स्वभाव एष नारीणां नराणामिह दूषणम् ।
अतोऽर्थान्न प्रमाद्यन्ति प्रमदासु विपश्चितः ॥ २। २१३॥
svabhāva eṣa nārīṇāṃ narāṇāmiha dūṣaṇam |
ato'rthānna pramādyanti pramadāsu vipaścitaḥ ||
-इह इस संसार में एषः स्वभावः यह स्वाभाविक ही है कि नारीणां नराणां दूषणम् स्त्री पुरूषों का परस्पर के संसर्ग से दूषण हो जाता है – दोष लग जाता है अतः अर्थात् इस कारण से विपश्चितः बुद्धिमान् व्यक्ति प्रमदासु स्त्रियों के साथ व्यवहारों में न प्रमाद्यन्ति कभी असावधानी नहीं करते ।Commentary by -पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मनुष्यों को दोष लगाना स्त्रियों का स्वभाव है इस हेतु पण्डित जनों को स्त्रियों से चैतन्य रहना चाहिये।-Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
মনুস্মৃতির বাস্তবতা কি ও তার সঠিক মূল্যায়ন ডঃ সুরেন্দ্র কুমারের লেখা থেকে পড়ুন("मनु का विरोध क्यों?"- डाॅ सुरेन्द्र कुमार इस पुस्तक के उद्देश्य है--- मनु और मनुस्मृति की वास्तविकता का ज्ञान कराना, सही मूल्यांकन करना, इस सम्बन्धित भ्रान्तियों को दूर करना और सत्य को सत्य स्वीकार करने के लिए सहमत करना। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जन्मना जाति-व्यवस्था से हमारे समाज और राष्ट्र का हस एवं पतन हुआ है, और भविष्य के लिए भी यह घातक है। किन्तु, इस एक परवर्ती त्रुटि के कारण समस्त गौरवमय अतीत को कलंकित करना और उसे नष्ट-भ्रष्ट करने का कथन करना भी अज्ञता, अदूरदर्शिता, दुर्भावना और दुर्लक्ष्यपूर्ण है। यह आर्य धर्म, संस्कृति-सभ्यता और अस्तित्व की जड़ों में कुठाराघात के समान है।)
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