অভী३॒॑দমেকমেকো অস্মি নিষ্ষাळভী দ্বা কিমু ত্রয়ঃ করন্তি।
খলে ন পর্ষান্প্রতি হন্মি ভূরি কিম্ মা নিন্দন্তি শত্রবোऽনিন্দ্রাঃ।। (ঋঃ ১০|৪৮|৭)
अ॒भी॒३॒॑दमेक॒मेको॑ अस्मि नि॒ष्षाळ॒भी द्वा किमु॒ त्रय॑: करन्ति ।
खले॒ न प॒र्षान्प्रति॑ हन्मि॒ भूरि॒ किं मा॑ निन्दन्ति॒ शत्र॑वोऽनि॒न्द्राः ॥
पदार्थ -
(एकः-निष्षाट्-इदम्-अस्मि) यद्यपि मैं अभिभूत करनेवाला परमात्मा अकेला हूँ, तथापि (एकम्-अभि) एक निन्दक या नास्तिक वर्ग को भी अभिभूत करता हूँ-अपने अधीन करके दण्ड देता हूँ (द्वा-अभि) दो वर्गों को भी दण्ड दे देता हूँ यद्वा (त्रयः किम्-उ करन्ति) अथवा तीन नास्तिक वर्ग भी क्या कर सकते हैं-क्या करेंगे ? उनको भी मैं अभिभूत करता हूँ, दण्ड देता हूँ (खले न पर्षान् भूरि प्रतिहन्मि) जैसे संग्राम में उसके भर देनेवाले योद्धाओं को हनन किया जाता है, ऐसे नास्तिकों-निन्दकों का हनन करता हूँ अथवा खलिहान में जैसे गाहे जाते हुए पूलों का विदारण किया जाता है, ऐसे विदारण करता हूँ (अनिन्द्राः शत्रवः किं मा निन्दन्ति) वे जो मुझ इन्द्र को-ऐश्वर्यवाले परमात्मा को जो नहीं जानते और मानते, ऐसे नास्तिक-शत्रु-विरोधी मेरी क्यों निन्दा करते हैं, अतः वे दण्डभागी होंगे ॥
भावार्थ - परमात्मा एक है, परन्तु वह अकेला भी अनेक या बहुतेरे निन्दकों नास्तिकों-पापियों के वर्गों को दण्ड दे सकता है, जैसे संग्रामस्थल में सैनिक हताहत कर दिये जाते हैं या जैसे खलिहान में अन्नपूलों को चूर-चूर कर दिया जाता है, ऐसे ही परमात्मा उन वर्गों को चूर-चूर देता है। वे निन्दक या नास्तिक परमात्मा का कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं ॥-स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक
অর্থাৎ - আমি যদিও একা তবুও এক, দুই, তিন শত্রুও আমার কিছুই করতে পারবে না। আমি শত্রুদের এমনভাবে পিষে ফেলবো যেভাবে খলিহানে অন্ন পিষা হয়, কারণ যার কোনো মার্গদর্শক সেনাপতিই নেই, সে শত্রু আমরা কি নিন্দা করতে পারে!
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