"ওঁ বিশ্বানি দেব সবিতর্দুরিতানি পরা সুব। য়দ্ভদ্রং তন্ন আ সুব।।
देवता: सविता ऋषि: श्यावाश्व आत्रेयः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः
विश्वा॑नि देव सवितर्दुरि॒तानि॒ परा॑ सुव।
यद्भ॒द्रं तन्न॒ आ सु॑व ॥
ऋग्वेद मण्डल:5 सूक्त:82 मन्त्र:5
अंग्रेज़ी लिप्यंतरण
viśvāni deva savitar duritāni parā suva | yad bhadraṁ tan na ā suva ||
पद पाठ
विश्वा॑नि। दे॒व॒। स॒वि॒तः॒। दुः॒ऽइ॒तानि॑। परा॑। सु॒व॒। यत्। भ॒द्रम्। तत्। नः॒। आ। सु॒व॒ ॥५॥
पदार्थान्वयभाषाः -हे (सवितः) संपूर्ण संसार के उत्पन्न करनेवाले (देव) और संपूर्ण संसार को प्रकाशित करनेवाले जगदीश्वर ! (विश्वानि) संपूर्ण (दुरितानि) दुष्ट आचरणों को आप (परा, सुव) दूर कीजिये और (यत्) जो (भद्रम्) कल्याणकारक है (तत्) उसको (नः) हम लोगों के लिये (आ, सुव) सब प्रकार से प्राप्त कीजिये ॥
{he (savitah) sampoorn sansaar ke utpann karanevaale (dev) aur sampoorn sansaar ko prakaashit karanevaale jagadeeshvar ! (vishvaani) sampoorn (duritaani) dusht aacharanon ko aap (para, suv) door keejiye aur (yat) jo (bhadram) kalyaanakaarak hai (tat) usako (nah) ham logon ke liye (aa, suv) sab prakaar se praapt keejiye .}
भावार्थभाषाः -हे परमेश्वर ! आप कृपा से जितने हम लोगों में दुष्ट आचरण हैं, उनको अलग करके धर्म्मयुक्त गुण, कर्म्म और स्वभावों को स्थापित कीजिये ॥-स्वामी दयानन्द सरस्वती
{he parameshvar ! aap krpa se jitane ham logon mein dusht aacharan hain, unako alag karake dharmmayukt gun, karmm aur svabhaavon ko sthaapit keejiye}
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