ईश्वर अस्तित्व के पक्ष में सामान्य तर्क
जब भी किसी भी आस्तिक को आप पूछेंगे कि ईश्वर का अस्तित्व कैसे है ? क्या प्रमाण है कि ईश्वर है तब एक सामान्य आस्तिक व्यक्ति आपको कहेगा
दुनिया में कोई भी वस्तु बिना किसी के बनाये नहीं बनती , इसलिए इस ब्रम्हांड को भी किसी ने बनाया है और वह बनाने वाला ही ईश्वर है |
तब एक नास्तिक व्यक्ति झट से कहेगा कि फिर ईश्वर को किसने बनाया ? जिसका जवाब आस्तिक नहीं दे पाता क्यों कि वह अपने तर्क को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं करता और आसान से तर्क को बड़ी उलझन बना बैठता है , वह कौनसी गलती करता जानने के लिए देखिये इस तर्क सही स्वरूप क्या है ?
वास्तविक तर्क
वास्तव में यह सामान्य तर्क अपने आप में काफी विशेष है , इस तर्क का सही स्वरुप यह है , तर्क कहता है
दुनिया में कोई भी बनी हुयी वस्तु बिना किसी के बनाये नहीं बनती , ब्रम्हांड निर्मित वस्तु है इसलिए उसका कोई निर्माता भी है |
अब नास्तिक पूछता है कि फिर ईश्वर को किसने बनाया ? आस्तिक कहता है –
जो वस्तु निर्मित है , बनी हुयी है उसे बनाने वाला होता है , जो निर्मित नहीं उसे कोई बनाने वाला नहीं होता , ब्रम्हांड निर्मित वस्तु है अतः उसका कोई निर्माता भी है |
देखिये एक छोटी सी गलती होने पर एक प्रबल तर्क दुर्बल दिखने लगता है , नास्तिकों के प्रिय सवाल ईश्वर को किसने बनाया के अनेकों जवाब दिए जा सकते है लेकिन यहाँ पर विषय यह नहीं है , इसके लिए नीचे दिया गया आर्टिकल पढ़े
ईश्वर अस्तित्व पर विशेष तर्क
तो आइये अब हम ईश्वर अस्तित्व के संबंध में कुछ विशेष तर्कों को देखते है , ईश्वर अस्तित्व के संबंध में महर्षि दयानन्द ने अपने ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में यह तर्क दिया है जो कि अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है –
किसी भी वस्तु का अस्तित्व उसके गुणों से पता चलता है , गुणी की सत्ता गुणों से होती है , जैसे अग्नि का अस्तित्व उसके गुणों से प्रमाणित होता है , अग्नि में प्रकाश और तेज आदि गुण होने से उसके अस्तित्व का पता चलता है इसी तरह दुनिया में अनेकों वस्तुओं का अस्तित्व उनके गुणों से ही पता चलता है , उदाहरण के लिए हवा दिखाई नहीं देती लेकिन हम उसे स्पर्श कर सकते है , इसलिए उसमे स्पर्श का गुण होने से यह प्रमाणित होता है कि उसका अस्तित्व है , नमक, चीनी , गुड़ में स्वाद होने से उनके अस्तित्व का पता चलता है |
मान लीजिये कोई आपको चीनी देकर कहे कि ये नमक है , तब आप चखकर देखते हो तो आपको मीठापन महसूस होता है , आप कहते है ये नमक नहीं चीनी है , यानि कि जिस वस्तु को आपने चखा उसमे नमक के गुणों का नहीं बल्कि चीनी के गुणों का अस्तित्व है जिस से यह प्रमाणित हो गया कि यह अमुक वस्तु चीनी है , इसलिए हर वस्तु का अस्तित्व उसके गुणों से होता है |
कौनसे गुण ईश्वर को प्रमाणित करते हैं ?
अब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जिस तरह चीनी का गुण मीठापन है , अग्नि का गुण तेज और प्रकाश आदि है इसी तरह ईश्वर के वे कौनसे गुण है जिनसे उसका अस्तित्व साबित होता है ?
जिस तरह चीनी में मिठास है , इमली में खटास है , अग्नि में प्रकाश , वायु में स्पर्श और जल में गीलापन है उसी तरह ईश्वर तत्व में चेतनता है , ज्ञान है , बल है ,दया है , न्याय है | इस तरह ईश्वर तत्व में अनेकों गुण है |
लेकिन अभी सोच रहे होंगे कि जैसे हम मिठास को जानकर चीनी का पता कर लेते है , उसी तरह ईश्वर के इन गुणों को हम कैसे पता कर सकते है और जब हम ईश्वर के इन गुणों को महसूस नहीं कर सकते तब ईश्वर का अस्तित्व कैसे साबित होता है ?
ईश्वर के गुणों का कैसे पता चला ?
वायु को हम स्पर्श से जान सकते है , चीनी को हम चखकर जान सकते है तो भला ईश्वर को जब हम किसी भी इन्द्रिय से नहीं जान सकते तो कैसे प्रमाणित हुआ कि ईश्वर है ?
ईश्वर को न चख सकते हैं
न सूंघ सकते है
न छू सकते हैं
न सुन सकते हैं और
न देख सकते हैं
फिर तो ईश्वर का कोई अस्तित्व ही नहीं है ?
जवाब
ईश्वर का गुण है ज्ञान , जिस तरह किसी लेखक को जब आप पढ़ते हो तब उसे आप किसी भी इन्द्रिय से प्रत्यक्ष नहीं कर सकते लेकिन उस लेखक कि बुद्धि का दर्शन उसकी लेखनी में आपको हो जाता है , यानि आप अपनी बुद्धि से उस लेखक का प्रत्यक्ष करते हो , क्यों लेखक का लेख बुद्धिपूर्वक लिखा गया है इसलिए आप एक बुद्धिमान लेखक के अस्तित्व को स्वीकार करते हो , यदि उसका लेख मूर्खता पूर्ण है तब आप एक मूर्ख लेखक का अस्तित्व स्वीकार करते हो |
यहाँ आपने लेखक के गुणों का प्रत्यक्ष किसी भी इन्द्रिय से नहीं किया बल्कि अपनी बुद्धि से किया है , इसी तरह इस सम्पूर्ण ब्रम्हांड में सूक्ष्म से सूक्ष्म और बड़ी से बड़ी रचनाओं में उस ईश्वर की कला का दर्शन होता है , उसकी बुद्धि या उसके ज्ञान का दर्शन होता है , इसलिए एक सर्वज्ञ सत्ता का होना स्वीकार करना चाहिए |
ईश्वर में स्पर्श गुण नहीं है
रूप नहीं है |
रस नहीं है |
गंध नहीं है |
शब्द नहीं है |
जब ईश्वर में ये गुण नहीं है तब उसका प्रत्यक्ष हमारी इन्द्रियों से क्यों होगा भला ? शुरुआत में हमने एक उदाहरण दिया था कि एक व्यक्ति की कोई भी इन्द्रिय काम नहीं करती है , यदि वो संसार के गुणों को अपनी इन्द्रियों से प्रत्यक्ष नहीं कर सकता तो इस कारण वह संसार के अस्तित्व को नकार नहीं सकता |
यहाँ पर बात थोड़ी उल्टी होकर भी वही है , यानि इसे ऐसे समझिये की वहाँ पर बात Active थी तो यहाँ पर Passive तरीके से है , हमारी इन्द्रियां ख़राब नहीं है लेकिन जिन गुणों को हमारी इन्द्रिय महसूस(sense) कर सकती है उनमे से कोई गुण ईश्वर में नहीं है ,दोनों ही जगह गुणों का प्रत्यक्ष नहीं हो रहा तब सबसे पहले दिया गया उदाहरण यहाँ Passive तरीके से काम करता है , क्या हम उस उदाहरण की तरह ईश्वर के अस्तित्व को नकार सकते हैं ?
ईश्वर के सभी गुणों का प्रत्यक्ष कैसे हो ?
जिस तरह हम किसी लेखक की पुस्तक को पढ़कर उसके ज्ञान के अनुसार लेखक का अस्तित्व स्वीकार कर लेते है और उस लेखक से चाहे तो मिल भी सकते हैं जिस से उसके अन्य गुणों का प्रत्यक्ष भी हमें हो जाता है उसी तरह ईश्वर के सभी गुणों का प्रत्यक्ष कैसे होगा , यह एक स्वाभाविक प्रश्न है |
जैसे पानी को देखकर आप उसके विभिन्न गुणों का अनुमान लगा सकते है , वैज्ञानिक बुद्धि से पानी के बहुत सारी चीजों को जान सकते हैं लेकिन पानी को पीने पर ही उसका वास्तव स्वाद महसूस होता है , इसी तरह ईश्वर को प्राप्त करने पर ही ईश्वर के सभी गुणों का प्रत्यक्ष होता है , एक चेतन ही दूसरे चेतन को महसूस कर सकता है , इसी तरह ईश्वर को प्राप्त करके ही उसे पूर्ण रूप से जाना जा सकता है और उसके अस्तित्व का पूरा उपयोग लिया जा सकता है |
जिस प्रकार किसी भी वस्तु को जानने व प्राप्त करके उसका उपयोग लेने की वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है , उसी तरह ईश्वर को प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है , इस प्रक्रिया पर कभी और बात करेंगे , हाँ इतना जरूर कह दें की यह प्रक्रिया चमत्कार को नमस्कार करके बुद्धि बंद करने वाली नहीं बल्कि बुद्धि का पूर्ण प्रयोग करने वाली प्रक्रिया है , जिसमे पाखंड लेश मात्र भी नहीं है , इसलिए लेख को हम यही विराम देते है , आगे के विषयों पर बाद में लिखेंगे , ईश्वर के अस्तित्व पर आगे और भी नए लेख लिखे जायेंगे इसलिए आप हमारी website को Email से सब्सक्राइब कर सकते हैं | |
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आस्तिक नास्तिक संवाद
नास्तिक – ईश्वर नाम कि कोई चीज नहीं है , यदि ईश्वर है तो उसे किसने बनाया है ?
आस्तिक – मित्र ईश्वर को किसी ने नहीं बनाया है , बनाया उसे जाता है जिसमे बनावट हो ईश्वर निराकार है |
नास्तिक – ईश्वर जैसे कोई चीज नहीं है , ब्रम्हांड कि रचना के लिए ईश्वर कि कोई आवश्यकता नहीं है |
आस्तिक – मित्र , यदि ऐसा है तो ब्रम्हांड को किसने बनाया ?
नास्तिक – ब्रम्हांड अपने आप बन गया ?
आस्तिक – अपने आप बनाने से पूर्व यह कौन सी अवस्था में था ?
नास्तिक – यह कैसा प्रश्न है ?
आस्तिक – प्रश्न तो अभी शुरू होगा , बनाने से पहले कोई न कोई अवस्था में तो होगा ही ?
नास्तिक – हाँ किसी अवस्था में तो होगा |
आस्तिक – तो फिर उस अवस्था को किसने बनाया ?
नास्तिक – वह अवस्था अनादि(Beginningless) है उसे किसी ने नहीं बनाया ?
आस्तिक – जब आप कहते हैं कि ईश्वर को किसी ने बनाया होगा तो हमारा भी यही सवाल है , आप कैसे कह सकते हैं कि उस अवस्था को किसी ने नहीं बनाया है ?
नास्तिक – तुम बताओ – ब्रम्हांड कैसे बना ?
आस्तिक – कोई भी बनी हुयी वस्तु बिना किसी के बनाये नहीं बनती , ब्रम्हांड बना हुआ है उसे बनाने वाला ईश्वर है | ईश्वर ने उसे वैज्ञानिक नियमों के अनुसार बनाया है |
नास्तिक – ईश्वर को किसने बनाया ?
आस्तिक – इसका उत्तर पहले दे आये हैं , ईश्वर निराकार है इसलिए उसका कोई कलाकार(Creator) नहीं है |
नास्तिक – ईश्वर ने दुनिया को किस Material से बनाया ?
आस्तिक – प्रकृति यानि पदार्थ कि मूल अवस्था(Material Cause) से बनाया |
नास्तिक – उस मूल अवस्था को किसने बनाया ?
आस्तिक – मूल का कोई मूल नहीं होता , इसलिए उसको किसी ने नहीं बनाया , जिस वस्तु में संयोग होता है उसका कोई निर्माण करने वाला होता है , मूल अवस्था संयोगजन्य नहीं है इसलिए उसका कोई कर्त्ता(Creator) नहीं , ईश्वर भी संयोगजन्य नहीं है उसका भी कोई कर्त्ता(Creator) नहीं है | पदार्थ कि मूल अवस्था ऊर्जा का मूल रूप है , रूप में परिवर्तन होता लेकिन ये ऊर्जा न तो कभी पैदा होती है , न ही कभी नष्ट होती है |
नास्तिक – इसी तरह हमारी मूल अवस्था को किसी ने नहीं बनाया , और उस मूल अवस्था से ब्रम्हांड अपने आप बना |
आस्तिक – मित्र , आप ये सिद्ध नहीं कर पाए थे कि उसको किसी ने नहीं बनाया , बल्कि हमने इसे सिद्ध किया है , चलिए , अब आगे बताइये कि यदि ब्रम्हांड अपने आप कैसे बना ?
नास्तिक – सृष्टि नियमों के द्वारा अपने आप बना |
आस्तिक – नियम होंगे तो नियामक भी होगा , management होगा तो manager भी होगा , आप नियमों को मानते है तो नियम खुद तो नियामक यानि कि law maker or Ruler को सिद्ध करते है | आप बताइये नियमों को किसने बनाया ?
नास्तिक – नियम अनादि है , किसी ने नहीं बनाया |
आस्तिक – नियम अनादि है तो नियामक यानि कि ruler भी अनादि हुआ |
नास्तिक – नहीं , नियम ही अनादि है |
आस्तिक – चलिए कोई बात नहीं , नियम अनादि है तो उन नियमों को कैसे पता कि कब उन्हें लागु (Apply) होना है ?
नास्तिक – अपने आप लागु होते है ?
आस्तिक – क्या अपने आप लागु होना उन नियमों का स्वभाव(Nature or Property) है ?
नास्तिक – हाँ
आस्तिक – अपने आप लागू होंगे तो किसी एक समय नहीं होंगे , बल्कि हमेशा लागु होते रहेंगे |
नास्तिक – हाँ, तो ब्रम्हांड कभी बना नहीं , हमेशा से है , और नियम हमेशा से लागु रहे हैं |
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आस्तिक – चलिए अब आपकी थ्योरी बदल गयी है , बताइये ब्रम्हांड अनादि कैसे हो सकता है ? ब्रम्हांड में निरंतर विनाश देखने में आता है | सूर्य कि भी एक निश्चित आयु है , इस तरह हर वस्तु कि एक आयु है , सब कभी न कभी ख़त्म होंगे इसलिए ब्रम्हांड अनादि नहीं है |
नास्तिक – ब्रम्हांड ख़त्म नहीं होता बल्कि उसमे ग्रह , नक्षत्र ख़त्म होते रहते है , कही ग्रह नक्षत्र खत्म होते हैं तो कहीं उनका जन्म होता है इसलिए ब्रम्हांड अनादि है |
आस्तिक – ब्रम्हांड में ग्रहों का आधार उनका सूर्य होता है और सौर मंडलों का आधार गैलेक्सीज के बीच में black hole होता है इस तरह सबका कोई न कोई आधार है , तब सबका आधार भी कभी न कभी नष्ट होगा , क्यों कि संयोगजन्य वस्तु कभी अनादि नहीं हो सकती जैसे सूरज आदि नष्ट होते है वैसे सबका ,ग्रह, नक्षत्र का आधार black hole भी कभी न कभी नष्ट होगा , और संयोगजन्य होने से अनादि नहीं हो सकता है |
नास्तिक – हाँ – फिर सत्य क्या है , ब्रम्हांड कैसे बनता है ?
आस्तिक – इसके लिए वैदिक रश्मि थ्योरी पढ़ो समझ जाओगे |
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