देवता: इन्द्र: ऋषि: गोतमो राहूगणः छन्द: उष्णिक् स्वर: ऋषभः
কদা মর্ত্যমঅরাধসম্ পদা ক্ষুম্পমিব স্ফুরত।
কদা নঃ শুশ্রবদ্গির ইন্দ্রো অঙ্গ।।- [ঋগ্বেদ ১/৮৪/৮]
क॒दा मर्त॑मरा॒धसं॑ प॒दा क्षुम्प॑मिव स्फुरत्। क॒दा नः॑ शुश्रव॒द्गिर॒ इन्द्रो॑ अ॒ङ्ग ॥
पदार्थान्वयभाषाः -(अङ्ग) शीघ्रकर्त्ता (इन्द्रः) सभा आदि का अध्यक्ष (पदा) विज्ञान वा धन की प्राप्ति से (क्षुम्पमिव) जैसे सर्प्प फण को (स्फुरत्) चलाता है, वैसे (अराधसम्) धनरहित (मर्त्तम्) मनुष्य को (कदा) किस काल में चलावोगे (कदा) किस काल में (नः) हमको उक्त प्रकार से अर्थात् विज्ञान वा धन की प्राप्ति से जैसे सर्प्प फण को चलाता है, वैसे (गिरः) वाणियों को (शुश्रवत्) सुन कर सुनावोगे ॥
अन्वय:
हे अङ्ग क्षिप्रकारिन्निन्द्रो ! भवान् पदा क्षुम्पमिवाराधसं मर्त्तं कदा स्फुरत् कदा नोऽस्मान् पदा क्षुम्पमिव स्फुरत् कदा नोऽस्माकं गिरः शुश्रवदिति वयमाशास्महे ॥
(कदा) कस्मिन् काले (मर्त्तम्) मनुष्यम् (अराधसम्) धनरहितम् (पदा) पदार्थप्राप्त्या (क्षुम्पमिव) यथा सर्प्पः फणम् (स्फुरत्) संचालयेत् (कदा) (नः) अस्माकम् (शुश्रवत्) श्रुत्वा श्रावयेत् (गिरः) वाणीः (इन्द्रः) सभाद्यध्यक्षः (अङ्ग) शीघ्रकारी। यास्कमुनिरिमं मन्त्रमेवं समाचष्टे। क्षुम्पमहिच्छत्रकं भवति यत् क्षुभ्यते कदा मर्त्तमनाराधयन्तं पादेन क्षुम्पमिवावस्फुरिष्यति। कदा नः श्रोष्यति गिर इन्द्रो अङ्ग। अङ्गेति क्षिप्रनाम । (निरु०५.१६) ॥
भावार्थभाषाः -हे मनुष्यो ! तुम लोग में से जो दरिद्रों को भी धनयुक्त, आलसियों को पुरुषार्थी और श्रवणरहितों को श्रवणयुक्त करे, उस पुरुष ही को सभा आदि का अध्यक्ष करो। कब यहाँ हमारी बात को सुनोगे और हम कब आपकी बात को सुनेंगे, ऐसी आशा हम करते हैं ॥-स्वामी दयानन्द सरस्वती
পদার্থ- (অঙ্গ) শীঘ্রকারী (ইন্দ্রঃ) সভা আদির অধ্যক্ষ (পদা) বিজ্ঞান অথবা ধনের প্রাপ্তি দ্বারা (ক্ষুম্পমিব) যেরূপ সর্প ফণাকে (স্ফুরৎ) চালনা করে, তেমনি (অরাধসম্) ধনরহিত (মর্ত্তম্) মনুষ্যকে (কদা) কোন সময়ে চালনা করাবে (কদা) কোন সময়ে (নঃ) আমাদেরকে উক্ত প্রকারে অর্থাৎ বিজ্ঞান বা ধনের প্রাপ্তি দ্বারা যেরূপ সর্প ফণাকে চালনা করে, তেমনি (গিরঃ) বাণীসমূহকে (শুশ্রবৎ) শুনে শ্রবণ করাবে॥
ভাবার্থ- হে মনুষ্যগণ ! তোমাদের মধ্যে যে দরিদ্রদেরও ধনযুক্ত করে, অলসদের পুরুষার্থী এবং শ্রবণরহিতদের শ্রবণযুক্ত করে, সেই পুরুষকেই সভা আদির অধ্যক্ষ করো। কখন এখানে [সভা আদিতে] আমাদের কথা শুনবেন এবং আমরা কখন আপনার কথা শুনব, এরূপ আশা আমরা করি॥
"অরাধসম" শব্দটি এসেছে, "রাধ ইতি ধননাম ; (নিরুক্ত ৪।৪) অর্থাৎ ধন বা ঐশ্বর্যহীন বা দানহীন কৃপণ ব্যক্তি হলো অরাধসম্। অর্থাৎ রাষ্ট্রে যারা অনেক ধনী ব্যক্তি, মানুষের অর্থ শোষণ করে বড়লোক কিন্ত গরীবদের দানধ্যান করেন না বৈদিক বিধি অনুযায়ী তাদেরকে বলা হচ্ছে অরাধসম্ যাকে বিদ্যামার্তণ্ড বলেছেন দানহীন।
পন্ডিত হরিশরন সিদ্ধান্তলঙ্কার জী কৃত ভাষ্যঃ
গত মন্ত্র অনুসারে প্রভুই ঈশান তিনি অপ্রতিষ্কৃত। ওনার সাম্রাজ্যে এক ব্যক্তি দুষ্ট পৈশাচিক অশুর লোকদের বৃদ্ধি এবং ধার্মিক ব্যক্তিদের ক্লিষ্ট হতে দেখে বলে উঠে কখন প্রভু যজ্ঞাদি না করা পুরুষদের পূর্ণরূপে নষ্ট করবে !!? যেমন ভাবে মাশরুম কে পা দিয়ে মাড়িয়ে নষ্ট করা হয়, খুম্বের শক্তি নেই তা পায়ের সংস্পর্শে এলেই নষ্ট হয়ে যায় যেমন, যা দুদিন আগে চমক দেয় তা পরমুহুর্তে নষ্ট হয়ে যায়। কখন প্রভু এই সব মনুষ্যের প্রার্থনা শুনেন..আমার তো এই প্রার্থনা যেন তিনি শিঘ্র এই কথা শোনেন ! আমাদের ধৈর্যের পরীক্ষা ততটায় হোক যতোটা আমাদের সামর্থে কুলোয়। ধর্ম্মিক ব্যক্তিদের পীড়িত হতে দেখে না আমাদের ধৈর্য্য হারিয়ে যায়।
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Rigveda Hindi Translation by Dr Ganga Sahay Sharma This Hindi Translation is based on Sayanacharya Commentary. |
_______যেরূপ বর্ষার মাটিতে গজানো ছাতা (ছাতু) কে সহজে পায়ে করে নষ্ট করা যায়, তেমন যারা যজ্ঞ করে না তাদের ইন্দ্র হনন করবেন, ইন্দ্র আমাদের পার্থনা কবে শুনবেন ?!!
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