ঋগ্বেদ মন্ডল ১০ সূক্ত ১০ মন্ত্র ১০ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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স্বাগতম

18 October, 2020

ঋগ্বেদ মন্ডল ১০ সূক্ত ১০ মন্ত্র ১০

আ গা তা গচ্ছানুত্তরা যুগানি যত্র জাময়ঃ কৃণবন্নজামি।

উপ বর্বৃহি বৃষভায় বাহুমন্যমিচ্ছস্ব সুভগে পতিং মত্ ।। ১০।।
পদার্থঃ কিন্তু হে রাত্রে! (তা) (য়ুগানি) যুগ অবসর (ঘ) তো (উত্তরা) বহুকাল অন্তর (আগচ্ছাত্) আবেগে (য়ত্র) যখনই এ (জামায়ঃ) অসমান জাতীয় ব্যবধায়ক (অজামি) অসমান জাতীয় রহিত কর্ম অব্যবাধক কর্ম অবিরুদ্ধ কর্ম (করিষ্যন্তি) করিবে। পরন্তু হে রাত্রে! ততক্ষণ পর্যন্ত তোমার পুত্রঅভিলাসী বিনা গার্হস্থ্যে অবস্থান করা দুষ্কর এজন্য আমি পুত্র উৎপাদনে অসামর্থ হয়ে তোমাকে আজ্ঞা দিচ্ছি যে (সুভগে) হে প্রিয়ে! (বৃষভায়) বীর্য প্রদানে সক্ষম পুরুষের জন্য (বাহুম) নিজের ভূজাকে (উপববৃহি) বিস্তৃত করছি, এবং (মত্) আমার দিন (পক্ষ) থেকে (অন্যম্) ভিন্ন (পতিম্) পুরুষকে (ইচ্ছস্ব) স্বীকার কর।। ১০।।
ভাবার্থঃ জ্যোতিষের রহস্য স্পষ্ট করতে মন্ত্রে বলা হয়েছে যে, এক সময় এমন আসিবে যখন যুগল আলাদা আলাদা রূপে না থাকিয়া এক হয়ে যাবে, তখন সৃষ্টির প্রলয় হয়ে যাবে। গৃস্থ্যের জন্য বেদের আদেশ এই যে, পতি গর্ভধান করিতে অসমর্থ হলে সে সন্তান অভিলাসী পতীকে নিয়োগ দ্বারা সন্তান উৎপত্তির জন্য অনুমতি দিয়ে দিবে।।১০।।

आ घा॒ ता ग॑च्छा॒नुत्त॑रा यु॒गानि॒ यत्र॑ जा॒मय॑: कृ॒णव॒न्नजा॑मि ।

 उप॑ बर्बृहि वृष॒भाय॑ बा॒हुम॒न्यमि॑च्छस्व सुभगे॒ पतिं॒ मत् ॥

ऋग्वेद 0 मण्डल:10 सूक्त:10 मन्त्र:10


अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā ghā tā gacchān uttarā yugāni yatra jāmayaḥ kṛṇavann ajāmi | upa barbṛhi vṛṣabhāya bāhum anyam icchasva subhage patim mat ||

पद पाठ

आ । घ॒ । ता । ग॒च्छा॒न् । उत्ऽत॑रा । यु॒गानि॑ । यत्र॑ । जा॒मयः॑ । कृ॒णव॑न् । अजा॑मि । उप॑ । बर्बृ॑हि । वृ॒ष॒भाय॑ । बा॒हुम् । अ॒न्यम् । इ॒च्छ॒स्व॒ । सु॒ऽभ॒गे॒ । पति॑म् । मत् ॥ १०.१०.१०

पदार्थान्वयभाषाः -किन्तु हे रात्रे ! (ता) वे (युगानि) युग-अवसर (घ) तो (उत्तरा) बहुत काल के अनन्तर (आगच्छात्) आवेंगे (यत्र) जब कि ये (जामयः) असमानजातीय-व्यधायक-मेल में रुकावट डालनेवाले (अजामि) असमानजातीयरहितकर्म-अव्यवधायक कर्म-अविरुद्ध कर्म (करिष्यन्ति) करेंगे। परन्तु हे रात्रे ! तब तक तुझ पुत्राभिलाषिणी से बिना गार्हस्थ्य के ठहरना दुष्कर है, इसलिये मैं पुत्रोत्पत्र करने में असमर्थ होता हुआ तुझे आज्ञा देता हूँ कि (सुभगे) हे प्यारी ! (वृषभाय) वीर्य प्रदान करने में समर्थ पुरुष के लिये (बाहुम्) अपनी भुजा को (उपबर्बृहि) फैल और (मत्) मुझ दिन से (अन्यम्) भिन्न (पतिम्) पुरुष को (इच्छस्व) स्वीकार कर ॥-ब्रह्ममुनि

{kintu he raatre ! (ta) ve (yugaani) yug-avasar (gh) to (uttara) bahut kaal ke anantar (aagachchhaat) aavenge (yatr) jab ki ye (jaamayah) asamaanajaateey-vyadhaayak-mel mein rukaavat daalanevaale (ajaami) asamaanajaateeyarahitakarm-avyavadhaayak karm-aviruddh karm (karishyanti) karenge. parantu he raatre ! tab tak tujh putraabhilaashinee se bina gaarhasthy ke thaharana dushkar hai, isaliye main putrotpatr karane mein asamarth hota hua tujhe aagya deta hoon ki (subhage) he pyaaree ! (vrshabhaay) veery pradaan karane mein samarth purush ke liye (baahum) apanee bhuja ko (upabarbrhi) phail aur (mat) mujh din se (anyam) bhinn (patim) purush ko (ichchhasv) sveekaar kar .}

भावार्थभाषाः -ज्योतिष के रहस्य को स्पष्ट करते हुए मन्त्र में कहा गया है कि एक समय ऐसा आयेगा कि ये अलग-अलग रूप में न रहकर एक हो जावेंगे, वह सृष्टि का प्रलयकाल होगा। गृहस्थ के लिये वेद का आदेश है कि जो पति गर्भाधान करने में असमर्थ है, वह सन्तानाभिलाषिणी पति को नियोग से सन्तानोत्पत्ति करने की अनुमति दे देवे ॥१०॥ समीक्षा (सायणभाष्य)-“यत्र येषु कालेषु जामयो भगिन्यो-अज्राम्यभ्रातरं पतिं कृण्वन्करिष्यन्ति” यमी जो सायण के मत में भगिनी है, वह इसी वैदिक समय में ही सम्भोग करने को तैयार है, फिर यह कैसा हेतु वचन है ? हाँ, यदि वाक्य वचन हो कि यम भ्राता अभ्राता का कार्य करेगा, ऐसा उत्तर समय आवेगा, तब तो हेतु दर्शाना ठीक भी था, किन्तु सायण की अर्थयोजना हेतुदोष से युक्त है ॥-ब्रह्ममुनि

[jyotish ke rahasy ko spasht karate hue mantr mein kaha gaya hai ki ek samay aisa aayega ki ye alag-alag roop mein na rahakar ek ho jaavenge, vah srshti ka pralayakaal hoga. grhasth ke liye ved ka aadesh hai ki jo pati garbhaadhaan karane mein asamarth hai, vah santaanaabhilaashinee pati ko niyog se santaanotpatti karane kee anumati de deve .10. sameeksha (saayanabhaashy)-“yatr yeshu kaaleshu jaamayo bhaginyo-ajraamyabhraataran patin krnvankarishyanti” yamee jo saayan ke mat mein bhaginee hai, vah isee vaidik samay mein hee sambhog karane ko taiyaar hai, phir yah kaisa hetu vachan hai ? haan, yadi vaaky vachan ho ki yam bhraata abhraata ka kaary karega, aisa uttar samay aavega, tab to hetu darshaana theek bhee tha, kintu saayan kee arthayojana hetudosh se yukt hai .]

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