পিতৃন্ শ্রাদ্ধৈঃ= পিতা -মাতা-দাদা আদিদের শ্রদ্ধা পূর্বক অন্ন-বস্ত্র আদি দান ও সেবা দ্বারা সন্তুষ্ট করবে। পিতৃভ্যঃ প্রীতিম্ আবহন্ = মাতা -পিতা, পিতামহী-পিতামহ আদি বৃদ্ধজনের সাথে অত্যন্ত প্রেম প্রদর্শিত করে, অহঃ অহঃ শ্রাদ্ধম্ কুর্য়াত্ = প্রতিদিন শ্রদ্ধা পূর্বক সেবা, ভোজন দান আদি কর্তব্য পালন করবে।।-
(সুরেন্দ্র কুমার ভাষ্য মনুস্মৃতি)
स्वाध्यायेनार्चयेत र्षीन्होमैर्देवान्यथाविधि ।
पितॄञ् श्राद्धैश्च नॄनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा 3/81
-ऋषियों की पूजा स्वाध्याय (वेद पढ़ने) से, देवताओं की पूजा अग्निहोत्र करने से, पितरों की पूजा श्रद्धा से उनकी सेवा करने से, मनुष्य की पूजा अन्नदान से, जीवों की पूजा बलिवैश्वदैव कर्म से कनी चाहिये।- स्वामी दर्शनानंद(rshiyon kee pooja svaadhyaay (ved padhane) se, devataon kee pooja agnihotr karane se, pitaron kee pooja shraddha se unakee seva karane se, manushy kee pooja annadaan se, jeevon kee pooja balivaishvadaiv karm se kanee chaahiye.)
. स्वाध्याय से ऋषिपूजन यथाविधि होम से देवपूजन श्राद्धों से पितृपूजन अन्नों से मनुष्यपूजन और वैश्वदेव से प्राणी मात्र का सत्कार करना चाहिए । (द० ल० ग्र० २३)
[svaadhyaay se rshipoojan yathaavidhi hom se devapoojan shraaddhon se pitrpoojan annon se manushyapoojan aur vaishvadev se praanee maatr ka satkaar karana chaahie .]
टिप्पणी :
‘‘इन श्लोकों से क्या आया कि होम जो है, सो ही देवपूजा है, अन्य कोई नहीं । और होमस्थान जितने हैं, वे ही देवालयादिक शब्दों से लिए जाते हैं । पूजा नाम सत्कार । क्यों कि ‘अतिथिपूजनम्’ ‘होमैर्देवानर्चयेत्’ - अतिथियों का पूजन नाम सत्कार करना, तथा देव परमेश्वर और मन्त्र इन्हीं का सत्कार, इसका नाम है पूजा, अन्य का नहीं ।’’ (द० शा० ५४) ‘‘इस कथन से अर्वाचीन देवालय अर्थात् मन्दिरों को कोई न समझे, देवालय का अर्थ तो यज्ञशाला ही है ।’’ (पू० प्र० ६७) श्राद्ध का अर्थ है - श्रद्धा से किया गया कार्य, जैसे श्रद्धा पूर्वक माता - पिता की सेवा - सुश्रूषा करना, भोजन देना आदि । यही पितरों का तर्पण या पितृयज्ञ है ।-पण्डित राजवीर शास्त्री
[in shlokon se kya aaya ki hom jo hai, so hee devapooja hai, any koee nahin . aur homasthaan jitane hain, ve hee devaalayaadik shabdon se lie jaate hain . pooja naam satkaar . kyon ki ‘atithipoojanam’ ‘homairdevaanarchayet’ - atithiyon ka poojan naam satkaar karana, tatha dev parameshvar aur mantr inheen ka satkaar, isaka naam hai pooja, any ka nahin .’’ (da0 shaa0 54) ‘‘is kathan se arvaacheen devaalay arthaat mandiron ko koee na samajhe, devaalay ka arth to yagyashaala hee hai .’’ (poo0 pra0 67) shraaddh ka arth hai - shraddha se kiya gaya kaary, jaise shraddha poorvak maata - pita kee seva - sushroosha karana, bhojan dena aadi . yahee pitaron ka tarpan ya pitryagy hai]
कुर्यादहरहः श्राद्धं अन्नाद्येनोदकेन वा ।
पयोमूलफलैर्वापि पितृभ्यः प्रीतिं आवहन् 3/82
अपने बड़ों (वृद्धों, पितरों) से प्रीति रखें और भोजन, दूध, घी, फल आदि से नित्य उनका श्राद्ध किया करें। क्योंकि यह बड़ा यज्ञ है।
[apane badon (vrddhon, pitaron) se preeti rakhen aur bhojan, doodh, ghee, phal aadi se nity unaka shraaddh kiya karen. kyonki yah bada yagy hai.]
अतः, गृहस्थ को चाहिये कि वह प्रतिदिन माता पितादिकों को संतुष्ट-प्रसन्न करता हुआ, भोजन, शुद्ध जल, वा दूध फल मूल से श्रद्धापूर्वक उनकी सेवा करे।-पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
[grhasth ko chaahiye ki vah pratidin maata pitaadikon ko santusht-prasann karata hua, bhojan, shuddh jal, va doodh phal mool se shraddhaapoorvak unakee seva kare.]
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