ঋগ্বেদ মন্ডল ১০ সূক্ত ১০ মন্ত্র ৩ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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স্বাগতম

18 October, 2020

ঋগ্বেদ মন্ডল ১০ সূক্ত ১০ মন্ত্র ৩

উশন্তি ঘা তে অমৃতাস এতদেকস্য চিৎয়জসং মর্ত্যস্য।

নি তে মনো মনাসি ধায্যস্মে জন্যুঃ পতিস্তন্ব১মা বিবিশ্যাঃ।। ৩।।
পদার্থঃ (তে)(অমৃতাসঃ) অমর ধর্মী আমাদের অপেক্ষা মুক্ত ব্যবহার অর্থাৎ স্বতন্ত্র গতিদ্বারা বিচরণকারী মহানুভব (এতত্) এই (উশন্তি) চায় যে, (ঘ) এরূপ অবস্থায়ও (একস্য মর্তস্য) এক সন্তানকে (চিত্) তো অবশ্যই (ত্যজসম্) গর্ভধান দ্বারা আমার প্রতি ত্যাগ হোক, এমন কি দাম্পত্যকালে অনন্তর দৈবে উৎপন্ন হওয়া দোষ দেখানো চাই না কিন্তু এক সন্তানের জন্য নিঃশঙ্ক গর্ভধান করা উচিত। এজন্য যে (তে) তোমার (মনঃ) মন তাহা (অস্মে) আমার (মনসি) মনে (নিধায়ি) স্থির কর অর্থাৎ আমার মনোভাবের অনুকূল তোমার মনোভাকেও বানাও এবং (জন্যুঃ) পুণঃ নবরূপে প্রকটমান (পতি) তুমি আমার পতি (তন্বম্) আমার কায়াতে (আবিবিশয়াঃ) সুতারং সম্বক প্রকাশে প্রবেশ কর।। ৩।।
ভাবার্থঃ বিবাহের অনন্তর কোন রোগে পতী পুরুষ যদি অক্রান্ত হয়ে থাকে তো কম পক্ষে এক পুত্র তো উৎপন্ন করিবেই এই ব্যবস্থা ধর্ম উপদেশ এবং শাসন দ্বারা করিবে।।৩।।

उ॒शन्ति॑ घा॒ ते अ॒मृता॑स ए॒तदेक॑स्य चित्त्य॒जसं॒ मर्त्य॑स्य ।

 नि ते॒ मनो॒ मन॑सि धाय्य॒स्मे जन्यु॒: पति॑स्त॒न्व१॒॑मा वि॑विश्याः ॥


अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

uśanti ghā te amṛtāsa etad ekasya cit tyajasam martyasya | ni te mano manasi dhāyy asme janyuḥ patis tanvam ā viviśyāḥ ||


पद पाठ

उ॒शन्ति॑ । घ॒ । ते । अ॒मृता॑सः । ए॒तत् । एक॑स्य । चि॒त् । त्य॒जस॑म् । मर्त्य॑स्य । नि । ते॒ । मनः॑ । मन॑सि । धा॒यि॒ । अ॒स्मे इति॑ । जन्युः॑ । पतिः॑ । त॒न्व॑म् । आ । वि॒वि॒श्याः॒ ॥ १०.१०.३


ऋग्वेद  मण्डल:10 सूक्त:10 मन्त्र:3

पदार्थान्वयभाषाः -हे पते द्युतिमन्दिवस ! पूर्वोक्त यह विचारणा तो विवाहसम्बन्ध से पहिले ही करनी चाहिये, न कि अब, क्योंकि दाम्पत्यसम्बन्धकाल अर्थात् विवाहकाल में तो मैं इस प्रकार काले रङ्ग की और विपरीत गुणवाली न थी, किन्तु आप जैसी सुन्दरी और समानगुणवाली थी। हे पते ! दैविक नियमों का उल्लङ्घन करने में किसी का भी सामर्थ्य नहीं है, अतः दाम्पत्य सम्बन्ध के अनन्तर इस मेरी पूर्वोक्त सामयिक स्थिति में शङ्का नहीं करनी चाहिए और जो आपने यह कहा है कि ये जो ‘दिवो धर्तारः’ तेजस्वी नक्षत्र आदि हमारी निन्दा करेंगे, सो नहीं, किन्तु (ते) वे (अमृतासः) अमरधर्मी हमारी अपेक्षा मुक्त अव्याहत अर्थात् स्वतन्त्र गति से विचरनेवाले महानुभाव (एतत्) यह (उशन्ति) चाहते हैं, कि (घ) इस ऐसी अवस्था में भी (एकस्य मर्त्यस्य) एक सन्तान का (चित्) तो अवश्य ही (त्यजसम्) गर्भाधान द्वारा मेरे प्रति त्याग हो, ऐसा इनको भी इष्ट है, क्योंकि दाम्पत्यकाल के अनन्तर दैव से उत्पन्न हुआ दोष न देखना चाहिये, अपितु एक सन्तान के लिये तो निःशङ्क गर्भाधान करना ही उचित है, इसलिये जो (ते) तेरा (मनः) मन है, उसको (अस्मे) हमारे (मनसि) मन में (निधायि) स्थिर कर अर्थात् मेरे मनोभाव के अनुकूल अपना मनोभाव बना और (जन्युः) पुनर्नव रूप में प्रकट होनेवाले (पतिः) तू मेरे पति (तन्वम्) मेरी काया में (आविविश्याः) सुतरां सम्यक् प्रकार से प्रवेश कर ॥

Translate{he pate dyutimandivas ! poorvokt yah vichaarana to vivaahasambandh se pahile hee karanee chaahiye, na ki ab, kyonki daampatyasambandhakaal arthaat vivaahakaal mein to main is prakaar kaale rang kee aur vipareet gunavaalee na thee, kintu aap jaisee sundaree aur samaanagunavaalee thee. he pate ! daivik niyamon ka ullanghan karane mein kisee ka bhee saamarthy nahin hai, atah daampaty sambandh ke anantar is meree poorvokt saamayik sthiti mein shanka nahin karanee chaahie aur jo aapane yah kaha hai ki ye jo ‘divo dhartaarah’ tejasvee nakshatr aadi hamaaree ninda karenge, so nahin, kintu (te) ve (amrtaasah) amaradharmee hamaaree apeksha mukt avyaahat arthaat svatantr gati se vicharanevaale mahaanubhaav (etat) yah (ushanti) chaahate hain, ki (gh) is aisee avastha mein bhee (ekasy martyasy) ek santaan ka (chit) to avashy hee (tyajasam) garbhaadhaan dvaara mere prati tyaag ho, aisa inako bhee isht hai, kyonki daampatyakaal ke anantar daiv se utpann hua dosh na dekhana chaahiye, apitu ek santaan ke liye to nihshank garbhaadhaan karana hee uchit hai, isaliye jo (te) tera (manah) man hai, usako (asme) hamaare (manasi) man mein (nidhaayi) sthir kar arthaat mere manobhaav ke anukool apana manobhaav bana aur (janyuh) punarnav roop mein prakat honevaale (patih) too mere pati (tanvam) meree kaaya mein (aavivishyaah) sutaraan samyak prakaar se pravesh kar .}

भावार्थभाषाः -विवाह के अनन्तर किसी रोगादि से पत्नी कुरूप हो जावे, तो भी कम से कम एक पुत्र तो उत्पन्न करें, ऐसी व्यवस्था धर्मोपदेश से और शासन से करें ॥३॥ समीक्षा (सायण भाष्य)−“एकस्य चित्सर्वस्य जगतो मुख्यस्यापि प्रजापत्यादेः स्वदुहितृभगिन्यादीनां सम्बन्धोऽस्तीति शेषः” ‘एकस्य चित्’ यहाँ एक का अर्थ मुख्य करके प्रजापति आदि का अप्रासङ्गिक अध्याहार किया है। तथा ‘जन्युरिति लुप्तोपममेतत् जन्युरिव यथा जनयिता प्रजापतिः’ यहाँ प्रथम तो लुप्तोपमा गौरव है, दूसरे ‘जायते-इति जन्युः=जन्+युच् से युच् प्रत्यय हुआ है, णिजन्त से नहीं। जो यह जनयिता अर्थ किया है, वह तथा उपयुक्त अध्याहार अपनी कल्पनासिद्धि के लिये खींचातानी है ॥-ब्रह्ममुनि

Translate-{vivaah ke anantar kisee rogaadi se patnee kuroop ho jaave, to bhee kam se kam ek putr to utpann karen, aisee vyavastha dharmopadesh se aur shaasan se karen .3. sameeksha (saayan bhaashy)−“ekasy chitsarvasy jagato mukhyasyaapi prajaapatyaadeh svaduhitrbhaginyaadeenaan sambandhosteeti sheshah” ‘ekasy chit’ yahaan ek ka arth mukhy karake prajaapati aadi ka apraasangik adhyaahaar kiya hai. tatha ‘janyuriti luptopamametat janyuriv yatha janayita prajaapatih’ yahaan pratham to luptopama gaurav hai, doosare ‘jaayate-iti janyuh=jan+yuch se yuch pratyay hua hai, nijant se nahin. jo yah janayita arth kiya hai, vah tatha upayukt adhyaahaar apanee kalpanaasiddhi ke liye kheenchaataanee hai .}


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