देवता: श्रद्धा ऋषि: श्रद्धा कामायनी छन्द: अनुष्टुप् स्वर: गान्धारः
শ্রদ্ধাং প্রাতর্হবামহে শ্রদ্ধাং মধ্যন্দিনং পরি।
শ্রদ্ধাং সূর্য়স্য নিম্রূচি শ্রদ্ধে শ্রদ্ধাপয়েহ নঃ।।
श्र॒द्धां प्रा॒तर्ह॑वामहे श्र॒द्धां म॒ध्यंदि॑नं॒ परि॑ । श्र॒द्धां सूर्य॑स्य नि॒म्रुचि॒ श्रद्धे॒ श्रद्धा॑पये॒ह न॑: ॥
পদার্থঃ (প্রাতঃ) প্রাতঃকাল (শ্রদ্ধাম্) যথাবৎ ধারণা-আস্তিকতার পরমাত্ম প্রীতির (হবামহে) আমন্ত্রিত করেন (সূর্য়স্য নিম্রু চি) সূর্যের অস্ত যাওয়ার পরে (শ্রদ্ধাম্) আস্তিকতাকে-পরমাত্ম প্রীতির-আমন্ত্রিত করেন (মধ্যন্দিনং পরি) দিনের মধ্যে-প্রাতঃ থেকে সায়ং সমস্ত দিন ভরে (শ্রদ্ধাম্) আস্তিকতা-পরমাত্ম প্রীতির আমন্ত্রিত করেন-সেবন করেন (শ্রদ্ধে) হে আস্তিক ভাবনা অথবা পরমাত্মপ্রীতি (নঃ) আমাদের (ইহ) এই জীবনে (শ্রদ্ধাপয়) শ্রদ্ধাময় করে।।
ভাবার্থঃ মানবের পরমাত্মার প্রতি আস্তিক ভাবনা অথবা পরমাত্মপ্রীতি প্রাতঃকাল আর সায়ংকাল-উপাসনার দৃষ্টি অথবা অধ্যাত্মের দৃষ্টি দ্বারা রাখার সাথে দিন ভরে লোক-ব্যবহারেও আস্তিকতা আর পরমাত্মপ্রীতি হওয়া উচিত, ইহার বিপরীত লোক ব্যবহার হয় না পরন্তু দিনচর্যার অতিরিক্ত সারা জীবন আস্তিকতাপূর্ণ বানানো উচিত।।
पदार्थान्वयभाषाः -(प्रातः) प्रातःकाल (श्रद्धाम्) यथावद् धारणा-आस्तिकता को परमात्मप्रीति को (हवामहे) आमन्त्रित करते हैं (सूर्यस्य निम्रुचि) सूर्य के अस्त हो जाने पर (श्रद्धाम्) आस्तिकता को-परमात्मप्रीति को-आमन्त्रित करते हैं (मध्यन्दिनं परि) दिन के मध्य में-प्रातः से सायं सारे दिन भर में (श्रद्धाम्) आस्तिकता-परमात्मप्रीति को आमन्त्रित करते हैं-सेवन करते हैं (श्रद्धे) हे आस्तिकभावना या परमात्मप्रीति ! (नः) हमें (इह) इस जीवन में (श्रद्धापय) श्रद्धामय कर ॥
भावार्थभाषाः -मानव को परमात्मा के प्रति आस्तिकभावना या परमात्मप्रीति प्रातःकाल और सायंकाल-उपासना की दृष्टि या अध्यात्म की दृष्टि से रखने के साथ दिन भर के लोकव्यवहार में भी आस्तिकता और परमात्मप्रीति होनी चाहिए, उसके विपरीत लोकव्यवहार नहीं हो, अपितु दिनचर्या के अतिरिक्त सारा जीवन आस्तिकतापूर्ण बनाना चाहिये ॥--ভাষ্যঃ স্বামী ব্রহ্মমুনি পরিব্রাজক বিদ্যামার্তণ্ড
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