যস্মাত্র ঋতো বিজযন্তে জনাসো য যুধ্যমানা অবসে হবন্তে।
যো বিশ্বস্য প্রতিমান বভুব যো অচ্যুতচ্যুত্ জনাস ইন্দ্রঃ।। ঋগ্বেদ০২।১২।৯
-যা পদার্থবিদ্যা দ্বারা জানা যায় সেসবের আদিমূল পরমেশ্বর। যিনি পরমেশ্বরের উপাসনা করেন না, যিনি পদার্থবিদ্যা বজ্রপাতের বিজ্ঞান জানেন না তিনি ঈশ্বর কে সম্পূর্ণ জানতে পারেন না এবং তিনি বিজয়শীল হন না।
यस्मा॒न्न ऋ॒ते वि॒जय॑न्ते॒ जना॑सो॒ यं युध्य॑माना॒ अव॑से॒ हव॑न्ते।
यो विश्व॑स्य प्रति॒मानं॑ ब॒भूव॒ यो अ॑च्युत॒च्युत्स ज॑नास॒ इन्द्रः॑॥
[ऋग्वेद0 मण्डल:2 सूक्त:12 मन्त्र:9]
पदार्थान्वयभाषाः -हे (जनासः) मनुष्यो ! (जनासः) विद्वान् जन (यस्मात्) जिससे (ते) विना (न) नहीं (विजयन्ते) विजय को प्राप्त होते हैं (यम्) जिसको (युध्यमानाः) युद्ध करते हुए (अवसे) रक्षा आदि के लिये (हवन्ते) ग्रहण करते हैं (यः) जो (विश्वस्य) संसार का (प्रतिमानम्) परिमाणसाधक (यः) जो (अच्युतच्युत्) स्थिर पदार्थों को चलानेवाला (बभूव) होता (सः) वह (इन्द्रः) परमैश्वर्यवान् परमेश्वर है, यह जानना चाहिये ॥
भावार्थभाषाः -इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जो परमेश्वर की उपासना नहीं करते, बिजुली की विद्या को नहीं जानते, वे विजयशील नहीं होते। जो यह विश्व और जो सब पदार्थों का रूपमात्र है, वह परमेश्वर और बिजुली का विज्ञान करानेवाला है ॥-स्वामी दयानन्द सरस्वती
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