ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्र - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

সাম্প্রতিক প্রবন্ধ

Post Top Ad

স্বাগতম

01 July, 2021

ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्र

अथ: ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना मंत्र

ओ३म् विश्वा॑नि देव सवितर्दुरि॒तानि॒ परा॑ सुव।

यद्भ॒द्रं तन्न॒ऽआ सु॑व ॥-[यजुर्वेद-३०.३]

-तू सर्वेश सकल सुखदाता शुद्धस्वरूप विधाता है। उसके कष्ट नष्ट हो जाते शरण तेरी जो आता है।।

सारे दुर्गुण दुर्व्यसनों से हमको नाथ बचा लीजै। मंगलमय गुण कर्म पदार्थ  प्रेम सिन्धु हमको दीजै  

ओ३म् हि॒र॒ण्य॒ग॒र्भः सम॑वर्त्त॒ताग्रे॑ भू॒तस्य॑ जा॒तः पति॒रेक॑ऽ आसीत्।

स दा॑धार पृथि॒वीं द्यामु॒तेमां कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥-[यजुर्वेद-१३.४]

तू स्वयं प्रकाशक सुचेतन, सुखस्वरूप त्राता है सूर्य चन्द्र लोकादिक को तो तू रचता और टिकाता है।।

पहिले था अब भी तू ही है  घट-घट में व्यापक स्वामी। योग, भक्ति, तप द्वारा तुझको, पावें हम अन्तर्यामी।।

ओ३म् यऽआ॑त्म॒दा ब॑ल॒दा यस्य॒ विश्व॑ऽउ॒पास॑ते प्र॒शिषं॒ यस्य॑ दे॒वाः।

यस्य॑ छा॒याऽमृतं॒ यस्य॑ मृ॒त्युः कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥-[यजुर्वेद-२५.१३]

तू आत्मज्ञान बल दाता, सुयश विज्ञजन गाते हैं। 

तेरी चरण-शरण में आकर, भवसागर तर जाते हैं।।

तुझको जपना ही जीवन है, मरण तुझे विसराने में।

मेरी सारी शक्ति लगे प्रभु, तुझसे लगन लगाने में।।

ओ३म् यः प्रा॑ण॒तो नि॑मिष॒तो म॑हि॒त्वैक॒ऽइद्राजा॒ जग॑तो ब॒भूव॑।

यऽईशे॑ऽअ॒स्य द्वि॒पद॒श्चतु॑ष्पदः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥-[यजुर्वेद-२६.३]

-तूने अपनी अनुपम माया से जग ज्योति जगाई है। 

मनुज और पशुओं को रचकर निज महिमा प्रगटाई है।।

अपने हृदय सिंहासन पर श्रद्धा से तुझे बिठाते हैं।

भक्ति भाव की भेंटें लेकर शरण तुम्हारी आते हैं।।

ओ३म् येन॒ द्यौरु॒ग्रा पृ॑थि॒वी च॑ दृ॒ढा येन॒ स्व᳖ स्तभि॒तं येन॒ नाकः॑।

योऽ अ॒न्तरि॑क्षे॒ रज॑सो वि॒मानः॒ कस्मै॑ दे॒वाय॑ ह॒विषा॑ विधेम ॥-[यजुर्वेद -३२.६]

-तारे रवि चन्द्रादि रचकर निज प्रकाश चमकाया है धरणी को धारण कर तूने कौशल अलख जगाया है।। 

तू ही विश्व-विधाता पोषक, तेरा ही हम ध्यान धरें। शुद्ध भाव से भगवन् तेरे भजनामृत का पान करें।।

ओ३म् प्रजा॑पते॒ न त्वदे॒तान्य॒न्यो विश्वा॑ जा॒तानि॒ परि॒ ता ब॑भूव ।

यत्का॑मास्ते जुहु॒मस्तन्नो॑ अस्तु व॒यं स्या॑म॒ पत॑यो रयी॒णाम् ॥-[ऋग्वेद-१०.१२१.१०]

-तूझसे बडा न कोई जग में, सबमें तू ही समाया है। जड चेतन सब तेरी रचना, तुझमें आश्रय पाया है।।

हे सर्वोपरि विभो! विश्व का तूने साज सजाया है। शक्ति भक्ति भरपूर दूजिए  यही भक्त को भाया है 

ओ३म् स नो॒ बन्धु॑र्जनि॒ता स वि॑धा॒ता धामा॑नि वेद॒ भुव॑नानि॒ विश्वा॑।

यत्र॑ दे॒वाऽ अ॒मृत॑मानशा॒नास्तृ॒तीये॒ धाम॑न्न॒ध्यैर॑यन्त ॥-[यजुर्वेद-३२.१०]

-तू गुरु प्रजेश भी तू है, पाप-पुण्य फलदाता है। तू ही सखा बन्धु मम तू ही, तुझसे ही सब नाता है।। भक्तों को इस भव-बन्धन से, तू ही मुक्त कराता है तू है अज अद्वैत महाप्रभु सर्वकाल का ज्ञाता है।।

ओ३म् अग्ने॒ नय॑ सु॒पथा॑ रा॒येऽअ॒स्मान् विश्वा॑नि देव व॒युना॑नि वि॒द्वान्।

यु॒यो॒ध्य᳕स्मज्जु॑हुरा॒णमेनो॒ भूयि॑ष्ठां ते॒ नम॑ऽउक्तिं विधेम ॥-[यजुर्वेद -४०.१६]

-तू स्वयं प्रकाश रूप प्रभो सबका सिरजनहार तू ही रसना निश दिन रटे तुम्हीं को, मन में बसना सदा तू ही।।

कुटिल पाप से हमें बचाना भगवन् दीजै यही विशद वरदान।।


No comments:

Post a Comment

ধন্যবাদ

বৈশিষ্ট্যযুক্ত পোস্ট

अथर्ववेद 6/137/1

  एक वरिष्ठ वैदिक विद्वान् ने मुझे अथर्ववेद के निम्नलिखित मन्त्र का आधिदैविक और आध्यात्मिक भाष्य करने की चुनौती दी। इस चुनौती के उत्तर में म...

Post Top Ad

ধন্যবাদ