যজুর্বেদ ২৭/৪৫ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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15 April, 2021

যজুর্বেদ ২৭/৪৫

নববর্ষ বেদ মন্ত্র

সম্বৎসরোসি পরিবৎসরোহসীদাবৎ সরোহসভদ্ধসরোহসি বৎসরোহসি। উষসস্তে কল্পন্তামহোরাত্রাস্তে কল্পন্তমর্দ্ধমাসাস্তে কল্পান্তাং মাসাস্তে কল্পন্তামৃতবস্তে কল্পন্তাং সম্বৎ সরস্তে কল্পতাম্। প্রেত্যাহএতৈ সং চাঞ্চ প্র চ সারায়। সূপর্ণচিদসি তয়া দেবতয়াঙ্গিরস্বদ্ ধ্রুবঃ সীদ।।-(যজুর্বেদ ২৭।৪৫)

হে মনুষ্য তোমরা সংবৎসরের তুল্য নিয়মে বর্তমান হও, ত্যজ্য বছরের সমান দুরাচরণ ত্যাগী হও, নিশ্চয় করে উত্তম প্রকার বর্তমান বছরের তুল্য হও, নিশ্চিত সংবৎসরের সদৃশ্য হও, বর্ষের সমান হও, তোমাদের জন্য কল্যাণকারী উষা প্রভাতবেলা সমর্থ হোক, তোমাদের জন্য দিন-রাত্রী মঙ্গলদায়ক হোক, তোমাদের জন্য শুক্ল-কৃষ্ণপক্ষ সমর্থ হোক, তোমাদের জন্য চৈত্র আদি মাস সমর্থ হোক, তোমাদের জন্য বসন্তাদি ঋতু সমর্থ হোক, তোমাদের জন্য সংবৎসর সমর্থ হোক, এবং তোমরা উত্তম প্রাপ্তির জন্য সম্যক প্রাপ্ত হও, এবং তোমরা উত্তম প্রকার গমণের জন্য আপন প্রভাবের বিস্তার করো, যেই কারণে তোমরা সুন্দর রক্ষার সাধনের সঞ্চয়কর্তা, ইহা দ্বারা সেই উত্তম গুণযুক্ত সময়রূপ দেবতার সাথে সুত্রাত্মা প্রাণবায়ুর সমান দৃঢ় নিশ্চল স্থির হও।

 पदार्थान्वयभाषाः -हे विद्वन् वा जिज्ञासु पुरुष ! जिससे तू (संवत्सरः) संवत्सर के तुल्य नियम से वर्त्तमान (असि) है, (परिवत्सरः) त्याज्य वर्ष के समान दुराचरण का त्यागी (असि) है, (इदावत्सरः) निश्चय से अच्छे प्रकार वर्त्तमान वर्ष के तुल्य (असि) है, (इद्वत्सरः) निश्चित संवत्सर के सदृश (असि) है, (वत्सरः) वर्ष के समान (असि) है। इससे (ते) तेरे लिये (उषसः) कल्याणकारिणी उषा प्रभातवेला (कल्पन्ताम्) समर्थ हों, (ते) तेरे लिये (अहोरात्राः) दिन-रातें मङ्गलदायक (कल्पन्ताम्) समर्थ हों, (ते) तेरे अर्थ (अर्द्धमासाः) शुक्ल-कृष्णपक्ष (कल्पन्ताम्) समर्थ हों, (ते) तेरे लिये (मासाः) चैत्र आदि महीने (कल्पन्ताम्) समर्थ हों, (ते) तेरे लिये (ऋतवः) वसन्तादि ऋतु (कल्पन्ताम्) समर्थ हों, (ते) तेरे अर्थ (संवत्सरः) वर्ष (कल्पताम्) समर्थ हो। (च) और तू (प्रेत्यै) उत्तम प्राप्ति के लिये (सम्, अञ्च) सम्यक् प्राप्त हो (च) और तू (एत्यै) अच्छे प्रकार जाने के लिये (प्र, सारय) अपने प्रभाव का विस्तार कर, जिस कारण तू (सुपर्णचित्) सुन्दर रक्षा के साधनों का संचयकर्त्ता (असि) है, इससे (तया) उस (देवतया) उत्तम गुणयुक्त समय रूप देवता के साथ (अङ्गिरस्वत्) सूत्रात्मा प्राणवायु के समान (ध्रुवः) दृढ़ निश्चल (सीद) स्थिर हो ॥४५ ॥

भावार्थभाषाः -जो आप्त मनुष्य व्यर्थ काल नहीं खोते, सुन्दर नियमों से वर्त्तते हुए कर्त्तव्य कर्मों को करते, छोड़ने योग्यों को छोड़ते हैं, उनके प्रभात काल, दिन-रात, पक्ष, महीने, ऋतु सब सुन्दर प्रकार व्यतीत होते हैं, इसलिये उत्तम गति के अर्थ प्रयत्न कर अच्छे मार्ग से चल शुभ गुणों और सुखों का विस्तार करें। सुन्दर लक्षणोंवाली वाणी वा स्त्री के सहित धर्म ग्रहण और अधर्म के त्याग में दृढ़ उत्साही सदा होवें ॥४५ ॥ इस अध्याय में सत्य की प्रशंसा का जानना, उत्तम गुणों का स्वीकार, राज्य का बढ़ाना, अनिष्ट की निवृत्ति, जीवन को बढ़ाना, मित्र का विश्वास, सर्वत्र कीर्ति करना, ऐश्वर्य को बढ़ाना, अल्पमृत्यु का निवारण, शुद्धि करना, सुकर्म का अनुष्ठान, यज्ञ करना, बहुत धन का धारण, मालिकपन का प्रतिपादन, सुन्दर वाणी का ग्रहण, सद्गुणों की इच्छा, अग्नि की प्रशंसा, विद्या और धन का बढ़ाना, कारण का वर्णन, धन का उपयोग, परस्पर की रक्षा, वायु के गुणों का वर्णन, आधार आधेय का कथन, ईश्वर के गुणों का वर्णन, शूरवीर के कृत्यों का कहना, प्रसन्नता करना, मित्र की रक्षा, विद्वानों का आश्रय, अपने आत्मा की रक्षा, वीर्य की रक्षा और युक्त आहार विहार कहे हैं, इससे इस अध्याय में कहे अर्थ की पूर्व अध्याय में कहे अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्याणां परमविदुषां श्रीयुतविरजानन्दसरस्वतीस्वामिनां शिष्येण श्रीपरमहंसपरिव्राजकाचार्येण श्रीमद्दयानन्दसरस्वतीस्वामिना विरचिते संस्कृतार्य्यभाषाभ्यां समन्विते सुप्रमाणयुक्ते यजुर्वेदभाष्ये सप्तविंशतितमोऽध्यायः पूर्तिमगमत् ॥-स्वामी दयानन्द सरस्वती

अन्वय -

(संवत्सरः) संवत्सर इव नियमेन वर्त्तमानः (असि) (परिवत्सरः) वर्जितव्यो वत्सर इव दुष्टाचारत्यागी (असि) (इदावत्सरः) निश्चयेन समन्ताद् वर्त्तमानः संवत्सर इव (असि) (इद्वत्सरः) निश्चितसंवत्सर इव (असि) (वत्सरः) वर्ष इव (असि) (उषसः) प्रभाताः (ते) तुभ्यम् (कल्पन्ताम्) समर्था भवन्तु। (अहोरात्राः) रात्रिदिनानि (ते) (कल्पन्ताम्) (अर्द्धमासाः) सितासिताः पक्षाः (ते) (कल्पन्ताम्) (मासाः) चैत्रादयः (ते) (कल्पन्ताम्) (ऋतवः) वसन्ताद्याः (ते) (कल्पन्ताम्) (संवत्सरः) (ते) (कल्पताम्) (प्रेत्यै) प्रकृष्टेन प्राप्त्यै (एत्यै) समन्ताद् गत्यै (सम्) सम्यक् (च) (अञ्च) प्राप्नुहि (प्र) (च) (सारय) (सुपर्णचित्) यः शोभनानि पर्णानि पालनानि चिनोति सः (असि) (तया) (देवतया) दिव्यगुणयुक्तया समयरूपया (अङ्गिरस्वत्) सूत्रात्मप्राणवत् (ध्रुवः) दृढः (सीद) स्थिरो भव ॥

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যজুর্বেদ অধ্যায় ১২

  ॥ ও৩ম্ ॥ অথ দ্বাদশাऽধ্যায়ারম্ভঃ ও৩ম্ বিশ্বা॑নি দেব সবিতর্দুরি॒তানি॒ পরা॑ সুব । য়দ্ভ॒দ্রং তন্ন॒ऽআ সু॑ব ॥ য়জুঃ৩০.৩ ॥ তত্রাদৌ বিদ্বদ্গুণানাহ ...

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