष्य लोग (कृत्स्नायतया) सम्पूर्ण प्राप्ति के अर्थ (धावते) इधर-उधर जाने-आनेवाले को (नमः) अन्न देवें (सत्वनाम्) प्राप्त पदार्थों की (पतये) रक्षा करने हारे का (नमः) सत्कार करें (सहमानाय) बलयुक्त और (निव्याधिने) शत्रुओं को निरन्तर ताड़ना देने हारे पुरुष को (नमः) अन्न देवें (आव्याधिनीनाम्) अच्छे प्रकार शत्रुओं की सेनाओं को मारने हारी अपनी सेनाओं के (पतये) रक्षक सेनापति का (नमः) आदर करें (निषङ्गिणे) बहुत से अच्छे बाण, तलवार, भुशुण्डी, शतघ्नी अर्थात् बन्दूक तोप और तोमर आदि शस्त्र जिस के हों उस को (नमः) अन्न देवें (निचेरवे) निरन्तर पुरुषार्थ के साथ विचरने तथा (परिचराय) धर्म, विद्या, माता, स्वामी और मित्रादि की सब प्रकार सेवा करनेवाले (ककुभाय) प्रसन्नमूर्ति पुरुष का (नमः) सत्कार करें (स्तेनानाम्) अन्याय से परधन लेने हारे प्राणियों को (पतये) जो दण्ड आदि से शुष्क करता हो उस को (नमः) वज्र से मारें (अरण्यानाम्) वन जङ्गलों के (पतये) रक्षक पुरुष को (नमः) अन्नादि पदार्थ देवें ॥२० ॥

भावार्थभाषाः -राजपुरुषों को चाहिये कि पुरुषार्थियों का उत्साह के लिये सत्कार, प्राणियों के ऊपर दया, अच्छी शिक्षित सेना को रखना, चोर आदि को दण्ड, सेवकों की रक्षा और वनों को नहीं काटना, इन सब को कर राज्य की वृद्धि करें ॥२० ॥

नमो॒ वञ्च॑ते परि॒वञ्च॑ते स्तायू॒नां पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ निष॒ङ्गिण॑ऽइषुधि॒मते॒ तस्क॑राणां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नमः॑ सृका॒यिभ्यो॒ जिघा॑सद्भ्यो मुष्ण॒तां पत॑ये॒ नमो॒ नमो॑ऽसि॒मद्भ्यो॒ नक्तं॒ चर॑द्भ्यो विकृ॒न्तानां॒ पत॑ये॒ नमः॑ ॥२१ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:21

पद पाठ

नमः॑। वञ्च॑ते। प॒रि॒वञ्च॑त॒ इति॑ परि॒ऽवञ्च॑ते। स्ता॒यू॒नाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। नि॒ष॒ङ्गिणे॑। इ॒षु॒धि॒मत॒ इती॑षुधि॒ऽमते॑। तस्क॑राणाम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। सृ॒का॒यिभ्य॒ इति॑ सृका॒यिऽभ्यः॑। जिघा॑सद्भ्य॒ इति॒ जिघा॑सद्ऽभ्यः। मु॒ष्ण॒ताम्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। अ॒सि॒मद्भ्य॒ इत्य॑सि॒मत्ऽभ्यः॑। नक्त॑म्। चर॑द्भ्य॒ इति॒ चर॑त्ऽभ्यः। वि॒कृ॒न्ताना॒मिति॑ विऽकृ॒न्ताना॑म्। पत॑ये। नमः॑ ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -राजपुरुष (वञ्चते) छल से दूसरों के पदार्थों को हरनेवाले (परिवञ्चते) सब प्रकार कपट के साथ वर्त्तमान पुरुष को (नमः) वज्र का प्रहार और (स्तायूनाम्) चोरी से जीनेवालों के (पतये) स्वामी को (नमः) वज्र से मारें (निषङ्गिणे) राज्यरक्षा के लिये निरन्तर उद्यत (इषुधिमते) प्रशंसित बाणों को धारण करने हारे को (नमः) अन्न देवें (तस्कराणाम्) चोरी करने हारों को (पतये) उस कर्म में चलाने हारे को (नमः) वज्र और (सृकायिभ्यः) वज्र से सज्जनों को पीडि़त करने को प्राप्त होने और (जिघांसद्भ्यः) मारने की इच्छावालों को (नमः) वज्र से मारें (मुष्णताम्) चोरी करते हुओं को (पतये) दण्डप्रहार से पृथिवी में गिराने हारे का (नमः) सत्कार करें (असिमद्भ्यः) प्रशंसित खड्गों के सहित (नक्तम्) रात्रि में (चरद्भ्यः) घूमनेवाले लुटेरों को (नमः) शस्त्रों से मारें और (विकृन्तानाम्) विविध उपायों से गाँठ काट के पर-पदार्थों को लेने हारे गठिकठों को (पतये) मार के गिराने हारे का (नमः) सत्कार करें ॥२१ ॥

भावार्थभाषाः -राजपुरुषों को चाहिये कि कपटव्यवहार से छलने और दिन वा रात में अनर्थ करने हारे को रोक के धर्मात्माओं का निरन्तर पालन किया करें ॥२१ ॥

যজুর্বেদে ১৬।২১ - বঞ্চনাকারী প্রতারক রুপী রুদ্রকে নমস্কার,  চোরদের পালক রুদ্রকে নমস্কার.... ক্ষেত্রাদিতে ধান্য অপহরনকারীর পালক রুদ্রকে নমস্কার,  রাতে অসিহস্তে বিচরণশীল রুদ্র কে নমস্কার, লোকদের মেরে চুরি করে যারা, তাদের পালক রুদ্রকে নমস্কার।

नम॑ऽउष्णी॒षिणे॑ गिरिच॒राय॑ कुलु॒ञ्चानां॒ पत॑ये॒ नमो॒ नम॑ऽइषु॒मद्भ्यो॑ धन्वा॒यिभ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नम॑ऽआतन्वा॒नेभ्यः॑ प्रति॒दधा॑नेभ्यश्च वो॒ नमो॒ नम॑ऽआ॒यच्छ॒द्भ्योऽस्य॑द्भ्यश्च वो॒ नमः॑ ॥२२ ॥

यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:22

पद पाठ

नमः॑। उ॒ष्णी॒षिणे॑। गि॒रि॒च॒रायेति॑ गिरिऽच॒राय॑। कु॒लु॒ञ्चाना॑म्। पत॑ये। नमः॑। नमः॑। इ॒षु॒मद्भ्य॒ इती॑षु॒मत्ऽभ्यः॑। ध॒न्वा॒यिभ्य॒ इति॑ धन्वा॒ऽयिभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। आ॒त॒न्वा॒नेभ्य॒ इत्या॑ऽतन्वा॒नेभ्यः॑। प्र॒ति॒दधा॑नेभ्य॒ इति॑ प्रति॒ऽदधा॑नेभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। आ॒यच्छ॑द्भ्य॒ इत्या॒यच्छ॑त्ऽभ्यः। अस्य॑द्भ्य॒ इत्यस्य॑त्ऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑ ॥२२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हम राज और प्रजा के पुरुष (उष्णीषिणे) प्रशंसित पगड़ी को धारण करनेवाले ग्रामपति और (गिरिचराय) पर्वतों में विचरनेवाले जंगली पुरुष का (नमः) सत्कार और (कुलुञ्चानाम्) बुरे स्वभाव से दूसरों के पदार्थ खोंसनेवालों को (पतये) गिराने हारे का (नमः) सत्कार करते (इषुमद्भ्यः) बहुत बाणोंवाले को (नमः) अन्न (च) तथा (धन्वायिभ्यः) धनुषों को प्राप्त होनेवाले (वः) तुम लोगों के लिये (नमः) अन्न (आतन्वानेभ्यः) अच्छे प्रकार सुख के फैलाने हारों का (नमः) सत्कार (च) और (प्रतिदधानेभ्यः) शत्रुओं के प्रति शस्त्र धारण करने हारे (वः) तुम को (नमः) सत्कार प्राप्त (आयच्छद्भ्यः) दुष्टों को बुरे कर्मों से रोकनेवालों को (नमः) अन्न देते (च) और (अस्यद्भ्यः) दुष्टों पर शस्त्रादि को छोड़नेवाले (वः) तुम्हारे लिये (नमः) सत्कार करते हैं ॥२२ ॥

भावार्थभाषाः -राजा और प्रजा के पुरुषों को चाहिये कि प्रधान पुरुष आदि का वस्त्र और अन्नादि के दान से सत्कार करें ॥२२ ॥


যজুর্বেদ ১৬।২২ - উষ্ণীষ দিয়ে মুখে ডেকে ডেকে গ্রামের পথে যারা বস্ত্রাদি চুরি করে ও পর্বতাদি বিষম স্থানে যারা বিচরন করে এ উভয়রূপ রুদ্রকে নমস্কার।

नम॒स्तक्ष॑भ्यो रथका॒रेभ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नमः॒ कुला॑लेभ्यः क॒र्मारेभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमो॑ निषा॒देभ्यः॑ पु॒ञ्जिष्ठे॑भ्यश्च वो॒ नमो॒ नमः॑ श्व॒निभ्यो॑ मृग॒युभ्य॑श्च वो॒ नमः॑ ॥२७ ॥यजुर्वेद  अध्याय:16 मन्त्र:27

पद पाठ

नमः॑। तक्ष॑भ्य॒ इति॒ तक्ष॑ऽभ्यः। र॒थ॒का॒रेभ्य॒ इति॑ रथऽका॒रेभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। कुला॑लेभ्यः। क॒र्मारे॑भ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। नि॒षा॒देभ्यः॑। नि॒सा॒देभ्य॑ इति निऽसा॒देभ्यः॑। पु॒ञ्जिष्ठे॑भ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। श्व॒निभ्य॒ इति॑ श्व॒निऽभ्यः॑। मृ॒ग॒युभ्य॒ इति॑ मृ॒ग॒युऽभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑ ॥२७ ॥


पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! जैसे राजा आदि हम लोग (तक्षभ्यः) पदार्थों को सूक्ष्मक्रिया से बनाने हारे तुम को (नमः) अन्न देते (च) और (रथकारेभ्यः) बहुत से विमानादि यानों को बनाने हारे (वः) तुम लोगों का (नमः) परिश्रमादि का धन देके सत्कार करते हैं (कुलालेभ्यः) प्रशंसित मट्टी के पात्र बनानेवालों को (नमः) अन्नादि पदार्थ देते (च) और (कर्मारेभ्यः) खड्ग, बन्दूक और तोप आदि शस्त्र बनानेवाले (वः) तुम लोगों का (नमः) सत्कार करते हैं (निषादेभ्यः) वन और पर्वतादि में रह कर दुष्ट जीवों को ताड़ना देनेवाले तुम को (नमः) अन्नादि देते (च) और (पुञ्जिष्ठेभ्यः) श्वेतादि वर्णों वा भाषाओं में प्रवीण (वः) तुम्हारा (नमः) सत्कार करते हैं (श्वनिभ्यः) कुत्तों को शिक्षा करने हारे (वः) तुम को (नमः) अन्नादि देते (च) और (मृगयुभ्यः) अपने आत्मा से वन के हरिण आदि पशुओं को चाहनेवाले तुम लोगों का (नमः) सत्कार करते हैं, वैसे तुम लोग भी करो ॥२७ ॥

भावार्थभाषाः -विद्वान् लोग जो पदार्थविद्या को जान के अपूर्व कारीगरीयुक्त पदार्थों को बनावें, उनको पारितोषिक आदि देके प्रसन्न करें और जो कुत्ते आदि पशुओं को अन्नादि से रक्षा कर तथा अच्छी शिक्षा देके उपयोग में लावें, उनको सुख प्राप्त करावें ॥२७ ॥

যজুর্বেদ ১৬।২৭  - শিল্পী ও সূত্রধর রূপী রুদ্রদের নমস্কার, কুম্ভকার ও কর্মকাররূপী রুদ্রদের নমস্কার, বনেচর মাংসাশী ভিল ও পুরুষ রূপী রুদ্রদের নমস্কার,  কুকুরের গলার রজ্জুধারক ও ব্যাধরূপী রুদ্রদের নমস্কার।

এভাবে যেসব পৌরাণিক গণ অধ্যায় টি ঈশ্বর পক্ষে করতে চান  তারা কি তাদের রুদ্র কে চোর,  অপহরনকারী,  মাংসভক্ষী, কুকুরের গলার দড়ি ধারী এবং ব্যাধ বলে মেনে নেবেন? তারা যদি অধ্যায় টিকে ঈশ্বর পক্ষে করতে চায় তো পুরো অধ্যায় টি কে ঈশ্বর পক্ষে করুক। এক মন্ত্র ঈশ্বর পক্ষে আবার অন্য মন্ত্র আরেক পক্ষে অর্থ করা তো ভন্ডামী।

ওঁ নমো ভবায় চ রুদ্রায় চ নমঃ শর্বায় চ পশুপতয়ে
চ নমো নীলগ্রীবায় চ শিতিকন্ঠায় চ।।
(শুক্ল যজুর্বেদ, ১৬/২৮)

ওঁ নমঃ শম্ভবায় চ ময়োভবায় চ নমঃ শঙ্করায় চ ময়স্করায় চ নমঃ শিবায় চ শিবতরায় চ।।
नमः॑ शम्भ॒वाय॑ च मयोभ॒वाय॑ च॒ नमः॑ शङ्क॒राय॑ च मयस्क॒राय॑ च॒ नमः॑ शि॒वाय॑ च शि॒वत॑राय च ॥४१ ॥
(শুক্ল যজুর্বেদ, ১৬/৪১)
(শম্ভবায় চ) আনন্দস্বরূপ (ময়োভবায় চ) ও সুখদাতা পরমাত্মাকে (নমঃ) নমস্কার। (শঙ্করায় চ) কল্যাণকারী (ময়স্কার চ) ও মঙ্গলময় পরমাত্মাকে (নমঃ) নমস্কার। (শিবায় চ) মঙ্গলস্বরূপ ও (শিবতারায় চ) অশেষ কল্যাণময় পরমাত্মাকে (নমঃ) নমস্কার

पद पाठ
नमः॑। श॒म्भ॒वायेति॑ शम्ऽभ॒वाय॑। च॒। म॒यो॒भ॒वायेति॑ मयःऽभ॒वाय॑। च॒। नमः॑। श॒ङ्क॒रायेति॑ शम्ऽक॒राय॑। च॒। म॒य॒स्क॒राय॑। म॒यः॒क॒रायेति॑ मयःऽक॒राय॑। च॒। नमः॑। शि॒वाय॑। च॒। शि॒वत॑रा॒येति॑ शि॒वऽत॑राय। च॒ ॥४१ ॥
पदार्थान्वयभाषाः -जो मनुष्य (शभ्मवाय) सुख को प्राप्त कराने हारे परमेश्वर (च) और (मयोभवाय) सुखप्राप्ति के हेतु विद्वान् (च) का भी (नमः) सत्कार (शङ्कराय) कल्याण करने (च) और (मयस्कराय) सब प्राणियों को सुख पहुँचानेवाले का (च) भी (नमः) सत्कार (शिवाय) मङ्गलकारी (च) और (शिवतराय) अत्यन्त मङ्गलस्वरूप पुरुष का (च) भी (नमः) सत्कार करते हैं, वे कल्याण को प्राप्त होते हैं ॥४१ ॥
Translate:-(jo manushy (shabhmavaay) sukh ko praapt karaane haare parameshvar (ch) aur (mayobhavaay) sukhapraapti ke hetu vidvaan (ch) ka bhee (namah) satkaar (shankaraay) kalyaan karane (ch) aur (mayaskaraay) sab praaniyon ko sukh pahunchaanevaale ka (ch) bhee (namah) satkaar (shivaay) mangalakaaree (ch) aur (shivataraay) atyant mangalasvaroop purush ka (ch) bhee (namah) satkaar karate hain, ve kalyaan ko praapt hote hain .)
भावार्थभाषाः -मनुष्यों को चाहिये कि प्रेमभक्ति के साथ सब मङ्गलों के दाता परमेश्वर की ही उपासना और सेनाध्यक्ष का सत्कार करें, जिससे अपने अभीष्ट कार्य्य सिद्ध हों ॥४१ ॥(स्वामी दयानन्द सरस्वती)
Translate:-(manushyon ko chaahiye ki premabhakti ke saath sab mangalon ke daata parameshvar kee hee upaasana aur senaadhyaksh ka satkaar karen, jisase apane abheesht kaaryy siddh hon .)



No comments:

Post a Comment

ধন্যবাদ

বৈশিষ্ট্যযুক্ত পোস্ট

অথর্ববেদ ২/১৩/৪

  ह्यश्मा॑न॒मा ति॒ष्ठाश्मा॑ भवतु ते त॒नूः। कृ॒ण्वन्तु॒ विश्वे॑ दे॒वा आयु॑ष्टे श॒रदः॑ श॒तम् ॥ ত্রহ্যশ্মানমা তিষ্ঠাশ্মা ভবতুতে তনূঃ। কৃণ্বন্তু...

Post Top Ad

ধন্যবাদ