ঋগ্বেদ ১/১৬২/৩ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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স্বাগতম

22 August, 2019

ঋগ্বেদ ১/১৬২/৩

 देवता: मित्रादयो लिङ्गोक्ताः ऋषि: दीर्घतमा औचथ्यः छन्द: निचृज्जगती स्वर: निषादः

ए॒ष च्छाग॑: पु॒रो अश्वे॑न वा॒जिना॑ पू॒ष्णो भा॒गो नी॑यते वि॒श्वदे॑व्यः।

अ॒भि॒प्रियं॒ यत्पु॑रो॒ळाश॒मर्व॑ता॒ त्वष्टेदे॑नं सौश्रव॒साय॑ जिन्वति ॥-ऋग्वेद १.१६२.३

ঋগ্বেদ ১/১৬২/৩

अन्वय:- हे विद्वन् येन पुरुषेण वाजिनाऽश्वेन सह एष विश्वदेव्यः पूष्णो भागः छागः पुरो नीयते यद्यस्त्वष्टा सौश्रवसायार्वतैनमभिप्रियं पुरोडाशमिज्जिन्वति स सुखी जायते ॥

पदार्थान्वयभाषाः -हे विद्वान् ! जिस पुरुष ने (वाजिना) वेगवान् (अश्वेन) घोड़ा के साथ (एषः) यह प्रत्यक्ष (विश्वदेव्यः) समस्त दिव्य गुणों में उत्तम (पूष्णः) पुष्टि का (भागः) भाग (छागः) छाग (पुरः) पहिले (नीयते) पहुँचाया वा (यत्) जो (त्वष्टा) उत्तम रूप सिद्ध करनेवाला जन (सौश्रवसाय) सुन्दर अन्नों में प्रसिद्ध अन्न के लिये (अर्वता) विशेष ज्ञान के साथ (एनम्) इस (अभिप्रियम्) सब ओर से प्रिय (पुरोडाशम्) सुन्दर बनाये हुए अन्न को (इत्) ही (जिन्वति) प्राप्त होता है, वह सुखी होता है ॥ ३ ॥

भावार्थभाषाः -जो मनुष्य घोड़ों की पुष्टि के लिये छेरी का दूध उनको पिलाते और अच्छे बनाये हुए अन्न को खाते हैं, वे निरन्तर सुखी होते हैं ॥ -स्वामी दयानन्द सरस्वती

[jo manushy ghodon kee pushti ke liye chheree ka doodh unako pilaate aur achchhe banaaye hue ann ko khaate hain, ve nirantar sukhee hote hain]






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