ঈশ্বরের অবতার সম্ভব নয় - ধর্ম্মতত্ত্ব

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স্বাগতম

26 October, 2020

ঈশ্বরের অবতার সম্ভব নয়


স পর্যগাচ্ছুক্রমকায়ম ব্রণম স্নাবিরং শুদ্ধ মাপাপ বিদ্ধম্ কবির্মনীষী।
পরিভূঃ স্বয়ম্ভূর্যাথা তথ্যতোহর্থাম্ব্যদধাচ্ছা শ্বতীভ্যঃ সমাভ্যঃ।।
स पर्य॑गाच्छु॒क्रम॑का॒यम॑व्र॒णम॑स्नावि॒रꣳ शु॒द्धमपा॑पविद्धम्।
 क॒विर्म॑नी॒षी प॑रि॒भूः स्व॑य॒म्भूर्या॑थातथ्य॒तोऽर्था॒न् व्य᳖दधाच्छाश्व॒तीभ्यः॒ समा॑भ्यः ॥
पद पाठ
सः। परि॑। अ॒गा॒त्। शु॒क्रम्। अ॒का॒यम्। अ॒व्र॒णम्। अ॒स्ना॒वि॒रम्। शु॒द्धम्। अपा॑पविद्ध॒मित्यपा॑पऽविद्धम् ॥ क॒विः। म॒नी॒षी। प॒रि॒भूरिति॑ परि॒ऽभूः। स्व॒यम्भूरिति॑ स्वय॒म्ऽभूः। या॒था॒त॒थ्य॒त इति॑ याथाऽत॒थ्य॒तः। अर्था॑न्। वि। अ॒द॒धा॒त्। शा॒श्व॒तीभ्यः॑। समा॑भ्यः ॥
(সঃ) পরমাত্মা (পরি) সব দিক হইতে(অগাৎ)ব্যাপ্ত আছেন(শুক্রম্)সর্ব্ব শক্তিমান্ (অকায়ম্)শরীর রহিত(অব্রণম্)ছিদ্র রহিত(অস্নাবিরম্) স্নায়ু আদির বন্ধন রহিত (শদ্ধম্) দোষ রহিত (অপাপবিদ্ধম্)পাপরহিত (কবিঃ) সর্ব্বজ্ঞ (মনীষী) অন্তর্যামী (পরিভূঃ) দুষ্টের দমন কর্ত্তা (স্বয়ম্ভূঃ) জন্মরহিত (যাথাতথ্যতঃ) যথাযথভাবে (অর্থান্) সব পদার্থের (বি) বিশেষরূপে (অদধাৎ) বিধান করিযাছেন (শাশ্বতীভ্যঃ) বিনাশ রহিত (প্রজাভ্যঃ) প্রজাদের জন্য।

বঙ্গানুবাদঃ- পরমাত্মা সর্ব্বব্যাপক,অনাদি স্বরূপ ব্রহ্ম, সদা মুক্ত, ন্যায়কারী, সর্বশক্তিমান (অনন্ত শক্তি যুক্ত), শরীররহিত, রোগরহিত, জন্মরহিত(অজন্মা), শুদ্ধ(নির্মল), নিষ্পাপ, সর্বজ্ঞ, সবকিছুর সাক্ষী, অন্তর্যামী, নিয়ন্তা, দুষ্টের দমন কর্তা ও অনাদি। তিনি তাঁহার শাশ্বত প্রজা (জীবের) জন্য যথাযথ ফলের বিধান করেন। কল্পের আরম্ভে জীবকে ধর্ম্ম,অর্থ,কর্ম্ম এবং মোক্ষ লাভের জন্য বেদ রূপী জ্ঞান প্রদান করেন। 

पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! जो ब्रह्म (शुक्रम्) शीघ्रकारी सर्वशक्तिमान् (अकायम्) स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीररहित (अव्रणम्) छिद्ररहित और नहीं छेद करने योग्य (अस्नाविरम्) नाड़ी आदि के साथ सम्बन्धरूप बन्धन से रहित (शुद्धम्) अविद्यादि दोषों से रहित होने से सदा पवित्र और (अपापविद्धम्) जो पापयुक्त, पापकारी और पाप में प्रीति करनेवाला कभी नहीं होता (परि, अगात्) सब ओर से व्याप्त जो (कविः) सर्वत्र (मनीषी) सब जीवों के मनों की वृत्तियों को जाननेवाला (परिभूः) दुष्ट पापियों का तिरस्कार करनेवाला और (स्वयम्भूः) अनादि स्वरूप जिसकी संयोग से उत्पत्ति, वियोग से विनाश, माता, पिता, गर्भवास, जन्म, वृद्धि और मरण नहीं होते, वह परमात्मा (शाश्वतीभ्यः) सनातन अनादिस्वरूप अपने-अपने स्वरूप से उत्पत्ति और विनाशरहित (समाभ्यः) प्रजाओं के लिये (याथातथ्यतः) यथार्थ भाव से (अर्थान्) वेद द्वारा सब पदार्थों को (व्यदधात्) विशेष कर बनाता है, (सः) वही परमेश्वर तुम लोगों को उपासना करने के योग्य है ॥
भावार्थभाषाः -हे मनुष्यो ! जो अनन्त शक्तियुक्त, अजन्मा, निरन्तर, सदा मुक्त, न्यायकारी, निर्मल, सर्वज्ञ, सबका साक्षी, नियन्ता, अनादिस्वरूप ब्रह्म कल्प के आरम्भ में जीवों को अपने कहे वेदों से शब्द, अर्थ और उनके सम्बन्ध को जनानेवाली विद्या का उपदेश न करे तो कोई विद्वान् न होवे और न धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के फलों के भोगने को समर्थ हो, इसलिये इसी ब्रह्म की सदैव उपासना करो ॥
[ he manushyo ! jo anant shaktiyukt, ajanma, nirantar, sada mukt, nyaayakaaree, nirmal, sarvagy, sabaka saakshee, niyanta, anaadisvaroop brahm kalp ke aarambh mein jeevon ko apane kahe vedon se shabd, arth aur unake sambandh ko janaanevaalee vidya ka upadesh na kare to koee vidvaan na hove aur na dharm, arth, kaam aur moksh ke phalon ke bhogane ko samarth ho, isaliye isee brahm kee sadaiv upaasana karo .]
'স পর্যগাৎ' এই শ্রুতিবাক্য অনুসারে ঈশ্বরের অবতার প্রমাণ করা কোন প্রকারেই সম্ভব হয় না।

(যজুর্বেদ অধ্যায় ৪০মন্ত্র ৮)

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