सृष्टि निर्माण की Vedic Rashmi Theory-
इस Theory के अनुसार शुरुआत में हमारा Universe अपनी मूल कारण अवस्था में पुरे अनंत स्पेस में फैला था , Matter अपनी मूल अवस्था में था और अनंत स्पेस में सर्वत्र फैला था , उस समय उस Matter की Properties क्या थी ये जानना जरुरी है , तब ब्रम्हांड कि शुरुआती अवस्था के लक्षण थे –
शून्य तापमान ( 0 K )
शून्य घनत्व
शून्य बल
अत्यंत शांत
शून्य गति
तब समय भी नहीं था |
तब दिशा नहीं थी |
आकाश नहीं था |
यहाँ ब्रम्हांड की शुरुआत अवस्था में Matter कि अवस्था ऐसी थी जिसे जाना नहीं जा सकता , क्यों कि उस Matter के सभी गुण सोई हुयी अवस्था में थे , Inactive थे , इसलिए वास्तव में क्या था ? इसे निश्चय रूप से कोई नहीं बता सकता , किसी भी प्रकार कि technology से ये जाना नहीं जा सकता , उस समय वह Matter गति से शून्य था , क्रिया से शून्य था , उसमे कोई क्रिया नहीं थी , इसलिए उसमे कोई बल भी नहीं था , और इसीलिए उसमे कोई Temperature भी नहीं था , वह अत्यंत शीतल यानि Absolute Zero Temperature वाला था , वह पुरे अनंत स्पेस में फैला था इसलिए उसका घनत्व शून्य था , कोई क्रिया नहीं थी , गति नहीं थी, इसलिए समय भी नहीं था क्यों कि जहाँ क्रिया व गति है वहां समय है , जहाँ क्रिया , गति नहीं वहां समय भी नहीं , इसलिए समय भी नहीं था , वह Matter अत्यंत शांत अवस्था में था , उसके सभी गुण प्रसुप्त यानि सोए हुए थे ,जैसे एक कमरे में कई बच्चे सो रहे हो तब उनकी अलग अलग Properties नहीं पता चलती , जब वे जागते है तब उनके अलग अलग Nature भी व्यक्त हो जाते हैं इसी तरह उस Matter कि Properties अव्यक्त थी , इसीलिए वह Matter भी अव्यक्त था , उसे पूर्ण रूप से जानना सर्वथा असम्भव है , उस Matter के तीन मुख्य गुण होते है , ये तीन गुण है-
सत्व-Force
रज – Motion
तम – Mass
ये तीन Force , Motion और Mass ही उसके तीन गुण है जो उस समय प्रसुप्त रहते हैं यानि सोए हुए जैसे रहते है , जाग्रत नहीं होते , Inactive रहते हैं , Force , Motion और Mass तीनों पूरी Physics के आधार है |
तब उस Matter से ईश्वर ने सृष्टि की रचना कैसे की ? ईश्वर सर्वव्यापक होने से अनंत स्पेस में हर जगह है और उस Matter के अंदर भी है , ईश्वर ने उस प्रकृति को “ओ३म् रश्मि” के द्वारा सर्वत्र प्रेरित किया , प्रथम प्रेरणा से “ओ३म् रश्मि” प्रकट होकर उस Matter को प्रेरित करती है , और उसके गुणों को जाग्रत कर देती है |
इस तरह प्रकृति के गुण जाग्रत होते हैं ,सबसे पहले महत्तत्व बनता है , महत्तत्व से मनस्तत्व . मनस्तत्व से सूक्ष्म प्राण और मरुत रश्मिया , इनसे छंद रश्मिया , और आगे क्वार्क , प्रोटोन , Nucleus , एटम , Molecule आदि बनते है | ये सब कैसे बनते हैं इसे समझने के लिए आप ऐसा समझ सकते हैं जैसे एक शांत समुद्र में बहुत सी लहरे उठती है , तब उन लहरों में भी अनेकों लहरे होती है , इसी तरह ऐसा समझे की प्रकृति रूपी समुद्र में ॐ रश्मि रूपी लहर , अन्य लहरों को जन्म देती है और इस तरह विभिन्न लहरें बनती है , प्रकृति में इन लहरों को हम रश्मि जैसा समझ सकते है , अब रश्मि क्या है इसे जानते है –
रश्मि का अर्थ है Vibrating Entities यानी ऐसी सत्ता जो लगातार Vibrate करती रहती है , वैदिक व्याकरण के अनुसार रश्मि का अर्थ है ” रश्मिर्यमना” अर्थात जो नियम में रखे उसे रश्मि कहते है |
इन सभी रश्मियों के अलग अलग कार्य होते हैं , उन्ही को ये रश्मियां करती है , जैसे इन्हे किसी विशेष काम के लिए Programmed कर दिया गया हो – ऐसा समझ सकते है | पूरा ब्रम्हांड इन्ही रश्मियों से मिलकर बना है |
इन सब रश्मियों में ॐ रश्मि सबसे सूक्ष्म होती है और हर जगह होती है , यह अन्य सभी रश्मियों को नियंत्रित करती है , ॐ रश्मि के द्वारा ईश्वर ब्रम्हांड को चलाता है , निर्माण और विनाश करता है , इस सूक्ष्म ॐ रश्मि के द्वारा ईश्वर कैसे ब्रम्हांड को चलाता है इसे इस वीडियों से समझ सकते हैं , वीडियो में एक व्यक्ति एक छोटे से ब्लॉक को हल्के से फ़ोर्स से गिराता है और इस तरह बाकि बड़े बड़े ब्लॉक गिर जाते है , इसी तरह ॐ रश्मि अन्य रश्मियों को प्रेरित करती है और Universe की बड़ी बड़ी चीजों को कंट्रोल करती है , यह ॐ रश्मि अन्य सभी रश्मियों के अंदर व्याप्त रहकर उनको कंट्रोल करती है |
इस तरह ब्रम्हांड को बनने में लाखों करोड़ों सालों का समय लगता है , कौनसा तत्व या पार्टिकल कैसे बनता है , इसकी एक प्रोसेस होती है , इन लाखों करोड़ों सालों में ब्रम्हांड किस तरह बनता है और कब कब कैसी अवस्थाएं आती है इन सबका वर्णन वेद विज्ञान आलोक नाम के एक पुस्तक में है जिसे आप Amazon पर खरीद सकते हैं ,यह पुस्तक 2800 Pages की है जो ब्रम्हांड के सभी रहस्यों के बारे में वेदों से बताती है |
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यह सिर्फ पुस्तक नहीं बल्कि एक रिसर्च का भण्डार है जिस पर पूरी दुनिया के वैज्ञानिक रिसर्च कर सकते है , जिसकी मदद से वैज्ञानिक विज्ञान की अनसुलझी समस्याओं का समाधान ले सकते है , यह phd स्तर की पुस्तक है , रिसर्च करने वाले ही इसे लेकर इसे समझ सकते है |
इसमें सभी चीजों के बारे में बताया गया है जैसे
dark energy क्या है
काल तत्व क्या है
फ़ोर्स कैसे पैदा होते है ?
कितने प्रकार के Fundamental Force होते हैं ?
Mass क्या होता है ? स्पेस क्या होता है ?
ब्रम्हांड में कितने प्रकार के ग्रह और तारे होते हैं , ये तारे कैसे बनते हैं ?
प्रकाश से भी तेज कौन सा तत्व है जिसकी गति प्रकाश से 4 गुना तेज है ?
प्रकाश कैसे परावर्तित होता है ?
इस तरह वर्तमान विज्ञानं जिन बातों को नहीं Explain कर सकता उन सबको इस पुस्तक में Explain किया गया है , यह पुस्तक एक बहुत बड़ा रिसर्च का भण्डार है |
इस रिसर्च को वैदिक वैज्ञानिक आचार्य अग्निव्रत नैष्ठिक जी ने 14 वर्ष की लगातार मेहनत और Research से तैयार किया है , उनका उद्देश्य भारत देश के प्राचीन विज्ञान को पुनर्स्थापित करके , वर्तमान विज्ञान को एक नयी दिशा देना है जिस से पूरी दुनिया में मानवता कि स्थापना हो , वेद और वैदिक विज्ञान से ही यह सम्भव है |
ब्रम्हांड क्यों बना ?
जब हम इस ब्रम्हांड को देखते हैं इसकी विभिन्न क्रियाओ को देखते हैं यह सवाल हम सब के मन में उठता कि आखिर यह ब्रम्हांड कैसे बना ? इस एक सवाल की खोज में सालों से वैज्ञानिक लगे हुए हैं ,लेकिन इस सवाल के अलावा एक और सवाल है जो इस से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि यह ब्रम्हांड क्यों बना ? क्यों का महत्व कैसे से अधिक है , सबसे बड़ा सवाल ही “क्यों” है आपके घर में कोई व्यक्ति आता है तो आप सबसे पहले पूछते हो – क्यों आये , आप यह नहीं पूछते कि कैसे आये ? क्यों का महत्व कैसे से अधिक है , इसीलिए विज्ञान में यह भी एक सवाल आता है कि why the universe exist ?
“क्यों” को जानना दर्शन का क्षेत्र है और “कैसे” को जानना विज्ञान का क्षेत्र है , ब्रम्हांड कैसे बना यह विज्ञान बताएगा ? लेकिन ब्रम्हांड क्यों बना ये दर्शन बताएगा |
यदि यह माना जाये कि ब्रम्हांड अपने आप बना है तब इस प्रश्न का कोई महत्व नहीं रह जाता है कि ब्रम्हांड क्यों बना ? क्यों कि अपने आप बनने की Theory में इसे या तो इसे आकस्मिक रूप से बना हुआ माना जाता है या स्वाभाविक रूप से यानि Naturally , दोनों ही संभावनाओं में कोई प्रयोजन या उद्देश्य नहीं होगा और बिना उद्देश्य के यह प्रश्न निराधार होगा , ब्रम्हांड में हर जगह नियम कार्य कर रहे हैं और ये नियम पूर्णता के साथ संचालित है |
ब्रम्हांड में हर जगह वैज्ञानिकता दिखाई देने के कारण अनेकों वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया कि इस ब्रम्हांड को बनाने वाली एक बुद्धिमान सत्ता जरूर है , वे सब वैज्ञानिक प्रचलित religions के ईश्वर को अवैज्ञानिक मानते हैं लेकिन वे एक बुद्धिमान सत्ता को जरूर स्वीकार करते हैं जिसका एक वैज्ञानिक स्वरूप(Scientific Form) है , वैज्ञानिकों के इन विचारों को जानने के लिए आप निम्न लेख पढ़ सकते हैं |
इसलिए यह बात सिद्ध है कि ब्रम्हांड को किसी ने बनाया है और ऐसा होने पर यह प्रश्न बिलकुल उचित बैठता है कि ब्रम्हांड को क्यों बनाया ? इसका अस्तित्व क्यों है ?
दर्शन के क्षेत्र में उतरकर इस सवाल का जवाब हम एक विद्वान् की लेखनी से ही आपको दे रहे हैं , जिसे पढ़कर आप स्वयं उनकी विद्वता का अनुमान लगा लेंगे इसलिए उन विद्वान् का नाम लेना आवश्यक नहीं , लेख के अंत में ही उनका नाम पता चलेगा , तो चलिए शुरू करते हैं –
आज हमारे एक मेहरबान ने कहा कि
दिल में मेरे ये खयाल उत्पन्न होता है जब वह अपने आप में कोई कमी नहीं रखता | पूर्ण है !! Perfect है !!! तो दुनिया क्यों बनाई ?
मैंने कहा कि
यही दलील बनाने कि जरूरत को साबित करती है यानी उसका हर तरह से पूर्ण होना |
आप कहेंगे – कैसे ? जिसके अंदर कोई ख्वाहिश नहीं , कोई इच्छा नहीं ,कोई कमी नहीं , लेकिन पूर्णता है हर प्रकार की , इल्म भी उसका पूरा है , शक्ति भी उसमे पूरी है और व्यापकता भी उसकी पूरी है , तीनों प्रकार से जो पूरा है यानि परमात्मा ! तो बतलाइये वह अपनी पूर्णता को किस प्रकार सफल करे ? अपने इस कमाल को किस प्रकार बाकार करे ?
क्यों कि किसी शय का होना महज होने के लिए हो तो उसका होना न होने के बराबर होता है , जरा गौर कीजिये मेरे शब्दों पर , किसी वस्तु का होना महज होने के लिए हो तो उसका होना न होने के बराबर होता है | परमात्मा पूर्ण है अपनी पूर्णता का क्या लाभ ? अपने पुरे आलिम(काबिल) होने का क्या लाभ ? सूरज से प्रकाश हमको मिलता है , इस बल्ब से भी प्रकाश हमें मिलता है | हम पूछते है कि इसका इसके आलावा और कोई लाभ है कि आपको रोशनी दे रहा है ?
पूर्णता का होना इसी चीज में पूरा होगा कि जितना ज्यादा फायदा उसकी पूर्णता का यानी कमाल से दूसरे को हो जाये उतना ही उसका वजूद सफल है , और जितना न पहुंचे उतना असफल है |
आप कल्पना कीजिये कि – एक वजूद (अस्तित्व) है और उसके अलावा और कोई नहीं है तथा वही तो मैं कहूंगा उसका होना न होने के बराबर है |
उदाहरण के तौर पर अगर एक बड़ा डॉक्टर है , लेकिन बीमार कोई नहीं है और न दुनिया में दवाइयां है तो मुझे बताइये कि डॉक्टर के होने का क्या फायदा है ?
इसलिए विद्वान् लोगों ने कहा है कि जो अपने अंदर कोई गुण रखता है , उस गुण कि सफलता अन्य को लाभ पहुँचाने में है | अपनी आवश्यकता तो हम पूरी करते ही हैं , लेकिन अपने कमाल से गैरों की आवश्यकता को पूरा करना और उनके लिए सहारा बनना , यह ऊँचे दर्जे की बात है |
एक अंग्रेजी का बहुत छोटा सा जुमला है
Every opportunity to help is a duty.
प्रत्येक अवसर जो हमें सहायता का मिल जाये वह हमारा कर्त्तव्य है , जो मौका भी हमें मिल जाए किसी की मदद करने का वह हमारा फर्ज है , क्यों कि हम अपने गुण से कुछ तो फायदा पहुंचाए , अपने कमाल से उनको लाभान्वित करें |
मेरा बोलना तभी सफल है जब सुनने वाले हो , श्रोताओं के बिना मेरा बोलना सफल नहीं है , इसी तरह परमात्मा का वजूद कहाँ सफल होगा ? परमात्मा सर्वज्ञ है |
ज्ञान हमेशा अनपढ़ों में सफल होता है , ताकत हमेशा कमजोरों की रक्षा में सफल होती है , याद रखिये रोशनी हमेशा अँधेरे में सफल होती है , जहाँ अँधेरा है वही उसको ले जाइये रोशनी सफल हो जाएगी , जो ज्ञानी है , पढ़े लिखे है , वे अपनी जिंदगी को वहीँ सफल कर सकते हैं जहाँ अज्ञानी , अनपढ़ है , ताकि उनको कुछ पढ़ा सके , इस से पढ़े लिखे लोग सफल हो जायेंगे |
ईश्वर सर्वज्ञ है , सर्वज्ञ होने से उसकी जिम्मेदारी अपने आप सिद्ध है उसकी responsibility का आगाज स्वयं सिद्ध है , जब ईश्वर जानता है कि जीवात्मा अल्पज्ञ है , ज्ञान में कमजोर है , कम जानने वाला है और मैं (ईश्वर) सर्वज्ञ हूँ , सब कुछ जानने वाला हूँ तो इस से बेहतर और कौन सा मौका होगा ईश्वर के लिए कि वो अपने अस्तित्व को सफल कर सके , अपने ज्ञान को सफल कर सके , बेकार न जाने दे useful बनाये , unuseful न रहने दे |
सोचने की बात है कि इस हिसाब से ईश्वर ने क्या किया ? जीवात्मा हमेशा से उसके साथ है अनादि काल से तो अनादि काल से ईश्वर ने क्या समझा ? कि मेरी Duty है अब मेरा कर्त्तव्य है – Every opportunity to help is a duty और ये मौका ईश्वर को अनादि काल से मिला हुआ है वो अनादि काल – There is no beginning at all जहाँ कोई शुरुआत नहीं है तब से मिला हुआ है ,इसलिए ईश्वर सृष्टि रचना करके , जीवात्मा को ज्ञान प्रदान करता है और अपने अस्तित्व को सफल करता है |
परिवार में पिता के लिए बड़ा पछतावा होता है जब कोई उनको कहे कि आप इतने विद्वान और आपका बेटा जाहिल रह गया , क्या वजह ? इसलिए कहते हैं परमात्मा हमेशा से जानता है कि मेरा अपना ज्ञान जीवात्मा के होने से ही सफल है , यदि जीवात्मा न हो और प्रकृति न हो तो ईश्वर भी नही होगा , बल्कि न होने के बराबर होगा | किसके लिए होगा फिर वह ? अगर प्रकृति नहीं तो अपनी कारीगरी किसमें दिखाए ?
इसलिए ईश्वर के पास जीवात्मा हमेशा से है और प्रकृति भी हमेशा से है , यह देखकर वह खली कैसे बैठा रहे ? खली बैठने के लिए लोग क्या कहा करते हैं ?
An idle mind is devil’s workshop
यानि कि खाली दिमाग शैतान का घर , इसलिए यह सवाल हम मुसलमानों से किया करते हैं , आप यह बताइये कि जब अकेला खुदा ही था और कोई नहीं था तब खुदा किसके लिए था ? वे कहते हैं कि अपनी कुदरत दिखाने के लिए दुनिया पैदा की हम पूछते हैं किसको दिखाने के लिए ? जिसको दिखाना है वह तो पैदा ही नहीं हुआ था , जिसको दिखाना है वह पहले से होना चाहिए , नहीं है तो किसको दिखाता ?
इसलिए यहाँ एक कारण स्पष्ट है कि ईश्वर ने दुनिया को , ब्रम्हांड को जीवात्मा के लिए बनाया , इस कारण की विवेचना को आप ने ऊपर पढ़ा , यह पंडित रामचंद्र देहलवी जी की पुस्तक से लिया गया है , जिस पुस्तक का नाम ही है ” ईश्वर ने दुनिया क्यों बनाई “
आइये हम इस सवाल का एक दूसरा पक्ष देखते हैं , महर्षि दयानन्द अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में इस प्रश्न का जवाब देते है
(प्रश्न) जगत् के बनाने में परमेश्वर का क्या प्रयोजन है?
(उत्तर) नहीं बनाने में क्या प्रयोजन है?
(प्रश्न) जो न बनाता तो आनन्द में बना रहता और जीवों को भी सुख-दुःख प्राप्त न होता।
(उत्तर) यह आलसी और दरिद्र लोगों की बातें हैं पुरुषार्थी की नहीं और जीवों को प्रलय में क्या सुख वा दुःख है? जो सृष्टि के सुख दुःख की तुलना की जाय तो सुख कई गुना अधिक होता और बहुत से पवित्रात्मा जीव मुक्ति के साधन कर मोक्ष के आनन्द को भी प्राप्त होते हैं।
प्रलय में निकम्मे जैसे सुषुप्ति में पडे़ रहते हैं वैसे रहते हैं और प्रलय के पूर्व सृष्टि में जीवों के किये पाप पुण्य कर्मों का फल ईश्वर कैसे दे सकता और जीव क्यों कर भोग सकते? जो तुम से कोई पूछे कि आंख के होने में क्या प्रयोजन है? तुम यही कहोगे कि देखना |
तो जो ईश्वर में जगत् की रचना करने का विज्ञान, बल और क्रिया है उस का क्या प्रयोजन ? विना जगत् की उत्पत्ति करने के ? दूसरा कुछ भी न कह सकोगे। और परमात्मा के न्याय, धारण, दया आदि गुण भी तभी सार्थक हो सकते हैं जब जगत् को बनावे। उस का अनन्त सामर्थ्य जगत् की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय और व्यवस्था करने ही से सफल है। जैसे नेत्र का स्वाभाविक गुण देखना है वैसे परमेश्वर का स्वाभाविक गुण जगत् की उत्पत्ति करके सब जीवों को असंख्य पदार्थ देकर परोपकार करना है।
यहाँ ऋषि ने स्पष्ट कर दिया कि इस सृष्टि के बनाने में ईश्वर का क्या उद्देश्य है , आशा है आपको यहाँ एक नई जानकारी मिली होगी इसलिए लेख को अपने दोस्तों के साथ share जरूर करें |
🌍 www.vedicphysics.org, www.vaidicphysics.org
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