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गीता और महर्षि दयानन्द जी : अमर स्वामी सरस्वती द्वारा हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक – सामाजिक
शास्त्रार्थ –
स्थान – “कचौरा” जिला अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश)
दिनांक – सन् १९२३ ई.
विषय – क्या परमेश्वर निराकार है ?
आर्यसमाज की ओर से शास्त्रार्थकर्ता – श्री पण्डित बिहारीलाल जी शास्त्री “काव्यातीर्थ”
पौराणिक पक्ष की ओर से शास्त्रार्थकर्ता – व्याकरणाचार्य पण्डित चन्द्रशेखर जी (शंकराचार्य
निरञ्जनदेव जी तीर्थ )
साहयक – श्री करपात्री जी महाराज
श्री पण्डित चन्द्रशेखर जी व्याकरणाचार्य –
भाईयों ! सुनों !!! आर्याभिविनय पुस्तक स्वामी दयानन्द की बनाई हुई है जिसमें दयानन्द ने लिखा है कि – “मेरे सोम रसों को है ईश्वर सर्वात्मा से पान करों” क्या निराकार सोमरस पान करता है ? यह ईश्वर को भोग लगाना नही है तो और क्या है ? हम श्री ठाकुर जी को भोग लगाते है तो यह आर्यसमाज आक्षेप करते है, और आप निराकार को सोमरस पिला रहे हो तो कुछ नही ? “निराकार सोमरस कैसे पी रहा है ? हमारे भगवान तो साकार है तो हमारा भोग लगाना तो उचित ही हुआ न ? परन्तु तुम आर्यों का कमाल है, कि एक तरफ उसे निराकार मानों, दूसरी तरफ उसे सोमरस पिलाओ | ये कैसे सम्भव हो सकता है ?
श्री पण्डित बिहारीलाल जी शास्त्री –
महाराज ! वास्तव में निराकार ही खाता पीता है, साकार नही ! ! देखियें कैसे ? मै समझाता हूँ | जब जिस समय इस शरीर से जीवात्मा निकल जाता है, तब यह साकार शरीर कुछ भी नही खाता पीता है, अगर किसी ने मुर्दे को खाता पीता हुआ देखा हो तो बताओं ? (जनता में हसी ...) निराकार ईश्वर सर्वत्र व्यापक है | वह सोमरस में भी व्यापक है | इसी कारण यहा सर्वात्मा शब्द का प्रयोग हुआ है | सर्वव्यापक ईश्वर को हमारे अर्पित सोमरस का ज्ञान है | सर्वज्ञत्व से वह पान करता है, यह ज्ञानरूपी पान अलंकारित वाक्य है, देखिये वेदान्त दर्शन मे ईश्वर को अत्ता अर्थात खाने वाला कहा है | देखिये – “ अत्ताचराचर ग्रहणात्” | क्योंकि वह ईश्वर सर्वव्यापक होने से सबका खाने वाला है | आपके ही मान्य ग्रन्थ वेदान्त दर्शन का ही यह वचन मैंने बोला है |
श्री पण्डित चन्द्रशेखर जी व्याकरणाचार्य –
ईश्वर साकार ही भोग ग्रहण करता है | निराकार को भोजन की आवश्यकता नही | सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है – “सोमसद: पितरस्तृप्यन्ताम्” यह चन्द्रलोक में रहने वाले पितरो का तर्पण नही तो और क्या है ? आर्य समाजियों के गुरु ग्रन्थ में पितरों के तर्पण मानते है, परन्तु आर्य समाजी पितृ श्राद्ध का खंडन करते है, यह अपने ग्रंथो का तथा अपने गुरु का विरोध है |
श्री पण्डित बिहारीलाल जी शास्त्री –
पण्डित जी ! निराकार भगवान सर्वव्यापक है ! साकार सर्वव्यापक नही है, साकार सर्वव्यापक हो ही नही सकता है | जिसे खाने पीने की आवश्यकता हो तो वह भगवान हो ही नही सकता | भगवान सब आवश्यकताओ ओर इच्छाओ से मुक्त होता है | पूर्ण काम है | वह अपनी सर्वज्ञता से हमारे द्वारा किये गये सोमरस, शुद्ध प्रेम भावो को जानते है, स्वीकार करता है | यहां सोमरस कोई भौतिक पदार्थ नही, किन्तु इस मन्त्र में उस सोमरस का संकेत है जिसे वेद ने कहा है – “सोमं यं ब्राह्मणा विदुर्नतस्यापुनाति कश्चन” अर्थात् वह सोमरस जिसे विद्वान् ब्राह्मण जानते है | उसको कोई नही खाता है, अर्थात वह है, शुद्ध ब्रह्मज्ञान, आध्यात्मिकता, भगवान का प्रेम उसका रस तो योगी ही ले सकता है | उसी प्रेम भाव को भक्त अपने ईष्ट देव को अर्पित कर रहा है | और सोम, सदपितरो के तर्पण से पहले यह जानना चाहिए कि पितर है क्या ? देखिये श्री उव्वट और आचार्य महीधर जी के यजुर्वेद भाष्य में लिखा है – “ ऋतवों वै पितर:” ये छै ऋतुये पितर है | इन्ही को वेदों में कहा है – “नमो व: पितर: शोषाय नमो व: पितरो रसाय “ आदि |
ये ऋतुए चन्द्रमा से सम्बन्ध है | अत: सोमसद कही गई है | ऋतु – ऋतु पर यज्ञ करके इन पितरो को तृप्त करो तो कोई रोग नही फैलेंगा, प्रकृति में विकार नही होगा | यदि सब मरने वाले चन्द्रलोक में जाकर पितर बन जाते है, तो पुनर्जन्म किसका होता है ? और चन्द्रलोक में जन्म लेने वालो की तृप्ति हम क्यों करे ? प्रजापति भगवान सबका प्रबन्ध तत् कर्मानुसार ही करते है | पण्डित जी महाराज ! आपको पता होना चाहिए कि कर्मो का फल संस्कार द्वारा ही मिलता है | संस्कार सूक्ष्म शरीर पर स्वकृत कर्म से पड़ते है | परकृत कर्म के द्वारा नही | मृतक श्राद्ध मान लेने से स्वकृत कर्मफल हानि और परकृत कर्म फलाप्ति से दो दोष आते है, और कर्म सिद्धांत को दूषित कर देते है , क्या “तमाशा” है कि अपनों की तो सुध बुध है, नही, दौड़ते है चन्द्रलोक तक थाल लिये पितरों को ! देश के सहस्त्रो बालक भूख से बेचैन होकर इसाई बनते है | आप चन्द्रलोक की प्रजा का पालन करने चले है |
नोट –
इन बातों पर जनता में जबरदस्त अट्टहास हुआ जिससे पौराणिक पण्डित शास्त्रार्थ के बीच में ही बिगड़ खड़े हुए, कि हमारी बातो को तमाशा कह दिया, उनसे बहुतेरा अनुनय विनय किया गया कि “तमाशा” शब्द, अपशब्द वा गाली नही है | ये उर्दू का शब्द है | जो क्रीडा व खेल के अर्थो में आता है पर वे न माने, क्योंकि वे तो पीछा छुडाने का कोई न कोई बहाना ढूढ रहे थे, वह बहाना उनकों मिल ही गया, और वह क्रोध भरे अपने पुस्तक भी मेज पर ही छोडकर चल दिये |
इस शास्त्रार्थ के बाद वे कभी फिर यहा नही पधारे, और आर्य समाज की चहुंमुखी उन्नति हो उठी, बाद में यहा पर आर्यसमाज मन्दिर बना पाठशाला खुली, बड़े – बड़े विशाल उत्सव होते रहे | ये केवल उसी शास्त्रार्थ का प्रभाव था |
साभार – निर्णय के तट पर (भाग-२ ) से उदृत
शास्त्रार्थ -२
दिनांक – १३ सितम्बर सन् १८९९ ई. (दूसरा दिन )
विषय – इलहामी पुस्तक कौन? वेद या कुरान!
शास्त्रार्थकर्त्ता आर्यसमाज की ओर से – पण्डित कृपाराम शर्मा जगरानवी
(स्वामी दर्शनानन्दजी सरस्वती)
शास्त्रार्थकर्त्ता मुसलमानों की ओर से – मौलवी अबुलफरह साहिब (पानीपत)
सहायक - १ मौलवी जहागीर खां साहब
२ श्री मौलवी अब्दुलमजीद साहिब
३ काजी जुहुरूल्लहसन साहिब
आर्यसमाज के मंत्री - पण्डित कृपाशंकर एम. ए. (प्राज्ञशास्त्री)
आर्यसमाज के प्रधान – बाबू जमनादास विश्वास “वकील”
सभापति - बाबू जोजफ फारनन साहब( सिविल
लाइन आगरा)
शास्त्रार्थ के प्रधान – श्री जलसा बाबू
शास्त्रार्थ आरम्भ –
पण्डित श्री कृपाराम जी शर्मा जगरानवी-
चूँकि मौलवी साहब ने जो उसूल अहले इस्लाम के बताये उनका खंडन खुद उनकी पुस्तक कुरान शरीफ से होता है, इस वास्ते इस्लाम बजाय खुद खुदापरस्ती के शर्क( मौहम्मद साहब को शामिल करना) अर्थात् अल्लाह के साथ मौहम्मद साहब को जोड़ देने की शिक्षा देता है | उसके खुदाई कलाम होने में हमारे निम्न एतराज है –
१ जो व्यक्ति मकर दगा करने वाला, कर्ज मांगने वाला, और कसमें खाने वाला होतो क्या उसे खुदा कहा जा सकता है |
२ कुरान शरीफ १३०० साल पहले नाजिल हुआ उससे पहले दुनिया की नजात(मुक्ति) का क्या तरीका था ? अगर मुसलमान भाई कहे कि कुरान शरीफ से पहले इन्जील और इन्जील से पहले जबूर, और जबूर से पहले तौरेत,थी, तो ये बताये कि आदम से लेकर मूसा तक लोग किस किताब पर अमल करते रहे अर्थात् किस किताब के आदेशानुसार चले ? अगर कोई किताब थी तो उसे पेश करें| अन्यथा खुदा पर बेइन्साफी(अन्याय) का इल्जाम(दोष) लागू होता है | क्योंकि आदम से लेकर मूसा तक जिस कदर आदमी हुए उनकों नजात(मुक्ति) का तरीका ही न बतलाना और मूसा पर तौरेत नाजिल की (उतारी)| और ये भी बतलाये कि खुदा तौरेत में क्या लिखना भूल गये थे,जिसको पूरा करने के लिए जबूर भेजी, और जबूर में क्या कमी रह गयी जिसको पूरा करने के लिए इन्जील भेजी | तौरेत,जबूर ओर इन्जील में ऐसा कौनसा इल्मी उसूल(ज्ञान का सिद्धांत) न था जिसको बताने के वास्ते कुरान शरीफ आया जबकि कुरान शरीफ को बनाने वाले ने बार-बार अपने विचारों को गलत समझ कर रद्द किया | तो अब उसके सही होने का क्या सबूत है ? हजरत मौहम्मद साहब को जो पैगम्बर माना जाता है, पैगम्बर के माने पैगाम(संदेश लाने वाला) और पैगाम(संदेश) हमेशा फासला(दूरी) से आया करता है| तो बताये खुदा ओर इन्सान के बीच कितना फासला है,जिस वास्ते संदेश लाने के लिए पैगम्बरों की आवश्यकता पड़ी ? और जो खुदा सबका बनाने वाला एवं सब कुछ बनाने वाला,और सबको चलाने वाला,उसको फरिश्तो का मोहताज (आधीन) होना पड़ा, और आदम को जमीन पर अपना नायब निश्चित करके फरिश्तों को शर्क (मौहम्मद साहब को अल्लाह के साथ मिलाकर ) तालीम देनी पड़ी |
मौलवी श्री अबुलफरह साहब पानीपती –
हजरात साईमन! (उपस्थित सज्जनों), मैंने अपने कल के बयान में ये बात लिखवा दी थी कि शास्त्रार्थ नियमानुसार होगा, और दोनों पक्ष नियम से ही मुबाहिसा करेंगे बिना नियम के नही | और हमने ये सब उसूल की बातें पहले ही लिखवा दी थी| परन्तु हमे अफ़सोस है कि उन सबको भूला कर पण्डित साहब ने वो गुब्बार जो पण्डित जी के दिल व दिमांग में भरा हुआ था इजहार कर दिया | और हमारे सारे इस्लामी उसूलों को ध्यान में नही रखा | हमे लगता है कि पण्डित जी ने उन सभी बातो को भुला दिया है | लिहाजा मै इस गुफ्तगू का जवाब एक ही लफ्ज में दूंगा | “भाई ये काम जिद का नही बल्कि इन्साफ का है” और यहा सब लोग बैठे है, और पण्डित साहब ने लिखवाया कि कुरआन शर्क की तालीम देता है | मैंने कल नियम में लिखवाया था कि कोई भी बात बिना सबूत के पेश न की जावे | परन्तु मुझे अफ़सोस है कि पण्डित जी ने कोई सबूत पेश नही किया | परन्तु मै अब अपनी बात का जवाब देने से पहले सबूत पेश करता हू – देखिये – कुरान पहले आयत पांच पारा की सांतवी आयत में लिखा है – (इसी प्रकार मौलवी साहब ने कई आयतों के पते लिखवा दिए) और पैगम्बरों की जरूरत के विषयों में जो ऋषियों की आवश्यकता है वही पैगम्बर की है | अर्थात् जो ऋषियों के विषय में आपका जवाब था वही पैगम्बरों के विषय में हमारा है | हमे अफ़सोस है कि कुरान और तौरेत को पढकर नही देखा| कि क्या कमी थी, क्योंकि ये बहस उसूल से निकल गई है | इसलिए मै इस वास्ते दूसरा समय निश्चित करूंगा | क्योंकि यह बहस पांच उसूलों के अंदर नही है जो मुबाहिसा शुरू करने से पहले नियत किये थे | तो “खुदा को मक्कार और दगाबाज कहा गया है” जिस वक्त आप कुरान पढ़ेंगे तो यह छोटी सी बात आपको मालूम हो जायेगी, जब १३०० साल से इस्लाम आरम्भ हुआ तो उससे पहले नजात (मुक्ति) का क्या तरीका था ? नियम से इस बहस का कोई सम्बन्ध नही है | अगर मै बहस करना चाहू तो आर्य समाज के पचास व्यक्तियों पर आक्षेप कर सकता हू | लेकिन मै नियम से गिरूंगा नही | इसलिए आप भी कान खोल कर सुन लें अर्थात् पुन: याद दिलाता हूं कि बहस नियम के अंतर्गत ही करें | हमारा नियम यह है कि एक खुदा की परस्तिश (पूजा) हो | आप हमारे यहा खुदा की परस्तिश बताओं कहा होती है ? पांच वक्त की नमाज के विषय में, जकात देने के विषय में, अफ़सोस ! कि ये अधूरा सवाल रह गया, आदम का बहिश्त से गिरना, और सीढ़ी वगैरा का इस्लाम के नियम से कोई सम्बन्ध नही, आप अगर इस बात को यूं कहे कि “हम पूछते है” जब कल के नियमो में यह बातें तय हो गई कि बहस नियमान्तर्गत होगी, तो जो पांच नियम इस्लाम के तय हुए उनके अनुसार ही बहस करें | आदम को नमाज, रोजा, खाना, काबा और खुदा वगैरा से क्या ताल्लुक है ? मुझे सख्त अफ़सोस है | मै हर्गिज – हर्गिज जवाब नही दूंगा | प्रधान जी खड़े होकर इन्साफ करें |
पण्डित श्री कृपाराम जी शर्मा जगरानवी –
आपने नोट में लिखवा दिया था कि कुरान शरीफ को हम कलामे इलाही (खुदाई किताब ) मानते है, और जो व्यक्ति कुरान पर संदेह करता है, वह आपके ख्याल के अनुसार “काफिर” है | इस वास्ते कुरान शरीफ के सम्बन्ध उसूल से है, दुसर आदम के सिजदा के कुरान में होने से शर्क की बहस जारी है | जो पहले नियम से सम्बन्धित है | इस वास्ते आदम के मुताल्लिक बहस करना नियम के खिलाफ नही है | मौलवी साहब कल बावजूद इस बात के बता देते कि वैदिक धर्म के मानने वाले वेद और शास्त्र के प्रमाण मानेंगे लेकिन आपने खिलाफ नियम वेद और शास्त्र छोड़कर तवारीख का सबूत माँगा था | जो कि बिल्कुल नियम विरुद्ध था | मै पूछता हूं यह कहा का इन्साफ है ?
मौलवी श्री अबुलफरह साहब पानीपती-
मैंने कल अपने बयान में पांच उसूल कुरान के लिखवा कर कहा था कि कुरान के अंदर यह नियम इस्लाम के है, अगर उसके भेजे हुए, रसूल, रोजा, नमाज, जकात, और हज्ज ये पांच को जो न माने वह काफिर है | अगर किस्सों पर बहस की जावे तो इस हिसाब से कुरान में मूसा का किस्सा भी तथा औरो का भी है | आदम के किस्से का और हमारी नजात (मुक्ति) से कोई ताल्लुक नही | वेद में हर एक ज्ञान का जिकर है, अगर बहस की जावे तो मै सब लोगो के सामने ये कहता हूँ कि वेद जिसको ईश्वरकृत मानते हो तो पहले उनके “मन्त्र ईश्वरकृत है” इसका प्रमाण दो | जिसमे थोड़ी भी समझने की बुद्धि होगी वह जान लेगा कि आदम के किस्से से इसका क्या सम्बन्ध है ? किस्से तो “ईसा,मरियम,नूह,जिकरिया,मूसा” सबके है, ये मै भी जानता हूँ, और यह बहस फरुआत(विषय से बाहर) से है | एक खुदा की इबादत कुरान शरीफ के खिलाफ साबित कीजिये तो मै निहायत ख़ुशी से उस पर गौर करके आपको जवाब देने को तैयार हूँ | जब कुरान या वेद का सबूत दिया जावे तो उसके साथ तवारीख का सबूत जरूरी देना होगा | अग्नि ,वायु, आदित्य, अंगिरा का जमाना, वेद का सिलसिला, आदि के साथ तवारीखी सबूत दो, हम भी कुरान से इसी से सम्बन्धित प्रश्न के जवाब में तवारीख सहित जवाब देंगे, आप अकली, नकली, या दलीली, कोई तो सबूत दीजिये जनाब !
पण्डित श्री कृपाराम जी शर्मा जगरानवी –
आपने पहले दिन आर्य समाज के नियम पर बहस नही की थी, बल्कि उसूलों के बजाय वेदों पर बहस की थी, इसलिए पांच कुरान के नियम आपने बतलाये इस वास्ते केवल कुरान पर ही बहस की गई है | क्योंकि जो पांचो का मूल है मूल के गलत हो जाने से सब उसूल गलत हो जायेंगे | चूंकि नमाज में सजदा होता है, और फरिश्तों को भी आदम के लिए सजदा करने का आदेश दिया गया है | ये मै भी जानता हूं कि यह किस्सा पुराना है लेकिन इसका उसूल से ताल्लुक है, क्योंकि जैसे इबलीस ने आदम को सजदा नही किया तो वह काफिर हो गया, लेकिन अगर सजदा करने का हुक्म अल्लाह की तरफ से न होता सिर्फ किस्सा ही होता तो उसका उसूल से ताल्लुक न होता, लेकिन खुदा, खुद सिजदा का हुक्म दे, और सिजदा न करने वाले को सजा दे, जिस तरह सरकार किसी फेल के न मानने पर सजा दे तो वह फेल सरकार का हुक्म माना जाता था, और जो खुदा का हुक्म है वही उसूल है यानी “कसमों से शर्क साबित नही किया था, बल्कि ये कहा था जो शख्स “कसमें खाता है” वो खुदा कैसे हो सकता है” ? खुदाबंद करीम कसमें खाकर यकीन दिलाने वाला “खुदा नही हो सकता” | क्योंकि कहा भी है ? कि “कसम खुर्दन खुदरा कसम साख्तन् अस्त” कसम खाना अपने आप को संदेह युक्त सिद्ध करना है | खुदा को किसी कसम खाने की जरूरत ही नही वो हर एक दिल में जिस ख्याल को चाहे डाल कर यकीन दिला सकता है |
आप सबको मालूम हो गया होगा कि किसी विद्वान को “कसम” (शपथ) उठाकर समझाने की जरूरत नही होती वह तो दलीलों से समझा सकता है | आपने जो ऋषियों पर वेद के इलहाम होने और पैगम्बरों के आने का मुकाबला किया ये ठीक नही है | क्योंकि वेदों में यह नही लिखा कि फरिश्ते पैगाम लेकर आये बल्कि वहा पर परमेश्वर के हर जगह मौजूद होने से उन ऋषियों की आत्मा में जो परमात्मा सर्वव्यापक है उन्ही से उपदेश मिला, यह बतलाया गया है | इस वास्ते जो शख्स पैगाम लाने का दावेदार है उसके लिए यह जरूरी है कि पहले खुदा ओर इंसानों के बीच फासला का होना साबित करें | मौलवी साहब मेरे सवाल का जवाब दें कि मौलवी की जरूरत क्यों हुई ? जब तक खुदा और इंसान के बीच कोई दुरी न मालूम हो जावे तब तक पैगम्बर की जरूरत नही साबित हो सकती है ? मैंने जो १३०० वर्ष से इस्लाम की बुनियाद बतलाते हुए कहा था कि उनसे पहले किन उसूलों की पैरवी से इंसानों की निजात होती थी | और जो उसूले निजात खुदा की तरफ से जारी थे वो उसूल कुरान शरीफ के मुआफिक थे या नही ? ओर उन उसूलों में क्या कमी थी ? जिसको कुरान ने आकर पूरा किया | उसका सम्बन्ध कुरान के साथ है | और जब तक उन किताबों से जो ईसा, दाऊद, पर उतरी थी, वह क्यों मनसूख हुई | और जिस खुदा ने अपना हुक्म तीन बार रद्द किया हो उसका अभी भी क्या सबूत है कि वह कुरान रद्द न करेगा ? इसका जवाब मौलवी साहब ने बिलकुल नही दिया, बल्कि उनके बार बार के अफसोसो से पता चलता है कि सवालों का जवाब अफ़सोस से देते है | मुझे शख्त अफ़सोस है कि मेरे बहुत से सवालों का जवाब छोडकर अपने दावें में एक भी सबूत न देते हुए अफ़सोस ही अफ़सोस करते है | उनके दिल की इस फिलिंग (महसूसियत) जो कि जवाब न देने से जाहिर हुआ, देखा जावे तो वह खुद जाहिर करता है, अगर कुरान की इन आयतों को जितमें शर्क को मना किया है, मान लिया जावे | और जिन आयतों में आदम को सिजदा का हुकम हैं उन्हें भी मान लिया जावे तो मुतजाद हुकुम के होने से कुरान को खुदाई होने में और उससे कभी वाकया होता है, कि वह स्वयं ही अपनी बात को आप ही काटता है | यह कि कोई शख्स अपने अजीज की कसम खाये तो क्या हर्ज है ? लेकिन कुरानी खुदा ने तो दौड़ने वाले घोडों की कसम और जमीन व उसके बिछाने वाले आदि ऐसी बहुत सी चीजों की कसम खाई है जिसको मौलवी साहब खुदा का अजीज साबित नही कर सकते है |
और जमीन को बिछाने वाला सिवाय खुदा के अन्य कोई दूसरा नही | फिर खुदा होते हुए उसे जमीन से बिछाने वाले से क्या प्रयोजन है ? और साथ ही यह भी लिखा है कि “कसम खाने वाले का ऐतबार नही होता है” बशर्ते वो दलील हो, जो बहुत मक्कार है और मकर करने की आदत रखा है उसके जलील होने में क्या शक है ? क्योंकि मकर के वास्ते दफा ४७१ नियत है, इसलिए जो दंगा फरेब करता है उसकी सदाकत किसी चीज़ से साबित नही हो सकती है | और कुरानी खुदा ने सच्चाई के वास्ते खुद की कसम खाई है जो कि कुरान से ही काबिल साबित नही होती है | इसलिए मौलवी साहब का दावा अकीली दलील से, जिससे मुद्दल्लित करके दिखाना चाहिए गिरा हुआ है |
मौलवी साहब से यह मेरा सवाल है कि आप किसी प्रमाणिक तवारीख से यह सबूत दें कि आदम कितने दिनों तक बहिश्त में रहे ? और जब बहिश्त से गिराए गये तब किस सन और किस तारीख को गिराये गये ? और जब बहिश्त से हजरत गिरे थे तब उनकी उम्र क्या थी ? और बहिश्त जिससे हजरत आदम गिराये गये थे जमीन पर थी या आसमान पर ? और गिरते समय वे किसी सीढ़ी के द्वारा गिर थे या उन्हें ऐसे ही धकेल दिया था ? इसका प्रमाण आप किसी प्रमाणिक पुस्तक से दीजिये | सिर्फ ,मुसलमानों की लिखी किताब सबूत के काबिल नही मानी जावेगी |
नोट –
इस पर आज का दिन भी समाप्त हो गया और अगले दिन मौलवी साहब ने वेदों पर एतराज किया | और उस रोज अन्त में यह बात भी तय हो गई कि अगले रोज से –“वेद के इलाहमी किताब होने पर” बहस की जावेगी, यह बात आमतौर पर सभी श्रोताओं के सामने तय हो गई | और उसके अनुसार मौलवी साहब ने वेदों के ईलाहमी होने के बात बहस की | और इस बात का प्रमाण माना कि ईलाहमी पुस्तक में क्या प्रमाण होना चाहिए ? और यह भी जिस कदर मौलवी साहब से हो सका वेदों के विषय में बहस की गई, जिसे श्रोतागण तारीख की बहस से अच्छी तरह मालूम कर सकते है | लेकिन जिस दिन मौलवी साहब से कुरान की छानबीन करने का निश्चय हुआ था, उस दिन उन्होंने इजाजत ही न दी, जिससे आमजनता का मालूम हो गया था कि मौलवी साहब कहा तक हक पसंद थे ? या उन्होंने जिद की, अगचे मौलवी साहब ने लिखवाया था कि –“ये काम जिद का नही इन्साफ है” और और आर्य समाज ने आरम्भ से ही तहकीकात को ही मद्देनजर रखते हुए नियमो के अनुकूल बहस मंजूर की लेकिन मौलवी साहब ने अपने नियमो को खुद तोड़ दिया, और तहकीकात से किनारा किया | उसका हाल वहा उपस्थित सभी सज्जनों को मालूम है | इस वास्ते ज्यादा कहने की आवश्यकता नही है |
प्रधान –
“जमनादास विश्वास”(वकील)
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