किं दे॒वेषु॒ त्यज॒ एन॑श्चक॒र्थाग्ने॑ पृ॒च्छामि॒ नु त्वामवि॑द्वान् ।
अक्री॑ळ॒न्क्रीळ॒न्हरि॒रत्त॑वे॒ऽदन्वि प॑र्व॒शश्च॑कर्त॒ गामि॑वा॒सिः ॥
ऋग्वेद0 १०.७९.६
देवता: अग्निः ऋषि: अग्निः सौचीको, वैश्वानरो वा, सप्तिर्वा वाजम्भरः छन्द: विराट्त्रिष्टुप् स्वर: धैवतः
पदार्थान्वयभाषाः -(अग्ने) हे अग्रणायक परमात्मन् ! तू (देवेषु) जीवन्मुक्त विद्वानों में (त्यजः-एनः) क्रोध तथा पाप (किं चकर्थ) क्या करता है? अर्थात् नहीं करता है (नु-अविद्वान् त्वां पृच्छामि) अविद्वान् होता हुआ तुझ से पूछता हूँ (अक्रीडन् क्रीडन् हरिः) न जानता हुआ या जानता हुआ तू संहर्ता (अत्तवे-अदन्) अपने में ग्रहण करने के लिए ग्रहण करता हुआ (असिः) द्राँती (पर्वशः) टुकड़े-टुकड़े कर (गाम्-इव) अन्न के पौधे को जैसे (विचकर्त) छिन्न-भिन्न कर देती है ॥
पदार्थान्वयभाषाः -(अग्ने देवेषु किं त्यजः-एनः-चकर्थ) हे अग्रणायक परमात्मन् ! देवेषु विद्वत्सु जीवन्मुक्तेषु कथं क्रोधः “त्यजः क्रोधनाम” निघं० (२।१३) तथा पापं न करोषि न कथमपीत्यर्थः (नु-अविद्वान् त्वां पृच्छामि) पुनस्त्वामहमविद्वान् पृच्छामि (अक्रीडन् क्रीडन् हरिः-अत्तवे-अदन्) अजानन्, जानन् संहर्ता स्वस्मिन् ग्रहणाय गृह्णन् सन् (असिः पर्वशः-गाम्-इव विचकर्त) यथा दात्रमन्नतरुम् “अन्नं वै गौः” [श० ४।३।४।२५] प्रतिपर्व छिनत्ति ॥
भावार्थभाषाः -परमात्मा जीवन्मुक्त विद्वानों के निमित्त कोई क्रोध या अहित कार्य नहीं करता है। इस बात को अविद्वान् नहीं जान सकता, किन्तु वह जो संसार में जन्मा है, लीलया उसका संहार करके अपने में ले लेता है प्रत्येक अङ्ग का विभाग करके ॥[ब्रह्ममुनि]
ভাবার্থ - পরমাত্মা জীবনমুক্ত বিদ্বানদের জন্য কোন ক্রোধ বা ক্ষতি করেন না। অজ্ঞরা এই বিষয়ে জানতে পারে না, কিন্তু যিনি পৃথিবীতে জন্মগ্রহণ করেন, তিনি (পরমাত্মা) এটিকে ধ্বংস করেন এবং প্রতিটি অঙ্গকে ভাগ করে নিজের মধ্যে নেন।
-Pandit Harisharan Siddhalankar
No comments:
Post a Comment
ধন্যবাদ