वेद - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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02 August, 2021

वेद

 चार वेद हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद।

ऋग्वेद– इसमें 10 मण्डल तथा 1028 सूक्त हैं। इसमें श्लोकों की कुल संख्या 10552है।

यजुर्वेद– इसके दो भाग है- शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजर्वेद।

सामवेद – इसमें 1549 ऋचायें हैं, इसमें मात्र 78 नयी हैं और अन्य ऋग्वेद से ली गर्इ है।

अथर्ववेद– इसमें 20 काण्ड, 731 सूक्त तथा 5987 मंत्रों का संग्रह है। इसमें लगभग 1200 मंत्र ऋग्वेद से लिये गये है।

वेद

ऋग्वेद का रचना काल 1500 र्इ. पू. से 1000 र्इ.पू. तक माना जाता है।

ऋग्वेद में 33 देवताओं का उल्लेख है।

यदु और तुर्वशी ऋग्वेद के प्रधान जन थे, जिन्हें इन्द्र  कहीं दूर से लाये थे।

कर्इ ऋषाओं में यदु का विशेष सम्बन्ध पशु से जो नाम पर्शिया के प्राचीन निवासियों का था स्थापित किया गया है।

इन्द्र के उपासक दो प्रतिद्वन्द्वी दलों में विभक्त थे, एक में सृजय और इनके मित्र भरत जन थे। दूसरे दल में यदु, तुर्वश, अनु, दह्यु और पुरू नाम के जन थे।

शम्बर नामक दासों के सरदार से लड़ने का श्रेय दिवोदास को है।

अष्टम में आठ मन्त्र और मण्डल ,में दस मन्त्र होते हैं। ऋग्वेद के पुराने मंत्र प्रधानत: मण्डल कण्व व अंगिरा से रचित है।

वैदिक आचार-विचार में यज्ञ का प्रधान स्थान था।

ऋग्वेद में यमुना का प्रयोग तीन बार व गंगा, सरयू का प्रयोग एक बार हुआ है। ऋग्वेद में जन शब्द का उल्लेख 275 बार हुआ है।

वेदब्राह्मणउपवेद
ऋग्वेदऐतरेय, कौषीतकिआयुर्वेद
यजुर्वेदशतपथधनुर्वेद
सामवेदपंचविश (ताण्ड्य)गन्धर्व वेद
अथर्ववेदगोपथअर्थवेद या शिल्पवेद
संहितायज्ञ कराने वालाकार्य
1-  ऋग्वेदहोता (होतृ)देवताओं को यज्ञ में बुलाना और ऋचाओं का पाठ करते हुए देवों की स्तुति करना।
2-  यजुर्वेदअध्वर्यु
3-  सामवेदउद्गाताऋचाओं का सस्वर गान करना
4-  अथर्ववेदब्रह्मायज्ञ का पूरा निरीक्षण करना जिससे कोर्इ त्रुटि न रहे।
ऋग्वेद के प्रथम और अंतिम मंडल (अर्थात् दशम् मंडल) को क्षेपक माना जाता है।
आक्रमण अथवा उसकी सम्भावना होने पर, अपने धन-जन की रक्षा हेतु, आर्य विशिष्ट प्रकार से बने हुए दुर्गों में शरण लेते थे। इन्हें पुर कहते थे। इन दुर्गों के अतिरिक्त आर्यों के ग्राम भी कभी-कभी दीवारों अथवा खाइयों से संरक्षित रहते थे।
युद्ध के किए राजा के पास सेना होती थी। इनकी सेना में रथारोही रथों पर चढ़कर लड़ते थे, जबकि साधारण सैनिक पैदल लडते थे।
ऋग्वेद में रथारोहियों का उल्लेख नहीं मिलता।
युद्ध में हाथियों का प्रयोग अभी तक अप्रचलित था।
सेना का सर्वोच्च पदाधिकारी स्वयं राजा होता था। युद्ध के अवसर पर वह सेना का नेतृत्व करता था।
युद्ध प्रमुखतया धनुष-बाण से होता था। दो प्रकार के तीर काम में लाये जाते थे- एक विषाक्त और सींग के मुखवाला और दूसरा तांबे या लोहे के मुख वाला।
ऋग्वैदिक काल के अन्याय आयुधों में बरछी भाला, फरसा और तलवार उल्लेखनीय है। ऋग्वेद में कहीं-कहीं पर पुर चरिष्णु का उल्लेख मिलता हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि ये दुर्गों को गिराने के लिए इंजन थे।

तीन ऋण थे
1ऋषिप्राचीन ज्ञान, विज्ञान व साहित्य के प्रति कर्तव्य
2पितृऋणपूर्वजों के प्रति कर्तव्य
3देव ऋणदेवताओं व भौतिक शक्तियों के प्रति दायित्व

वरूण– आकाश जल, समुद्र।

विष्णु– संसार का संरक्षक।

इन्द्र – आँधी, तूफान, बिजली और वर्षा।

उषा– यह प्रकृति की एक अन्य शक्ति का दैवीकरण था।

अदिति– आर्यों की सार्वभौम भावना की देवी है। ये दोनो देवियाँ प्रभात समय के प्रतिरूप है।

मरुत– आंधी के देवता।

सोम– वनस्पतियों का अधिपति।

इस ऋग्वेद से सब पदार्थों की स्तुति होती है अर्थात् ईश्वर ने जिसमें सब पदार्थों के गुणों का प्रकाश किया है, इसलिये विद्वान् लोगों को चाहिये कि ऋग्वेद को प्रथम पढ़के उन मन्त्रों से ईश्वर से लेके पृथिवी-पर्य्यन्त सब पदार्थों को यथावत् जानके संसार में उपकार के लिये प्रयत्न करें। ऋग्वेद शब्द का अर्थ यह है कि जिससे सब पदार्थों के गुणों और स्वभाव का वर्णन किया जाय वह ‘ऋक्’ वेद अर्थात् जो यह सत्य सत्य ज्ञान का हेतु है, इन दो शब्दों से ‘ऋग्वेद’ शब्द बनता है। ‘अग्निमीळे’ यहां से लेके ‘यथा वः सुसहासति’ इस अन्त के मन्त्र-पर्यन्त ऋग्वेद में आठ अष्टक और एक एक अष्टक में आठ आठ अध्याय हैं। सब अध्याय मिलके चौसठ होते हैं। एक एक अध्याय की वर्गसंख्या कोष्ठों में पूर्व लिख दी है। और आठों अष्टक के सब वर्ग 2024 दो हजार चौबीस होते हैं। तथा इस में दश मण्डल हैं। एक एक मण्डल में जितने जितने सूक्त और मन्त्र है सो ऊपर कोष्ठों में लिख दिये हैं। प्रथम मण्डल में 24 चौबीस अनुवाक, और एकसौ इक्कानवे सूक्त, तथा 1976 एक हजार नौ सौ छहत्तर मन्त्र। दूसरे में 4 चार अनुवाक, 43 तितालीस सूक्त, और 429 चार सौ उन्तीस मन्त्र। तीसरे में 5 पांच अनुवाक, 62 बासठ सूक्त, और 617 छः सौ सत्रह मन्त्र। चौथे में 5 पांच अनुवाक 58 अठ्ठावन सूक्त, 589 पांच सौ नवासी मन्त्र। पांचमें 6 छः अनुवाक 87 सतासी सूक्त, 727 सात सौ सत्ताईस पैंसठ मन्त्र। 6 छठे में छः अनुवाक, 75 पचहत्तर सूक्त, 765 सात सौ पैंसठ मन्त्र। सातमे में 6 छः अनुवाक, 104 एकसौ चार सूक्त, 841 आठ सौ इकतालीस मन्त्र। आठमे में 10 दश अनुवाक, 103 एकसौ तीन सूक्त, और 1726 एक हजार सातसौ छब्बीस मन्त्र। नवमे में 7 सात अनुवाक 114 एकसौ चौदह सूक्त, 1097 और एक हजार सत्तानवे मन्त्र। और दशम मण्डल में 12 बारह अनुवाक, 191 एकसौ इक्कानवे सूक्त, और 1754 एक हजार सातसौ चौअन मन्त्र हैं। तथा दशों मण्डलों में 85 पचासी अनुवाक, 1028 एक हजार अठ्ठाईस सूक्त, और 10589 दश हजार पांचसौ नवासी मन्त्र हैं।

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