ঋগ্বেদ ৭/৬০/৩ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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29 November, 2020

ঋগ্বেদ ৭/৬০/৩

ঋগ্বেদ ৭/৬০/৩
ঋগ্বেদ মন্ডল ৭ সূক্ত ৬০ মন্ত্র ৩

                                   देवता: मित्रावरुणौ ऋषि: वसिष्ठः छन्द: निचृत्त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

                   ऋग्वेद0  मण्डल:7 सूक्त:60 मन्त्र:3 | अष्टक:5 अध्याय:5 वर्ग:1 मन्त्र:3 | मण्डल:7 अनुवाक:4 मन्त्र:3

अयु॑क्त स॒प्त ह॒रितः॑ स॒धस्था॒द्या ईं॒ वह॑न्ति॒ सूर्यं॑ घृ॒ताचीः॑।

धामा॑नि मित्रावरुणा यु॒वाकुः॒ सं यो यू॒थेव॒ जनि॑मानि॒ चष्टे॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण(ইংরেজি লিপিতে)

ayukta sapta haritaḥ sadhasthād yā īṁ vahanti sūryaṁ ghṛtācīḥ | dhāmāni mitrāvaruṇā yuvākuḥ saṁ yo yūtheva janimāni caṣṭe ||

पद पाठ

अयु॑क्त। स॒प्त। ह॒रितः॑। स॒धऽस्था॑त्। याः। ई॒म्। वह॑न्ति। सूर्य॑म्। घृ॒ताचीः॑। धामा॑नि। मि॒त्रा॒व॒रु॒णा॒। यु॒वाकुः॑। सम्। यः। यू॒थाऽइ॑व। जनि॑मानि। चष्टे॑ ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे विद्वानो ! जैसे (सप्त) सात (हरितः) दिशा और (याः) जो (घृताचीः) रात्रियाँ (सधस्थात्) तुल्य स्थान से (सूर्यम्) सूर्य्य को और (ईम्) जल को (वहन्ति) धारण करती हैं, वैसे (यः) जो (अयुक्त) युक्त होता है (धामानि) जन्म, स्थान और नाम को (मित्रावरुणा) प्राण और उदान वायु को (युवाकुः) उत्तम प्रकार संयुक्त करनेवाला हुआ (यूथेव) समूहों के सदृश (जनिमानि) जन्मों को (सम्, चष्टे) प्रकाशित करता है, उसको आप लोग जनाइये ॥३॥

Translate-[he vidvaano ! jaise (sapt) saat (haritah) disha aur (yaah) jo (ghrtaacheeh) raatriyaan (sadhasthaat) tuly sthaan se (sooryam) sooryy ko aur (eem) jal ko (vahanti) dhaaran karatee hain, vaise (yah) jo (ayukt) yukt hota hai (dhaamaani) janm, sthaan aur naam ko (mitraavaruna) praan aur udaan vaayu ko (yuvaakuh) uttam prakaar sanyukt karanevaala hua (yoothev) samoohon ke sadrsh (janimaani) janmon ko (sam, chashte) prakaashit karata hai, usako aap log janaiye.]

भावार्थभाषाः -इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे पवन सूर्य्य लोकों को सब ओर से धारण करते हैं, वैसे विद्वान् जन सूर्य्य, प्राण और पृथिवी आदि की विद्या को जानें ॥३॥

Translate-{is mantr mein upamaalankaar hai . jaise pavan sooryy lokon ko sab or se dhaaran karate hain, vaise vidvaan jan sooryy, praan aur prthivee aadi kee vidya ko jaanen}

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

हे विद्वांसो ! यथा सप्त हरितो या घृताची रात्रयस्सधस्थात् सूर्यमीं वहन्ति तथा योऽयुक्त धामानि मित्रावरुणा युवाकुस्सन् यूथेव जनिमानि सं चष्टे तं यूयं बोधयत ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः -(अयुक्त) युञ्जते (सप्त) एतत्संख्याकाः (हरितः) दिशः। हरित इति दिङ्नाम। (निघं०१.६)। (सधस्थात्) समानस्थानात् (याः) (ईम्) उदकम् (वहन्ति) (सूर्यम्) (घृताचीः) रात्रयः (धामानि) जन्मस्थाननामानि (मित्रावरुणा) प्राणोदानौ (युवाकुः) सुसंयोजकः (सम्) (यः) (यूथेव) यूथानि समूहा इव (जनिमानि) जन्मानि (चष्टे) प्रकाशयति ॥३॥

भावार्थभाषाः -अत्रोपमालङ्कारः । यथा वायवस्सूर्यान् लोकान् सर्वतो वहन्ति तथा विद्वांसस्सूर्यप्राणपृथिव्यादिविद्या जानीयुः ॥३॥

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