হিরণ্যগর্ভ ঋষিঃ।ত্রিষ্টুপ্ ছন্দঃ।প্রজাপতির্দেবতা।
য আত্নদা বলদা যস্য বিশ্ব উপাসতে প্রশিষ্যং যস্য দেবাঃ।
যস্য ছায়ামৃতং যস্য মৃত্যুঃ কস্মৈ দেবায় হবিষা বিধেম।।
य आ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ उ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॑ दे॒वाः ।
यस्य॑ छा॒यामृतं॒ यस्य॑ मृ॒त्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥
ঋগ্বেদ0 মন্ডল 10 সূক্ত 121 মন্ত্র 2
পদপাঠ
যঃ।আত্নদাঃ।বলদাঃ।যস্য।বিশ্বে।উপআসতে।প্রশিষম্।যস্য।দেবাঃ।
যস্য।ছায়া।অমৃতম্।যস্য। মৃত্যু।কস্মৈ।দেবায়।হবিষা।বিধেম।
শব্দার্থঃ যঃ(যে প্রজাপতি অর্থাৎ পরমাত্না) আত্নদাঃ(স্রষ্টা) বলদাঃ(বল দানকারী) যস্য(যাঁর) প্রশিষম্(প্রকৃষ্ট শাসন বা আজ্ঞা) বিশ্বে(বিশ্বের সমস্ত প্রাণীরা) উপাসতে(প্রার্থনা করে) [তথা] দেবাঃ(দেবতারাও অর্থাৎ বিদ্বানরা) [যাঁর শাসন মেনে চলেন],যস্য(যাঁর) ছায়া(আশ্রয় অর্থাৎ জ্ঞান পূর্বক উপাসনা) অমৃতম্(মুক্তিহেতু) যস্য(যাঁর) [স্বরূপ যথার্থ জ্ঞান না হলে] মৃত্যুঃ(মৃত্যুরূপ সংসারে বার বার গতায়াতরূপ দুঃখ লাভ) [হয়],কস্মৈ(প্রজাপতি অর্থাৎ পরমাত্না) দেবায় (দেবতাকে) হবিষাঃ(হবিঃ বা হবিঃরূপ স্তুতি দ্বারা) বিধেম(উপাসনা করব।)
ভাবার্থঃ যিনি আত্মবল ও দেহবলের দাতা যাঁর শাসনকে বিদ্বানেরা প্রশংসা করেন,যাঁর আশ্রয়ই অমৃত ও যাঁর বিয়োগই মৃত্যু, আমি সেই সুখস্বরূপ সৃষ্টিকর্তা পরমাত্মায় আত্মসমর্পণ করে স্তুতি ও উপাসনা করছি।
বি.দ্র.1- রমেশ চন্দ্র দত্ত মহাশয়,তাঁর রচিত বেদভাষ্যে,পাশ্চাত্য পন্ডিতদের অনুকরণে,"কস্মৈ দেবায়"শব্দটির অনুবাদ করেছেন,কোন দেবতাকে হবি দিতে হবে?!!!তিনি এও বলেছেন,এখানে,"ক" নামক নতুন কোন দেবতার প্রকাশ পেয়েছে।কিন্তু,ঐতরেয় ব্রাহ্মণের প্রমানুসারে(12/10),"ক" শব্দের দ্বারা প্রজাপতি বা পরমাত্নাকে বুঝিয়েছে।শৌনক,তাঁর রচিত বৃহদ্দেবতায়(8/41),"ক" শব্দে প্রজাপতিকে ই বুঝিয়েছেন।সুতরাং,কস্মৈ মানে এখানে পরমাত্না।
पदार्थान्वयभाषाः -(यः) जो (आत्मदाः) आत्मबोध का देनेवाला (बलदाः) बल का देनेवाला (यस्य) जिसके (प्रशिषम्) प्रशासन को (विश्वे) सब साधारण जन (उपासते) सेवन करते हैं (यस्य) जिसके प्रशासन को (देवाः) विशिष्ट विद्वान् सेवन करते हैं, आचरण में लाते हैं (यस्य छाया) जिसकी छाया-आश्रय-शरण (अमृतम्) अमृत है (यस्य मृत्युः) जिसकी अच्छाया-अशरण मृत्यु है (कस्मै देवाय हविषा विधेम) पूर्ववत् ॥
भावार्थभाषाः -परमात्मा संसार में भेजकर आत्मबोध देता है, अपनी सङ्गति से बल देता है, उसका नियम सब सेवन करते हैं, कोई तोड़ नहीं सकता, उसकी शरण लेने से अमृत हो जाता है, अन्यथा मृत्यु को प्राप्त होता रहता है, उस सुखस्वरूप प्रजापति को उपहाररूप से अपने आत्मा का समर्पण करना चाहिये ॥-ब्रह्ममुनि
বি.দ্র.2- যে ছন্দের প্রতিপাদে, 11টি অক্ষর থাকে তাকে, ত্রিষ্টুপ্ ছন্দ বলে।
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