न यत्पु॒रा च॑कृ॒मा कद्ध॑ नू॒नमृ॒ता वद॑न्तो॒ अनृ॑तं रपेम ।
ग॒न्ध॒र्वो अ॒प्स्वप्या॑ च॒ योषा॒ सा नो॒ नाभि॑: पर॒मं जा॒मि तन्नौ॑ ॥
ऋग्वेद मण्डल:10 सूक्त:10 मन्त्र:4
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
na yat purā cakṛmā kad dha nūnam ṛtā vadanto anṛtaṁ rapema | gandharvo apsv apyā ca yoṣā sā no nābhiḥ paramaṁ jāmi tan nau ||
पद पाठ
न । यत् । पु॒रा । च॒कृ॒म॒ । कत् । ह॒ । नू॒नम् । ऋ॒ता । वद॑न्तः । अनृ॑तम् । र॒पे॒म॒ । ग॒न्ध॒र्वः । अ॒प्ऽसु । अप्या॑ । च॒ । योषा॑ । सा । नः॒ । नाभिः॑ । प॒र॒मम् । जा॒मि । तत् । नौ॒ ॥ १०.१०.४
पदार्थान्वयभाषाः -हे प्रिये पत्नि ! (पुरा) पूर्व दाम्पत्यकाल में (ऋता वदन्तः) वेदमन्त्रों को उच्चारण करते हुए अर्थात् प्रजोत्पत्ति-निमित्त ईश्वरीय नियमों को स्वीकारते हुए (यत्) जो गार्हस्थ्य अर्थात् सन्तानोत्पादकरूप व्रत (चकृम) हम ने किया था, उसको (नूनम्) आज (अनृतम्) वेदविरुद्ध निषेधवचन (न) नहीं (रपेम) कह सकते, अर्थात् हे प्राणप्रिये ! मैंने यह निश्चय किया है कि हमने जो दाम्पत्य वेदमन्त्रों-ईश्वरीय नियमों से गर्भाधान के लिये प्रतिज्ञाबद्ध किया था, सो उसको उल्लङ्घन से इस समय नकाररूप अर्थात् निषेधरूप अशास्त्रवचन कथंचित् नहीं बोल सकते, किन्तु गर्भाधान के लिये उद्यत हैं। प्रत्युत (गन्धर्वः) गर्भाधान सम्बन्ध का इच्छुक मैं तेरा पति (अप्सु) अन्तरिक्ष में (योषा च) और तू गर्भाधान को चाहनेवाली मेरी पत्नी भी (अप्या) अन्तरिक्ष में है, एवं हम दोनों ही जलप्रवाह की नाई निरन्तर गति कर रहे हैं तथा जिस पृथिवी के नीचे ऊपर की ओर हम दोनों की (नाभिः) नाभि है, क्योंकि अरारूप धुरी की नाई दिन और रात हम दोनों पति-पत्नी इस पृथिवी के चारों ओर चक्र काटते हैं, (तत्) बस वह यह (नौ) हम दोनों के मध्य में (परमम्) अत्यन्त (जामि) असमानजातीय-व्यवधायक अर्थात् गर्भाधानक्रिया में रुकावट डालनेवाला पदार्थ है, क्योंकि दो व्यक्तियों के संयोगाभाव का कारण व्यवधायक मध्य में बैठा हुआ असमानजातीय ही होता है, जैसे ‘नुद’ में “न्द्” इन दोनों हलों के संयोग का व्यवधायक-असमानजातीय ‘उ’ अच् है। हे प्रिये। मैं गर्भाधान संयोग के लिये उद्यत हूँ, किन्तु यह पृथिवी दोनों के मध्य में स्थित हुई गर्भाधान संयोग की अत्यन्त बाधक है। जिसके चारों ओर हम दोनों दैविक नियम से घूमते हैं। हा ! शोक, क्या करें, हम दोनों ही यहाँ विवश हैं ॥-ब्रह्ममुनि
Translate-{he priye patni ! (pura) poorv daampatyakaal mein (rta vadantah) vedamantron ko uchchaaran karate hue arthaat prajotpatti-nimitt eeshvareey niyamon ko sveekaarate hue (yat) jo gaarhasthy arthaat santaanotpaadakaroop vrat (chakrm) ham ne kiya tha, usako (noonam) aaj (anrtam) vedaviruddh nishedhavachan (na) nahin (rapem) kah sakate, arthaat he praanapriye ! mainne yah nishchay kiya hai ki hamane jo daampaty vedamantron-eeshvareey niyamon se garbhaadhaan ke liye pratigyaabaddh kiya tha, so usako ullanghan se is samay nakaararoop arthaat nishedharoop ashaastravachan kathanchit nahin bol sakate, kintu garbhaadhaan ke liye udyat hain. pratyut (gandharvah) garbhaadhaan sambandh ka ichchhuk main tera pati (apsu) antariksh mein (yosha ch) aur too garbhaadhaan ko chaahanevaalee meree patnee bhee (apya) antariksh mein hai, evan ham donon hee jalapravaah kee naee nirantar gati kar rahe hain tatha jis prthivee ke neeche oopar kee or ham donon kee (naabhih) naabhi hai, kyonki araaroop dhuree kee naee din aur raat ham donon pati-patnee is prthivee ke chaaron or chakr kaatate hain, (tat) bas vah yah (nau) ham donon ke madhy mein (paramam) atyant (jaami) asamaanajaateey-vyavadhaayak arthaat garbhaadhaanakriya mein rukaavat daalanevaala padaarth hai, kyonki do vyaktiyon ke sanyogaabhaav ka kaaran vyavadhaayak madhy mein baitha hua asamaanajaateey hee hota hai, jaise ‘nud’ mein “nd” in donon halon ke sanyog ka vyavadhaayak-asamaanajaateey ‘u’ ach hai. he priye. main garbhaadhaan sanyog ke liye udyat hoon, kintu yah prthivee donon ke madhy mein sthit huee garbhaadhaan sanyog kee atyant baadhak hai. jisake chaaron or ham donon daivik niyam se ghoomate hain. ha ! shok, kya karen, ham donon hee yahaan vivash hain}
भावार्थभाषाः -विवाह वेदमन्त्रों द्वारा प्रतिज्ञापूर्वक हो, प्रतिज्ञाओं का उल्लङ्घन कभी न हो। कारणवश दूर-दूर पर भी स्नेहसमाचार बना रहे। दिन-रात पृथिवी के साथ समकक्ष में होते हैं, पर उनके ओर-छोर मिले रहते हैं, यही प्रातः-सायं कहलाते हैं ॥-ब्रह्ममुनि
Translate-(vivaah vedamantron dvaara pratigyaapoorvak ho, pratigyaon ka ullanghan kabhee na ho. kaaranavash door-door par bhee snehasamaachaar bana rahe. din-raat prthivee ke saath samakaksh mein hote hain, par unake or-chhor mile rahate hain, yahee praatah-saayan kahalaate hain)
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ধন্যবাদ