ঋগ্বেদ মন্ডল ১০ সূক্ত ১০ মন্ত্র ১১ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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স্বাগতম

18 October, 2020

ঋগ্বেদ মন্ডল ১০ সূক্ত ১০ মন্ত্র ১১

                                      

কিং ভ্রাতাসদ্যদনাথং ভবাতি কিমু স্বসা য়গ্নির্ঋতির্নিগচ্ছাত্।

কামমূতা বহ্নে৩তদ্রপামি তন্বা মে তন্বং১ সং পিপৃগ্ধি।। ১১।।
পদার্থঃ হে দিবস! দৈবকৃত আপত্তিতে শরীর সংয়োগ সম্বন্ধে (কিম্) কেন এখন আপনি (ভ্রাতা) ভাই (অসত্) হয়ে গেছ? (য়ত্) যাহাতে এই প্রকার (অনাথম্) আপনার দিকে অনাথা অপতিপন (ভবতি) হয়ে যাবে, এবং যে আমার পতী হয় (কিমু) কেন এই সময় (স্বসা অসত্) বোন হয়ে গেল (য়ত্) যাহাতে (নির্ঋতিঃ) বিনা সম্ভোগে (নিগচ্ছাত্) দ্বিতীয় পুরুষকে প্রাপ্ত হবে (কামমূতা) কামে আবদ্ধ হয়ে (বহু) বহু প্রকারে হাবভাব দর্শিয়ে (এতত্) এই (রপামি) নিবেদন করছি যে (মে তন্বা তন্বম্) আমার কায়া হতে তোমার কায়াকে (সম্পিপৃগ্ধি) সম্পৃক্ত কর অর্থাৎ মিলযে দাও।। ১১।।
ভাবার্থঃ সন্তান উৎপত্তি যা গর্ভাধানে অসমর্থ পুরুষ এবং পতী ভাই বোন সম্পর্কে আবদ্ধ থাকিবে। পরস্পর মিলনের কামনা করিবে না। ইহাই পরমাত্মার আদেশ।।১১।।

किं भ्राता॑स॒द्यद॑ना॒थं भवा॑ति॒ किमु॒ स्वसा॒ यन्निॠ॑तिर्नि॒गच्छा॑त् ।

 काम॑मूता ब॒ह्वे॒३॒॑तद्र॑पामि त॒न्वा॑ मे त॒न्वं१॒॑ सं पि॑पृग्धि ॥

ऋग्वेद 0 मण्डल:10 सूक्त:10 मन्त्र:11

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kim bhrātāsad yad anātham bhavāti kim u svasā yan nirṛtir nigacchāt | kāmamūtā bahv etad rapāmi tanvā me tanvaṁ sam pipṛgdhi ||

पद पाठ

किम् । भ्राता॑ । अ॒स॒त् । यत् । अ॒ना॒थम् । भवा॑ति । किम् । ऊँ॒ इति॑ । स्वसा॑ । यत् । निःऽऋ॑तिः । नि॒ऽगच्छा॑त् । काम॑ऽमूता । ब॒हु । ए॒तत् । र॒पा॒मि॒ । त॒न्वा॑ । मे॒ । त॒न्व॑म् । सम् । पि॒पृ॒ग्धि॒ ॥ १०.१०.११

पदार्थान्वयभाषाः -हे दिवस ! दैवकृत आपत्ति से शरीर संयोगसंबन्ध में (किम्) क्या अब आप (भ्राता) भाई (असत्) हो गये हो ? (यत्) जिससे इस प्रकार (अनाथम्) आपकी ओर से अनाथता-अपतिपन (भवाति) हो जावे, और जो मैं तेरी पत्नी हूँ (किमु) क्या इस समय (स्वसा-असत्) बहिन हो गयी (यत्) जिस से (निर्ऋतिः) बिना संभोग के (निगच्छात्) मेरी काया से अपनी काया को (काममूता) सम्पृक्त कर अर्थात् मिलादे ॥

(he divas ! daivakrt aapatti se shareer sanyogasambandh mein (kim) kya ab aap (bhraata) bhaee (asat) ho gaye ho ? (yat) jisase is prakaar (anaatham) aapakee or se anaathata-apatipan (bhavaati) ho jaave, aur jo main teree patnee hoon (kimu) kya is samay (svasa-asat) bahin ho gayee (yat) jis se (nirrtih) bina sambhog ke (nigachchhaat) meree kaaya se apanee kaaya ko (kaamamoota) samprkt kar arthaat milaade .)

भावार्थभाषाः -सन्तानोपत्ति या गर्भाधान की स्थापना में असमर्थ स्त्री-पुरुष भाई बहन की भाँति रहें ॥११॥ समीक्षा (सायणभाष्य)−“यस्मिन् भ्रातरि सति स्वसादिकमनाथं नाथरहितं भवाति-भवति स भ्राता किमसत् किं भवति न भवतीत्यर्थः किं च यस्यां भगिन्यां सत्यां भ्रातरं निर्ऋतिर्दुःखं निगच्छात् नियमेन गच्छति प्राप्नोति सा किमु किंवा भवति।” इस स्थान पर सायण की खींचतान की कोई सीमा नहीं रह गई। “अनाथम्” क्रियाविशेषण को ‘स्वसा’ का विशेषण करता है परन्तु ‘अनाथम्’ शब्द नपुंसकलिङ्ग है और ‘स्वसा’ शब्द स्त्रीलिङ्ग है, इसलिए ‘आदिकम्’ शब्द अधिक जोड़कर ‘स्वसादिकम्’ लिखता है। यहाँ पर क्या भ्राता के साथ स्वसा से भिन्न-व्यक्ति का भी सम्बन्ध है, जो ‘आदिकम्’ पद अधिक जोड़ा है ? यदि ‘आदिकम्’ से ‘दुहिता’ ‘माता’ भी सम्बन्ध रखते हैं, तब तो भ्राता नहीं होगा, अपितु दुहिता के साथ पिता और माता के साथ पुत्र का सम्बन्ध होगा, अतः यह कल्पना निर्बल है। तथा ‘वह ऐसा भ्राता न होने के बराबर ही है, जिसके होते हुए बहिन अनाथ रहे’ यह हेतु भी निरथर्क है, क्योंकि वह यम उस यमी को अविवाहित रहने का उपदेश तो दे ही नहीं रहा था। अपितु पूर्व मन्त्र में आज्ञा दे चुका था “अन्यमिच्छस्व सुभगे पतिं मत्” फिर कैसे इस मिथ्या हेतु की वेद में स्थापना है ? इसी प्रकार ‘वह बहिन भी कुछ नहीं, जिसके होते हुए भाई को दुःख प्राप्त हो’, यह हेतु भी अयुक्त है। उस यम को क्या दुःख था ? क्या उसका कोई विवाह नहीं करता था ? अथवा वह महादरिद्र था, जिससे उसको दूसरी स्त्री न मिल सकती हो। इन हेतुओं को सामान्य बुद्धि के व्यक्ति भी स्वीकार नहीं कर सकते। इस प्रकार अपनी कल्पनासिद्धि के लिए सायण को अनावश्यक खींचतान करनी पड़ी ॥

{santaanopatti ya garbhaadhaan kee sthaapana mein asamarth stree-purush bhaee bahan kee bhaanti rahen .11. sameeksha (saayanabhaashy)−“yasmin bhraatari sati svasaadikamanaathan naatharahitan bhavaati-bhavati sa bhraata kimasat kin bhavati na bhavateetyarthah kin ch yasyaan bhaginyaan satyaan bhraataran nirrtirduhkhan nigachchhaat niyamen gachchhati praapnoti sa kimu kinva bhavati.” is sthaan par saayan kee kheenchataan kee koee seema nahin rah gaee. “anaatham” kriyaavisheshan ko ‘svasa’ ka visheshan karata hai parantu ‘anaatham’ shabd napunsakaling hai aur ‘svasa’ shabd streeling hai, isalie ‘aadikam’ shabd adhik jodakar ‘svasaadikam’ likhata hai. yahaan par kya bhraata ke saath svasa se bhinn-vyakti ka bhee sambandh hai, jo ‘aadikam’ pad adhik joda hai ? yadi ‘aadikam’ se ‘duhita’ ‘maata’ bhee sambandh rakhate hain, tab to bhraata nahin hoga, apitu duhita ke saath pita aur maata ke saath putr ka sambandh hoga, atah yah kalpana nirbal hai. tatha ‘vah aisa bhraata na hone ke baraabar hee hai, jisake hote hue bahin anaath rahe’ yah hetu bhee nirathark hai, kyonki vah yam us yamee ko avivaahit rahane ka upadesh to de hee nahin raha tha. apitu poorv mantr mein aagya de chuka tha “anyamichchhasv subhage patin mat” phir kaise is mithya hetu kee ved mein sthaapana hai ? isee prakaar ‘vah bahin bhee kuchh nahin, jisake hote hue bhaee ko duhkh praapt ho’, yah hetu bhee ayukt hai. us yam ko kya duhkh tha ? kya usaka koee vivaah nahin karata tha ? athava vah mahaadaridr tha, jisase usako doosaree stree na mil sakatee ho. in hetuon ko saamaany buddhi ke vyakti bhee sveekaar nahin kar sakate. is prakaar apanee kalpanaasiddhi ke lie saayan ko anaavashyak kheenchataan karanee padee .}

ভাষ্যঃ স্বামী ব্রহ্মমুনি পরিব্রাজক ‘বিদ্যামার্তণ্ড’

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