ঋগ্বেদ ১০/১১৪/৫ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম বিষয়ে জ্ঞান, ধর্ম গ্রন্থ কি , হিন্দু মুসলমান সম্প্রদায়, ইসলাম খ্রীষ্ট মত বিষয়ে তত্ত্ব ও সনাতন ধর্ম নিয়ে আলোচনা

धर्म मानव मात्र का एक है, मानवों के धर्म अलग अलग नहीं होते-Theology

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স্বাগতম

26 August, 2021

ঋগ্বেদ ১০/১১৪/৫

 देवता: विश्वेदेवा: ऋषि: सध्रिर्वैरुपो धर्मो वा तापसः छन्द: त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः

सु॒प॒र्णं विप्रा॑: क॒वयो॒ वचो॑भि॒रेकं॒ सन्तं॑ बहु॒धा क॑ल्पयन्ति ।

 छन्दां॑सि च॒ दध॑तो अध्व॒रेषु॒ ग्रहा॒न्त्सोम॑स्य मिमते॒ द्वाद॑श ॥ऋग्वेद0 १०.११४.५[rig 10/114/5]

पद पाठ

सु॒ऽप॒र्णम् । विप्रा॑ । क॒वयः॑ । वचः॑ऽभिः । एक॑म् । सन्त॑म् । ब॒हु॒धा । क॒ल्प॒य॒न्ति॒ । छन्दां॑सि । च॒ । दध॑तः । अ॒ध्व॒रेषु॑ । ग्रहा॑न् । सोम॑स्य । मि॒म॒ते॒ । द्वाद॑श ॥ 

पदार्थान्वयभाषाः -(विप्राः) परमात्मा को विविध स्तुतियों से अपने अन्दर पूर्ण करनेवाले-धारण करनेवाले (कवयः) मेधावी जन (वचोभिः) स्तुतिवचनों के द्वारा (सुपर्णम्) शोभन पालनकर्त्ता (एकं सन्तम्) एक होते हुए को (बहुधा कल्पयन्ति) बहुत प्रकार से या बहुत नामों से मानते हैं या वर्णन करते हैं (छन्दांसि च) और गायत्र्यादि छन्द भी (अध्वरेषु) यज्ञों में (दधतः) धारण-करते हुए (सोमस्य) सोम के चन्द्रमा के (द्वादश ग्रहान्) चैत्रादि बारहमासों को (मिमते) मानरूप से करते हैं जैसे, उसी प्रकार आनन्दरसरूप सोम परमात्मा के द्वादश मासों के निर्माता धर्म के अनुरूप स्मरण करने योग्य होने से या स्मरण के साधन होने से द्वादश ग्रहों-आनन्दरस को ग्रहण करने के पात्रों आत्मा, मन, बुद्धि, चित्त, अहङ्कार, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ वाक् और प्राण मानते हैं ॥

भावार्थभाषाः -परमात्मा के स्वरूप को अपने अन्दर धारण करनेवाले मेधावी स्तोता जन उस एक परमात्मा को अनेक प्रकार से या अनेक नामों से वर्णित करते हैं या मानते हैं, गायत्र्यादि छन्द यज्ञों में उसका वर्णन करते हैं, चन्द्रमा जैसे चैत्र आदि बारह मासों में ग्रहण किया जाता है, ऐसे ही सोमरूप परमात्मा के ग्रहणपात्र स्मरण करने के स्थान बारह हैं, जो कि आत्मा, मन, बुद्धि, चित्त, अहङ्कार पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ वाणी और प्राण हैं ॥-ब्रह्ममुनि

[paramaatma ke svaroop ko apane andar dhaaran karanevaale medhaavee stota jan us ek paramaatma ko anek prakaar se ya anek naamon se varnit karate hain ya maanate hain, gaayatryaadi chhand yagyon mein usaka varnan karate hain, chandrama jaise chaitr aadi baarah maason mein grahan kiya jaata hai, aise hee somaroop paramaatma ke grahanapaatr smaran karane ke sthaan baarah hain, jo ki aatma, man, buddhi, chitt, ahankaar paanch gyaanendriyaan vaanee aur praan hain .]


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