देवता: परमेश्वरो देवता ऋषि: प्रजापतिर्ऋषिः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः
ও৩ম্ য়ঃ প্রাণতো নিমিষতো মহিত্বৈক ইদ্রাজা জগতো বভূব।
য় ঈশে অস্য দ্বিপদশ্চতুস্পদঃ কস্মৈ দেবায় হবিষা বিধেম।। [যর্জুবেদ ২৩।৩]
ভাবার্থ-যিনি নিজের মহিমায় প্রাণী ও অপ্রাণী জগতের এক মাত্র রাজা এবং সব দ্বিপদ ও চতুষ্পদ প্রাণীর ওপর শাসন করছেন,আমরা সকলে সেই সুখস্বরূপ সৃষ্টিকর্তা পরমাত্মায় আত্মসমর্পণ করিয়া স্তুতি উপাসনা করছি।
पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (यः) जो (एकः) एक (इत्) ही (महित्वा) अपनी महिमा से (निमिषतः) नेत्र आदि से चेष्टा को करते हुए (प्राणतः) प्राणी रूप (द्विपदः) दो पगवाले मनुष्य आदि वा (चतुष्पदः) चार पगवाले गौ आदि पशुसम्बन्धी इस (जगतः) संसार का (राजा) अधिष्ठाता (बभूव) होता है और (यः) जो (अस्य) इस संसार का (ईशे) सर्वोपरि स्वामी है, उस (कस्मै) आनन्दस्वरूप (देवाय) अतिमनोहर परमेश्वर की (हविषा) विशेष भक्तिभाव से (विधेम) सेवा करें, वैसे विशेष भक्तिभाव का आप लोगों को भी विधान करना चाहिये ॥
अन्वय: (यः) परमात्मा (प्राणतः) प्राणिनः (निमिषतः) नेत्रादिना चेष्टां कुर्वतः (महित्वा) स्वमहिम्ना (एकः) अद्वितीयोऽसहायः (इत्) एव (राजा) अधिष्ठाता (जगतः) संसारस्य (बभूव) (यः) (ईशे) ईष्टे (अस्य) (द्विपदः) मनुष्यादेः (चतुष्पदः) गवादेः (कस्मै) आनन्दरूपाय (देवाय) कमनीयाय (हविषा) भक्तिविशेषेण (विधेम) परिचरेम ॥
भावार्थभाषाः -इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो एक ही सब जगत् का महाराजाधिराज, समस्त जगत् का उत्पन्न करनेहारा सकल ऐश्वर्ययुक्त महात्मा न्यायाधीश है, उसी की उपासना से तुम सब धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के फलों को पाकर सन्तुष्ट होओ ॥-स्वामी दयानन्द सरस्वती
[is mantr mein vaachakaluptopamaalankaar hai. he manushyo ! jo ek hee sab jagat ka mahaaraajaadhiraaj, samast jagat ka utpann karanehaara sakal aishvaryayukt mahaatma nyaayaadheesh hai, usee kee upaasana se tum sab dharm, arth, kaam aur moksh ke phalon ko paakar santusht hoo .]
No comments:
Post a Comment
ধন্যবাদ