অথর্ব্বেদ ১৮/৩/১ - ধর্ম্মতত্ত্ব

ধর্ম্মতত্ত্ব

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12 September, 2021

অথর্ব্বেদ ১৮/৩/১

इ॒यं नारी॑पतिलो॒कं वृ॑णा॒ना नि प॑द्यत॒ उप॑ त्वा मर्त्य॒ प्रेत॑म्। धर्मं॑पुरा॒णम॑नुपा॒लय॑न्ती॒ तस्यै॑ प्र॒जां द्रवि॑णं चे॒ह धे॑हि ॥

 ইয়ং নারী পতি লোকং বৃণানা নিপদ্যত উপত্ব্য মর্ন্ত্য প্রেতম্।

ধর্মং পুরাণমনু পালয়ন্তী তস্ম্যৈ প্রজাং দ্রবিণং চেহ ধেহি।।

অথর্ব্বেদ ১৮/৩/১

पदार्थान्वयभाषाः -(मर्त्य) हे मनुष्य ! (इयम्) यह (नारी) नारी (पतिलोकम्) पति के लोक [गृहाश्रम के सुख] को (वृणाना)चाहती हुई और (पुराणम्) पुराने [सनातन] (धर्मम्) धर्म को (अनुपालयन्ती) निरन्तरपालती हुई (प्रेतम्) मरे हुए [पति] की (उप) स्तुति करती हुई (त्वा) तुझको (निपद्यते) प्राप्त होती है, (तस्यै) उस [स्त्री] को (प्रजाम्) सन्तान (च) और (द्रविणम्) बल (इह) यहाँ पर (धेहि) धारण कर ॥[पण्डित क्षेमकरणदास त्रिवेदी]

भावार्थभाषाः -यदि विधवा स्त्री मृतपति के गुण गाती हुई सन्तान उत्पन्न करना चाहे, वह मृतस्त्रीक पुरुष के साथयथाविधि नियोग करके अपने कुल की वृद्धि के लिये सन्तान उत्पन्न करे। इसी प्रकारमृतस्त्रीक पुरुष अपने कुल को बढ़ती के लिये सन्तान उत्पन्न करने को विधवास्त्री से विधिवत् नियोग करे ॥१॥यह मन्त्र महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका नियोगविषय में व्याख्यात है ॥

टिप्पणी:१−(इयम्) दृश्यमाना विधवा (नारी)ऋतोऽञ्। पा० ४।४।४९। नराच्चेति वक्तव्यम्। इति तत्रैव वार्त्तिकं च। नृ, नर-अञ्।शार्ङ्गरवाद्यञोङीन्। पा० ४।१।७३। इति ङीन्। नुर्नरस्य वा धर्माचारोऽस्यां सा।स्त्री (पतिलोकम्) पतिगृहम्। गृहाश्रमसुखम् (वृणाना) वाञ्छन्ती (निपद्यते)प्राप्नोति (उप) पूजायाम्। उपगच्छन्ती। स्तुवाना (त्वा) त्वाम् मृतस्त्रीकम् (मर्त्य) हे मनुष्य (प्रेतम्) प्र+इण् गतौ-क्त। मृतं पतिम् (धर्मम्) धारणीयं नियमम् (पुराणम्) पुरा अग्रे नीयते। णीञ्-ड। सनातनम् (अनुपालयन्ती) निरन्तरं रक्षन्ती (तस्यै) विधवायै (प्रजाम्) सन्तानम् (द्रविणम्) बलम्-निघ० २।९ (च) (इह)गृहाश्रमे (धेहि) धारय ॥

পদার্থঃ— মর্ত্য-হে মনুষ্য, ইয়ং নারী-এই স্ত্রী, পতিলোকম-পতিলোককে অর্থাত্ বৈবাহিক অবস্থাকে, বৃণনা-কামনা করিয়া, প্রেতম-মৃত পতির, অনু-পরে, উপ ত্বা-তোমার নিকট, নিপদ্যতে-আসিতেছে, পুরাণম-সনাতন, ধর্ম্মম-ধর্মকে, পালয়ন্তী-পালন করিয়া, তস্য-তাহার জন্য, ইহ-এই লোকে, প্রজাম্-সন্তানকে, দ্রবিণং-এবং ধনকে, ধেহি-ধারন করাও।

বঙ্গানুবাদঃ— হে মনুষ্য! এই স্ত্রী পুনর্বিবাহের আকাঙ্খা করিয়া মৃত পতির পরে তোমার নিকট আসিয়াছে। সে সনাতন ধর্মকে পালন করিয়া যাতে সন্তানাদি এবং সুখভোগ করতে পারে।


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